नैनीताल के रामनगर के पास भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा संचालित आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने वाली कंपनी अब दम तोड़ती हुई नजर आ रही है. मोहान में इण्डियन मेडिसिन फार्मास्युटिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड को 1978 में केंद्रीय उद्योग मंत्री एडी तिवारी ने स्थापित किया था. भारत सरकार की यह एकमात्र कंपनी है जो प्राचीन पद्धति से दुर्लभ आयुर्वेद और यूनानी दवाएं बनाती है.
आईएमपीसीएल के कर्मचारी यूनियन के सचिव ने बताया कि इस कंपनी से साल 1982 में दवा निर्माण का काम शुरू हुआ था. पहले साल इस कंपनी ने करीब 67 लाख रुपये का टर्न ओवर किया था, जो बढ़ते-बढ़ते आज 98 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. प्राचीन पद्धति से बनने वाली इन दवाओं का असर भी जादुई बताया जाता है.आईएमपीसीएल के कर्मचारी नेताओं का कहना है कि यह कंपनी अब रसातल की ओर अग्रसर है, जिसका कारण यहां व्याप्त भ्रष्टाचार है. कंपनी के कर्मचारी नेताओं की माने तो यहा प्रबंधन स्तर पर बहुत बड़ा गोलमाल किया जा रहा है, जिसके चलते कंपनी का प्रबंध तंत्र अपने निजी हित साधने मेंजुटाहै. कर्मचारियों का कहना है कि कंपनी अब मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई है. बताया जा रहा है कि कागजों में इस कंपनी के समानांतर हरिद्वार में भी एक ब्रांच खोली गई है, जिसके लिए वहां एक छोटा सा भवन 25 लाख रुपये प्रतिमाह किराये पर लिया गया है. कर्मचारियों की चिंता है कि प्रबंध तंत्र अब इक कंपनीकोबर्बादकरनेपरतुलेहैं.पहले में किए गये कार्यों के लिए भारत सरकार ने इस कंपनी को मिनी रत्न के खिताब से भी नवाजा है, लेकिन भ्रष्टाचार के दीमक के चलते यह कंपनी अब बंदी के कगार पर पहुंच गई है. इसके बंद होने के इस कंपनी से जुड़े करीब 5 हजार लोगों के हाथ से रोजगार छिन जाएगा. हैरानी की बात यह है कि कंपनी का इतना बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर होने के बावजूद प्रबंधन हरिद्वार में इसकी ब्रांच खोलकर वारे-न्यारे करने का मन बना रही है. भले ही पहाड़ों में उद्योग स्थापित कर बेरोजगारों को रोजगार देने के दावे हो रहे हैं लेकिन पूर्व में स्थापित उद्योग बंद कर लोगों का रोजगार छीना जा रहा है। अल्मोड़ा जिले में अपना अस्तित्व खो रहीं दो हजार से अधिक लोगों को रोजगार देने वालीं दो दवा फैक्टरी इसका प्रमाण हैं। रानीखेत में स्थापित 1000 लोगों को रोजगार देने वाली फैक्टरी निजी हाथों में सौंप दी गई और 950 से अधिक लोग बेरोजगार होकर मारे-मारे फिर रहे हैं। वहीं सल्ट के मोहान में संचालित दवा फैक्टरी के निजी हाथों में सौंपने की तैयारी होते ही 300 लोगों की रोजी-रोटी पर संकट मंडरा गया है।रानीखेत में स्थापित दवा फैक्टरी की राज्य गठन से पूर्व देश-दुनिया में अलग पहचान थी। 80 के दशक तक फैक्टरी में करीब 1000 कामगार नौकरी कर रोजगार से जुड़े थे। राज्य गठन के बाद हिमालयी जड़ी बूटियों का संरक्षण और आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करने वाली यह सरकारी दवा फैक्टरी अपना अस्तित्व नहीं बचा सकी और 2023 में इसे निजी हाथों में सौंप दिया गया। अब यहां मात्र 15 कर्मचारियों की तैनाती है और 985 लोगों से रोजगार छिन गया। वहीं मोहान में स्थापित 300 से अधिक लोगों को रोजगार देने वाली दवा फैक्टरी आईएमपीएल को भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी अंतिम चरण में है, इसका लंबे समय से विरोध हो रहा है। यदि इस फैक्टरी का निजीकरण हुआ तो की लोगों का रोजगार छिनना तय है। जिले में स्थापित उद्योग दम तोड़ रहे हैं और रोजगार के लिए लोग मारे-मारे फिर रहे हैं,लेकिन नए उद्योग