यमकेश्वर लालढांग – धारकोट- देवराणा- सीला – फेडुवा मोटर मार्ग का जानिये इतिहास और आज के परिदृश्य में इसका महत्व

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यमकेश्वरः किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए सड़कें वरदान साबित होती हैं, या यह कह सकते हैं कि क्षेत्र के विकास की रीढ़ सड़के ही होती हैं। यदि यमकेश्वर ब्लॉक की बात की जाय तो सबसे पुरानी सड़कों में से हरिद्वार से तालघाटी की सड़क थी। उसके बाद लालढांग-धारकोट-देवराणा-सीला- फेडवा मोटर मार्ग था। सन् 1960 में जब उत्तर प्रदेश के तात्कालीन कैबिनेट मंत्री स्व0 श्री जगमोहन सिंह नेगी के प्रयासों से लक्ष्मणझूला-नीलकंठ- काण्डी मोटर मार्ग बनाने का निर्णय लिया इसलिए उक्त सड़क का नाम जगमोहन सिंह नेगी मोटर मार्ग है। वहीं उसके

      क्षेत्र के इतिहास को यदि पलटा जाय तो देखने में आता है कि यमकेश्वर की सर्वाधिक दोनों पुरानी ऐतिहासिक मार्ग आज इतिहास के पन्नों मे सिमट कर रह गये हैं, इनमें से तालघाटी -गंगाभोगपुर- हरिद्वार- कनखल मोटर मार्ग और लालढांग-धारकोट-देवराणा- सीला फेडुवा मार्ग जो कि इस क्षेत्र के प्रमुख सड़क मोटर मार्ग रहे हैं वह नाम भर के लिए हैं। तालघाटी ऋषिकेश सड़क में तो अभी गाड़ियों का संचालन हो रहा है, लेकिन लालढांग-धारकोट-देवराणा- सीला फेडुवा मार्ग पूर्णत 1970 के दशक में ही बंद हो चुका था।

तत समय माननीय जगमोहन सिंह नेगी उस समय बन मंत्री हुआ करते थे 1958 में इसका कार्य प्रारंभ हुआ था और 1960 तक इसमें GMO की गंगा बस संचालित की गई थी और 6 वर्षों तक इसमें बस संचालित होती रही है और अब यह मार्ग वन विभाग एवं राजाजी नेशनल पार्क के अधीन होने के कारण बाधित है कुछ हिस्सा राजाजी नेशनल पार्क के अधीन होने से इस मार्ग के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाना आवश्यक है विशेष परिस्थितियों में जन हित के लिए आवागमन की सुविधा हेतु मंजूरी मिल जाती है तो दर्जनों गांव के क्षेत्रवासियों को इसका लाभ प्राप्त होगा क्योंकि राजाजी नेशनल पार्क का विलय 1980 में हुआ तत्कालीन समय में श्री जगमोहन सिंह नेगी वन मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार के समय उन्होंने इन क्षेत्रवासियों के लिए इस मार्ग की स्वीकृति प्रदान की थी परंतु बमगलगढ़ के समिप उक्त चट्टान को काटने हेतु मिलिट्री लगाई गई थी मगर मिलिट्री के द्वारा भी वह चट्टान नहीं काटी जा सकी इसीलिए उस स्थान को मिलिट्री मिलान भी कहा जाता है और फेडवा शीला देवराना धारकोट गडाकोट से लेकर बमगलगढ़,, और लाल ढंग से लेकर बमगल गढ़ ,,तक रोड निर्माण किया गया रोड को संचालित करने के लिए बमगलगड स्थान पर तब 100 मीटर स्पान का पुस्ता लगाया गया जो 1960 के दरम्यान क्षतिग्रस्त हो गया उसके बाद वह निर्माण न तो वन विभाग के द्वारा किया गया और ना ही राजाजी नेशनल पार्क के द्वारा उस समय यह सारा मामला उत्तर प्रदेश सरकार में हुआ करता था 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के उपरांत यहां की सरकारों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।जबकी 28 किमी रोड यातायात संचालित है शीला से लाल ढाग तक सड़क की लंबाई 36,5 किलोमीटर है उत्तराखंड बनने के उपरांत इन मार्गों में घोर अनदेखी हुई क्षेत्रीय जनता को उनकी मूलभूत अधिकार व आवागमन के मार्गो से वंचित रखा गया वन विभाग और राजाजी नेशनल पार्क कानूनों वन अधिनियमों मैं पहाड़ के विकास विरोधी कानून को मंजूरी दी गई इन कानूनों के द्वारा जनता के अधिकारों का हनन तो हुआ ही है लेकिन उसके साथ साथ आवागमन से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों के विकास व पलायन में भी यह कानून कारगर सिद्ध हुआ है सरकारों द्वारा समय-समय पर बिना जनता की सहमति व पूछताछ के बगैर जनता के मूलभूत अधिकारों को छीनने व जनता का शोषण करने मैं सहायक रहा राज्य सरकार के द्वारा सदन में इन वन मोटर मार्ग ओके संबंध में न तो कभी चर्चा की गई अगर की गई होती तो गढ़वाल के मुख्यमंत्री सांसद, एमएलए, व क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि अपने पहाड़ के भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी रखते तो आज मानव अधिकारों का हनन नहीं होता इन मार्गों के लिए सदन में चर्चा होना आवश्यक है और यह बन मार्ग जनता के हितों में खोलना भी आवश्यक है सरकार एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा प्रतिबंधित कानूनों मैं विधेयक लाकर सदन में चर्चा हो तो क्षेत्र के विकास की गति जो वर्तमान समय में 0 हो गई है जिससे यहां की कई दर्जनों गांव राजाजी नेशनल पार्क व वन विभाग की सीमा से घिर चुके हैं जिनके लिए कोई भी सुलभ और सरल सड़क मार्ग नहीं है। एवं यह क्षेत्र रवासन यूनिट के अधीन है इस पर सदन में चर्चा होनी चाहिए अगर सरकार कोशिश करें तो विकल्प के तौर पर पार्क डायरेक्टर इसकी अनुमति दे दे तो विशेष परिस्थितियों में शुल्क देय कर इस मार्ग को जनहित में खोला जाना न्यायोचित होगा।।।

