प्याज बीज उत्पादन, है लाभकारी — डा० राजेन्द्र कुकसाल।

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कुकसाल

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* उत्तराखंड केसरी न्यूज़ पोर्टल के लिए सम्पूर्ण लेख उद्यान विशेषज्ञ श्री राजेंद्र कुकसाल जी की कलम से* 

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प्याज, सिंचित पहाड़ी क्षेत्रों में रवि मौसम की एक महत्वपूर्ण नगदी/ व्यवसायिक फसल है जिसका उत्पादन इन क्षेत्रों में कई पीढ़ियों से परम्परागत रूप से किया जा रहा है।पहाड़ी क्षेत्रों में परंपरागत रूप से उगाई जाने वाली प्याज जैविक होने के साथ ही अधिक पौष्टिक ,स्वादिष्ट व औषधीय गुणों से भरपूर होती है तथा लम्बे समय तक याने बर्ष भर के लिए इसका भंडारण किया जा सकता है, जिस कारण बाजार में इसकी मांग अधिक रहती है।

स्थानीय प्याज की किस्में क्षेत्र विशेष की भूमि व जलवायु में रची-बसी होती है जिन्हें बीमारी व कीट कम नुकसान पहुंचाते हैं साथ ही सूखा व अधिक बर्षा में भी अच्छी उपज देती है।

उद्यान विभाग / विभिन्न संस्थाओं द्वारा योजनाओं में उन्नत शील किस्मो के नाम पर अधिकतर निम्न स्तर का प्याज बीज कृषकों को बांटा जा रहा है। इन बीजौं से उत्पादित प्याज फसल में प्याज़ बल्व/कन्द बनने से पहले ही bolting (फूल के डन्ठल) आने शुरु हो जाते है जिससे उत्पादन काफी कम होता है। इन बीजों से उत्पादित फसल पर कीट व्याधि का प्रकोप अधिक होता है साथ ही कन्दों ( प्याज वल्व ) की भन्डारण क्षमता काफी कम समय के लिये होती है जिस कारण उत्पादित प्याज़ के कन्द भन्डारण करने पर शीघ्र ही सड़ने लगते हैं या शीघ्रअंकुरित होकर नष्ट होने लगते हैं।

राज्य में लगभग 4 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में प्याज की खेती की जाती है इसके लिए लगभग 300 कुन्तल प्याज बीज की प्रति बर्षआवश्यकता पड़ती है।प्याज बीज में अंकुरण क्षमता छः माह से एक बर्ष तक ही रहती है हर साल बोने के लिए उसी बर्ष उत्पादित नये प्याज बीज की आवश्यकता होती है।

पहाड़ी क्षेत्रों के लिए लम्बी प्रकाश अवधि वाली प्याज (पहाड़ी प्याज / रवि मौसम ) के बीज से ही अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। वर्तमान में स्थानीय उन्नतिशील प्याज बीज उपलब्ध न होने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज का उत्पादन काफी घटा है इसलिये आवश्यक है कि स्थानीय कृषकों द्वारा परम्परागत रूप से उत्पादित प्याज बीज जो की अधिक उपज देने के साथ क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुकूल है का उत्पादन बढ़ाया जाय जिससे प्याज की पहिचान खोती इन स्थानीय किस्मों का संरक्षण भी किया जा सके ।

प्याज बीज उत्पादन–

प्याज एक द्विवार्षिक फसल है। इसके बीज उत्पादन में पूरे दो मौसम लगते हैं। पहले मौसम में कंदों का उत्पादन किया जाता है एवं दूसरे मौसम में कन्दो से बीज का उत्पादन। कन्दो के उत्पादन हेतु माह अक्टूबर-नवम्बर में बीज की नर्सरी में बुवाई तथा दिसम्बर अन्त तक खेत में रोपाई कर मई माह में कन्द तैयार किये जाते हैं। स्वस्थ समान आकार व रंग के कन्दो को छांटकर भण्डारण करते हैं और नवम्वर तक कन्दो को खेत में लगा देते है। मई तक बीज तैयार हो जाता है ।

प्याज बीज उत्पादन हेतु स्थानीय अच्छी उपज देने वाली रोग रोधी किस्मों से उत्पादित प्याज कन्दों को उनके रंग, आकार व रूप के आधार पर छांटते है।

स्वस्थ, एक ही रंग रुप के, पतली ग़र्दन वाली एवं 4.5 – 6.5 से0मी0 व्यास तथा 60-70 ग्राम वजन के कन्दो को बीज उत्पादन में रोपण के लिये चुनते है।

पर्वतीय क्षेत्रौं मै प्याज की फसल अप्रेल/मई में तैयार हो जाती है जिसे बीज हेतु कृषक अक्टुबर/नवम्बर तक भन्डारित कर सुरक्षित रखते है।

