राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थानों में अध्यापकों को भारी भरकम टोटा है– डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत में तकनीकी शिक्षा का इतिहास 150 वर्षों से अधिक पुराना है। भारत में, इसकी जड़ें उत्तराखंड में हैं, भारत में पहला इंजीनियरिंग कॉलेज जिसकी स्थापना 1847 में रूड़की में हुई थी, अब यह आईआईटी में से एक है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में तकनीकी शिक्षा का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। तकनीकी शिक्षा प्रणाली को गुणवत्ता एवं मात्रा की दृष्टि से और मजबूत करने की पहल की जा रही है। सूबे में युवाओं की तकनीकी फौज तैयार करने वाले पॉलिटेक्निक संस्थानों में पढ़ाने वाले प्रवक्ता नहीं हैं। यहां प्रवक्ता बनने के लिए युवाओं का 10 साल का समय निकल गया, जिसके साथ कई युवाओं की उम्र सीमा भी पार हो गई। आखिरी भर्ती 2015 में हुई थी। आलम ये है कि 2019 से प्रवक्ता भर्ती का अधियाचन राज्य लोक सेवा आयोग के पास है, जिसकी कई बार कोशिश के बाद भी खामियां दूर नहीं हो पाई हैं।उत्तराखंड में पॉलिटेक्निक संस्थानों में पिछले 10 वर्षों से प्रवक्ता भर्ती का विज्ञापन नहीं आया है। अंतिम भर्ती प्रक्रिया 2015 में हुई थी। गलती सुधारकर कई बार अधियाचन आयोग को पहुंच चुका है, लेकिन भर्ती शुरू नहीं हो पा रही है। युवाओं का इंतजार बढ़ता जा रहा है। उनके सब्र का बांध टूटने लगा है। उनका कहना है कि आयोग और विभाग दोनों का रवैया उदासीन दिख रहा है।तकनीकी शिक्षा विभाग खुद आधिकारिक जानकारी में बता रहा कि पूरे विभाग में 2,295 पद खाली हैं। इनमें प्रवक्ता के 900 में से 676 पद खाली पड़े हुए हैं। पॉलिटेक्निक प्रवक्ता भर्ती का अधियाचन 2019 में राज्य लोक सेवा आयोग के पास आया था। आयोग बार-बार इसमें खामियां बताकर लौटा रहा है। बावजूद इसके खामियां अब तक भी दूर नहीं हो पाई हैं।उत्तराखंड में पॉलिटेक्निक संस्थानों में पिछले 10 वर्षों से प्रवक्ता भर्ती का विज्ञापन नहीं आया है। अंतिम भर्ती प्रक्रिया 2015 में हुई थी। गलती सुधारकर कई बार अधियाचन आयोग को पहुंच चुका है, लेकिन भर्ती शुरू नहीं हो पा रही है। युवाओं का इंतजार बढ़ता जा रहा है। उनके सब्र का बांध टूटने लगा है। उनका कहना है कि आयोग और विभाग दोनों का रवैया उदासीन दिख रहा है।तकनीकी शिक्षा विभाग खुद आधिकारिक जानकारी में बता रहा कि पूरे विभाग में 2,295 पद खाली हैं। इनमें प्रवक्ता के 900 में से 676 पद खाली पड़े हुए हैं। पॉलिटेक्निक प्रवक्ता भर्ती का अधियाचन 2019 में राज्य लोक सेवा आयोग के पास आया था। आयोग बार-बार इसमें खामियां बताकर लौटा रहा है। बावजूद इसके खामियां अब तक भी दूर नहीं हो पाई हैं। इसके साथ ही प्रदेश सरकार का विशेष प्रयास है कि इन तकनीकी कॉलेज में इस प्रकार की शिक्षा को उन्नत किया जाए कि राज्य के इंजीनियर नौकरी के लिए भागें नहीं, बल्कि उनकी क्षमता को इतना प्रबल किया जाएगा कि वो प्रदेश में ही तकनीक के क्षेत्र में स्वरोजगार का सृजन करें. जिससे प्रदेश में अन्य युवाओं को भी अपने साथ रोजगार दे सकें. नई शिक्षा नीति 2020 में कौशल विकास को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है जिसमें सोच, संचार, समस्या समाधान और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया गया है जिससे रोजगार बढ़ता है। संगीत, कला खेल पाककला आदि विधाओं को मजबूत किया गया है ताकि छात्रों के विकास के साथ देश का विकास भी हो सके।