स्थापित कर रोजगार के द्वार खोलने के दावे जरूर हो रहे हैं। रामनगर के बॉर्डर पर जिला अल्मोड़ा के अंतर्गत आने वाली आयुर्वेदिक दवा फैक्ट्री उत्पादन के लिहाज से भारत सरकार की नवरत्न कंपनी मानी जाती है। फैक्ट्री में सैकड़ों कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके अलावा कई स्थानीय लोगों को भी फैक्ट्री से रोजगार मिला हुआ है। वह कंपनी को कच्चा माल बेचते है। यदि निजी हाथों में फैक्टरी को दिया जाता है तो कई लोगों का रोजगार छीन जाएगा। इस फैक्ट्री में रामनगर व अल्मोड़ा जिले के कई लोग कार्यरत है। पिछले कुछ समय से भारत सरकार फैक्ट्री को निजी कंपनी को बेचने का प्रयास कर रही है। उत्तराखण्ड को हर्बल राज्य की संज्ञा भी दी जाती है क्योंकि राज्य में उपलब्ध पौधें विभिन्न उपयोगों में लाये जाते है उत्तराखंड को हर्बल स्टेट बनाने का सपना चकनाचूर हुआ है. उत्तराखंड को जड़ी बूटी प्रदेश बनाने की कवायद अब ठंडी पड़ती जा रही है। लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।
अगर इंसान ठान ले, कोई भी चीज नामुमकिन नहीं है।’, बछेन्द्री पाल ने इस बात को सही साबित करके दिखाया। एवरेस्ट फतह करने वाली देश की पहली और दुनिया की पांचवीं भारतीय महिला बछेन्द्री पाल ने महिलाओं को कुछ भी न समझने वाले रूढ़िवादी लोगों को मुंहतोड़ जवाब दिया और हजारों लाखों महिलाओं को स्पोर्ट और एडवेंचर के लिए प्रेरित किया। घर-घर में लोगों ने कहना शुरू कर दिया की हमारी बिटिया भी बछेन्द्री पाल जैसी बनेगी। बछेन्द्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव में हुआ था। अपने गांव में ग्रेजुएशन करने वाली पाल पहली महिला थीं। उन्होंने बीए में ग्रेजुएशन की और संस्कृत से मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने बीएड की पढ़ाई पूरी की। पर्वतारोही बनने के लिए पाल को अपने परिवार से बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं मिला, क्योंकि उसके परिवार वाले उस टीचर बनाना चाहते थे।बछेन्द्री पाल के बचपन का एक किस्सा काफी मशहूर हुआ था। बताया जाता है कि पाल ने महज 12 साल की उम्र में अपनी सहेलियों के साथ एक स्कूल पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की चोटी पर चढ़ाई की थी। उस दौरान पाल को भी एहसास नहीं हुआ होगा कि वह आगे चलकर देश और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की चढ़ाई कर भारत का झंडा आसमान में लहराएगी। बछेंद्री के गांव में लड़कियों की पढ़ाई को ज्यादा अहमियत नहीं दिया जाता था। वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती थी और आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कुछ साल सिलाई कर गुजारा करना पड़ा। घर चलाने के लिए पाल जंगलों से घास और लकड़ियां ले जाने का काम भी अकेले करती थीं। इतनी पढ़ी-लिखी और डिग्री होल्डर होने के बावजूद पाल को नौकरी नहीं मिली। परिवार के खिलाफ जाकर उन्होंने माउंटनियरिंग में करियर बनाने का सोचा। इसके लिए उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में दाखिले के लिए आवेदन कर दिया था। 23 मई, 1984 का वो खास दिन जिसे न केवल पाल बल्कि भारत भी नहीं भूल सकता है। 