भूमि का चयन –

ऐसे खेत का चुनाव करें जहां पर पिछले मौसम मै प्याज की कन्द या बीज की फसल नही उगाई गयी हो।

प्याज बीज उत्पादन हेतु जीवांश युक्त दोमट तथा बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो उपयुक्त होती है। भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं। भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच का उत्तम रहता है। यदि भूमि का पी.एच. मान 6 से कम है तो खेत में 3 – 4 किलोग्राम चूना प्रति नाली की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला लें।

भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा 0.8 प्रतिशत से कम होने पर 10 – 20 किलोग्राम जंगल/बड़े वृक्ष के जड़ों के पास की मिट्टी खुरच कर खेत में प्रति नाली की दर से मिला दें , साथ ही गोबर/कम्पोस्ट खाद तथा मल्चिंग का प्रयोग अधिक करें।

खेत की तैयारी-
खेत की गहरी जुताई कर खेत को कुछ समय के लिए छोड़ दें जिससे उसमें मौजूद कीट धूप से नष्ट हो जायें। जुताई के बाद खेत को समतल कर क्यारियां बना लें । क्यारियौ में 4 से 5 कुन्तल गोबर की खाद प्रति नाली की दर से मिलायें।

भूमि उपचार-
फफूंदी जनित बीमारियों की रोकथाम हेतु
एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट (गोबर की सड़ी खाद) में मिलाकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे गीले बोरे से ढँकें ताकि ट्राइकोडर्मा के बीजाणु अंकुरित हो जाएँ। इस कम्पोस्ट को एक एकड़ ( 20 नाली) खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें ।

कन्द रोपण का समय-
15 अक्टूबर – 15 नवंबर।

एक नाली याने 200 वर्ग मीटर खेत के लिये 50-60 कि0ग्रा0 कन्दो की आवश्यकता होती है।

अलगाव दूरी और परागण-
प्याज में पर-परागण होता है, इसलिए उन्नत बीज उत्पादन हेतु अन्य किस्म के बीज उत्पादन क्षेत्र से कम से कम 500 मीटर की अलगाव दूरी आवश्यक है | पर-परागण में मधुमक्खियों की प्रमुख भूमिका है, अतः बीज उत्पादन के लिए इनकी अधिक संख्या सुनश्चित करने के लिए मधुमक्खियों की कॉलोनी खेत के बीचों-बीच रखनी चाहिए । फूल बनते समय मधुमक्खियों को हानि पहुंचाने वाली किसी भी रासायनिक दवा का छिड़काव बीज उत्पादन क्षेत्र में नहीं करना चाहिए|

कन्दों का उपचार- बुआई से पहले कन्दों को ट्राईकोडर्मा 10 से 15 ग्राम की दर से प्रति लीटर पानी में घोल बना लें इस घोल में कन्दों को 30 मिनट तक डुवो कर रखें तत्पश्चात छाया में सुखाकर रोपण करें।
बीजा मृत से भी कन्दों को उपचारित किया जा सकता है।

कन्दों का रोपण – उपचारित कन्दों को समतल क्यारियों मै 60×30 से0मी0 (लाइन से लाइन 60 से0मी0 तथा लाइन में कन्द से कन्द की दुरी 30 से0मी0) पर करते है। कन्दो को 6 से0मी0 की गहराई पर रोपित करें। कन्दो के रोपण के बाद सिंचाई करें।

पौधौ को गिरने से बचाने के लिये बीज फसल में स्फुटन आरम्भ होने कि अवस्था में मिट्टी चढाते हैं। कन्दों की बुआई के एक सप्ताह बाद अंकुरण आरम्भ हो जाता है। सामान्यतः प्याज कन्दो में स्फुटन हेतु 10 – 13 °C तापमान की आवश्यकता होती है।

आवश्यकतानुसार समय समय पर सिंचाई व निराई गुड़ाई करते रहें।

फसल की निगरानी के समय यदि रोग का प्रकोप दिखाई दे तो शुरू की अवस्था में ग्रसित पत्तियों/पौधों को नष्ट कर दें इससे रोगौं का प्रकोप कम होगा।

खाद व पोषण प्रबंधन-
10 लीटर जीवा मृत प्रति नाली की दर से 20 दिनों के अन्तराल पर खड़ी फसल में डालते रहना चाहिए।

