सूर्य का तेज मकर संक्रांति से धीरे धीरे बढना सुरू होता है -नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी (स्वतंत्र पत्रकार)

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नागेंद्र प्रसाद रतूडी
नागेंद्र प्रसाद रतूडी(स्वतंत्र पत्रकार)

सूर्य (Sun) की अपनी गति है और राशियों से घनिष्ठ संबंध. सूर्य लगातार एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में गमन करते हैं. जब वो एक से दूसरी राशि में जाते हैं तो उसे संक्रांति (Sankranti) कहते हैं. 12 राशियों से सालभर में 12 संक्रांति होती हैं लेकिन उनमें कुछ ही महत्वपूर्ण हैं और मकर संक्रांति सबसे खास.

 

सूर्य को जागृत व प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है। सौर मंडल में सूर्य की स्थिति सर्वोच्च है ।ज्योतिष शास्त्र में इन्हें ग्रहों के राजा का स्थान दिया गया है सूर्य जहाँ दिन -रात का कारक है वहीं पृथ्वी में जीव,जन्तु व वनस्पति की उत्पत्ति का मूल है। सौर मंडल में प्रकाश और ऊर्जा का अनन्त स्रोत है।
हमारे सौर मंडल में नौ ग्रह हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं हमारी पृथ्वी भी उनमें से एक है जो अपनी गति पर तो घूमती ही है साथ ही साथ सूर्य की परिक्रमा भी करती है पृथ्वी की अपनी धुरि पर घूमने का कार्य लगभग 24 घंटे में पूरा होता है तथा सूर्य की परिक्रमा करने में उसे सवा तीन सौ पैंसठ दिन लगते हैं। पृथ्वी के अपनी घुरी पर घूमने से सुबह,दिन,संध्या व रात होते हैं तथा परिक्रमण गति से पृथ्वी में मौसम बदलते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य की बारह राशियां हैं एक राशि में रहने की अवधि लगभग तीस दिन है।इस एक राशि में रहने की अवधि महीना या मास कहलाता है।इस प्रकार सूर्य की मेष राशि में प्रवेश की तिथि से जो मास प्रारम्भ होता है वह बैशाख मास कहलाता है इस राशि पर सूर्य लगभग तीस दिन रह कर अगली राशि वृष राशि में प्रवेश करता है, इस माह को जेष्ठ या जेठ मास कहते हैं।अगली राशि मिथुनराशि में प्रवेश को आषाढ मास, कर्क राशि में प्रवेश को सावन,सिंह राशि में प्रवेश को भादौं,कन्या राशि प्रवेश से असूज या अश्वनि मास, तुला राशि में प्रवेश से कार्तिक, वृश्चिक राशि में प्रवेश पर मंगसीर या मार्गशीर्ष,धन धनुराशि में प्रवेश पर पौष या पूष,मकर राशि में प्रवेश पर माघ मास,कुम्भ राशि में प्रवेश को फाल्गुन तथा मीन राशि में प्रवेश को चैत्र माह कहते हैं।

पृथ्वी का आकार गोल है जिसे 360अंशों में विभाजित किया गया है। जो कि उसका सूर्य के परिक्रमण का समय है। चूंकि पृथ्वी का परिक्रमण पथ अंडाकार है इसलिए इसमें पांच दिन का समय और जोड़ा जाता है जो वर्ष कहलाता है। प्राचीन मनीषियों पृथ्वी को दो गोलार्द्धों में विभाजित किया है। दोनों गोलार्द्धों को विभाजित करने वाली रेखा को भूमध्य रेखा कहा जाता है इस रेखा को शून्य अंश माना जाता है इस रेखा पर सूर्य की किरणें सदैव लम्बवत पड़ती हैं। इसी प्रकार भूमध्य रेखा के उत्तर में साढे तेईस अंश पर की कल्पित रेखा को कर्क रेखा कहा जाता है।इसी प्रकार शून्य अंश (भूमध्य रेखा) से दक्षिण की ओर साढे तेईस अंश पर कल्पित मकर रेखा है । पृथ्वी की परिभ्रमण स्थिति में सूर्य के निकट जिस रेखा का भूभाग सूर्य के सम्मुख रहता है सूर्य को उसी रेखा पर या उसके निकट माना जाता है।ऐसी स्थिति में भूमध्य रेखा पर सूर्य दो बार रहता है। पहली बार मेष संक्रांति को और दूसरी बार तुला संक्रांति को।
सूर्य की स्थिति जब मकर से कर्क की ओर प्रारम्भ होती है तो इस समय को उत्तरायण कहते हैं “भानोर्मकरसंक्रान्ते षण्मासा उत्तरायणम्।”- (नारद संहिता,ग्यारहवां अध्याय)अर्थात् सूर्य के मकर संक्रमण से छ:मास तक उत्तरायण होता है।उत्तरायण को स्वर्गलोक का दिन कहा जाता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में गरमी क्रमश:बढती जाती है।तथा जब कर्क से सूर्य वापस मकर की ओर बढता है तो इस छ:मास के समय को दक्षिणायन कहते हैं एक अयन छ:मास का होता है।सूर्य की स्थिति दक्षिणायन की होती है तो इसे स्वर्ग लोक की रात मानी जाती है।इस समय उत्तर भारत कर्क रेखा पर स्थित देशों में क्रमश:शीत बढती जाती है जब सूर्य की स्थिति उत्तरायण की होती है तो मकर रेखा पर स्थित भूभाग मे शीत ऋतु होती है।इस प्रकार दो अयन संक्रांति होती हैं उत्तरायण की मकर संकांति तथा दक्षिणायन की कर्क संक्रांति।
भारत देश भूमध्यरेखा से 8.4°उत्तरी अक्षांश से प्रारम्भ होता हैअतएव इसकी स्थिति उत्तरी गोलार्द्ध में है जो कि 37.6°उत्तरी अक्षांश तक फैला है। कर्क रेखा इसके बीचों बीच से गुजरती है। ऐसी स्थिति में जब सूर्य की स्थिति मकर रेखा की ओर होती है तो उत्तर भारत शीत से व्यथित रहता है।जैसे ही सूर्य की स्थिति मकर को संक्रमित करती है और सूर्य भूम्ध्य रेखा की ओर बढता है वैसे ही उत्तर भारत में शीत कम होनी प्रारम्भ हो जाती है।दक्षिणायन में शीत तो होती ही है साथ ही दिन छोटे व रातें लम्बी होती हैं जबकि उत्तरायण दिन बड़े व रातें छोटी होती हैं जिससे इस भूभाग को अधिक प्रकाश व ऊर्जा मिलती है।अधिक वाष्पीकरण होता है। जो वर्षा में सहायक होता है ।इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य के मकर राशि संक्रमण करने के दिन को मकर संक्रांति के रूप में जाना व त्यौहार के रूप में जाना जाता है।

