दून की घटती आबोहवा, शांति व विरासत को बचाने आगे आया संयुक्त नागरिक संगठन, (दून डिक्लेरेशन) उत्तराखंड सरकार के नाम दून वासियों का तैयार हुआ घोषणा पत्र,,

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दून वासियों का संयुक्त नागरिक संगठन ने दून को बचाने के लिए बनाया फुलप्रूफ प्लान

दून डिक्लेरेशन (उत्तराखंड सरकार के नाम दून वासियों का घोषणा पत्र)

संयुक्त नागरिक संगठन और सम्बद्ध संगठन देहरादून, उत्तराखंड

आज दिनांक 25 नवम्बर को संयुक्त नागरिक संगठन एवं संबद्ध संगठन की पहल पर पूर्व बैठक में घोषित प्रेस क्लब में सयुंक्त प्रेस-वार्ता आयोजित की गई।

कभी खुशगवार आबोहवा और शांत माहौल के लिए देश-दुनिया में विख्यात दूनघाटी राजधानी बनने के बाद पिछले 23 वर्षों में बद से बदत्तर हो गई है। ऐसे में इसे बचाने की मुहिम यहां के बाशिंदों ने शुरू की है। दून में सक्रिय विभिन्न सामाजिक संगठनों, रेजिडेंट्स वेलफेयर सोसाइटीज, मोहल्ला कल्याण समितियों, पूर्व सैनिकों, पत्रकारों, सेवानिवृत्त कर्मचारियों, राज्य आंदोलनकारियों व समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों के समन्वित मंच ‘संयुक्त नागरिक संगठन एवं संबद्ध संगठन’ की ओर से शनिवार को ‘दून डिक्लेरेशन’ (दूनवासियों का घोषणा पत्र) जारी किया।

उत्तरांचल प्रेस क्लब के डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल सभागार में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में संगठन के अध्यक्ष ब्रिगेडियर (अप्रा.) केजी बहल, सचिव सुशील त्यागी, पूर्व कर्मचारी नेता जगमोहन मेहंदीरत्ता, सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल, पत्रकार  जितेन्द्र अंथवाल पार्षद देवेंद्रपाल सिंह मोंटी, राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती व संगठन के उपाध्यक्ष कर्नल (अप्रा.) बीएमएस थापा आदि ने तमाम संबद्ध संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में इसे जारी किया।

इस मौके पर पूर्व बेंक कर्मचारी नेता जगमोहन मेहंदीरत्ता ने बताया कि शहर लगातार बद से बदत्तर होता चला जा रहा है। जिन पर इसके संरक्षण और संवर्द्धन की जिम्मेदारी है, वे पूरी तरह अनदेखी किए हुए हैं।

ट्रैफिक जाम, प्रदूषण जैसी समस्यों से लोग बेहाल हैं। शहर की शांति और हरियाली खत्म कर दी गई है। स्मार्ट सिटी के नाम पर दून को और बदहाल कर दिया गया है। वर्षों से पूरा शहर खुद रहा-बन रहा, फिर खुद रहा। मनमाने ढंग से काम हो रहा।

मेहंदीरत्ता ने बताया कि आज जारी दून डिक्लेरेशन पर अब हस्ताक्षर कराए जाने की मुहिम चलाई जाएगी। लक्ष्य 50 हजार से अधिक दूनवासियों के हस्ताक्षर कराए जाने का है। हस्ताक्षरों के साथ इसे मुख्यमंत्री को सौंपा जाएगा। साथ ही शहरी विकास मंत्री, मुख्य सचिव, दून के विधायकों और नए बनने वाले नगर निगम बोर्ड को भी इसकी प्रतियां सौंपी जाएंगी।

सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने बताया कि दून को लेकर चिंता करने वाले जागरूक लोगों को 2 नवंबर को संगठन की ओर से आयोजित बैठक में बुलाया गया था। इसमें उत्साहजनक यह रहा कि डेढ़ दर्जन से ज्यादा संगठनों-संस्थाओं के प्रतिनिधि उक्त बैठक में शामिल हुए। इसी में तय किया गया था कि नागरिकों की ओर से दून डिक्लेरेशन जारी किया जाएगा।

नौटियाल ने कहा कि दून डिक्लेरेशन में सिर्फ समस्याओं की ओर ही सरकार और जनप्रतिनिधियों का ध्यानाकर्षित नहीं किया गया है, बल्कि समाधान भी सुझाया गया है। उन्होंने बताया कि पूरे दून डिक्लेरेशन को तीन खंडों में बांटा गया है। पहले खंड में दून की वर्तमान दुर्दशा को 20 बिंदुओं में सामने रखा गया है। दूसरे खंड के अंतर्गत 6 बिंदुओं में भविष्य की गंभीर चिंताओं को लेकर आगाह किया गया है। तीसरे और अंतिम खंड में इनके समाधान के तौर पर दून गवर्नेंस को लेकर 5 बिंदुओं में सुझाव दिए गए हैं।

नौटियाल ने कहा कि आवासीय क्षेत्र, व्यावसायिक क्षेत्रों में तब्दील हो रहे हैं। मेट्रो परियोजना का वर्षों बाद भी धरातल पर कहीं अतापता नहीं है। स्मार्ट सिटी पुराने शहर से इतर नए शहर के रूप में अलग से बननी चाहिए थी। कचरा प्रबंधन के भी बुरे हाल हैं। दून ई-रिक्शा, लोडरों और अतिक्रमण का शहर बन गया हैं, जिसकी वजह से दिनभर जाम झेलने को लोग मजबूर हैं। परेड मैदान और रेंजर्स ग्राउंड को और खराब कर दिया गया है।

उनका कहना है कि देहरादून शहर के नियोजन में स्थानीय नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए और इसके लिए सभी 100 वार्ड में कमेटियों का गठन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल्द ही दूनघाटी के सभी आवासीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क कर संगठन को और विस्तार दिया जाएगा, ताकि दूनवासियों की मुखर आवाज नीति नियंताओं और योजनाकारों तक पहुंच सकें।

*01-* दून सिटीजन रेजिडेंट वेलफेयर सोसायटी।
*02-* पूर्व सैनिक संगठन।
*03-* उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी मंच।
*04-* उत्तराँचल बैंक एशोसियेशन।
*05-* दून सिक्ख वेलफेयर सोसायटी।
*06-* स्वतंत्रता संग्राम सैनानी उत्तराधिकारी संगठन।