1984 में भारत ने एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक अभियान दल बनाया गया। इस दल का नाम रखा गया ‘एवरेस्ट-84’। इस दल में बछेंद्री पाल समेत 11 पुरुष और पांच महिलाएं शामल थी। यह बछेंद्री के जीवन के लिए बड़ा मौका था, जिसका उन्हें लंबे समय से इंतजार था। एवरेस्ट फतह करने के बावजूद पाल इस सेक्टर में कोई करियर नहीं बना पा रही थी। इस बीच टाटा समूह के जेआरडी टाटा ने पाल को जमशेदपुर बुलाया और अकादमी बना कर युवाओं को प्रशिक्षण देने को कहा। बता दें कि पाल ने अब तक 4500 से ज्यादा पर्वतारोहियों को माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए तैयार किया। महिला सशक्तीकरण और गंगा बचाओ जैसे सामाजिक अभियानों से भी जुड़ी। बछेंद्र पाल को वर्ष 1984 में पद्मश्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, जबकि वर्ष 2019 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में बछेंद्री पाल को कई मेडल और अवार्ड मिल चुके हैं। भारत देश के पास पहले से ही प्रतिभावान और मेहनती लोगों की कमी नहीं थी। भारतीय पुरुषों ने तो अपने हुनर से देश का कई बार नाम रोशन किया ही लेकिन महिलाएं भी इस मामले में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। बात चाहें घर के काम की हो या फिर एथलेटिक्स की, महिलाएं हर जगह बराबरी पर नजर आती हैं। इसी कड़ी में आज हम उत्तराखंड की एक ऐली महिला की बात कर रहें हैं, जिन्होंने करीब 40 साल पहले माउंट एवरेस्ट फतह कर देश की पहली पर्वतारोही महिला होने का गौरव हासिल किया। उत्तराखंड के पहाड़ों की इस बेटी को आज हर कोई प्रणाम कर रहा हे।
अल्मोड़ा जिले के तल्ला ज्लूया (मनान) निवासी वैज्ञानिक-उद्यमी डॉ. शैलेश उप्रेती की कंपनी चार्ज सीसीसीवी (सी4वी) ने 5 लाख डॉलर (करीब 34.2 करोड़ रुपए) का पुरस्कार जीता है।बिंगमटन यूनिवर्सिटी में हुए अवार्ड समारोह में न्यूयॉर्क की लेफ्टिनेंट गवर्नर कैथलीन होचूल ने 9 महीने चली इस प्रतियोगिता को जीतने पर शैलेश को पुरस्कार दिया। इस प्रतियोगिता में विश्व की 175 कंपनियों ने हिस्सा लिया था। शैलेश की कंपनी चार्ज सीसीसीवी, न्यूयार्क को यह पुरस्कार 20 से 22 घंटे का बैकअप देने वाली बैटरी बनाने पर दिया गया है।न्यूयॉर्क राज्य ऊर्जा अनुसंधान और विकास प्राधिकरण की ओर से न्यूयार्क की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण सुधार के विकल्प पर कार्य करने के मिशन को बढ़ावा के लिए दुनियाभर की कंपनियों में प्रतिस्पर्धा कराई गई थी। जनवरी में शुरू हुई प्रतियोगिता 8 चरणों में हुई और 6 अक्तूबर को पुरस्कार की घोषणा हुई थी। 30 नवंबर को न्यूयॉर्क में लेफ्टिनेंट गवर्नर कैथलीन होचूल ने डॉ. शैलेश को यह पुरस्कार दिया।यह तकनीक अगली पीढ़ी के लिए ऐसी बैटरी तैयार करती है, जिससे सौर ऊर्जा को स्टोर करने के साथ ही बिजली से चलने वाली कारों, ट्रकों और बसों को चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी बैटरी के निर्माण के लिए न्यूयार्क और विश्व स्तर पर कई कंपनियों को इस तकनीक का लाइसेंस दिया गया है।उन्होंने बताया कि जो टेक्नोलॉजी हम विकसित करने की ओर अग्रसर हैं, वह प्लेटफार्म टेक्नोलॉजी से ली गई है। शैलेश के पिता रेवाधर उप्रेती ने बताया कि शैलेश ने 2013 में अमेरिका में बैटरी बनाने वाली सीसीसीवी बिंगमटन न्यूयार्क कंपनी की स्थापना की।डॉ. शैलेश उप्रेती ने बताया कि वह भारत में भी उन्नत लिथियम ऑयन बैटरी के निर्माण की योजना पर काम कर रहे हैं। मेक इन इंडिया अभियान के चलते भारत एक स्थायी सामाजिक और आर्थिक विकास के बदलाव को लाने को तैयार है। स्वच्छ भारत के बाद अगला मकसद हरित भारत हो सकता है, जिसमें देश की बिजली और परिवहन आवश्यकताओं को हरित ऊर्जा के विकल्पों में बदला जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि भविष्य में बैटरी डीजल और पेट्रोल की जगह लेकर रहेंगे।डॉ. शैलेश उप्रेती को पहाड़ से काफी लगाव है। उन्होंने बेड़ूपाको डॉट काम नाम से वेबसाइट भी बनाई है, जो उनके पहाड़ के प्रति प्रेम को दर्शाता है। डॉ. शैलेश ने बताया कि उन्होंने ऐसी तकनीक को पेटेंट कराया है, जो न केवल लिथियम ऑयन बैटरी के जीवनकाल को 20 साल के लिए बढ़ाता है, बल्कि उसकी भंडारण क्षमता और शक्ति में सुधार के साथ ही आग या शॉर्ट सर्किट की स्थिति में उसका तापमान कम कर देता है।