यमकेश्वर के 80 वर्षीय रिटायर्ड ऑरनेरी कैप्टन ने संवारा राजकीय कन्या विद्यालय रामजीवाला, अपने हाथों से करते हैं पेटिंग का कार्य।

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यमकेश्वर के 80 वर्षीय रिटायर्ड ऑरनेरी कैप्टन ने संवारा राजकीय कन्या विद्यालय रामजीवाला, अपने हाथों से करते हैं पेटिंग का कार्य।

यदि स्कूल के प्रवेश द्वार से जाते ही आपका स्वागत खिलती फुलवारी से हो, स्कूल की दीवारों में सुंदर रंगों से रंग रोधन हो, उन दीवारों पर ज्ञान और स्लोगन लिखे हों, खेलने के लिए मैदान हो, स्वच्छ शौचालय हो, प्रार्थना करने के लिए और राष्ट्रीय पर्वां पर झण्डारोहण करने के लिए सुंदर सा मंच हो, स्कूल के चारों तरफ हरियाली हो तो अवश्य ही मन को प्रफुल्लित करता है, यह जानकर आपको लग रहा होगा कि मैं देहरादून के किसी मिशनरी स्कूल की बात कर रहा हॅूॅ, लेकिन यह किसी शहर का नहीं, बल्कि जिला पौड़ी गढवाल के यमकेश्वर प्रखण्ड के डांडामंडल क्षेत्र का राजकीय जूनियर कन्या विद्यालय रामजीवाला । इस विद्यालय को ऐसा रूप दिया है, रिटायर्ड ऑरनेरी कैप्टन ने जिनकी उम्र इस समय 80 साल है।

विद्यालय में नियुक्त अध्यापक सुधीर अमोली जी ने बताया कि यहॉ पर विद्यार्थियों की संख्या 40 से अधिक है, सभी अध्यापकों, क्षेत्र के ग्राम प्रधान, पूर्व जिला पंचायत व क्षेत्रीय विधायक के अथक प्रयोसों द्वारा संसाधन उपलब्ध कराये गये हैं। लेकिन यहॉ पर स्कूल के लिए सबसे ज्यादा प्रयास एक ऐसे 80 वर्षीय रिटायर्ड ऑरनेरी कैप्टन के द्वारा किया जा रहा है। जब हमें यह जानकारी मिली तो हम इसकी जॉच करने स्वयं रामजीवला गये। स्कूल में जब हमने देखा तो जो हमें बताया गया था, वैसे ही हमने वहॉ पर पाया। वहॉ जाकर यह भी मालूम हुआ कि वो वह बुजुर्ग मनीषी देहरादून में अपने बेटों के पास गया है। देहरादून में आकर उनके निवास पर मुलाकात की।

उम्र बाधक नहीं होती है, इच्छा शक्ति बड़ी होती है, इच्छा शक्ति उम्र को भी बौना साबित कर देती है। आज जहॉ 60 पार इंसान दवाईयों को अपनी आदत बना लेता है, हर चीज चिकित्सकों के सलाह पर उपयोग में लाता है, क्योंकि यह शहरी जीवन में शुमार हो चुका है। अक्सर देखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति सेवानिवृत्ति के बाद शहरों में ही रहना पंसद करते हैं। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जो आध्यात्म को अपना जीवन मानता है, और खुद को ईश्वर का सेवक समझकर जन सेवा करता है, सेना के उच्च पद ऑरनेरी कैप्टन से सेवानिवृत्त होकर गॉव में जाकर खुद ही खेती, जल संचय, करता है। इसके अतिरिक्त अपनी पेंशन का आधा हिस्सा कन्या विद्यालय के सौन्दर्यीकरण को देता है। वे अपने आध्यात्मिक ज्ञान को कर्म मार्ग पर लाकर उपयोग में लाता है और अपने शरीर को कर्म करने के लिए मानता है, एवं दूसरों को सद्मार्ग पर जाने के लिए प्रेरित करता है।

ऐसे महा ज्ञानी पुरूष से जब मैने उनके आवास पर जाकर बात की और उन्होने पहले तो अपने बारे में कुछ भी लिखवाने के लिए स्पष्ट मना कर दिया। पहले एक डे़़ढ घंटे तक मुझे आध्यात्मिक ज्ञान से रूबरू करवाया और उसके बाद मेरे विचारों को जानकर उन्होनें एक शर्त रखी कि आप बिना मेरे नाम और बिना फोटो की खबर लिखोगे तो मैं आपको इस बारे में लिखने की इजाजत दे सकता हॅूं। क्योकि मैं संत्सगी हैं, और संत्सगी व्यक्ति को नाम की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इससे मानव मद में चूर हो जाता है, हम केवल प्रभु की इच्छा से यह कार्य कर रहे हैं। ऐसे ज्ञानी सही मायने में आध्यात्मिक पुरूष से जब बातचीत की गयी तो उनने द्वारा गॉव में रहने के अनुभव साझा किया साथ ही उन्होने अपनी जीवन यात्रा के बारे में कुछ इस तरह से बताया।