सुशील त्यागी 98972 87147
अनूप नौटियाल 97600 41108
जगमोहन मेहन्दीरत्ता 70174 66453
कर्नल बीoएमo थापा 94129 41194
मोंटी (पार्षद) 9997515867
प्रदीप कुकरेती 9897356777

 

 

 

2 नवंबर, 2023 को संयुक्त नागरिक संगठन के सार्वजनिक जनसंवाद और उसके बाद देहरादून के कई नागरिकों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर हम इस दून डिक्लेरेशन (उत्तराखंड सरकार के नाम दून वासियों का घोषणा पत्र) को साझा कर रहे हैं। हमें उम्मीद रहेगी कि उत्तराखंड राज्य और देहरादून शहर के वरिष्ठतम राजनैतिक और प्रशासनिक नेतृत्व देहरादून की दयनीय और चिंताजनक स्थिति को लेकर नागरिकों की पीड़ा को समझेंगे और स्थिति में सुधार के लिए सुझावों को तत्काल लागू करने का प्रयास करेंगे।

इस दून डिक्लेरेशन के माध्यम से हम प्रदेश की सरकार, समस्त अधिकारी / कर्मचारी और देहरादून के सम्मानित / जिम्मेदार नागरिकों के समक्ष तीन अलग अलग सेक्शन में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहते हैं।

पार्ट एक दून की वर्तमान दुर्दशा / बिगड़ती हुई परिस्थितियां (20 बिंदु) पार्ट दो दून में भविष्य की गंभीर चिंताएं (6 बिंदु) –

पार्ट तीन ट्रेन गवर्नेस को लेकर कुछ सुझाव (5 बिंदु)

संयुक्त नागरिक संगठन जनसंवाद का सारांश

देहरादून शहर और स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर की बुरी हालत देहरादून के लोगों को खलने लगी है। अब तक शहर की हालत में सुधार की उम्मीद करने वाले लोग पूरी तरह से निराश हो गये हैं। संयुक्त नागरिक संगठन की 2 नवंबर, 2023 की बैठक में यह बात साफ तौर पर सामने आई है कि लोग अब खोदी गई सड़कों और अस्त व्यस्त शहर से परेशान हो चुके हैं और नेताओं, अधिकारियों और शहर के अन्य बहुत से लोगों से संपर्क कर जल्द से जल्द शहर की हालत में सुधार करवाना चाहते हैं। इस बैठक में जनप्रतिनिधियों के साथ विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों, गणमान्य लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने भी हिस्सा लिया। बैठक में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की बदहाली, एमडीडीए के देहरादून ड्राफ्ट मास्टर प्लान 2041, नगर निगम देहरादून की लचर कार्यप्रणाली और देहरादून के बेकाबू कांक्रीटीकरण पर विस्तृत चर्चा हुई। एमडीडीए ने ड्राफ्ट मास्टर प्लान 2041 का जो मसौदा तैयार किया है उस पर आपत्तियां दर्ज करवाने का लोगों को पर्याप्त समय नहीं दिया। जनसंवाद के दौरान दून वैली नोटिफिकेशन के संभावित बदलाव, शहर की जनसंख्या, ट्रैफिक व्यवस्था और देहरादून की कैरिंग कैपेसिटी पर भी कई सवाल खड़े हुए।

इनके अलावा यह बात भी प्रमुखता से उठी की अखबारों में जो स्मार्ट सिटी को लेकर खबरें छपती हैं जमीन पर वह होता नहीं है। एक और उदाहरण मेट्रो को लेकर सामने आया की कई बार नेता और अधिकारी विदेशों का दौरा कर चुके हैं, लेकिन मेट्रो फाइलों से बाहर नहीं निकल रही है। देहरादून स्मार्ट सिटी की जगह देहरादून को decongest करते हुए अलग से सिटी बनानी चाहिए थी। अब स्मार्ट सिटी के नाम पर मनमानी हो रही है।

सभी ने एक सुर में कहा और स्वीकारा कि पिछले 20 वर्षों में देहरादून के हालात बेहद बिगड़े हैं और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि शहर विनाश और बर्बादी के रास्ते पर ही आगे बड़ा है। रिहायशी इलाकों में कमर्शियल निर्माणों पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने की जरूरत बताई गयी सारांश यह रहा कि अब सिर्फ समस्याओं की चर्चा करने का समय नहीं है, अब समाधान की बात होनी चाहिए और उन पर शीघ्र काम भी होना चाहिए।

जनसंवाद में यह निर्णय लिया गया था की समस्त बिंदुओं को संगृहीत कर दून डिक्लेरेशन जारी किया जायेगा। इसके उपरांत उत्तराखंड सरकार और देहरादून के समस्त सम्मानित नागरिकों तक दून डिक्लेरेशन के बिंदु और अपेक्षाएं साझा की जाएँगी। आने वाले समय में संयुक्त नागरिक संगठन दून डिक्लेरेशन के समस्त बिंदुओं पर पैनी नजर रखते हुए देहरादून के हजारों लोगों को इस मिशन में जोड़ने का प्रयास भी करेगा, ताकि देहरादून को उचित स्थान मिल सके

पार्ट एक दून की वर्तमान दुर्दशा / बिगड़ती हुई परिस्थितियां

1. देहरादून स्मार्ट सिटी योजना की असफलता

जिस तरह देहरादून स्मार्ट सिटी का प्रबंधन किया गया है, उसके बारे में देहरादून के लोगों के बीच स्मार्ट सिटी विरोधी धारणा बन चुकी है। राज्य सरकार को वास्तव में चिंतित होना चाहिए क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में स्मार्ट सिटी परियोजना को जिस तरह से संभाला गया है उसमें भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के व्यापक आरोप जुड़े हैं, जिसके कारण कार्य लटके हुए हैं। चूंकि उत्तराखंड सरकार शून्य भ्रष्टाचार का संदेश देने पर केंद्रित है, इसलिए हम इसे ध्यान में लाना चाहते हैं।

स्मार्ट सिटी और अन्य परियोजनाओं के कारण पूरे शहर को खोद दिया गया है। हम सब इस बात को समझते हैं कि बुनियादी ढांचे के विकास में समय लगता है किन्तु देहरादून में काम की गति बेहद धीमी है। विभिन्न परियोजनाओं में शामिल सभी एजेंसियों की खिंचाई की जानी चाहिए और उन्हें तेजी से और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कहा जाना चाहिए। कार्य समय से पूर्ण हो इसलिए एक ही ठेकेदार को सम्पूर्ण कार्य न देकर छोटे छोटे टुकड़ों में अलग अलग ठेकेदारों को कार्य दिया जाना चाहिए ।

