पंचमू की ब्वारी और ग्राम प्रधान
पिछले पंचायत चुनाव में पंचमू की ग्राम पंचमू की ब्वारी और ग्राम प्रधानसभा मे गाँव कि ब्वारी हार गई और प्रवासी ब्वारी चुनाव जीत गई। गाँव के ब्वारी के रूप में पंचमू कि ब्वारी हार गई थी, इस पर उन्होंने अपनी बात सोशल मीडिया में भी रखी थी। प्रवासी प्रधान ब्वारी कोटद्वार में रहती है, जब तक कोरोना नही हुआ था सारा काम काज यानी बस्ता देवर को दे रखा था, लेकिन जब से कोरोना कि महामारी हुई तबसे वह गाँव मे ही है। गाँव में सुबह आकर शाम को वापिस चली जाती थी लेकिन अब लोकडॉउन की वजह से और ग्राम प्रधान को मिली जिम्मेदारी कि वजह से वह गाँव में रुकने को मजबूर है।
उधर पंचमू कि ब्वारी घर के काम मे व्यस्त रहती। इस बार प्रधान को कोरोना की वजह से सरकार ने उनका पदभार बढ़ा दिया है। कोरोना के चलते बाहर से आने वाले प्रवासियों कि क्वारन्टीन की जिम्मेदारी से लेकर पटवारी और प्रशासन से ताल मेल के साथ गांव वालों की सब समस्या को सुनना उसके बाद दो गाली भी सुननी प्रधान की मजबूरी हो गयी है। अब पंचमू की ब्वारी कई बार सोचती है कि अच्छा हुआ मैं प्रधान नही बनी।
एक दिन प्रवासी बहु जो प्रधान है उनके घर सेनेटाइजर और मास्क देने के साथ गाँव मे स्वरोजगार के बारे में बताने आयी। उसने पँचमू कि ब्वारी से कहा कि भूली गाँव का प्रधान बनना कठिन है, देश का प्रधानमंत्री बनना आसान है। प्रधानमंत्री जी तो अपना दुखड़ा कभी मन की बात करके हल कर लेते हैं तो कभी रात 8 बजे आकर लैम्प, चिमिनी, मोममबत्ति जलाने की अपील तो कभी ताली थाली बजाने को बोलकर अपना मन हल्का कर लेते हैं, मानती हूँ कि देश को बहुत अच्छा चला रहे हैं, मोदी जी ने देश को एक नई दिशा दी है। अब विपक्ष उनकी निंदा करे भी तो उसका जबाब वह ट्वीटर पर या लोकसभा में दे दे देते हैं। प्रधानमंत्री को देश मे सब जानते हैं, सब उनकी भलाई बुराई जो भी करे, उन तक सब नही पहुंच पाती हैं, प्रधानमंत्री जी देश के सब लोगो को थोड़ी पहचानते हैं।
लेकिन हे सखी गाँव का प्रधान तो ऐसा लगता है जैसे लोगो ने वोट देकर उसे खरीद लिया हो, हर काम के लिए प्रधान जिम्मेदार। अब देखो गाँव मे आने वाले प्रवासियों को क्वारंटीन करने से लेकर उनके रहन सहन की व्यवस्था, यदि किसी को बोला जाय तो वह धमकी देता है, कोई सहयोग करता है ,कोई नही, जो नही करता बस वही गाली देता है। गाँव मे सब जान पहचान और रिश्ते में है, किसके साथ बुरा बने, कोई कह रहा है कि क्वारन्टीन के लिये आये रुपये इन्होंने डंकार लिए कोई कह रहा है कि ये काम की नही है, इससे अच्छा तो पँचमू की ब्वारी थी।
अब बताओ भूली अब मैं क्या करूँ, वास्तव में लोग तुम पर बहुत विश्वास करते है, कैसे संभालती हो तुम गांव वालों को मुझे भी बता दो। पंचमू कि ब्वारी ने कहा दीदी लोग तो कुछ ना कुछ बोलते ही रहेंगे, लेकिन सोशल मीडिया में नही बल्कि धरातल पर काम करने के साथ गाँव वालों को साथ लेकर काम करना तो कभी सबकी सुननी और अपनी मन का करना पड़ता है। गाली भी पड़ेंगे तो फूल भी बरसेंगे ही, जब फूल बरसते है तब सोचो कि जूते और गाली पड़ रही है, जब गाली पड़ती है तो सोचो फूल बरस रहे हैं। यह जनता है दीदी कब किसको सिर पर बिठा ले कब सिर से धड़ाम गिरा ले, फिर जब वोट नोटो से खरीदे जाते हैं, तब जनप्रतिनिधियों को सिर्फ व्यापारी समझा जाता है, प्रत्तिनिधि नही।
पंचमू के गाँव मे क्वारन्टीन में लगभग 10 प्रवासी रह रहे हैं, हर दिन कुछ ना कुछ हंगामा होता रहता है, यह देखकर प्रवासी प्रधान ब्वारी परेशान है, ऊपर से कोटद्वार से रोज पति और बच्चे कह रहे है कि तुम पद से इस्तीफा देकर पँचमू की ब्वारी को ही निर्विरोध प्रधान बनवा दो, आखिर गाँव कि ब्वारी गाँव की मजबूरी को समझ सकती है। प्रवासी ब्वारी पँचमू कि ब्वारी को मनाने पर लगी है, अब देखना पड़ेगा कि क्या पँचमू कि ब्वारी को बस्ता मिलता है या नही, इसके लिये गाँव मे पंचों की कभी भी आपातकालीन बैठक बुलाये जाने पर गाँव मे चर्चा चल रही है।
इधर पंचमू की माँ ने साफ ब्वारी के लिये मना कर दिया कि अब तुम मत लेना ये बस्ता, अब थूककर नही चाटना है, इधर पंचमू कि ब्वारी सबसे सलाह ले रही है कि क्या किया जाय। आप भी सलाह दे सकते हैं, क्योकि मुफ़्त में ही देनी है।
पँचमू की ब्वारी सतपुली से।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।