क्षेत्र के इतिहास को यदि पलटा जाय तो देखने में आता है कि यमकेश्वर की सर्वाधिक दोनों पुरानी ऐतिहासिक मार्ग आज इतिहास के पन्नों मे सिमट कर रह गये हैं, इनमें से तालघाटी -गंगाभोगपुर- हरिद्वार- कनखल मोटर मार्ग और लालढांग-धारकोट-देवराणा- सीला फेडुवा मार्ग जो कि इस क्षेत्र के प्रमुख सड़क मोटर मार्ग रहे हैं वह नाम भर के लिए हैं। तालघाटी ऋषिकेश सड़क में तो अभी गाड़ियों का संचालन हो रहा है, लेकिन लालढांग-धारकोट-देवराणा- सीला फेडुवा मार्ग पूर्णत 1970 के दशक में ही बंद हो चुका था।
लालढांग-धारकोट-देवराणा- सीला फेडुवा मार्ग के इतिहास बहुत ही रोचक है। यह मार्ग मुख्यतः व्यापारिक मार्ग था। इस मार्ग से डांडामण्डल क्षेत्र से व्यापार किया जाता था। लालढांग से फेडुवा तक इस सड़क पर सर्वाधिक ट्रकों का संचालन होता था। इन ट्रकों में वन विभाग का सोखता यानी सूखे एवं कच्चे पेड़ कटते थे वह कटकर लालढांग जाता था। यहॉ पर लगभग 05 साल तक गंगा बस का संचालन हुआ। धारकोट से आगे गढाकोट राजस्व ग्राम से आगे लगभग 5 किलोमीटर आगे संकरीली और कच्ची पहाड़ी होने के कारण यहॉ पर बार बार सड़क टूट जाती थी। बार बार सड़क टूटने के कारण वहॉ पर तात्कालीन डीएफओ ने उक्त सड़क निर्माण के लिए जीआरड़ी के मिलट्री जवानों को बुलाया गया आज भी उस स्थल को मिलेट्री मिलान के नाम से जाना जाता था। उक्त सड़क पर गड़ाकोट, धारकोट, अमोला, देवराणा, कचुण्डा, काण्डे, तिमल्याणी सीला, और फेडुवा गॉव के लोग लालढांग आते जाते थे, उक्त सड़क को काण्डी में जोड़ने के लिए प्रयास किया जा रहा था।
धारकोट निवासी श्री रमेश चन्द्र शर्मा का कहना है कि मिलेट्री मिलान में जब सड़क बार बार टूटने लगी तो वन विभाग ने उक्त सडक के लिए बजट देना बंद कर दिया और उसके बाद इस सड़क पर गाड़ियों का संचालन बंद हो गया। यदि उक्त सड़क पर ध्यान दिया जाता तो आज यह सड़क क्षेत्र के लिए वरदान साबित होती।
यदि पुनः उक्त स़ड़क का निर्माण हो जाता है तो डांडामण्डल का अधिकांश क्षेत्र लालढांग और कोटद्वार से सीधा जुड़ जायेगा और काफी दूरी कम हो जायेगी, साथ ही पर्यटन को बढावा मिलेगा। क्योंकि उक्त सड़क आज भी वन विभाग के रिकार्ड में मौजूद है। यदि जनप्रतिनिधि और क्षेत्रीय जन मानस इसके लिए पुनः प्रयास करें तो क्षेत्र के लिए यह सड़क वरदान साबित होगी और क्षेत्र में पर्यटन और रोजगार के अवसर उपलब्ध होगें।