सेना में भर्ती होने के बाद वे जब गॉव में आये थे तो उन्होनें देखा कि गॉव में एक 14 साल की लड़की पानी लेने जा रही है, जबकि बाकि लड़कियां स्कूल गयी हुयी थी, तब उन्होने उस लड़की से पूछा कि सब स्कूल गये हैं आप स्कूल क्यांं नहीं गये तो उस लड़की ने बताया कि मुझे लड़को के साथ पढने में शरम आती है इसलिए मैं पढने नहीं गयी, यह बात मेरे लिए थोड़ा अजीब थी लेकिन मेरे दिल में चुभ गयी, तब मेरे निवास पर इण्टर कॉलेज किमसार में कार्यरत अध्यापक श्री हरि सिंह चौधरी जी रहते थे, मैने उनसे अपनी मन की बात साझा कि और कहा कि क्या रामजीवाला में कन्या विद्यालय नहीं खुल सकता है, तब उन्होंने यह बात उस समय ही नोट करली और उनके साथ क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से कन्या विद्यालय खुल गया, तब से मैं इस कन्या विद्यालय से जुड़ा हूॅ।

 

उन्होनें बताया कि सन् 1992 में मैं आरनेरी कैप्टन से सेवानिवृत्त होकर आ गया, उसके बाद मैं कुछ समय देहरादून में रहा यहॉ आध्यात्मिक ज्ञानार्जन कर अपने मूल गॉव रामजीवाला चला गया वहॉ पुराने मकान को बनवाया। वहीं रहकर अपना जीवन यापन करने लगा। कन्या विद्यालय से लगाव था तो उससे जुड़ा वहॉ पर बालिकाओं की मासूमियत उनकी खिलखिलाहट मुझे उनकी बेहतर शिक्षा के लिए प्रेरित करता था, इसलिए विद्यालय में अपने स्तर से प्रभु के आदेश पर कार्यो को नहीं कर रहा हॅू, बल्कि अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहा हॅू,मेरे लिए यह सेवा करने का अवसर है।

उन्होने बताया कि गॉव में मैनें ज्योट्रोफा, शहतूत, लैमन ग्रास, अलग अलग प्रजाति के फल लगाये, साथ ही छत में बरसात के पानी को संरक्षित करने लिए वाटर हार्वस्टिंग बनाया है, बरसात के उस पानी को टैंक में सचिंत कर अपनी सगवाड़ी, फुलवाड़ी को सिंचित करता हूॅ। घर के ऊपर रामजीवाला गॉव के जो लोग सेना में लड़ते हुए शहीद हो गये उनका शहीद स्थल बनवाया, वहॉ पर अपने निजी व्यय से उसका रंगरोधन किया। उन्होने चर्चा के दौरान यह भी कहा कि हमारे देश के अधिकारी वर्ग जमीनी हकीकत में कार्य नहीं करते हैं, वहॉ दौरा नहीं करते हैं बंद कमरों में योजनाये बनती हैं, वह परवान नहीं चढती हैं। हमारे उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्वरोजगार के बहुत कुछ संसाधन उपलब्ध हैं, जैसे नगदी फसलों में हल्दी अदरक एं अरबी, ज्योट्रोफा, शहतूत के रेशे बनाये जा सकते हैं, मैने खुद इनका उत्पादन किया है, और आज भी 80 साल की उम्र में कर रहा हूॅं, लेकिन उन्होने कहा कि हमारे पहाड़ी क्षेत्र के लोगों के लिए बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण उनमें निराशा उत्पन्न हो जाती है। जंगली जानवरों से बचाव और बाजार उपलब्ध हो जाये तो हमारा क्षेत्र बहुत आगे बढ सकता है। साथ ही युवा वर्ग में बढता नशा और दिन में दुकान में बैठकर ताश खेलना उनको बहुत अखरता है।

उनसे स्कूल के बारे में किये गये कार्यो के बारे मे जब जानकारी ली गयी तो उन्होने कहा कि मैं इस संबंध में अपने मुंह से कुछ नही कहना चाहता, यह सब वह ईश्वर करवा रहा है। इस बाबत तब उनके बेटे ने मुझे बताया कि आप मेरा नाम प्रकाशित नहीं करोगे। उन्होने बताया कि उनके पिताजी, अपनी पेंशन का आधा हिस्सा कन्या विद्यालय में लगाते हैं, लेकिन कार्यों की देख रेख स्वयं करते हैं, वे खुद ही यहॉ से दीवरों के लिए रंगरोधन का सामान ले जाते हैं, दीवारों पर और गेट पर स्वयं मजदूरों के साथ रंगरोधन का कार्य करते हैं, वहॉ पर स्कूल कें लिए पानी, के लिए टैंक, शौचालय के लिए टैंक स्वयं उन्होने दिया। मंच का निर्माण, सौन्दर्यीकरण के लिए अलग अलग प्रकार के पेड़, फुलवारी, गेट का निर्माण और बच्चों के लिए ज्ञान वर्धक पोस्टर लेकर जाते हैं। अभी तक स्कूल के लिए उन्होने बहुत सहयोग किया है।

स्कूल के अध्यापक श्री सुधीर अमोली ने बताया कि कैप्टन साहब के अथक प्रयासों से हमारा विद्यालय का जो सौन्द्रीकरण हुआ है, उससे हमें पढाने में भी रोचकता आती है, साथ ही हमको भी उनसे कुछ करने की प्रेरणा मिलती है, जब भी हमने उनका सम्मान करना चाहा लेकिन उन्होने हमें इसके लिए सदैव विनम्रता पूर्वक इंकार कर दिया। आज तक कई लोगों ने उन पर लिखने के लिए कहा तो उन्होने उनके लिए भी इंकार कर दिया। वह अपना नाम और फोटो नहीं देना चाहते हैं, बस निस्वार्थ भाव से खुद अपने निरीक्षण में अपने कार्यों को अंजाम देते हैं।

                     उमाशंकर कुकरेती

                                   व 

©®@ हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।📝✒️✒️🖋️🖋️

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