पहाड के माल्टा को नहीं मिला उत्तराखंड में बाजार डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

देहरादून :- माल्टा एक पहाड़ी और शक्तिवर्धक फल है। यह दिखने में बिलकुल संतरे या मौसमी की तरह होता है। माल्टा फल उतराखंड के पहाड़ियों इलाकों में सबसे ज्यादा पाया जाता है। यह फल सर्दियों में नवंबर से दिसंबर के महीने तक पक्क कर तैयार हो जाते है। माल्टा पहाड़ी क्षेत्रों में वाला फल है। इस फल को धरती का सबसे सेहमंद भी माना जाता है। माल्टा फल एक संतरे या मौसमी फल के आकार में गोल या रसीला होता है। माल्टा फल को पहाड़ी फलों का राजा भी कहा जाता है। फलों का राजा आम फल को कहा जाता है। पर सर्दियों के मौसम में आम फल नहीं होता है।
माल्टा फल सर्दियों के मौसम में ही पक कर तैयार हो जाता है। आम फल की तरह ही माल्टा फल के बीज, फल, पते छिलके आदि सभी भागो को उपयोग में लाया जाता है। जिसके कारण इसे सर्दियों के मौसम में पहाड़ी फलों का राजा कहा जाता है। उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति औद्यानिक फसलों के लिए प्रसिद्ध है। विभिन्न फलों के उत्पादन में इसका स्थान अग्रणी है, इन्ही फलों में माल्टा एक महत्वपूर्ण फल है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढाने के साथ.साथ विटामिन.सी से भरपूर होता है। माल्टा फल में केवल 85 कैलोरी होती है और वसा, कोलेस्ट्रॉल या सोडियम बिलकुल भी नहीं होता है। माल्टा फल में इतने सारे स्वास्थ्य लाभ है। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी, पोटैशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा फैट फ्री कैलोरी होती है। यह फल निमूनिया, ब्लडप्रेशर तथा
आंत संबंधी समस्याओं के लिए भी रामबाण है। यह सिर्टस प्रजाति का फल है जिसका वैज्ञानिक नाम सिट्रस सिनानसिस है। रुटेसीस परिवार से संबंधित इस फल का उद्भव एशिया महाद्वीप से हुआ है। सामान्यतः यह फल समुद्र तल से लगभग 1200.3000 मी0 की ऊॅचाई तक उगाया जाता है। सर्दियों के मौसम में उत्तराखण्ड के मध्य ऊचाई तथा अधिक ऊचाई वाले स्थान प्रायः काफी ठण्डे होते हैं। जनवरी के महीने में हिमालय क्षेत्र के निचले इलाकों जिसमें राज्य की भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 51 प्रतिशत शामिल है, में सर्दियों के फल माल्टा से नवाजा है।
चमोली जिले के ग्वालदम, लोल्टी, थराली, गैरसैण, पिथौरागढ, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत तथा उत्तरकाशी आदि जगहों पर सडक के किनारे अक्सर बेचते हुए देखे जा सकते है। रूद्रप्रयाग जनपद में सबसे अधिक माल्टा उत्पादन करने वाले औरिंग गांव निवासी 90 वर्षीय बुजुर्ग पूर्व सैनिक एवं सेवा निवृत ग्राविअ ने सरकार द्वारा
माल्टा उत्पादकों की अनदेखी से नाराज होकर मुख्यमंत्री से उनके उत्पादित माल्टे को उचित मूल्य पर उठाने की मांग की है। अन्यथा उन्हें उनके माल्टे के पेड़ों को काटने की अनुमति प्रदान की जाय। ज्ञात है कि कास्तकार ने उद्यान विभाग की योजना से कुछ वर्ष पूर्व 200 पेड़ माल्टा अपनी नाप भूमि में लगाये थे। जो अब बराबर फल देने लगे हैं।
वर्तमान में उनके पास 40 से 50 कुण्टल तक अच्छी गुणवत्ता का माल्टा तैयार है। परन्तु सही ढ़ंग से मूल्य न मिलने से यह पेड़ों पर ही खड़ा है। पिछले वर्ष भी उनका माल्टा बिना बिके ही रह गया था। और उन्होंने सरकार से पेड़
काटने की अनुमति मांगी थी। परन्तु तत्कालीन केदारनाथ विधायक के आश्वासन के बाद उन्होंने अपनीमांग वापस
ली थी। विधायक के प्रयासों के बाद उनके माल्टे का कुछ हिस्सा अच्छी कीमत पर निकल गया था। इस बार फिर से उनका माल्टा पेड़ पर ही रह गया है। इस बार भी सरकार द्वारा केवल सी ग्रेड के माल्टा का ही समर्थन मूल्य घोषित

किया गया है। वह भी मात्र 8 रू0 प्रति किग्रा। श्री कण्डारी ने बताया कि उनके पास ए तथा बी ग्रेड का माल्टा उपलब्ध है। ऐसे ही कई कास्तकार और होंगे जिनके पास ए तथा बी ग्रेड का माल्टा होगा। परन्तु वह भी सी ग्रेड के ही भाव बिक रहा है। ऐसे में कास्तकार को उसकी लागत भी नहीं मिल पा रही है। इससे बेहतर है कि वह अपने
माल्टे को खेत में ही सड़ने दे और माल्टे के सभी पेड़ों को काटकर कुछ नया करे। अन्यथा चाय की दुकान खोले जो कम से कम 10 रू0 प्रति कप बिक रहा है। पहाड़ में एक माल्टा ही ऐसा फल है जिसका न केवल फल बल्कि बीज एवं छिलका भी काम आता है। जो कास्तकार की आर्थिकी में मददगार साबित हो सकता है। परन्तु सरकार की अनदेखी
