कोरोना महामारी के दौर मे पत्रकार सरकारों व सामाजिक संगठनों की बेरुखी के शिकार

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कोरोना महामारी के दौर मे पत्रकार सरकारों व सामाजिक संगठनों की बेरुखी के शिकार
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सी एम पपनैं

कोरोना विषाणु संक्रमण देश के पत्रकारो के लिए ऐसी चुनोती लेकर आया है, जैसी उसे पहले कभी नहीं मिली थी। बढ़ती महामारी के इस दौर मे पत्रकार जहां एक ओर संक्रमण की परवाह किए बगैर पत्रकारिता का अपना धर्म निभा रहा है, वही दूसरी ओर आर्थिक मंदी के संदेह के बीच उसके आगे मीडिया घरानो ने बेरोजगारी का भय खड़ा कर दिया है। कई पत्रकारो को बाहर निकाल, उनके आगे आर्थिक तंगी की समस्या खड़ी कर दी है। स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों का और भी बुरा हाल हो गया है। लंबी पूर्णबंदी के चलते पत्रकार खुद अपने बिगड़े हालात किसके सामने रखे, यह एक विचारणीय व चिंता का विषय हो गया है। ऐसे में पत्रकारों को भी इस संकट के दौर मे हर हाल अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए सामाजिक, राजनैतिक व प्रशासनिक आर्थिक मदद की आवश्यकता जान पड़ रही है।

देखा जा रहा है, बढ़ते लाकडाउन के दौर में न ही सरकार, न ही सामाजिक संगठन, मीडिया कर्मियों की सुध लेती दिखाई दे रही है। मीडिया कर्मियों की आर्थिक हालात दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। जिस हेतु कई पत्रकार तथा पत्रकार संगठन मुहीम चला कर सरकार व प्रशासन का ध्यान खींच रहे हैं, जिससे सरकार को पत्रकारों की समस्या व आर्थिक तंगी का बोध हो सके। देहरादून से युवा पत्रकार कैलाश जोशी ‘अकेला’,लखनऊ से आईएफडब्लूजे राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रम राव, दिल्ली से वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनूप चौधरी व महासचिव नरेंद्र भंडारी तथा दिल्ली से ही डीएफएनई महासचिव सुरवीर पत्रकारों की इस मुहीम को राष्ट्रीय स्तर पर धार दे रहे हैं।

मारक वैश्विक महामारी के इस दौर मे, देश के बेहद जटिल और साधनहीन व वंचितों की बहुआबादी वाले देश मे सामाजिक करार का स्त्रोत पत्रकारिता ही है। ऐसी महामारी के दौर मे जब कोई भी किसी की मदद करने की स्थिति में नही है। ऐसे में पत्रकार विरादरी हर वर्ग व समुदाय की समस्या सरकार तक और सरकार के कार्यो को जनमानस के बीच लाने का प्रमुख कार्य कर रही है। इस अभूतपूर्व स्थिति व वक्त में जनमानस को सूचनाओं की जरुरत भी है।

सर्वविदित है, पत्रकारों द्वारा जुटाई गई सूचनाऐं प्रशासन और जरुरत मंद लोगों के बीच पुल की भूमिका निभा रही है। इस कारण कोरोना संक्रमण की महामारी मे मीडिया कर्मियों की जिम्मेवारी ओर भी अधिक बढ़ गई है। मीडिया कर्मी अपना धर्म व दायित्व समझ कोरोना संक्रमण से बिना डरे, जनमानस के बीच पहुच, उसे जागरूक करने, लोगों की समस्या जान उसे उजागर करने तथा सरकार व प्रशासन को उक्त समस्याओं से अवगत करा, पत्रकारिता का धर्म निष्ठापूर्वक निभा रहा है।

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, इंदौर तथा भोपाल जैसे महानगर व नगरो मे पत्रकार कोरोना संक्रमण की चपेट में हैं। जिनमे पत्रकारिता का अपना दायित्व निभाते दर्जनों मीडिया कर्मी कोरोना संक्रमण के शिकार हो गए हैं। उक्त मीडिया कर्मी लोगों की समस्याओं के साथ-साथ सरकार के लागू प्रावधानो को भी कवर कर रहे थे। उक्त पत्रकार अपने परिवार के सदस्यों की चिंता छोड़, यह जानकर भी कि उनके परिजनों का क्या होगा? उनकी मदद कोन करेगा? स्वयं की देखभाल व सतर्कता के बावजूद दुर्भाग्यवश कोरोना संक्रमण की जद में आ गए हैं।