शिक्षण कुशलता बढ़ाने, विविध शिक्षण शैली और इंटरैक्टिव शिक्षण का अनुभव प्राप्त करने के लिए डिजिटल मॉडल, ऑनलाइन संसाधन और शैक्षिक एप्स का लाभ उठा सकते है। छात्र भी आधुनिक तकनीकी प्राप्त कर सकते हैं, नई शिक्षा नीति समावेशी शिक्षा को प्राथमिकता देती है जिसमें हाशिये पर रखे गये समुदायों व विकलांगों को समान अवसर सुनिश्चित किए जायेगी। यह सहायक शिक्षण वातावरण को बढ़ावा देता है जो छात्रों के बीच सहानुभूति और समझ को बढ़ावा देता है। नई शिक्षा नीति 2020 में कौशल विकास को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है जिसमें सोच, संचार, समस्या समाधान और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया गया है जिससे रोजगार बढ़ता है। संगीत, कला खेल पाककला आदि विधाओं को मजबूत किया गया है ताकि छात्रों के विकास के साथ देश का विकास भी हो सके।नई शिक्षा नीति में लाभ के साथ कुछ कमियां भी है जिसमें महत्वपूर्ण है छात्रों पर दवाब और प्रतिस्पर्धा में संभावित वृद्धि है क्योंकि यह मानवीकृत परीक्षाओं के महत्व पर जोर देती है और प्रारंभिक वर्षों से शुरू करके कई स्तरों पर बोर्ड परीक्षाओं को प्रोत्साहित करती है। यह छात्रों का ध्यान ग्रेड और प्रदर्शन पर ज्यादा केन्द्रित करती है जिससे छात्रों के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है। बहुत ही महत्वपूर्ण है डिजिटल बुनियादी ढाचें में असन्तुलन, ई-लर्निंग प्लेटफार्म परमहत्वपूर्ण है। हमारे देश में सभी छात्रों के पास डिजिटल उपकरणों, इंटरनेट या ऑनलाइन सीखने के लिए आवश्यक संसाधनों की पहुंच नहीं है। ऐसे में आर्थिक रूप से वंचित छात्र को हाशिये पर रखा जा सकता है जिससे शैक्षिक असमानता बढ़ सकती है। नई शिक्षा नीति में शिक्षण प्रशिक्षण एवं सहयोग पर फोकस किया गया है जिसमें निरंतर व्यावसायिक विकास और प्रोत्साहन के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी है, जो कि कक्षा में दी जाने वाली शिक्षा को प्रभावित करेगा, नई शिक्षा नीति में भाषा नीति और क्षेत्रीय भाषा अधिकतर राज्यों के लिए विवाद का विषय बना हुआ है। शैक्षणिक संस्थानों में सक्षम शिक्षक ढूंढना, मातृभाषा में अध्ययन सामग्री को लाना चुनौतीपूर्ण है, जहाँ निजी संस्थानों में अंग्रेजी सिखाने पर फोकस रहेगा, जबकि सरकारी स्कूल में छात्रों को क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाया जायेगा। यह नई शिक्षा नीति की प्रमुख कमियों में से एक है, क्योंकि प्राइवेट व सरकारी स्कूलों के छात्रों के बीच गैप बढने की आशंका ज्यादा है।हालांकि नई शिक्षा नीति में शुरूआत में कई बदलाव किये गये है जिसमें सुधार केन्द्र व राज्य सरकार के सहयोग से लागू किया जायेगा। भारत सरकार का लक्ष्य 2040 तक नई शिक्षा नीति को स्थापित करना है। प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा के अंतर्गत 71 पॉलिटेक्निक संस्थान सहित एक अशासकीय पॉलिटेक्निक संचालित हो रहा है. जिनमें अध्यापकों की कमी चल रही है. जिसमें प्राविधिक शिक्षा द्वारा 14 प्रधानाचार्य, प्रवक्ता रसायन विज्ञान के 46 , भौतिक 42, प्रवक्ता गणित 44, अंग्रेजी 48, सीविल 65, विधुत 37,यांत्रिकी 32,आईटी 15 कृषि, ऑटो में 9, केमिकल 5, फार्मेसी में 28 पद विभाग में खाली चल रहे हैं. जिसमें नियुक्ति की प्रकिया की जानी है.