कुमाऊं विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर तथा न्यू यॉर्क के सी 4 वी कंपनी के फाउंडर तथा सीईओ डॉक्टर शैलेश उप्रेती ने ऑनलाइन माध्यम से सिंक्रोनाइजिंग मॉलिक्यूल्स तो मशीन फॉर द बेटरमेंट ऑफ ह्यूमन कायिंद पर व्याख्यान दिया। डॉक्टर शैलेश उप्रेती ने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा की बागेश्वर से हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने भक्तोला से इंटर ,एसएसजे परिसर से बीएससी,मैक्स बाद आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की और फिर अमेरिका चले गए ।डॉक्टर शैलेश ने कहा की लिथियम बैटरी सोडियम बैटरी से बहुत कारगार है।तथा लिथियम बैटरी कार , स्कूटी में इस्तेमाल हो रही है। जो उसकी कारगरता एवम मानव की सहायता कर रही है। विज्ञान ने मानव का जीवन सरल किया है । डॉक्टर उप्रेती ने कुमाऊं विश्वविधालय को शोध हेतु 8 लाख रुपया प्रदान किया है ।रसायन तथा भौतिकी के दो दो शोधार्थियों को 8000 रुपया तथा आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी विद्यार्थियो तीन को 5000 रुपया प्रदान करेंगे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने मंगलवार को सचिवालय में विभिन्न देशों में निवास कर रहे प्रवासी उत्तराखंडियों से वर्चुअल संवाद करते हुए उन्हें विदेशों में उत्तराखंड का ब्रांड अम्बेसडर बताया। उन्होंने कहा कि प्रवासी उत्तराखंड वासियों ने अपनी मेहनत, लगन एवं बौद्धिक क्षमता से उत्तराखंड के बाहर देश-विदेश में अपनी पहचान बनायी है। उन्होंने सभी से अपेक्षा की कि वे अपनी जन्म भूमि के किसी दुर्गम क्षेत्र के गांव को गोद लेकर उसके समग्र विकास में सहयोगी बनें। इसमें राज्य सरकार भी सहयोगी रहेगी।मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रवासी उत्तराखंडवासियों के सहयोग एवं सहायता के लिये पूर्व में प्रवासी सेल बनाया गया था। इसे और अधिक सुविधा युक्त बनाये जाने के लिये प्रवासी उत्तराखण्ड बोर्ड का भी गठन किया जायेगा। साथ ही प्रवासी भारतीय दिवस की भांति राज्य में देश व विदेशों में रहने वाले प्रवासियों का सम्मेलन आयोजित किया जायेगा ताकि उनके विचार एवं सुझावों पर चिन्तन एवं मनन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि इस मंथन से निकलने वाला अमृत निश्चित रूप से देश व प्रदेश के विकास में फलीभूत होगा।संवाद के दौरान) ने आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चीन, अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस सहित 12 देशों में रह रहे 22 प्रवासी उत्तराखंडियों के विचार व सुझाव जाने। उन्होंने सभी के सुझावों पर आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन देते हुए प्रदेश हित में संचालित योजनाओं की जानकारी भी साझा की। सभी प्रवासियों ने प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, सूचना तकनीकि आदि के क्षेत्र में सहयोग का भी आश्वासन मुख्यमंत्री को दिया। सभी प्रवासी लोग अपने पैतृक क्षेत्रों से जुड़ने के लिये भी उत्साहित नजर आये ताकि उनकी भावी पीढ़ी भी अपनी जड़ों से जुड़ सके।प्रवासियों से अपेक्षा की कि देवभूमि उत्तराखण्ड आपके पूर्वजों की पैत्रिक भूमि है। आपकी भावी पीढ़ी भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहे इसके लिये भी प्रयासरत रहने की उन्होंने जरूरत बतायी। अक्सर उत्तराखण्ड राज्य की बात के साथ पलायन का सन्दर्भ भी जुड़ता है दूसरी तरफ डॉ शैलेश की तरह कुछ युवा प्रतिभाएं अपनी जड़ों को सींचने का काम भी कर रही हैं।।
लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।