दरअसल न्यूज कवर कर रहे मीडिया कर्मियों को यह ज्ञात नहीं हो पाता कि किसके संपर्क में आने से उन्हे संक्रमण हुआ। क्यों कि उन्हे महासंकट व मीडिया संस्थानों की प्रतिस्पर्धा होड़ में, अपनी जान की परवाह किए बगैर, रिश्क लेकर, पल-पल की खबरे अस्पतालों, पुलिस स्टेशनों व सड़कों पर रिपोर्टिंग कर मुकाम तक पहुचानी होती हैं। लोगों की समस्याओं के साथ-साथ सरकार के लागू प्रावधानों को भी कवर करना पड़ता है। स्थानीय मीडिया रिपोर्टरों पर तो और भी ज्यादा दबाव होता है।

महामारी के इस बढ़ते दौर में देखा जा रहा है, फील्ड में काम करने वाले पत्रकारों, जिन्हे कोरोना नही भी हुआ, उन्हे भी मीडिया प्रबन्धको ने दफ्तर आने की अनुमति नहीं दी है। खबर कवर करने वाले उपकरण घर पर ही रखने को कहा गया है। गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कोई खबर कही चल रही हो, तो रिपोर्टर को उस खबर को कवर कर अपने महकमे में चलाना जिम्मेवारी बन जाती है, जिस कारण उस रिपोर्टर को फील्ड रिपोर्टिग के लिए उतरना ही होता है, क्योकि मीडिया कॉरपोरेट ऐसी खबरो को अपनी साख समझता है। पत्रकारों का दुर्भाग्य रहा है, लगातार बढ़ते लाकडाउन व बढ़ते संक्रमण की स्थिति में मीडिया संस्थानों की कोई गाइड लाइन अभी तक नही आई है।

जो मीडिया कर्मी संयुक्त परिवारों के साथ निवासरत हैं, उन्हे खुद को आइसोलेट करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। महिला मीडिया कर्मियों को तो घर का काम भी संभालना होता है। ऐसे हालात में कुछ मीडिया कर्मी घर-परिवारों से दूर रहने को भी मजबूर हैं, यह सोच कि परिवार के लोग सुरक्षित रहेंगे।

केंद्र व राज्य सरकारों से जुड़े मंत्रियों, देश की राष्ट्रीय पार्टियों से जुड़े नेताओं के बयानों व ट्वीटों, यहां तक कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रैसकांफ्रेंश मे लव अग्रवाल द्वारा भी पत्रकारों के कोरोना संक्रमण हो जाने पर सिर्फ चौकाने वाली बात कह कर, दुःख ही प्रकट किया गया है। अन्य नेताओं द्वारा संस्थान के प्रबंधकों से पत्रकारों की मदद करने व उनके बीमा करने की बात मात्र फॉर्मेल्टी के नाते ही कही गई लगती है। नेताओ द्वारा पत्रकारों से अपील की गई है, कार्य करते हुए वे बचाव के सभी तरीकों को अपनाऐं। किसी भी नेता ने यह नही सोचा कि पत्रकारों को भी बचाव किट की जरूरत है, जो उसे मुहैया करवाई जानी चाहिए।

शायद तत्कालीन मंत्रियों व राजनेताओं को या तो पता नहीं है या वे टालम-टलोई मे यह सब कह गये। उन्हे विदित होना चाहिए कि आज मीडिया संस्थानों मे लगभग मीडिया कर्मी ठेकेदारी प्रथा पर काम कर रहे हैं, बहुत कम पारिश्रमिक पर। पत्रकारों के जॉब को सुरक्षित करने वाला पत्रकार सुरक्षा कानून 1955 को वर्तमान केंद्र सरकार ने मीडिया कॉरपोरेट के चंगुल में आकर, पहले ही समाप्त कर दिया है। फिर भी जीवन का रिश्क उठा, मानवता के साथ-साथ अपना व अपने परिजनों का भरण-पोषण करने के लिए मीडिया कर्मी काम कर रहे हैं, उन्हे लगता है, मानवता को उनके काम की जरुरत है।