सुझाव के तौर पर एक हद से आगे अक्षमता, सुस्ती और सेटिंग कर काम करने और करवाने वालों को दंडित किया जाना चाहिए । धीमी गति से काम करने वालों (ठेकेदारों और अधिकारियों दोनों) को सिस्टम से तुरंत बाहर निकालने की आवश्यकता है। अब ऐसी एजेंसियों और ऐसे ठेकेदारों की आवश्यकता है जिनकी साख बेदाग हो और जिनके पास समय पर गुणवत्तापूर्ण काम देने का सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड हो ।

2. देहरादून शहर में चारों तरफ फैली हुई गंदगी और कचरा

दून एक गंदा शहर बन गया है। खुली नालियाँ, सड़कों पर कचरा और कमजोर कचरा संग्रहण, परिवहन और प्रसंस्करण व्यवस्थाएँ शहर में गहरी, व्यापक, शहरी सड़ांध के लक्षण हैं। स्वच्छ सर्वेक्षण में शहर की रैंक भले ही सुधर गई हो, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद गंभीर है। नगर निगम करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी सूखा / गीला कचरा पृथक्करण की बुनियादी बातों को लागू करने में विफल रहा है। अन्य अपशिष्ट जैसे जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, ई-कचरा, निर्माण और मलबा अपशिष्ट बड़ी चुनौतियां पैदा करते हैं जिसे सख्ती से रोका जाए ।

“क्लीन दून, ग्रीन दून” जैसे नारे बाजी और निरर्थक हो चुके हैं और इन्हें अब सार्वजनिक उपयोग से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से देहरादून इंदौर जैसा स्वच्छ शहर बन सकता है, बशर्ते उत्तराखंड सरकार और दून के वरिष्ठ नेता / अधिकारी इस दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने के लिए प्रतिबद्ध हों। आमूल-चूल परिवर्तन के लिए दून को एक साथ 5 प्रमुख तत्वों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

सबसे पहले कचरे का दैनिक डोर टू डोर कलेक्शन, दूसरा सूखे और गीले कचरे में 100% पृथक्करण सुनिश्चित करना, तीसरा सभी सार्वजनिक स्थानों जैसे वाटर बॉडीज, सड़क, पार्क, फुटपाथ, बस अड्डे इत्यादि को 24 घंटे साफ रखना, चौथा उ यानि रीयूज, रिड्यूस और रीसाइक्लिंग की अवधारणाओं को बढ़ावा देना और पांचवा और आखिरी वेस्ट टू वेल्थ और सर्कुलर इकॉनमी की व्यवस्था को स्थापित कर वृहद् स्तर पर आगे बढ़ना ।

हम इस बात से सहमत हैं कि पब्लिक को जागरूक करना सबसे महत्वपूर्ण है किन्तु दुःख इस बात का है कि यह नेताओं द्वारा लोगों पर जिम्मेदारी डालने की एक रणनीति है। अधिकांश जनता पहले से ही जागरूक है लेकिन शहर में कचरा प्रबंधन सिस्टम के व्यापक अभाव के कारण उस जागरूकता का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इसे सख्ती से लागू किया जाए ।

दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और जन भागीदारी के साथ देहरादून खुद को इंदौर और कई अन्य शहरों की तरह एक शीर्ष प्रदर्शन करने वाला मॉडल, स्वच्छ शहर बना सकता है। इन सब के लिए प्रतिबद्धता, प्लानिंग और पैसे की आवश्यकता है।

3. पब्लिक ट्रांसपोर्ट, ट्रैफिक और पार्किंग की बदहाल स्थिति

देहरादून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट, ट्रैफिक और पार्किंग की स्थिति बद से बदतर हो गयी है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्थिति को सुधारने के लिए अब कोई समाधान ही नहीं बचे हैं।

देहरादून में लोग पिछले पांच छह वर्षों के दौरान विभिन्न पब्लिक ट्रांसपोर्ट विकल्पों के बारे में पढ़ और सुन रहे हैं (गेट्रो, नियो-मेट्रो, लाइट रेल ट्रांजिट, पॉड टैक्सी इत्यादि) लेकिन ठोस पहल की कमी के कारण इन सभी घोषणाओं पर जनता का भरोसा ख़त्म हो गया है।

हम चाहते हैं कि उत्तराखंड सरकार देहरादून में इन सभी मुद्दों पर कार्य करते हुए आगे बड़े और एक मजबूत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली यानि पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था को स्थापित करने पर गंभीरता से काम करे। हम अपेक्षा करते हैं कि उत्तराखंड सरकार नियो मेट्रो और इलेक्ट्रिक बस के एक बड़े बड़े को शहर के सभी हिस्सों में तुरंत संचालित करने के लिए ईमानदार प्रयास करेंगे।

इन सब के अलावा स्कूलों का अलग-अलग समय निर्धारित करना, कारपूलिंग को बढ़ावा देना, यह सुनिश्चित करना कि ત્રનો સહા सड़कों पर पर्याप्त पुलिस / यातायात कर्मी हों और मुफ्त बाएं मोड़ सुनिश्चित करना कुछ ऐसे समाधान हैं जिन पर वर्षों से चर्चा की गई है लेकिन कभी भी लगातार लागू नहीं किया गया है। अंत में यह भी कहना चाहेंगे की शासन प्रशासन पिछले कई वर्षों में ट्रैफिक और पार्किंग को लेकर अलग अलग प्रयोग कर चुका है लेकिन कुछ समय के बाद ये सभी अभियान बंद हो जाते हैं। निरंतरता के अभाव के कारण इन अभियानों को लोग गंभीरता से नहीं लेते और इन्हें पब्लिक सपोर्ट नहीं मिलता।

इनको ध्यान में रखते हुए जो भी पार्किंग और ट्रैफिक संचालन के अभियान चलें, बेहद सोच समझ के साथ एक लंबे समय तक चलें। मंत्रियों, विधायकों और अन्य ऊँची पकड़ वाले लोगों की इन अभियानों में अपने लोगों को बचाने की प्रवृति की हम घोर निंदा करते हैं और चाहते हैं की शासन, प्रशासन बिना किसी भेद भाव के सब के साथ अनुशासन का पालन करते हुए सगस्त सार्वजनिक प्रयोगों को लागू करें।

