पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में आवागमन हमेशा से चुनौती भरा रहा है. भारी बारिश और उसकी वजह से होनेवाले भूस्खलन से यहां का ट्रैफिक अक्सर अस्त-व्यस्त होता है. सड़कों के खस्ताहाल होने की वजह से सफर का समय अक्सर काफी बढ़ जाता है. यदि हम बात राज्य के दुर्गम इलाकों की करें तो यह समस्या वहां ज्यादा बढ़ जाती है. पिथौरागढ़ में बारिश के दौरान सड़क के किनारे पड़े हुए बोल्डर राहगीरों के लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं और इनकी वजह से दुर्घटना का अंदेशा बना हुआ है.पिथौरागढ़-घाट एनएच-9 पर रोजाना हजारों वाहन आवाजाही करते हैं. पिथौरागढ़ को चंपावत और अल्मोड़ा जिले को जोड़ने का यह प्रमुख मार्ग है. यही कारण है कि इसे जिले की लाइफलाइन कहा जाता है. इस ऑल वेदर रोड पर बरसात में तमाम लैंडस्लाइड की घटनाएं देखी गईं, जिससे कई बार यातायात बाधित रहा. अब बरसात के मौसम को विदा हुएमहीने से ज्यादा वक्त हो चुका है, लेकिन अभी भी इस सड़क के किनारे बड़े बड़े बोल्डर पड़े हैं. सड़कों से मलबे हटाए नहीं जा सके हैं. ये बोल्डर और मलबे दुर्घटना की वजह बने हुए हैं. मुसाफिरों को इस सड़क पर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.घाट-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिल्ली बैंड और चुपकोट बैंड में विशाल बोल्डर अभी भी सड़क किनारे देखे जा सकते हैं, जो कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकते है. इस ऑल वेदर रोड का मलबा डंपिंग जोन होने के बाद भी सीधे नदी और खाई में फेंका गया है, जिससे यहां के पारिस्थितिकी तंत्र को भी काफी नुकसान हुआ है. इस सड़क पर पर्यावरण से संबंधित नियमों की धज्जियां उड़ाने के साक्ष्य स्पष्ट देखे जा सकते हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग से अभी तक मलबा न हटाना और इसके आसपास कोई चेतावनी बोर्ड न होना निर्माणदायी संस्था और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हैं. जिले के स्थानीय व्यक्ति और जनप्रतिनिधियों ने इस विषय पर नाराजगी व्यक्त की है. यहां के जनप्रतिनिधि ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़क किनारे पड़ा मलबा कभी भी किसी बड़ी दुघर्टना को अंजाम दे सकता है, इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन और ठेकेदार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं. पिथौरागढ़ की नवनियुक्त जिलाधिकारी का कहना है कि वे इस संबंध में जल्द ही संबंधित विभाग और ठेकेदारों से मीटिंग कर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगी. घाट-पिथौरागढ़ सड़क जो ऑल वेदर रोड का हिस्सा है, जिससे कयास लगाए गए थे कि हर मौसम में इस सड़क पर यातायात सुगम होगा. लेकिन इसके उलट यह सड़क आमजनों के लिए मुसीबत का कारण बनी है और सरकार के करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी हर बरसात में यहां जान हथेली पर रखकर लोग सफर करने को मजबूर है. राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर ग्रामीण क्षेत्र की सड़कें बदहाल पड़ी हैं। लोगों को जान हथेली में रखकर आवागमन करना पड़ रहा है। थोड़ा सा चूकने पर सैकड़ों फुट गहरी खाई या फिर उफनाती नदियों में गिरने का खतरा रहता है। पहाड़ों की कटाई से निकलने वाला मलबा भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है और ये मलबा उत्तराखंड के पहाड़ों की समस्याओं को और बढ़ा देता है। इस मलबे के निस्तारण के लिए निर्धारित डंपिंग ज़ोन बनाये गए हैं ताकि ये मलबा नदियों में ना डाला जाये।लेकिन इन डंपिंग ज़ोन में क्षमता से अधिक मलबा डालने के कारण अधिकतर डंपिंग ज़ोन में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है, जिसके कारण डंपिंग ज़ोन के नीचे के ढ़लान के पेड़ों और नदियों पर भी बुरा असर हुआ है। हालांकि, इससे पैदा होने वाली समस्या से