वरिष्ठ संपादक श्री गुणानंद जखमोला जी “उत्तरजन टुडे”
साल बीता, न चार्जशीट मिली, न चार्ज
यू के एसएसएससी भर्ती परीक्षा के मास्टरमाइंड हाकम सिंह को अब तक दो मामलों में जमानत मिल चुकी है। हालांकि वह गैंगस्टर समेत दो अन्य मामलों में अब भी जेल में ही है। इस बीच यूके एसएससी परीक्षा घोटाले मामले में 80 से अधिक लोगों को जेल हो चुकी है। भर्ती परीक्षा के लिए: सख्त नियम भी बन गये हैं। संपत्ति की कुर्की और गैंगस्टर भी लग चुका है।
इस मामले में यूकेएसएसएससी के सचिव संतोष बड़ोनी को गत वर्ष 31अगस्त 2022 को निलंबित कर दिया गया था। निलंबन के बाद उनको सचिवालय में अटैच कर दिया गया और यूकेएसएसएससी में सुरेंद्र रावत को सचिव बना दिया गया भर्ती परीक्षा के दौरान पुलिस और विजिलेंस जांच में संतोष बडोनी के खिलाफ भर्ती परीक्षा में धांधली को लेकर कोई सबूत नहीं मिले। शासन स्तर पर भी उनको क्लीन चिट दे दी गयी। इसके बावजूद उनका निलंबन वापस नहीं लिया जा रहा है।
एक साल बाद भी नहीं सौंपी चार्जशीट सबसे अहम बात यह है कि निलंबन के बावजूद शासन ने संतोष बडोनी को कोई चार्जशीट नहीं सौंपी है कि आखिर उनका निलंबन किस आधार पर किया गया है। सूत्रों के अनुसार बडोनी पर लापरवाही का आरोप था और दबाव में चलते शासन ने उन पर निलंबन की कार्रवाई की। लेकिन निलंबन भी एक अवधि तक ही होता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अधिकतम निलंबन छह माह तक ही माना है। राज्य सिविल सर्विस नियमावली में तो निलंबन की समयावधि महज तीन महीने ही है। इसके बावजूद संतोष बडोनी को बहाल नहीं किया गया है। न चार्जशीट देना और न निलंबन वापस लेने की नीति से बड़ोनी और उनका परिवार किस ट्रॉमा से गुजर रहा होगा। यह कहना आरसन नहीं है। राज्य सरकार के जीओ में स्पष्ट कहा गया है कि तीन महीने में चार्ज फ्रेम होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि निलंबन हर हाल में छह माह में वापस लिया जाए। लेकिन एक साल बाद भी यह तय नहीं किया जा सका है कि आखिर संतोष बडोनी को सजा देनी है या छोड़ देना है।
प्रतिवेदन में झलकी वेदना
संयुक्त सचिव संतोष बडोनी ने पिछले एक साल के दौरान आर्थिक समस्या के साथ साथ मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न भी सहा है।
इस दौरान समाज में उनकी प्रतिष्ठा को भी क्षति पहुंची है जबकि उनको महज राजनीतिक शतरंज में मोहरा बना दिया गया। जानकारी के अनुसार संतोष बडोनी ने मुख्य सचिव को नियम विरुद्ध निलंबन को लेकर मुख्य सचिव को चार बार प्रतिवेदन दिया, लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं की गयी और न ही कोई संतोषजनक उत्तर ही मिला। अहम बात यह है कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी के मुताबिक कार्मिक विभाग या सचिवालय के पास उनके निलंबन के लिए कोई दस्तावेज नहीं था, जिसके आधार पर निलंबन किया गया। निलंबन को लेकर आरोप पत्र भी नहीं दिया गया है।
निलंबन में चार अनुमानित आरोप
सूत्रों के मुताबिक कार्मिक विभाग ने संतोष बडोनी को जो निलंबन पत्र भेजा था उसमें उन पर लापरवाही और संवेदनशीलता के साथ कार्य न करने का आरोप लगाया गया। यह कहा गया कि भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी होने से सरकार की छवि धूमिल हुई। उनकी उदासीनता और लापरवाही से दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं किया गया। इस आधार पर उनका निलंबन कर दिया गया। यह सारे आरोप अनुमान पर आधारित थे। संतोष बडोनी ने इन आरोपों का खंडन किया है। उनका दावा है कि भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता और नकलविहीन परीक्षाएं करने के लिए उन्होंने शासन को सुझाव दिये थे और यूकेएसएसएससी में सचिव रहते हुए नियमों के दायरे में रहते हुए कई सुधार भी किये। उनका सवाल है कि यदि इस मामले की जांच कर रही एसटीएफ ने शासन को उनकी जांच संबंधी रिपोर्ट भेजा हो तो उसे बताया जाएं। यदि ऐसा है तो उन्हें कोई आरोप पत्र क्यों नहीं दिया गया
25 साल की सेवा रही बेदाग
संयुक्त सचिव संतोष बडोनी यूकेएसएसएससी में सचिव पद पर प्रतिनियुक्ति से पहले राजकीय सेवा में 25 साल की सेवा कर चुके हैं। इस दौरान उनकी छवि बेदाग रही है और उनको एक ईमानदार और कर्मठ अफसर के तौर पर जाना जाता है। उनका दावा है कि आयोग में काम करने के दौरान भी पिछले पांच साल की उनकी सेवा उत्कृष्ट रही है और इस संबंध में रिकार्ड शासन के पास उपलब्ध हैं। आयोग के पूर्व अध्यक्ष एस. राजू ने भी उन्हें एक प्रशंसा पत्र दिया है जिसमें उनको कर्मठता और ईमानदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी है। उनका यह भी तर्क है कि भर्ती परीक्षाओं में सचिव का कोई लेना-देना नहीं होता है। ऐसे में उन्हें जबरन मोहरा बनाया जा रहा है। उनका तर्क है कि भर्ती परीक्षाओं में नकल रोकने का ड्राफ्ट भी उन्होंने ही तैयार किया था।
निलंबन को दी चुनौती, हाईकोर्ट की ले सकते हैं शरण
निलंबित संयुक्त सचिव संतोष बडोनी को शासन से यदि राहत नहीं मिलेगी तो वह हाईकोर्ट की शरण ले सकते हैं। उन्होंने मुख्य सचिव को प्रतिवेदन दिया है। 18 पेज के इस प्रतिवेदन में उन्होंने निलंबन संबंधी सभी आरोपों का खंडन किया है और बताया है कि उनका निलंबन नियम विरुद्ध है। उन्होंने कहा है कि यदि उनका निलंबन वापस नहीं लिया गया तो वह हाइकोर्ट की शरण ले सकते हैं।
इस संबंध में उत्तरजन टुडे ने चीफ सेक्रेट्री डा. एसएस सिंधू को कई बार फोन कर जानकारी लेने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
क्या संतोष बडोनी ने चुकाई ईमानदारी की बड़ी कीमत ? शासन से मिल चुकी क्लीन चिट पर निलंबन नहीं लिया वापस