Saturday, July 27, 2024
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शिक्षा

प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद से गाँव मे कर रहे है 50 नाली से अधिक जमीन में बागवनी का काम

श्री हरीश कंडवाल मनखी जी की कलम से

यमकेस्वर(पौड़ी गढ़वाल)प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद से गाँव मे कर रहे है 50 नाली से अधिक जमीन में बागवनी का काम, लेकिन विपणन में सड़क बनी बाधा

आज जँहा पौड़ी जिला को सर्वाधिक पलायन करने वाला जिला कहा जाता है, उसका एक विकासखण्ड यमकेश्वर जो राज्य की राजधानी से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर जिसकी सीमा लगती है, वँहा भी पलायन की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। यमकेश्वर या अन्य पहाड़ी जगह से पलायन करने के बारे में आम धारणा है कि इन जगहों से सबसे ज्यादा फौजी और शिक्षकों ने पलायन किया है, लेकिन कुछ ऐसे शिक्षक भी है जो गाँव मे रहकर किसानी और बागवनी करके अपनी उर्वरक जमीन को फलीभूत कर रहे हैं।


आज मनखी अपनी कलम से अपने गुरुजी के बारे में लिखकर खुद को गौरवान्वित समझ रहा है। आज मैं अपनी कलम से अपने गुरुजी जिन्होंने हमे कलम चलानी सिखाई है, उनके व्यक्तित्व और कृत्तिव को लिखने का दुस्साहस कर रहा हूँ।
इंटर कॉलेज किमसार से प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त श्री आनंद सिंह नयाल, मूल निवासी ग्राम सभा विनक के राजस्व ग्राम मलेल गाँव वीरकाटल के निवासी है। आपकी एक बात हमेशा याद आती है, जब आप हमें 12वी में शिक्षा शास्त्र विषय पढ़ाते थे तो कई बार क्षेत्र के विकास की मुद्दों की बात पर आप कहते थे कि जब तक हम बोलेंगे नही चिल्लायेंगे नही तब कोई नही सुनने वाला। वो कहते थे कि ” ब्वे भी दूध तब ही दीन्द जब नौंन रून्द छ, निथर ब्वे भी बुल्दी कि नौंन अजो खिलण पर लग्यू छ। उनकी यह बात इस तरह की कई शिक्षा आज भी जेहन में है। आप एक अनुशासन प्रिय शिक्षक थे, आप हाइस्कूल में अंग्रेजी विषय पढ़ाते थे, आपकी ग्रामर पर बहुत अच्छी पकड़ थी। 11 और 12वी में आप शिक्षाशास्त्र विषय पढ़ाते थे।


नयाल जी प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने ही गाँव मे निवास कर रहे हैं, आपने गाँव से पलायन ही नही किया बल्कि अपने इकलौता बेटा को भी गाँव मे रहकर बागवनी करवा रहे है। श्री नयाल जी ने अपनी जमीन वीरकाटल में बागवनी लगभग 20 नाली से ऊपर और जो जमीन के दाएं बाए जगह है वँहा पर औषधीय पौधे लगाए है। गुरुजी से जब फ़ोन पर बात की तो उन्होंने जैसा अवगत कराया है वैसे ही लिख रहा हूँ। आपकी बागवानी में इस तरह के फलों फूलों और इमारती लकड़ी के पेड़ और पौधे उपलब्ध हैं:-
फलों के पौधे: – आपकी बागवनी में बिज्जू प्रजाति के आम के 300 पेड़ है, और 8- 10 कलमी आम है, इसी तरह से आंवला, सेब,आडू,बेर, , इलाहाबाद का जामुनी रंग का अमरूद, कागजी नींबू, बड़ा नींबू, चकोतरे, मौसमी, नाशपाती तो बहुत मात्रा में उपलब्ध है। केला का बगीचा है, लेकिन उस पर कीड़ा लगने के कारण इसकी उपज कम होती जा रही है। बादाम का पेड़ लगाये लेकिन कुछ पेड़ सूख गए है। इस समय आँवला, नींबू, भरपूर मात्रा में उपलब्ध है।
औषधीय एवम मसाला के पौधे- आपने अपने बागवानी में ना सिर्फ फलो के पौधे लगाये है, बल्कि औषधीय पौधे जैसे, पीपली, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, टिमरू, पान के बेल, दालचीनी तैडू, पेठाफ़ल, आदि अन्य सभी आपके पास उपलब्ध है।
इमारती एवम अन्य उपयोगी पेड़- आपने अपने खेतों में पॉपलर, सिलवर, सागौन, और बांज के लगभग 50 पेड़ लगाए है जो सभी जीवित है, पर्यवारण की सुरक्षा के लिये पीपल के पेड़ भी उगाए गए हैं। आपके पास कई प्रजाति का बॉस उपलब्ध है। आपने प्रयोग के लिये रबर का पेड़ लगाया था, और आपका प्रयोग सफल रहा, आपके पास रबर का पौधा भी उपलब्ध है।