पलवार (मल्च)- कन्द रोपण के एक- दो सप्ताह बाद कतारों के बीच में पलवार (मल्च)का प्रयोग करें। पेड़ों की सूखी पत्तियां, स्थानीय खर पतवार व घास,धान की पुवाल आदि पलवार के रूप में प्रयोग की जा सकती है। पलवार का प्रयोग भूमि में सुधार लाने, तापमान बनाये रखने, उपयुक्त नमी बनाए रखने, खरपतवार नियंत्रण एवं केंचुओं को उचित सूक्ष्म वातावरण देने के लिए आवश्यक है।

प्रमुख कीट –
थ्रिप्स कीट- यह कीट पत्तियों को खुरचकर रस चूसते हैं| क्षतिग्रस्त पत्तियाँ चमकीली सफेद दिखती है।

कीट नियंत्रण-
1. खड़ी फसल की निगरानी करते रहें कीटों के अंडे, सूंडियों,प्यूपा तथा वयस्क को इकट्ठा कर नष्ट करें।

2. कीट के नियंत्रण लिए यलो/ब्लू स्टिकी ट्रेप का प्रयोग करें।

3.गो मूत्र का 5 – 6% का घोल बनाकर छिड़काव करें।

4. नीम पर आधारित कीटनाशकों जैसे निम्बीसिडीन निमारोन,इको नीम या बायो नीम में से किसी एक का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

मुख्य रोग-
डाउनी मिल्ड्यू- प्रभावित भागों पर चकत्ते पढ जाते हैं।

रोक थाम-
1.फसल की बुआई अच्छी जल निकास वाली भूमि पर करें।

2.फसल चक्र अपनायें।

3.भूमि का उपचार ट्रायकोडर्मा से करें।

4.खडी फसल की समय समय पर निगरानी करते रहें रोग ग्रस्त पौधे को शीघ्र हटा कर नष्ट कर दें।

5. प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर का घोल बनाकर पौधों पर 5-6 दिनों के अंतराल पर तीन छिड़काव करें व जड़ क्षेत्र को भिगोएँ।

लगभग तीन माह बाद फूल वाले डंठल बनने शुरु हो जाते है‌ पुष्प गुच्छ बनने के 6 सप्ताह के अन्दर ही बीज पक कर तैयार हो जाता है। फसल में पुष्पन के समय पर्याप्त नमी एवं 22 – 28 °C तापक्रम अच्छा रहता है। फसल की कटाई के समय अधिक तापमान तथा नमी का न्यूनतमतम होना वांछनीय है। बीज वृतों का रंग जब मटमैला हो जाय एवं उनमें 10-15 प्रतिशत कैप्सूल के बीज बाहर दिखाई देने लगे तो बीज वृन्तौ को कटाई योग्य समझना चाहिये सभी बीज वृन्तौ को काटना चाहिये जिनमें 10-15 प्रतिशत काले बीज बाहर दिखाई देने लगे हों। 10-15 से0मी0 लम्बे डठंल के साथ पुष्प गुच्छौ को काटना चाहिये। फूलों के गुच्छे एक साथ नहीं पकते इसलिए जैसे-जैसे गुच्छे तैयार होते जाएँ उनकी तुड़ाई करते रहना चाहिए और उन्हें छायादार स्थान पर पक्के फर्श या तिरपाल पर फैलाकर अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए| अच्छी तरह सुखाये गये बीज वृन्तौ को डडों से पीट कर बीज को निकालते हैं, बीजौ से बीज वृन्तौ के अवशेष तिनकों डंठलौ आदि को अलग कर लेते है, सुखाने के बाद बीज को फफूदीं नाशक दवा से उपचारित कर उचित भन्डारण करें।

एक नाली कास्त करने पर 8 -10 कि0ग्रा0 प्याज़ बीज प्राप्त होता है। बाजार में इस बीज की कीमत 1000 – 1500 रुपये प्रति किलो ग्राम है।

प्याज़ की अधिक उपज लेने एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से स्थानीय रुप से उत्पादित चयनित प्याज कन्दौ से ही प्याज बीज का उत्पादन करने का प्रयास किया जाना चहिये । जैविक खेती स्थानीय परंपरागत बीजों से ही संभव है, परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत कृषकों की आर्थिक सहायता कर स्थानीय किस्मों के बीजों का उत्पादन / संरक्षण करने की व्यवस्था है, कृषकों को विभाग द्वारा लाभ दिया जाना चाहिए।

इस दिशा में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा ने हिमोत्थान परियोजना के माध्यम से वीएल-3 स्थानीय चयनित प्याज की उन्नत शील प्रजाति का उत्तरकाशी एवं बागेश्वर जनपदों के कुछ कास्तकारौ के यहां प्याज बीज उत्पादन की पहल की है। सेवा इन्टरनेसलन संस्था सिमली जनपद चमोली द्वारा भी स्थानीय प्याज किस्म के बीज उत्पादन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है किन्तु ये प्रयास ना काफी है।

कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ।

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