देहरादून ! आज के तीव्र प्रौद्योगिकी विकास और अंतरिक्ष अन्वेषण के युग में विश्व ने बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण में महत्वपूर्ण प्रगति की है। लेकिन, इसके साथ-साथ अंतरिक्ष के प्रदूषण की समस्या भी दबे पांव आ रही है, जिसकी काली छाया पहले से ही प्रदूषण से कलुषित पृथ्वी पर भविष्य में पड़ने वाली है। परिचालन उपग्रहों का रिकॉर्ड रखने वाले यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट्स (यूपीएस) के अनुसार, एक जनवरी, 2021 तक साढ़े छह हजार उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे, जिनमें से करीब साढ़े तीन हजार सक्रिय और इतने ही निष्क्रिय थे। यूएन ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेअर्स (यूएनओओएसए) के अनुसार, जनवरी, 2022 तक 8,261 उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे, जिनमें केवल 4,852 सक्रिय हैं। पृथ्वी की निचली कक्षा में कम से कम 12 करोड़ टुकड़े तैर रहे हैं। लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के अनुसार, उनमें से करीब 34 हजार टुकड़े आकार में 10 सेमी से ज्यादा बड़े हैं। हमने चंद्रमा को भी नहीं छोड़ा है, जहां हमने कई वस्तुओं को स्मृति चिह्न या टाइम कैप्सूल के रूप में रखा है। चंद्रमा पर वर्तमान में 'शिव शक्ति' पॉइंट पर भारत के क्रियाशील गौरव प्रतीक विक्रम लैंडर और प्रज्ञान के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है, जो अब मलबा बन गया है, जैसे अपोलो 15, 16 और 17 की तीन मून बग्गियां, 54 मानव-रहित यान, जो चंद्र सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे, चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा छोड़ा गया 19 हजार किग्रा पदार्थ, सोवियत संघ का लूना-2, अमेरिका का रेंजर-4, जापान का हितेन इत्यादि। हालांकि, टकराव अंतरिक्ष मलबे का एकमात्र कारण नहीं है।
पृथ्वी की निचली कक्षा में तीव्र पराबैंगनी विकिरण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से उपग्रह भी टूट सकते हैं। इससे पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों की संख्या से टकराव की एक
अनियंत्रित शृंखला बन सकती है, जो चारों ओर अंतरिक्ष मलबे को इस सीमा तक बिखेर देगी,
कि हम नए रॉकेट लॉन्च करने में असमर्थ होंगे। इस आशंका को केसलर सिंड्रोम के रूप में
जाना जाता है और कई खगोलविदों को डर है कि यदि हम अंतरिक्ष मलबे को नियंत्रण में नहीं
रख सके, तो यह मानवता को बहुग्रहीय प्रजाति बनने से रोक सकता है।पृथ्वी की कुछ सौ
किलोमीटर की निचली कक्षाओं में कुछ वस्तुएं शीघ्रता से वापस लौट सकती हैं। कुछ वर्षों के
बाद वे वायुमंडल में फिर से प्रवेश करती हैं। लेकिन 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ा गया उपग्रह और उसका बना मलबा सैकड़ों या हजारों वर्षों तक पृथ्वी की परिक्रमा करते रह सकते हैं। यह दुर्लभ है, लेकिन अमेरिका, चीन और भारत सहित कई देशों ने स्वयं के उपग्रहों को उड़ाने का अभ्यास करने के लिए मिसाइलों का उपयोग किया है, जिससे पैदा होने वाले प्रदूषण की कल्पना ही की जा सकती है।सौभाग्य से अभी तक अंतरिक्ष प्रदूषण ने हमारे अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों में कोई बड़ा जोखिम पैदा नहीं किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अंतरिक्ष पर्यटन की होड़-सी लग गई है। रॉकेट द्वारा उत्सर्जित कण कालिख के अन्य सभी स्रोतों की तुलना में वातावरण में गर्मी बनाए रखने में लगभग पांच सौ गुना अधिक सक्षम होते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन होना स्वाभाविक है।संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सभी कंपनियां अपने मिशन की समाप्ति के बाद 25 वर्षों के भीतर अपने उपग्रहों को कक्षा से हटा लें। इस आदेश को लागू करना कठिन है, क्योंकि उपग्रह विफल हो सकते हैं, और प्रायः होते भी हैं। इस समस्या से निपटने के लिए कंपनियां नए समाधान लेकर आईं हैं। इनमें मृत उपग्रहों को कक्षा से हटाना और उन्हें वापस वायुमंडल में खींचना होता है, जहां जाकर ये जल जाएंगे। हालांकि, अंतरिक्ष कबाड़ को पृथ्वी की कक्षा से बाहर करने की ये तकनीकें पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले बड़े आकार के मृत उपग्रहों के लिए उपयुक्त हैं, छोटे टुकड़ों के लिए नहीं।