से कास्तकारों का माल्टा बरबाद हो रहा है। और पूरा बाजार बाहर से आने वाले किन्नू से भरा पड़ा है। इसके बाबजूद सरकार मौन बैठी है। कास्तकार ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर मांग की है कि या तो सरकार उनके माल्टे को उचित
मूल्य पर उठवा दे या उन्हें उनके माल्टे के पेड़ों को काटने की अनुमति प्रदान करे। क्योंकि उनके पास ए व बी ग्रेड का माल्टा उपलब्ध है और वे अपनी फसल का अवमूल्यन नहीं कर सकते हैं। वे सरकार की अनदेखी से व्यथित हैं तथा उस दिन को कोस रहे हैं जिस दिन उन्होंने अपने खेतों में माल्टे के पेड़ लगाये थे। माल्टे का जूस पौष्टिक और औषधीय
गुणों से भरपूर है। माल्टा का सेवन शरीर में एंटीसेप्टिक और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों को बढ़ाता है। माल्टा के छिलके का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन, भूख बढ़ाने, अपच और स्तन कैंसर के घाव की दवा में भी किया जाता है। चमोली,
पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत तथा उत्तरकाशी में माल्टा बहुत मात्र में पैदा होता है। चमोली जिले के मंडल घाटी, थराली, ग्वालदम, लोल्टी, गैरसैंण तो माल्टा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। उत्तराखण्ड में माल्टा केवल
स्थानीय बाजारों और पर्यटकों को बेचे जाने तक ही सीमित है। वहीं हिमाचल प्रदेश में माल्टे के लिए प्रसिद्ध घाटी मडूरा में कई सालों से फैव इण्डिया जैसी बड़ी कंपनियां माल्टे से कई उत्पाद तैयार कर रही हैं। हिमालय की तर्ज पर उत्तराखंड में भी माल्टे को बड़े स्तर पर कारोबार से जोड़ने पर काम किया जाना जरूरी है। उद्यान विभाग की ओर से माल्टा एवं पहाड़ी नीबू फलों के उपार्जन की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। उन्होंने बताया कि यह योजना उद्यान कार्ड धारकों के लिये होगी। ठेकेदार और बिचौलिये इस योजना में आच्छादित नहीं होंगे। माल्टा एवं पहाड़ी नीबू का क्रय 15 दिसम्बर से 31 जनवरी 2023 तक किया जाएगा। संबंधित उत्पादकों को घोषित
समर्थन मूल्य से अधिक मूल्य किसी अन्य माध्यम से प्राप्त होने की स्थिति में वे अपनी फसल का विक्रय करने के लिए स्वतंत्र होंगे। क्रय किए जाने वाले सी ग्रेड माल्टा फलों का न्यूनतम व्यास 50 मिमी. तथा नीबू(गलगल) का व्यास 70 मिमी. से अधिक होना आवश्यक है। फल कटे, सड़े, गले न होकर स्वस्थ रोग रहित होने चाहिए।
तुड़ाई उपरान्त फलों के वाष्पीकरण एवं श्वसनक्रिया से वजन में कमी को ध्यान में रखते हुए क्रय के समय तौल में 2.50 प्रतिशत अधिक वजन लिया जाएगा।उद्यान विभाग द्वारा उपार्जित सी ग्रेड माल्टा एवं पहाड़ी नीबू को भण्डारण के उपरान्त अथवा ताजे उपार्जित फलों को राज्य के भीतर तथा बाहर स्थापित मण्डियों, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की प्रसंस्करण इकाइयों को विक्रय किया जाएगा। यदि समर्थन मूल्य या इससे अधिक मूल्य
स्थानीय बाजारों में प्राप्त होता है तो इसे नीलामी के माध्यम से पहली प्राथमिकता पर विक्रय किया जायेगा।
प्रगतिशील काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से विपणन व प्रसंस्करण की व्यवस्था न होने के कारण गांव के लोग अपनी उपज को अपने संसाधनों और संपर्को के जरिए औने-पौने भाव पर बेचने को विवश हो जाते हैं। काश्तकारों का कहना है कि जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों से आए किन्नू पूरे देश में उचित दाम पर बिकता है,  उत्तराखंड का माल्टा राज्य बनने के 22 साल बाद भी बाजार के लिए तरस रहा है।सैकड़ों हेक्टेयर क्षेत्र में सीट्रस प्रजाति के फलों का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों के अभाव व
विपणन की व्यवस्था राम भरोसे होने से गरीब तबके का उत्पादक हमेशा ही मायूस रहता है। जंगली जानवरों का आतंक भी पहाड़ के जैविक उत्पादों और फलों की बेकद्री बढ़ाने का एक अहम कारक है। पहाड़ी इलाकों में होने वाले माल्टा के स्वाद के सभी लोग मुरीद होते हैं। देश और दुनिया के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना वाले माल्टा की उत्तराखंड में बेकद्री होती आई है। विपणन व प्रसंस्करण की उचित व्यवस्था न होने से यहां के मायूस फल
उत्पादकों को मजबूरन औने पौने दामों में फल बेचने को विवश होना पड़ रहा है।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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