अल्मोड़ा की इन 4 बहनो को सलाम करता है उत्तराखंड, नारी शक्ति का है बेहतरीन उदाहरण
जो कोई भी कहता है कि लड़कियां कमजोर होती हैं तो यह खबर उनके लिए है। अब जमाना बदल गया है, लेकिन सोच अब भी वही है। बहुत से लोग अभी भी सोचते हैं कि बेटी का जन्म एक अभिशाप के समान है, और उनका कोई भविष्य नहीं है। पहनावे से लेकर रहन-सहन तक वो खुद नहीं बल्कि औरों से तय करते हैं लेकिन आज हम आपको अल्मोड़ा की ऐसी ही चार बेटियों से मिलवाने जा रहे हैं। जिन्होंने इन रूढ़ियों को तोड़ा और नारी सशक्तिकरण का एक नया अध्याय लिखा। सेना से सेवानिवृत्त हुए पिता की चारों बेटियां उत्तराखंड पुलिस की शान हैं।
चार बहनों में से दो पुलिस में कांस्टेबल हैं, जबकि वही दो कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने अपने पिता को एक प्रतिष्ठित पद पर खुद को बनाने का श्रेय दिया और वे सफलता के शिखर पर हैं। जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने का फैसला किया और इसके लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। अल्मोड़ा के मनीला इलाके की रहने वाली इन चारों बहनों ने पुलिस सेवा को नौकरी के तौर पर चुना। उनके पिता स्वर्गीय रूप सिंह वर्ष 1991 में सेना से सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद उन्होंने बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना शुरू किया।
बड़ी बेटी जानकी बोरा वर्ष 1997 में बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद कांस्टेबल के रूप में पुलिस में शामिल हुईं। उनकी बेटी कुमकुम धनिक भी वर्ष 2002 में सिपाही बनी थी। वर्ष 2005 में अंजलि भंडारी का चयन उत्तराखंड पुलिस में सिपाही के रूप में हुआ था। जबकि सबसे छोटी बहन गोल्डी घुघत्याल साल 2015 में डायरेक्ट इंस्पेक्टर बनी थीं। जानकी फिलहाल नरेंद्रनगर में हैं। अंजलि पीएसी देहरादून, कुमकुम हल्द्वानी और गोल्डी उधमसिंहनगर में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं।
क्षेत्र के लोग चार बहनों के इस समूह को कॉप सिस्टर्स कहते थे। बेटियों की सफलता में पिता का अहम रोल होता है। दरोगा कुमकुम बताती हैं कि उनके पिता ने कभी भी बेटियों को सूट पहनने से नहीं रोका, वह हमेशा ट्रैक सूट पहनती थीं। पिता ने हमेशा उनका मनोबल बढ़ाने की कोशिश की। चारों बहनों ने न केवल पढ़ाई में बल्कि खेल में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। दरोगा कुमकुम ने ज़ी टीवी के शो में भी भाग लिया है। इंस्टाग्राम पर उनके हजारों फॉलोअर्स हैं।
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