स्पेसएक्स व अमेजन जैसी कई कंपनियां उपग्रहों के विशाल नए समूहों की योजना बना रही हैं, जिन्हें मेगा तारामंडल कहा जाता है, जो पृथ्वी पर इंटरनेट प्रसारित करेंगे। ये कंपनियां वैश्विक उपग्रह इंटरनेट कवरेज प्राप्त करने के लिए हजारों उपग्रह लॉन्च करने की योजना बना रही हैं। पृथ्वी व बाह्य अंतरिक्ष का अध्ययन जरूरी है, हर साल, तेज हवाओं के जरिए 1 अरब मीट्रिक टन से ज्यादा धूल और रेत वायुमंडल में जाती है. वैज्ञानिक जानते हैं कि धूल पर्यावरण और जलवायु को प्रभावित करती है..लेकिन पृथ्वी की कक्षा से अनुपयोगी हो चुका मलबा साफ करना भी उतना ही जरूरी है, ताकि भावी पीढ़ियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान के लाभ सुनिश्चित हो सकें। इन टुकड़ों की गति अधिक होने के कारण ये बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं. गोल्फ की गेंद के आकार का एक टुकड़ा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को नष्ट कर सकता है. इंटरनेट और संचार जरूरतों को देखते हुए आने वाले दिनों में विभिन्न देश अनेक सैटेलाइट छोड़ेंगे. अंतरिक्ष में बढ़ती भीड़ के कारण सैटेलाइट छोड़ना पहले ही मुश्किल होता जा रहा है.मलबे के कारण यह अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. ये टुकड़े अंतरिक्ष में पहले से मौजूद सैटेलाइट से टकराकर उसे नष्ट कर सकते हैं,
जिससे उस सैटेलाइट से जुड़ी इंटरनेट सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं और संचार व्यवस्था बाधित हो सकती है. नष्ट होने वाला सैटेलाइट जब मलबा बन जाता है तो वह दूसरे सैटेलाइट को भी नुकसान पहुंचा सकता है.इस तरह एक चेन बन सकती है. अंग्रेजी फिल्म ‘ग्रेविटी’ में कुछ इसी तरह का दृश्य दिखाया गया था. रूस एक सैटेलाइट को नष्ट करता है और उसके मलबे से
सैटेलाइट हादसे की चेन बन जाती है. कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को जान से हाथ धोना पड़ता है तो कुछ को आपात स्थिति में पृथ्वी पर लौटना पड़ता है. कंपनी न्यूमैन स्पेस ने ऐसी तकनीक
विकसित की है जिससे अंतरिक्ष से मलबे के ढेर को हटाया जा सकता है. कंपनी इस मलबे को
इकट्ठा कर रॉकेट का ईंधन बनाएगी. इस काम में न्यूमैन स्पेस के साथ एस्ट्रोस्केल, नैनोरॉक्स
और सिसलूनर कंपनियां भी हैं. जापानी कंपनी एस्ट्रोस्केल मलबा इकट्ठा करेगी, नैनोरॉक्स
उसकी कटाई करेगी और सिसलूनर उन्हें पिघला कर मेटल के रॉड बनाएगी.न्यूमैन उस रॉड को
आयनाइज करेगी जो रॉकेट ईंधन का काम करेगा. यह सारा काम अंतरिक्ष में ही होगा. कंपनी को इसके लिए नासा से ग्रांट भी मिली है. इस प्रोजेक्ट से अंतरिक्ष में रॉकेट ईंधन ले जाने का खर्च तो बचेगा ही, यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हो सकती है. रॉकेट ईंधन
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक चार यात्रियों को ले जाने वाला रॉकेट वातावरण में 200 से 300 टन कार्बन छोड़ता है. जिस तेजी से निजी कंपनियां स्पेस बिजनेस में आ रही हैं, उससे आने वाले दिनों में पर्यावरण को नुकसान बढ़ सकता है.रॉकेट से निकलने वाले कार्बन में हर साल करीब छह फ़ीसदी वृद्धि हो रही है. अंतरिक्ष से मलबा हटाने के काम में पहले से कई कंपनियां हैं, लेकिन वे मलबे को वायुमंडल में लेकर आती हैं जहां वे घर्षण के कारण नष्ट हो जाते हैं. पहली बार उस मलबे की रिसाइक्लिंग होगी. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में इससे नए तरह का बिजनेस खड़ा होगा. इस चुनौती से निपटने के लिए इसरो अंतरिक्ष में बढ़ते मलबे के प्रभावों पर कई अध्ययन कर रहा है।
लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।