मकर संक्रांति से वातावरण में ऊष्मा का संचार होने लगता है जिससे सुसुप्त पेड़ पौधों में नवांकुर फूटने लग जाते हैं।किसान जहाँ धान की फसल घर में रखता है वहीं खेतों में सरसों,गेंहूं आदि कि फसलें तैयार होती हैं।ऐसी स्थिति में मनुष्य के अन्दर भी एक नवस्फूर्ति आ जाती है।इसलिए वह सूर्य के मकर संक्रमण को उत्साह व नव ऊर्जा स्रोत के रूप में मनाता आ रहा हैं।
मकर राशि के स्वामि शनिदेव हैं। मकर संक्राति को सूर्य मकर राशि में आते है याने सूर्य शनिदेव के घर जाते हैं जो सूर्यदेव के पुत्र हैं याने सूर्य देव अपने पुत्र के घर रहते हैं।इससे शनिदेव भी शान्त रहते हैं।कहते हैं कि इसी दिन भगीरथ गंगाजी के साथ कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे थे और उन्होंने अपने साठ हजार पुरखों को मोक्ष दिलाया था।महाभारत की लड़ाई में घायल इच्छामृत्यु वरदानी भीष्म पितामह ने मृत्यु शैय्या पर लेट कर इस दिन की प्रतीक्षा की और इसी दिन देह त्यागी। क्योंकि हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता। .इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य की उपासना की जाती है नदियों में स्नान कर दान दिया जाता है।उत्तराखण्ड में कई स्थानों पर मेले लगते हैं।कई स्थानों पर गेंद का छीना झपटी का खेल खेला जाता है।
मकर संक्रांति भारत के लगभग सभी प्रांतों में अलग अलग नामों से मनाई जाती जाती है। मकर संक्रांति को खिचड़ी संक्रांति भी कहते हैं इस दिन खिचड़ी खायी जाती है। तथा उसका दान भी किया जाता है।खिचड़ी उड़द की दाल की बनती है। उड़द की दाल की खिचड़ी का दान भी किया जाता है। खिचड़ी का प्रसंग गुरुगोरखनाथ से जुड़ा बताया जाता है।कहानी है कि विधर्मियों से धर्मयुद्ध करते समय भोजन पकाने का समय न मिलने पर उनके शिष्य सैनिक कमजोर हो गये जिस पर मकर संक्रांति के दिन गुरुगोरखनाथ ने अपने शिष्यों को दाल,चावल, सब्जी एक साथ पकाने का आदेश दिया।उनके आदेश से पके भोजन को खिचड़ी नाम दिया गया। गुरु गोरखनाथ की याद मेंं मकर संक्रांति को खिचड़ी खाई व दान दी जाती है। इस दिन तिल व गुड़ तथा उनसे बने पदार्थों को खाना स्वास्थ्यवर्द्धक माना जाता है।
मकर संक्रांति का हमारे जीवन में जहाँ आध्यात्मिक महत्व है वहीं उसका खगोलीय महत्व भी है।यह तमसो मा ज्योतिर्गमय के उद्घोष को साकार करता है।

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