 

 

 

भले ही चार धाम यात्रा करीब आ रही है, लेकिन पहाड़ी मंदिरों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है, समस्या के समाधान के लिए न्यूनतम सक्रिय उपाय किए जा रहे हैं और इस साल भी कोई ठोस समाधान लागू नहीं किया गया है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीसीबी) के अधिकारियों के अनुसार , राज्य प्रतिदिन लगभग 1,500 से 1700 टन कचरा उत्पन्न करता है, उनका दावा है कि इसमें पर्यटकों और तीर्थयात्रियों द्वारा उत्पन्न कचरा भी शामिल है। भले ही चार धाम यात्रा करीब आ रही है, लेकिन पहाड़ी मंदिरों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है, समस्या के समाधान के लिए न्यूनतम सक्रिय उपाय किए जा रहे हैं और इस साल भी कोई ठोस समाधान लागू नहीं किया गया है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीसीबी) के अधिकारियों के अनुसार , राज्य प्रतिदिन लगभग 1,500 से 1700 टन कचरा उत्पन्न करता है, उनका दावा है कि इसमें पर्यटकों और तीर्थयात्रियों द्वारा उत्पन्न कचरा भी शामिल है। चारधाम यात्रा रूट पर पड़ने वाले सभी 27 छोटे-बड़े शहरों में इस यात्रा सीजन के दौरान प्लास्टिक को पूरी तरह से प्रतिबंधित रखा जाएगा. साथ ही प्लास्टिक प्रतिबंध को प्रभावी रूप से धरातल पर उतारने के लिए इसके लिए मैन पावर की व्यवस्था करनी पड़ी तो उसको भी किया जाएगा. इसके अलावा उन्होंने बताया कि यात्रा रूट पर पड़ने वाले सभी 27 शहरों में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर के पहले से ही काम चल रहा है. यात्रा सीजन के दौरान दबाव बढ़ने पर शहरी विकास विभाग की ओर से अतिरिक्त व्यवस्था भी की जाएगी. साल 2024 की चार धाम यात्रा के दौरान नगर निगम ऋषिकेश तीर्थ यात्रियों को पॉलिथीन का प्रयोग करने से रोकेगा. यात्रियों को पॉलिथीन के बदले जूट और कागज के थैले उपलब्ध कराये जाएंगे. इसके लिए रोडवेज बस स्टैंड और यात्रा ट्रांजिट कैंप परिसर में नगर निगम की ओर से काउंटर भी लगाए जाएंगे.काउंटर पर यात्रा पर जाने वाले प्रत्येक ग्रुप के सदस्य को पॉलिथीन को छोड़ जूट के थैले लेने के लिए निगम कर्मचारी जागरूक करेगा. फिलहाल, नगर निगम ने महिला स्वयं सहायता समूह के माध्यम से दस हजार जूट के थैले बनवाने शुरू कर दिए हैं. इस संबंध में नगर निगम के सभागार में नगर आयुक्त ने महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के साथ बैठक भी की. जिसमें जूट के थैले की गुणवत्ता का ख्याल रखने के लिए नगर आयुक्त ने महिलाओं को निर्देश दिए.नगर आयुक्त ने बताया चार धाम यात्रा पॉलिथीन मुक्त हो इसके लिए चार धाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश से शुरुआत की जा रही है. जूट के थैले का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा यात्री करें इसके लिए उत्तराखंड परिवहन निगम और चार धाम यात्रा मार्ग पर बस संचालित करने वाली परिवहन कंपनियों से भी बातचीत की गई है. बसों में सवार होने से पहले चालक परिचालक यात्रियों को पॉलिथीन को टाटा बाय-बाय कर जूट के थैले नगर निगम के काउंटर से लेने के लिए प्रेरित करे