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बहुनि सन्ति तीर्थानि दिविभूमौ रसातले, बदरी सदृशं तीर्थ न भूतं न भविष्यति।
भगवान श्री बदरीनाथ के कपाट आज शुक्रवार को सुबह ठीक 4-30 बजे पूरे विधि विधान के साथ ब्रह्ममुहूर्त में खोल दिए गए है । ⋅इस बार बेहद सादगी के साथ कपाट खोले गए।कपाटोद्घाटन मे मुख्य पुजारी रावल, धर्माधिकारी भूवन चन्द्र उनियाल, राजगुरु, हकहकूकधारियों सहित केवल 28 लोग ही शामिल हो सके। इस दौरान मास्क के साथ सोशल डिस्टेसिंग का पालन किया गया।
भू – वैकुंठ बदरीनाथ नर व नारायण पर्वत की हिमनद समुद्र तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बदरीनाथ को भगवान बदरी विशाल के नाम से भी जाना जाता है। नारायण पर्वत की गोद में भगवान नारायण तथा नर पर्वत में आवासीय भवन हैं। दोनों पर्वतों को बांटती विष्णुगंगा भगवान बदरी विशाल की चरणों को स्पर्श करती हुई विष्णु प्रयाग धोली नदी से मिलकर अलकनंदा बन जाती है। पुराणों में इस तीर्थ को मुक्तिप्रदा, योगसिद्धा, विशाल पुरी, बदरिकाश्रम, नर नारायणाश्रम, तथा बदरीनाथ के नाम से उद्घृत किया गया है। अनुमान है कि बदरी, बेरद्ध या उसकी तरह के किसी फल का क्षेत्र होने से यहां का बदरीनाथ, बद्रिकाश्रम या बदरी वन पड़ा। स्कंद पुराण के अनुसार मान्यता है कि पहले नारायण स्वयं यहां रहते थे। कलयुग के प्रारंभ होते ही नारायण की जगह मूर्ति की पूजा होने लगी। कहा जाता है कि भगवान बदरी विशाल की मूल मूर्ति को बौद्धों के भय से नारद कुंड में फेंका गया था। 9वीं सदी के पुर्वाद्ध आदि शंकराचार्य द्वारा मूर्ति को नारद कुंड से निकालकर मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया था। बदरीनाथ धाम हिन्दुओं का सबसे पवित्र धर्मस्थल है। इसका निर्माण आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था। बदरी विशाल के कपाट मई से नवंबर माह तक दर्शनों के लिए खुले रहते हैं तथा सर्दियों में बर्फ़ पड़ने के कारण पांडुकेश्वर में शीतकालीन उद्धव की गद्दी के रूप में दर्शन कीए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त पंचबदरी में योगध्यान बदरी, भविष्य बदरी, वृद्ध बदरी एवं आदिबदरी के दर्शन किए जा सकते हैं। भगवान बदरी विशाल के कपाट इस वर्ष 15 मई को ब्रह्ममुहूर्त में खोले गए।