देहरादून । करोनोकाल के बीच शुक्रवार को देहरादून में क्रिसमस का त्योहार सादगी से मनाया गया। इस मौक़े पर शहर के पांच चर्चों में क़रीब एक घंटे हुई प्रार्थना के बाद चर्चों को बंद कर दिया गया। इस दौरान सुरक्षा को ध्यान रखते हुए सभी लोग मास्क लगाए हुए नज़र आए। क्रिसमस पर्व के अवसर पर परेड ग्राउंड स्थित सेंट फ्रांसिस चर्च के बाहर सेंटा ने बच्चों को गुब्बारे बांटे।
हरीश ने दिया सर्वधर्म सद्भाव का संदेश
वहीं विचार एक नई सोच सामाजिक संस्था ने कोरोना संक्रमण के बीच क्रिसमस का त्यौहार बेहद सादगी के साथ मनाया। इस मौके पर टीम के साथी हरीश द्वारा विशेष रूप से तैयार कर लाया गया केक काटा गया और हरीश को उपहारों के साथ मैरी क्रिसमस की बधाई दी गई। विचार एक नई सोच टीम के संरक्षक राकेश बिजल्वाण ने कहा कि सभी त्यौहार हमें आपसी प्रेम और बंधुत्व की भावना सिखाते हैं।
प्रभु यीशु के जन्मदिन के मौके पर आज भारत समेत पूरी दुनिया में क्रिसमस पर्व धूमधाम से मनाया गया।राजधानी देहरादून में इस बार क्रिसमस पर्व सादगी के साथ मनाया गया। 24 दिसम्बर रात से ही ‘हैप्पी क्रिसमस-मेरी क्रिसमस’ से बधाइयों का सिलसिला जारी हो जाता है। देश के सभी शहरों में लोगों के घर ‘क्रिसमस ट्री’ सजाया जाता है, तो सांता दूसरों को उपहार देकर जीवन में देने का सुख हासिल करने का संदेश देते है।
हर बार की तरह इस बार भी सर्वधर्म सद्भाव का संदेश देने वाले मोथरोवाला केदारपुरम निवासी हरीश भाई ने क्रिसमस पर्व दोस्तों के साथ केक काटकर मनाया। हरीश हर साल अपने सभी दोस्तों को इस मौके पर केक गिफ्ट करते हैं, जिसे वह खासतौर से अपने दोस्तों के लिए बनाते हैं। हरीश कहते हैं कि सभी धर्मों के लोग उनके दोस्त हैं और सभी मिलजुल कर उनके साथ क्रिसमस पर्व को मनाते हैं। हरीश कहते हैं कि दोस्तों के साथ-साथ वह अपनी क्षमता अनुसार गरीब बच्चों को भी गिफ्ट बांटते हैं। इस मौके पर राकेश बिजल्वाण, मनोज ईस्टवाल, अभय, दीपक जुगरान, अर्चना शर्मा, हरीश चौहान, पुंडीर जी, अरूण पांडेय, मोहन पुरोहित, राजेश पुरोहित, अवधेश नौटियाल सहित अन्य साथी मौजूद रहे।
इस वजह से 25 दिसंबर को मनाया जाता है क्रिसमस, यह है इतिहास
हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया क्रिसमस डे के तौर पर मनाती है. 24 दिसंबर की शाम से इस त्योहार का जश्न शुरू हो जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर इस त्योहार को क्यों मनाया जाता है ? ईसाई समुदाय के लोग इसे यीशू मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं, शुरुआत में ईसाई समुदाय के लोग यीशू यानि ईसा मसीह के जन्मदिन को एक त्योहार के रूप में नहीं मनाते थे, लेकिन, चौथी शताब्दी के आते-आते उनके जन्मदिन को एक त्योहार के तौर पर मनाया जाने लगा।
इस वजह से मनाया जाता है क्रिसमस
हुआ यूं कि यूरोप में गैर ईसाई समुदाय के लोग सूर्य के उत्तरायण के मौके पर एक बड़ा त्योहार मनाते थे । इनमें प्रमुख था 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण होने का त्योहार । इस तारीख़ से दिन के लंबा होना शुरू होने की वजह से, इसे सूर्य देवता के पुनर्जन्म का दिन माना जाता था। कहा जाता है कि इसी वजह से ईसाई समुदाय के लोगों ने इस दिन को ईशू के जन्मदिन के त्योहार क्रिसमस के तौर पर चुना। क्रिसमस से पहले ईस्टर ईसाई समुदाय के लोगों का प्रमुख त्योहार था।
क्रिसमस को खास बनाती हैं परंपराएं
क्रिसमस को खास उसकी परम्पराएं बनाती हैं. इनमें एक संता निकोलस हैं। जिनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद मायरा में हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन यीशू को समर्पित कर दिया। उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था। यही वजह है कि वो यीशू के जन्मदिन के मौके पर रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे। इस वजह से बच्चे आज भी अपने संता का इंतजार करते हैं।
क्रिसमस ट्री का भी महत्व
दूसरी अहम परंपरा क्रिसमस ट्री की है. यीशू के जन्म के मौके पर एक फर के पेड़ को सजाया गया था, जिसे बाद में क्रिसमस ट्री कहा जाने लगा । इसके अलावा एक और परंपरा कार्ड देने की है । इस दिन लोग एक कार्ड के जरिए अपनों को शुभकामनाएं देते हैं । बता दें कि पहला क्रिसमस कार्ड 1842 में विलियम एंगले ने भेजा था।