इसके लिए प्रयास जारी है. सीएम ने कहा कि चारधाम यात्रा देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए आस्था के प्रमुख केन्द्र हैं। इसके एवज में ये सुनिश्चित किया जाए कि देवभूमि उत्तराखंड का अच्छा संदेश देश और दुनिया सीएम ने कहा कि चारधाम यात्रा देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए आस्था के प्रमुख केन्द्र हैं। इसके एवज में ये सुनिश्चित किया जाए कि देवभूमि उत्तराखंड का अच्छा संदेश देश और दुनिया तक जाए। निर्देश दिये कि यात्रा मार्गों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाए। प्लास्टिक व वेस्ट मैनेजमेंट के लिए चारधाम यात्रा से जुड़े डिस्ट्रिक्ट के डीएम को प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से धनराशि उपलब्ध कराई जाए। तक जाए। निर्देश दिये कि यात्रा मार्गों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाए। प्लास्टिक व वेस्ट मैनेजमेंट के लिए चारधाम यात्रा से जुड़े डिस्ट्रिक्ट के डीएम को प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से धनराशि उपलब्ध कराई जाए। उत्तराखंड पहुंचे. इस बार भी यात्रा रूट पर पड़ने वाले शहरों में और अधिक लोगों के आने की आशंका जताई जा रही है. ऐसे में अभी से ही सभी तैयारियां पूरी की जा रहीं है। जिससे  यात्रा सीजन में अव्यवस्थाओं का सामना न करना पड़े. इन शहरों और धामों में कूड़ा न फैले इसके लिए भी प्रशासन सख्त है। स्वच्छता और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यात्रा में पड़ने वाले स्थानों पर प्लास्टिक प्रतिबंध रहेगी। नदियों में बहने वाला ठोस कचरा जल प्रदूषण का बड़ा कारण बन गया है। इस कचरे को निपटाने के प्रयास स्वच्छता अभियान में जोर पकड़ रहे हैं, किन्तु समस्या है कि कचरे को इक_ा करके निपटाया कैसे जाए? यहाँ-वहां डंपिंग स्थलों में कचरा डाल देने के बाद उसमें आग लगने से वायु प्रदूषण, जमीन में रिसाव से भूजल और मिटटी प्रदूषण का खतरा बनता है। इस कचरे से बिजली बनाने के उन्नत तरीके, जिनमें वायु प्रदूषण का खतरा नहीं रहता, को अपनाया जाना चाहिए। ऐसे विकल्पों की खोज सतत जारी रहनी चाहिए जो वर्तमान स्तर से प्रदूषण के खतरे को प्रभावी रूप से कम करने में समर्थ हों। उससे बेहतर समाधान मिल जाए तो उस नई तकनीक को अपनाया जाना चाहिए। हमारे ‘विश्व पर्यावरण दिवस,’ ‘जैव विविधता दिवस’ आदि मनाने की रस्म-अदायगी से आगे बढने से ही मंजिल हासिल होगी। यह एक गलत बहाना है कि विकास के लिए पर्यावरण का नुकसान तो झेलना ही पड़ेगा। हमें पर्यावरण मित्र विकास के मॉडल की गंभीरता से खोज करनी होगी और हिमालय जैसे संवेदनशील प्राकृतिक स्थलों के लिए तो विशेष सावधानी प्रयोग करनी होगी। सरकार ने हिमालय में विकास के लिए एक प्राधिकरण का गठन किया है, उसको पर्वतीय विकास की सावधानियों को लागू करने, खोजने में अग्रसर होना चाहिए। हिमालय भारत के पारिस्थितिकी संरक्षण की रीढ़ है, यह बात जितनी जल्दी समझें उतना ही अच्छा।।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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