देखा जा रहा है, मीडिया कर्मियों के कोरोना संक्रमण से पीड़ित हो जाने की खबर के बाद भी रिपोर्टिंग करते वक्त उन्हे बीमारी का डर नही सता रहा। उन्हे डर सता रहा है, नोंकरी जाने का। क्यों कि कोरोना संकट के इस बीच कई मीडिया घरानों ने अपने प्रकाशन व संस्थानो को या तो बंद कर दिया है, या मीडिया कर्मियों की छटनी कर दी है। भविष्य में छटनी करने का भय भी मीडिया संस्थानों द्वारा दिखाया जा रहा है।

दरअसल जनमानस व पत्रकारों के बीच का सामाजिक करार अनूठा है। सामाजिक करार का श्रोत पत्रकारिता ही है। इसके पीछे विश्वास रहा है, जिस विश्वास पर मीडियाकर्मी इस कोरोना संकट व नोंकरी के भय के बावजूद अपना काम बहुत निष्ठा और साहस से कर रहा है। नाइंसाफियों एवं सरकार की खामियों को उजागर करते हुए खतरे की घन्टी बजा रहा है। यही वजह रही है, जब सरकार व प्रशासन जनमानस की बात नही सुनती तो पीड़ित जन सबसे पहले पत्रकार से ही संपर्क करता है। कयास लगाया जा रहा है, कोरोना संकट के इस भयावह दौर में पत्रकारों के समक्ष, लोगों के प्रति, सबसे बड़ी परीक्षा, आने वाले दिनों में होने वाली है।

जगजाहिर रहा है, सत्ता से पत्रकारिता का मतभेद बना रहा है। जो सदा पत्रकारिता की साफगोई के लिए बना भी रहना चाहिए। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संदेश में दोनों लाकडाउन के दौरान कहा, ‘डॉक्टर, अस्पताल कर्मचारियों, सरकारी अफसरों आदि की तरह मीडिया भी आवश्यक सेवाओं में शामिल है’। प्रधान मंत्री द्वारा मीडिया को आवश्यक सेवाओं में शामिल करना मीडिया जगत के लिए सुखद बदलाव के तौर पर आंका गया।

एक मई को तीसरे लाकडाउन की घोषणा 4 से 17 मई तक कर देने के पश्चात, देश के सभी बड़े-छोटे-मझोले व ग्रामीण स्तर पर पत्रकारिता कर रहे निष्ठावान व समर्पित पत्रकारों की निराशा यह सोच कर बढ़ती देखी जा रही है, कि पत्रकारों को न तो सरकार प्रोत्साहित कर रही है, न ही संकट के दौर में उनकी कुछ आर्थिक मदद का ऐलान कर रही है।

कोरोना के महासंकट में स्वयं संकटग्रस्त व असहाय हो चुके पत्रकारों का दिले-दर्द है, कि एक ओर जहां देश की राज्य व केंद्र सरकार क्वारैंनटाइन सेंटर, कोरोना परीक्षण मे जुटे कामो तथा जन सुरक्षा के कामो से जुड़े रहे सैनिटेशन वर्कर, सफाई कर्मचारी, आशा वर्कर, डॉक्टर, नर्स, वार्ड बाइज, पैरामेडिकल स्टाफ, हैल्थ वर्कर, टेक्नीशियन, पुलिस प्रशासन इत्यादि सभी को कोरोना योद्धाओं की सूची मे डाल उनका पचास लाख तक का बीमा तथा मृत्यु पर उनके परिजनों को पचास लाख से एक करोड़ तक आर्थिक मदद का ऐलान कर रही है, उनको कोरोना वारियर्स का सम्मान प्रदान कर रही है। देश के दस करोड़ लोगों के एकाउंट मे रुपया डाल आर्थिक मदद कर चुकी है, ऐसे मे देश के पत्रकारो को जो कोरोना महामारी संकट के दौर में स्वयं पत्रकारिता का धर्म निभा कोरोना संक्रमित हो गए हैं, अनेक पत्रकार लाचारी व भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं, नोकरिया संकट में पड़ गई हैं, उनकी सुध लेने वाली न कोई सरकार है, न सामाजिक संगठन।
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