4. ई रिक्शा और लोडरों का शहर

कभी विक्रम, टेंपुओं से तंग आई दूनघाटी वर्तमान में ई-रिक्शा और लोडरों का शहर बन गया है। ई-रिक्शा के शुरूआती लाइसेंस जारी करते हुए सरकारी तौर पर यह कहा गया था कि इनका संचालन आउटर के उन क्षेत्रों में किया जाएगा, जो यातायात सुविधाओं से वंचित हैं। खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों को मुख्य मार्गों तक यातायात सुविधा से जोड़ने के लिए ई-रिक्शा शुरू किए गए थे। लेकिन, वर्तमान में इनकी संख्या बेतहाशा बढ़ा दी गई है और इनका संचालन बाहरी क्षेत्रों के बजाय हाईवे, मुख्य मार्गों और पलटन बाजार, हनुमान चौक, मोती बाजार जैसे घने बाजारों में धड़ल्ले से हो रहा है। इनकी अंधाधुंध संख्या और धीमी गति शहर में जाग की बड़ी वजह बन रही है।

इसी तरह, लोडर भी जाम को बढ़ा रहे हैं। पूर्व में पुलिस की ओर से लोडिंग-अनलोडिंग के घंटे निर्धारित थे। लेकिन, अब यह व्यवस्था अमल में नहीं लाई जा रही है। ऐसे में, आदत बाजार, हनुमान चौक, बाबूगंज, पीपल मंडी जैसे व्यस्त बाजारों और मार्गो पर दिनभर लोडिंग-अनलोडिंग चल रही है, जो जाम का बड़ा कारण बन रही है।

ऐसे में डीएम हरिद्वार के स्तर से उठाए गए कदमों की तर्ज पर दून में भी ई-रिक्शा के लाइसेंस जारी करने पर रोक लगाने के साथ ही इनका संचालन शहर के बाहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही लोडिंग-अनलोडिंग घंटे निर्धारित करते हुए इसे पीक ऑवर्स में पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना जरूरी है।

 

देहरादून शहर में डंपरों ट्रकों आदि की नो एंट्री वर्तमान में रात 10 बजे तक निर्धारित है। ठीक 10 बजते ही चकराता रोड, घंटाघर चौक, राजपुर रोड, गांधी रोड, सहारनपुर चौक, आराघर धर्मपुर आदि क्षेत्रों में डंपरों ट्रकों की ‘तूफानी दौड़ शुरू हो जाती है, जबकि उस वक्त तक इन क्षेत्रों में दुकानें खुली रहती हैं और आमलोगों की आवाजाही काफी संख्या में जारी रहती है। ऐसे में अक्सर हादसे होते हैं।

दरअसल, वर्षों पहले जब नो एंट्री का समय निर्धारित किया गया था, जब 10 बजे तक शहर की सड़कें एकदम शांत हो जाती थीं, लेकिन अब रात्रि 12 बजे तक सड़कों पर लोगों की आवाजाही व्यापक रूप से रहती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि नो एंट्री का समय रात्रि को 10 के बजाय कम से कम 11 बजे तक बढ़ाया जाना चाहिए।

साथ ही सुबह मॉर्निंग वॉक व अन्य गतिविधियों के लिए निकलने वाले लोगों की सुरक्षा को देखते हुए शहर में नो एंट्री सुबह 8 बजे के बजाय प्रातः 5 बजे से लागू की जानी चाहिए। यानी, सुबह 5 बजे से रात्रि 11 बजे तक डंपरों, ट्रकों व अन्य भारी वाहनों के शहर व आवासीय कॉलोनियों में प्रवेश पर प्रतिबंध (नो एंट्री) लागू करना उचित होगा। दिन में नो एंट्री से बचने के लिए डंपर और ट्रक हाईवे पर पहुंचने के लिए कॉलोनियों व अन्य अवासीय क्षेत्रों की संकरी सड़कों-गलियों का चोरी-छिपे प्रयोग करते हैं। इस पर भी सख्ती से रोक जरूरी है।

6. देहरादून रोड एक्सीडेंट

Sanyukt Nagrik Sangathan देहरादून जिला, खासकर राजधानी व आसपास का क्षेत्र सड़क दुर्घटनाओं के लिहाज से बेहद असुरक्षित हो गया है। हर वर्ष काफी संख्या में लोगों की मौत यहां रोड एक्सिडेंट में हो रही है, जिनमें सर्वाधिक 18 से 35 आयुवर्ग के बीच के युवा होते हैं। पुलिस के आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं। पिछले वर्ष 2022 में देहरादून जनपद में कुल 433 रोड एक्सिडेंट में 171 लोगों हुई, जबकि इस वर्ष 31 अक्तूबर 2023 तक कुल 346 दुर्घटनाओं में 151 लोगों की मृत्यु हो चुकी थी ।

करीब एक दशक पहले तक हरिद्वार बाईपास में सड़क दुर्घटनाओं का सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र हुआ करता था, लेकिन सड़क चौड़ा होने और कुछ अन्य सुधार के कारण वहां स्थिति काफी सुधरी है। इसके विपरीत अब मसूरी रोड पर कोठाल गेट डायवर्जन तक, राजपुर रोड पर जाखन से एनआईबीएच तक, चकराता रोड पर बल्लूपुर पंडितवाड़ी से प्रेमनगर और नंदा की चौकी से झाझरा धूलकोट तक का क्षेत्र, हरिद्वार बाईपास पर कारगी अजबपुर, जनरल महादेव सिंह रोड पर बल्लीवाला फ्लाईओवर से शिमला बाईपास तिराहे तक का क्षेत्र और शिमला बाईपास पर मेहवाला से नयागांव मल्हान तक का क्षेत्र

खासतौर से रोड एक्सिडेंट के लिहाज से काफी संवेदनशील बनकर उभरे हैं।

अतः रोड एक्सिडेंट पर प्रभावी नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों और अन्य जानकार लोगों के सुझाव लेते हुए सड़कों के डिजाइन में तदनुसार व्यापक परिवर्तन व सुधार किए जाने चाहिए। इसके साथ ही वाहनों की गति नियंत्रण, वाहनों के विपरीत दिशा में संचालित करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने, डिवाइडरों का निर्माण करते समय समुचित दूरी पर कट देने और अनावश्यक कट्स को बंद करने जैसे कदम उठाए जाने भी आवश्यक हैं।