इसके साथ ही घर के पास फूलों में कनक चम्पा, गुड़हल की सभी प्रजाति जैसे सरस्वती गुड़हल, लक्ष्मी गुड़हल, काली गुड़हल, रात की रानी, बॉटल ब्रुश, गुलाब आदि अन्य फूलों के पौधे आपकी आँगन को प्रफुल्लित कर रहे हैं। आपके खेतो में आलू हरी सब्जी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन वह सब गायों के लिये उपयोग में लायी जा रही है।
आपने बताया कि सड़क नही होने के कारण इन सभी फलो का विपणन बाजार में नही हो पा रहा है, जिस कारण वह सब सड़ रहे हैं, मंगल्या वीरकाटल गाँव के लिए सड़क स्वीकृत हुई थी वह भी आज तक कागजो में ही सीमित है, इसी तरह वीरकाटल और मंगल्या गाँव को जोड़ने वाली पुलिया जो जिला पंचायत से स्वीकृत हुई थी वह कार्यदायी संस्था लोकनिर्माण विभाग ने अधूरा कार्य करके छोड़ दिया है, इसी तरह से आपके घर के पास 2013 की आपदा में चकड़ाम बह गया था, जिसे बनावने के लिए सरकारी स्तर पर पत्राचार किया गया लेकिन उनके कानों पर जूं तक नही रेगी, तब स्वयं के प्रयासों से उन्होंने चकड़ाम को बनाया है। उद्यान विभाग से कई बार वार्ता की लेकिन आज तक उनके यहाँ कोई निरीक्षण करने तक नही आया।
जब मैने पूछा कि आपकी इस बागवानी से आमदनी हो रही है या नही तो उन्होंने कहा कि घर से सड़क तक पहुचाने के लिये खच्चर करने पड़ते हैं, और एक खच्चर का एक तरफ का भाड़ा 200 रुपये है, यदि सड़क बनी होती तो बाजार में जाकर इसका विपणन हो जाता, यदि कोई लेने आता भी है तो सड़क के कारण वह लेने से इनकार कर देता है, जिस वजह से सभी फल सड़कर यही मिट्टी में मिल रहे है। आप एक सामाजिक चिंतनशील मनीषी है, आपके द्वारा क्षेत्र के विकास के लिये सरकारी स्तर पर बहुत पत्राचार किया गया लेकिन नतीजा कुछ नही निकल पाया है, लेकिन वह आज भी प्रयास रत है। आपके इस हौसले को मेरा सलाम।
आपके गाँव मे पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जमीन बहुत उपजाऊ है, लेकिन मूलभूत सुविधाएं नही होने से इनका उपयोग नही हो पा रहा है। आप आज उन लोगो के लिये प्रेरणा है जो सुविधाओ से लवरेज है लेकिन उनका उपयोग नही कर पा रहे हैं, लेकिन आप कठिन विपरीत परिस्थितियों में भी उद्यमिता में लगे हुए है, आपको आशा है कि इसका प्रतिफल मुझे नही तो आने वाली सन्तति को अवश्य मिलेगा।
मैं अपनी कलम से उन तमाम जनप्रतिनिधियों को यह कहना चाहता हूँ कि अपने इस क्षेत्र में सड़क की समस्या का निराकरण करने का कष्ट करें जिससे क्षेत्र में होने वाले उत्पादन को बाजार मिल सके।

 

®®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।✒📝📝📝✒✒

Rajnish Kukreti

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