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नाक काटी रानी, क्यो कहा जाता था राजमाता कर्णावती को,, पढिये

 

 

डॉ दिनेश  चंद्र बलूनी
डॉ दिनेश चंद्र बलूनी 

नाक काटी रानी
गढवाल के इतिहास में अजयपाल सन् 1519 में पंवार वंश का 47 वां राजा के रूप में चांदपुरगढ के सिंहासन पर बैठा।
अजयपाल ने अपनी राजधानी पहले देवलगढ, व बाद में श्रीनगर में स्थापित की। उसने केदारगढ के 52 गढ़ों को जीतकर इस राज्य का नाम अपनी जाति के आधार पर गढपाल देश रखा। जो बाद में गढवाल हो गया।
इसी वंश में सन् 1634 मे महीपति शाह की मृत्यु के समय उसके पुत्र पृथ्वीपतिशाह की आयु 10 वर्ष थी, अतः राजमाता करणावती को गढवाल का संरक्षक बनाया गया । उस समय तक सेनापति माधोसिंह भंडारी भी वृद्ध हो चुका था। राज्य की कमजोर दशा को देखते हुए, शाहजहाँ ने सेनापति नजाबतखां को गढवाल पर युद्ध करने के लिए भेजा। नजाबतखां एक बड़ी सेना लेकर हरिद्वार -ॠषिकेश को लूटता हुआ मोहनचट्टी की ओर बढा। उसकी सेना श्रीनगर से पहले किसी पहाड़ी तक पहुंच गई धी।जब रानी करणावती को पता लगा तो उसने संधि करने की बात कहकर नजाबतखां को वहीं ठहरे रहने को कहा। अनेक दिन तक तिरछी पहाड़ी पर ठहरते हुए मुगल सैनिक हताश हो गये।
उधर करणावती श्रीनगर से अपनी सेना लेकर आ धमकी। पहाड़ी सैनिकों के सामने थकी हुई मुगल सेना टिक नहीं सकी। रानी का आदेश हुआ कि शत्रु के सैनिकों की नाक काट दी जाए। ऐसा ही किया गया। कई मुग़ल सैनिक कटी नाक लेकर भाग गए। मोहनचट्टी में उनकी सेना नष्ट हो गयी। इतिहास में रानी करणावती नाक काटी रानी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी ।
करणावती ने दून में जाकर उसे फिर से जीता और
देहरादून के नवादा नामक स्थान पर महल तथा कुंआ बनवाया । गोरखों के आक्रमण के समय गढवाल से बाहर चले जाने से पहले सन् 1803 मे प्रद्युम्नशाह ने अपना सोने का सिंहासन एवं बदरीनाथ केदारनाथ के आभूषण इसी महल में छुपा कर रखे थे
रानी करणावती ने देहरादून में करणपुर नामक गाँव बसाया, जो आज देहरादून का सबसे पुराना मुहल्ला है। देहरादून में उस समय पानी की आवश्यकता के लिए पहली नहर बनवाई । जो राजपुर नहर के नाम से 19 किमी लंबाई की है। जिसकी एक शाखा झंडेवाला गुरुद्वारा तालाब में मिलती है । नाक काटी रानी इतिहास मे हमेशा अमर रहेगीं
नाथ पंथियों के मंत्रों में भी करणावती का नाम लिया जाता है। कहा जाता है–रानी करणावती की आण।

डा दिनेश चंद्र बलूनी

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