7. पेड़ों की कटाई और प्रत्यारोपण

अपनी हरियाली के लिए जानी जाने वाली दूनघाटी में पिछले दो दशकों में सरकारी और निजी तौर पर लाखों पेड़ों को काट दिया गया है। विकास और विस्तार के नाम पर सबसे ज्यादा नुकसान हरियाली का ही हुआ है। घाटी में लीची-आम के सैकड़ों बाग थे, तो वहीं जहां-तहां शहतूत, लौकाट, पीपल, पिलखन, वट, नीम, तून, यूकेलिप्टस समेत असंख्य प्रजातियों के पेड़ भी बहुतायत में थे। लेकिन, सरकारी तौर पर पेड़ों का संरक्षण न किए जाने के कारण दून की विश्वप्रसिद्ध ‘लीची पूरी तरह अपना अस्तित्व खो चुकी है।

जोगीवाला, शास्त्रीनगर, धर्मपुर-आराघर, पटेलनगर, सहारनपुर रोड, राजपुर रोड, ईसी रोड, परेड ग्राउंड, सहस्त्रधारा रोड से लेकर आशारोड़ी तक तमाम क्षेत्रों में सड़कों के किनारे स्थित असंख्य पेड सरकारों ने कत्ल कर दिए। कई जगह तो यह भी सामने आया है कि सरकारी अफसरों की मिलीभगत से पेड़ काटने वाले बड़े ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए भी तमाम ऐसी जगह भी पेड़ों को काट दिया गया, जहां ऐसा करने की आवश्यकता ही नहीं थी ।

इसके अतिरिक्ति पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का ‘सरकारी ड्रामा’ भी खूब रचा गया, लेकिन ऐसा एक भी कथित ट्रांसप्लांट किया गया पेड़ जीवित नहीं बचा। ट्रांसप्लांट का प्रयोग पूरी तरह विफल रहा है, इसलिए दूनघाटी की बची-खुची हरियाली को बचाने के लिए यह आवश्यक है किसी भी दशा में अब पेड़ों का कटान न किया जाए और उस पर तत्काल रोक लगे। साथ ही सजावटी पेड़ों के स्थान पर विशाल और छायादार फलदार पेड़ों का अधिकाधिक रोपण किया जाए। जिन सड़कों का चौड़ीकरण हो चूका है उनके किनारे फलदार वृक्षों का रोपण किया जाए ।

8. अतिक्रमण की गंभीर समस्या

राजधानी देहरादून की सड़कों और बाजारों में बेतहाशा बढ़ चुका अतिक्रमण बहुत बड़ी समस्या बन गया है। इस समस्या की सरकारी तौर पर लगातार अनदेखी की जा रही है। नगर निगम, पुलिस और प्रशासन समेत संबंधित विभाग इसके प्रति पूरी तरह मूकदर्शक बने हैं। फलस्वरूप अस्थायी अतिक्रमण भी तेजी से ‘स्थायी’ स्वरूप लेता जा रहा है।

आदत बाजार में दिनभर मालवाहक वाहन अतिक्रमण किए रहते हैं। यही स्थिति हनुमान चौक, पीपल मंडी, मोती बाजार जैसे बाजारों की भी है, जहां दुकानें कई फीट आगे सड़कों तक पसरी रहती हैं और उस पर मालवाहन वाहन भी खड़े रहते हैं। पलटन बाजार, धामावाला, डिस्पेंसरी रोड समेत तमाम बाजारों में लगाने वाले अधिकांश लोग राज्य से बाहर के हैं। मैं फुटपाथ और उसके बाहर भी फर्डे ल तमाम बाजारों में फुटा और उसके बाहर भी फड़े लगवाई जा रही हैं, जिन्हें

चकराता रोड, धर्मपुर सब्जी मंडी, हरिद्वार रोड, गांधी रोड, राजा रोड, राजपुर रोड, एस्लेहॉल, सर्वे चौक, रायपुर रोड, करनपुर, अमृतकौर रोड (एमकेपी क्षेत्र) समेत शहर की सभी सड़कों का यही हाल है। डिस्पेंसरी रोड, तहसील बाजार और चकराता रोड पर पूर्व में बड़े अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाकर दुकाने भी हटाई गई थीं, लेकिन आज इन सभी जगह पुनः अतिक्रमण होने के कारण जाम से लोग बेहाल हैं।

ठेलियों पर नगर निगम का कोई नियंत्रण नहीं है। शहर में हजारों की तादाद में ठेलियां जहां जगह मिलती है, सड़क किनारे वहीं खड़ी कर दी जाती हैं। वर्कशॉप के वाहन बाहर सड़क के ‘ब्लैक टॉप’ तक फैलाकर रिपेयर किए जाते हैं।

यदि अतिक्रमण पर प्रभावी रोक लगाई जाए, तो शहर में जाम की समस्या आधी से भी ज्यादा समाप्त की जा सकती है। पूर्व मैं कुछ अधिकारियों के समय उठाए गए कदम से यह सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिले हैं। अतः अतिक्रमण हटाने के नियमित तौर पर ‘ईमानदारी’ से अभियान चलाने के साथ ही पुनः अतिक्रमण होने पर संबंधित थाना चौकी प्रभारी को – जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।

ठेलियों की अधिकतम संख्या निर्धारित करके इनके लिए प्रत्येक वार्ड में अलग जोन चिह्नित किए जाने चाहिए। जोन के अतिरिक्त किसी भी सड़क के किनारे अथवा गैर निर्धारित स्थान पर ठेलियां फड़ मिलने पर उन्हें सामान सहित जब्त किया – जाना चाहिए। फुटपाथ या उसके बाहर सामान रखने वाले व्यापारियों पर भारी भरकम जुर्माने का प्रावधान करने के साथ ही उनका सामान भी जब्त किया जाना चाहिए।

१. आवासीय क्षेत्र व्यावसायिक हो गये हैं।

राज्य बनने के बाद देहरादून नगर का विस्तार होने के साथ ही इसका स्वरूप सरकारों और उसके विभागों, खासकर एमडीडीए की अनदेखी के कारण ‘आवासीय’ के बजाय पूरी तरह ‘व्यावसायिक’ होकर रह गया है। गली-मुहल्लों में भी हर दूसरे-तीसरे घर के आगे व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने वाले निर्माण हो रहे हैं। यहां तक कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी आवासों से अधिक व्यावसायिक निर्माण हो रहे हैं। इससे आवासीय क्षेत्रों का सुकून पूरी तरह खत्म हो गया है।

सुझाव: अतः आवासीय क्षेत्रों में किसी भी तरह के व्यावसायिक निर्माण पर तत्काल रोक लगाते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कौन सा क्षेत्र आवासीय रहेगा और कौन सा व्यावसायिक सघन आवासीय क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों को किसी एक ही हिस्से में भी सीमित / संचालित कराया जा सकता है।