लालढांग-धारकोट-देवराणा- सीला फेडुवा मार्ग के इतिहास बहुत ही रोचक है। यह मार्ग मुख्यतः व्यापारिक मार्ग था। इस मार्ग से डांडामण्डल क्षेत्र से व्यापार किया जाता था। लालढांग से फेडुवा तक इस सड़क पर सर्वाधिक ट्रकों का संचालन होता था। इन ट्रकों में वन विभाग का सोखता यानी सूखे एवं कच्चे पेड़ कटते थे वह कटकर लालढांग जाता था। यहॉ पर लगभग 05 साल तक गंगा बस का संचालन हुआ। धारकोट से आगे गढाकोट राजस्व ग्राम से आगे लगभग 5 किलोमीटर आगे संकरीली और कच्ची पहाड़ी होने के कारण यहॉ पर बार बार सड़क टूट जाती थी। बार बार सड़क टूटने के कारण वहॉ पर तात्कालीन डीएफओ ने उक्त सड़क निर्माण के लिए जीआरड़ी के मिलट्री जवानों को बुलाया गया आज भी उस स्थल को मिलेट्री मिलान के नाम से जाना जाता था। उक्त सड़क पर गड़ाकोट, धारकोट, अमोला, देवराणा, कचुण्डा, काण्डे, तिमल्याणी सीला, और फेडुवा गॉव के लोग लालढांग आते जाते थे, उक्त सड़क को काण्डी में जोड़ने के लिए प्रयास किया जा रहा था।

धारकोट निवासी श्री रमेश चन्द्र शर्मा का कहना है कि मिलेट्री मिलान में जब सड़क बार बार टूटने लगी तो वन विभाग ने उक्त सडक के लिए बजट देना बंद कर दिया और उसके बाद इस सड़क पर गाड़ियों का संचालन बंद हो गया। यदि उक्त सड़क पर ध्यान दिया जाता तो आज यह सड़क क्षेत्र के लिए वरदान साबित होती।
यदि पुनः उक्त स़ड़क का निर्माण हो जाता है तो डांडामण्डल का अधिकांश क्षेत्र लालढांग और कोटद्वार से सीधा जुड़ जायेगा और काफी दूरी कम हो जायेगी, साथ ही पर्यटन को बढावा मिलेगा। क्योंकि उक्त सड़क आज भी वन विभाग के रिकार्ड में मौजूद है। यदि जनप्रतिनिधि और क्षेत्रीय जन मानस इसके लिए पुनः प्रयास करें तो क्षेत्र के लिए यह सड़क वरदान साबित होगी और क्षेत्र में पर्यटन और रोजगार के अवसर उपलब्ध होगें।

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