10. स्लम रिडेवलपमेंट

देहरादून नगर ही नहीं, जिले में नदियों व नालों खालों में कब्जे करके अवैध रूप से बसाई जा रही मलिन बस्तियां बड़ी समस्या बनकर उभरी हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्रदेशभर की 528 मान्यता प्राप्त (अधिकृत) मलिन बस्तियों में से सर्वाधिक 123 देहरादून नगर निगम निगम क्षेत्र में स्थित हैं, जहां लाखों लोग निवासरत हैं। इसके अतिरिक्त अगर अवैध मलिन बस्तियों को भी जोड़ लें, तो देहरादून में इनकी संख्या करीब 200 और प्रदेश में एक हजार के आसपास है।

यद्यपि, देहरादून के शहरी क्षेत्र में स्थित कई मान्यताप्राप्त मलिन बस्तियों की स्थिति मूलभूत सुविधाओं के लिहाज से बेहतर है, लेकिन स्वच्छता का अभाव यहां सबसे बड़ी समस्या है। इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनाई जानी जरूरी है। इसके साथ ही नदियों, नाले खालों में बस रही या बसाई जा रही अवैध मलिन बस्तियों को तत्काल हटाया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित होना चाहिए कि एक भी अवैध बस्ती नदी-नालों या सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा करके बस ना पाए।

11. इमारतों की ऊंचाई Sanyukt Nagrik Sangathan

दूनघाटी जहां अपने चारों ओर के नैसर्गिक सौंदर्यता के लिए जानी जाती थी, वहीं दो-तीन मंजिले मकानों के लिए भी । लेकिन, साल 2007 में तत्कालीन बीसी खंडूरी सरकार ने भवनों की अधिकतम ऊंचाई 15 मीटर से बढ़ाकर 21 मीटर करने का शासनादेश जारी किया। बाद की सरकारों ने इसे और बढ़ा दिया। इसकी वजह से डालनवाला, रेसकोर्स, कोठालगेट, राजपुर, अजबपुर, सहस्त्रधारा रोड़, सुभाष रोड समेत घनी आबादी वाले पुराने शहर में सात मंजिला बिल्डिंगों की बाढ़ सी आ गई है। अब 10 मंजिल तक ऊंचाई के निर्माण किए जाने की तैयारी है।

इन हाईराइज बिल्डिंग्स ने जहां दूनघाटी से मसूरी समेत चारों ओर के खूबसूरत नजारों को खत्म कर दिया है, वहीं भूकंपीय दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील इस क्षेत्र में लोगों की जिंदगी के लिए भी खतरा बढ़ा दिया है। साथ ही इन पुराने इलाकों में ट्रैफिक, सीवर, स्वच्छता आदि से संबंधित समस्याएं भी बढ़ा दी हैं।

अतः घनी आबादी और संवेदनशील क्षेत्रों में हाईराइज बिल्डिंग्स के निर्माण पर तत्काल रोक लगनी चाहिए और इनके निर्माण की अनुमति अलग जोन चिह्नित करते हुए सिर्फ वहीं होनी चाहिए। पुराने शहर में भवनों की अधिकतम ऊंचाई पूर्ववत ही रखी जानी चाहिए।

12. विरासत इमारतें तथा इनके संरक्षण हेतु सुझाव:

दूनघाटी में पिछली पीढ़ियों के सभी चिह्नों/निर्माणों (हेरिटेज) को एक-एक कर ध्वस्त कर दिया गया है। इन दिनों पुरानी तहसील और देहरा के पहले रेडियो स्टेशन (डीएसओ की लाल बिल्डिंग) को ध्वस्त किया जा रहा है। शहर की सड़कों को पहले ही वृक्षविहीन किया जा चुका है। इन दोनों प्रवृत्तियों पर तत्काल अंकुश लगाया जाना आवश्यक है।
13. चलने की क्षमता, साइकिल चलाना और टूटे फूटे फुटपाथों की स्थिति

राजधानी में सबसे ज्यादा असुरक्षित पैदल चलने वाले बच्चे और बुजुर्ग हैं। इन्हें वाहनों के बीच मुख्य सड़क पर ही चलना पड़ता है। फुटपाथ सिर्फ औपचारिकता के लिए और अव्यावहारिक ढंग से बनाए गए हैं। बचे खुचे फुटपाथ का अतिक्रमण हो चुका है।

अतः सभी फुटपाथों को शुरू से आखिर तक एक समान बनाने के साथ ही अतिक्रमण मुक्त कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही पैदल चलने वालों को सड़क के बजाय अनिवार्य रूप से जहां फुटपाथ उपलब्ध हैं, उन पर चलने की आदत डलवाई जानी चाहिए।

देहरादून में पैदल चलने वालों के साथ ही अब भी काफी लोग साइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन, कहीं भी साइकिलिंग ट्रैक निर्मित नहीं किए गए हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत परेड मैदान के चारों ओर साइकिलिंग ट्रैक विकसित करने की बात हुई थी, लेकिन वह भी नहीं किया गया। ऐसे में साइकिल से चलने वालों को सड़क पर तेज रफ्तार वाहनों के बीच जान जोखिम में डालकर चलना पड़ रहा है। देहरादून शहर की सभी प्रमुख सड़कों और कॉलोनियों में साइकिलिंग ट्रैक विकसि किए जाने चाहिए।

14. परेड और रेंजर्स मैदान

ब्रिटिशकाल के छोटी परेड और बड़ी परेड यानी आज के परेड मैदान और गांधीपार्क-पवेलियन क्षेत्र को देहरा शहर के फेफड़े कहा जाता था। कुछ ब्रिटिश प्रपत्रों और तत्कालीन अधिकारियों की टिप्पणी में भी परेड मैदान गांधी पार्क को ‘लंग्स ऑफ सिटी’ लिखा गया है। यहां तक कि स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन डीएम ने पवेलियन के पीछे कांग्रेस भवन के लिए भूमि आवंटित करने की तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष (बाद में पालिकाध्यक्ष व विधायक) की मांग यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि यदि पवेलियन और परेड मैदान में किसी को भी आवंटन किया गया, तो भविष्य में इन मैदानों को बचाना संभव नहीं होगा। वर्तमान में यह देखने को मिल भी रहा है।

परेड मैदान के आधे हिस्से में खेल और अन्य गतिविधियां संचालित हो रही थीं। वहीं, बहुमंजिला लाइब्रेरी का भी निर्माण कर दिया गया। शेष आधे परेड मैदान को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत अच्छे मैदान के तौर पर विकसित करने के बजाय पार्क सा बना दिया गया है। इसके चारों ओर शौचालय, सड़कें, एक और अस्थायी दुकानें आदि बनाकर इसका आकार बेहद छोटा कर दिया गया है। एक तरह से परेड मैदान को समाप्त कर दिया गया है। जबकि, यह शहर का एकमात्र सार्वजनिक मैदान था।

वहीं दूसरी ओर, रेंजर्स ग्राउंड जब से एफआरआई की लीज समाप्त होने के बाद प्रशासन के हाथ में आया है, उसे ‘संडे मार्केट स्थल’ बना दिया गया है। जबकि, संडे मार्केट शहर के बीचों-बीच एकदम गैरजरूरी है। शहर में कई जगह संडे मार्केट छोटे-छोटे हिस्सों में अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं। ऐसे में रेंजर्स कॉलेज को विशुद्ध रूप से खेलकूद व शहरवासियों की अन्य गविधियों के लिए मुक्त रखा जाना चाहिए।

जहां तक परेड मैदान का प्रश्न है, चूंकि उसे अब महंगी घास से संवारा गया है, तो अब वहां ऐसी सामाजिक, राजनीतिक और व्यावसायिक गतिविधियों को बिल्कुल अनुमति नहीं होनी चाहिए, जो उसे नुकसान पहुंचाए। इसके बजाय उसे आमलोगों के टहलने, बैठने और बच्चों के खेलने-कूदने के लिए ही सीमित रखा जाए।

15. देहरादून की महत्वपूर्ण नदियां तथा इनके संरक्षण हेतु सुझाव :

देहरादून की बारहमासी नदियां भी धीरे-धीरे सूखकर सीजनल हो रही हैं। करीब एक दशक पहले प्रेमनगर की छोटी टाँस पूरी तरह सूखकर बरसाती नदी बन चुकी है। वहीं, सौंग भी रायपुर से लेकर डोईवाला के बीच बरसात को छोड़कर बाकी साल जलविहीन रहती है। इन्हें बचाए जाने की आवश्यकता है।

वहीं, रिस्पना और बिंदाल जैसी नदियों की न्यूनतम चौड़ाई कितनी हो, यह भी तय होना जरूरी है, ताकि इन्हें अतिक्रमण से बचाया जा सके। इन नदियों की चौड़ाई निर्धारित करने के लिए पूर्व में नगर निगम की ओर से शासन को लिखा भी गया, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

16. देहरादून में जल संकट

दूनघाटी में भू-जल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। जगह-जगह बने अथवा बन रहे हाईराइज अपार्टमेंट्स के लिए अलग से पानी की लाइन लेने के बजाय हैंडपंप लगवाकर भूजल का ही दोहन किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर शहर में भू-जल रिचार्ज की सारी व्यवस्था कंक्रीट के कारण खत्म हो चुकी है। इससे भविष्य में बड़ा पेयजल संकट दून की आबादी के समक्ष होगा। लिहाजा, भूजल के अंधाधुंध दोहन पर नियंत्रण जरूरी है।

17. व्यापक जलभराव

शहर में पहले जलभराव जैसी समस्या कभी नहीं होती थी, लेकिन अब दूनघाटी भी देश के तमाम जलभराव के लिए कुख्यात शहरों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। गलत नियोजन इसकी सबसे बड़ी वजह है। पूर्व में सड़कों के किनारे बनी नालियों की नियमित तौर पर सफाई होती थी, लेकिन पिछले एक-डेढ़ दशक में नालियों की सफाई की व्यवस्था पूरी तरह बंद हो गई है।

इससे नालियां मलबे में दबकर बंद ‘गायब’ हो जाती हैं और इनके स्थान पर फिर नई नाली का निर्माण किया जाता है।

इस तरह नाली निर्माण और उसके गायब हो जाने का यह क्रम हर चार-पांच साल में वार्डो में चलता आ रहा है। इसके अतिरिक्त सड़कें लगातार ऊंची होती चली जा रही हैं, जिनके सापेक्ष नाले-नालियों की ऊंचाई भी बढ़ रही है। इसके चलते आबादी वाले क्षेत्र नीचे हो रहे हैं और नतीजतन वहां जलभराव स्थायी समस्या बन रही हैं। नाले-नालियों को फुटपाथ के नाम पर ढक दिए जाने के साथ ही उनमें न सफाई की जगह छोड़ी गई है, न पानी जाने की।

उदाहरण के लिए, शास्त्रीनगर जोगीवाला – राजेश्वरीपुरम तक सड़क को चौड़ा करने के बाद वहां नाला निर्माण किया गया और फुटपाथ भी बनाए गए। लेकिन, फुटपाथ के नीचे एकाध स्थानों को छोड़कर कहीं भी ‘छेद’ ही नहीं छोड़े गए, जिससे नाले में

बरसाती पानी जा सके। इसके चलते डिवाइडर और सड़क के बीच पानी भर रहा हैं। यही स्थिति कई जगह देखने को मिलती है। कई जगह आश्चर्यजनक ढंग से सड़कों को बीच से ऊंचा रखने के बजाय बीच से गहरा और किनारों को ऊंचा किया गया है। इससे भी पानी नाले में जाने के बजाय सड़क के बीचों-बीच जमा हो जाता है। जल निकाली की इस पूरी व्यवस्था को कारगर ढंग से सुधारने की आवश्यकता है।

18. सेफ्टी सिक्योरिटी

देहरादून कानून-व्यवस्था और सुरक्षा के लिहाज से बेहद सुरक्षित शहर रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां भी इस मामले हालात अन्य राज्यों की तरह ही खराब हो गए हैं। इसकी एक बड़ी वजह है पुलिस का पूरी तरह से गायब रहना ।

पूर्व में प्रत्येक चौराहे – तिराहे और प्रमुख स्थानों पर पुलिस की स्थायी पिकेट्स होती थीं, जहां दिन और रात अलग-अलग शिफ्ट में पुलिस तैनात रहती थी। लेकिन, वर्तमान में दिन तो दूर रात को भी शहर या आसपास के किसी भी चौक-चौराहे पर
पुलिस पिकेट नहीं लगती। यही स्थिति चेकिंग के मामले में है जिसमें ‘क्विक रिस्पांस जैसी संभावना पूरी तरह ध्वस्त हो जाती है।

वर्तमान में पुलिस पूरी तरह सीसीटीवी कैमरों और मोबाइल सर्विलांस पर निर्भर हो गई है, लिहाजा सड़कों कॉलोनियों में पुलिस की रात्रि गश्त भी पूरी तरह बंद हो चुकी है। इसके दुष्परिणाम के तौर पर अभी 9 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस पर राष्ट्रपति के दौरे के दौरान दिन-दहाड़े राजपुर रोड जैसे पॉश बाजारी क्षेत्र में करोड़ों की डकैती को देखा जा सकता है। यदि,

हाईअलर्ट के दौरान घटना हो जाती है, तो आम दिनों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

जाहिर है, यदि चेकिंग और पिकेटिंग की व्यवस्था चली आ रही होती, तो इस तरह की घटना होने का प्रश्न ही नहीं था। लिजाहा, दूनवासियों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि सभी प्रमुख चौराहों-तिराहों पर पुलिस की स्थायी पिकेट्स बहाल की जाएं और रात्रि ही नहीं, पीक ऑवर्स में भी गश्त को प्रभावी ढंग से शुरू कराया जाए।

बाहर से आकर बस रहे लोगों, बाहरी कारोबारियों और दून की डेमोग्राफी को बदले जाने की आशंकाओं के मद्देनजर ऐसे सभी लोगों की गहन पड़ताल जरूरी है। साथ ही उनका नियमित ब्योरा पुलिस को रखना चाहिए, ताकि दूनवासियों, खासकर एकाकी रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

19. आपदा और प्रबंधन

दून पूर्व में आपदा सुरक्षित क्षेत्र रहा है, लेकिन पिछले एक-डेढ़ दशक में यहां भी आपदा का असर देखने को मिल रहा है। यह मानवीय और प्राकृतिक, दोनों तरह की है। मानवीय अथवा मानवजनित आपदा मुख्यतः विभिन्न क्षेत्रों में तेज बारिश में भीषण जलभराव और रिस्पना, बिंदाल, सुसवा, सौंग, टौंस की बाढ़ के तौर पर देखने को मिल रही हैं। इसका कारण यह है कि नदियों-नालों का प्राकृतिक स्वरूप बाधित किया गया है।

कॉलोनियों-आवासीय क्षेत्रों में भी नाले-नालियों पर अतिक्रमण किया गया है। हालात इतने गंभीर हैं कि ऐन विधानसभा के नजदीक रिस्पना पुल के बीचों-बीच नदी में बहुमंजिला व्यावसायिक बिल्डिंग एमडीडीए, नगर निगम और सरकारों की आखों सामने खड़ी की गई है। जाहिर सी बात है कि नदी में नक्शा पास नहीं हो सकता, वह भी पुल खत्म होने से पहले बीचों-बीच ऐसे में अगर बिना नक्शे के बिल्डिंग बनी है या नक्शा भी पास हुआ है, तो यह सरकारों की घोर अनदेखी और मिलीभगत का उदाहरण है।

इसी तरह के मामले मालदेवता क्षेत्र में सौंग और बांदल नदी के किनारे बड़ी बिल्डिंगों – रिजॉर्ट आदि के निर्माण और बिंदाल – रिस्पना – टौंस में अनेक रूप में सामने हैं। मिट्टी की ऊंची ढांग और पुश्तों पर निर्माण के मौत के कई मामने पूर्व के वर्षो में चुक्खुवाला, काठबंगला और जाखन क्षेत्र में सामने आ चुके है। मानवीय के अतिरिक्त प्राकृतिक आपदा ने भी दून के आसपास के क्षेत्रों को व्यापक तौर पर प्रभावित करना शुरू कर दिया है।

सहस्त्रधारा से सटे क्षेत्र में अगस्त-2011 और मालदेवता से सटे सरखेत क्षेत्र में अगस्त 2022 में बादल फटने से कई लोगों हुई है। आप चाहे मानवीय कारणों से हो अथवा प्राकृतिक, दोनों में सरकारी सिस्टम समान रूप से फेल साबित हुआ है। दून में जलभराव, बाढ़ अथवा बादल फटने जैसी घटनाओं से निपटने की किसी भी विभाग की मुकम्मल तैयारी कभी नहीं रही। नगर निगम के पास जलभराव जैसी स्थिति से निपटने के लिए न प्रशिक्षित कर्मी हैं और समुचित उपकरण। हर वर्ष सफाई कर्मियों से ही निगम का बाढ़ नियंत्रण कक्ष काम चलाता है।

20. देहरादून में व्याप्त शहरी अराजकता

अन्य शहरी मोर्चा जैसे सीवरेज, जलवायु संकट, पारिस्थितिकी, पर्यावरण, शहरी वानिकी, पार्क, मनोरंजक क्षेत्र, शहरी

आवास वाली सड़कें आईसीटी पर आराजकता सामाजिक-सांस्कृतिक और रक्षा सार्वजनिक
स्वास्थ्य (उदाहरण, डेंगू प्रबंधन), ड्रग्स सेवन और कई अन्य मोर्चों पर देहरादून शहर संघर्ष कर रहा है और पतन के कगार पर है।

इन सभी और कई अन्य तत्वों पर एक रणनीतिक, गहन अवलोकन और समर्पित कार्य योजनाओं की सख्त जरूरत है जो एक शहर को जीवंत, कार्यात्मक और टिकाऊ बनाते हैं। केवल कुछ फ्लाईओवरों का निर्माण और शहर की दीवारों की पेंटिंग, जैसा कि अब दिसंबर 2023 में देहरादून में आगामी उत्तराखंड निवेशक शिखर सम्मेलन के लिए किया जा रहा है, उस प्रणालीगत गड़बड़ी के लिए कोई रामबाण नहीं है, जिसमें शहर आज खुद को पाता है।

पार्ट दो दून में भविष्य की गंभीर चिंताएं

21. देहरादून में व्यावसायीकरण एवं कंक्रीटीकरण

हम आपका ध्यान हाल ही में उच्च न्यायालय, नैनीताल में हुई एक सुनवाई की ओर आकर्षित करना चाहते हैं, जहां माननीय न्यायाधीशों ने दून घाटी के भीतर पर्यटन विकास योजना तैयार करने के लिए दून घाटी अधिसूचना के अनुपालन की कमी पर एक जनहित याचिका को संबोधित करते हुए खिंचाई की थी।

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने 6 सितंबर, 2023 को उत्तराखंड राज्य सरकार से कहा, “हिमालय का निर्माण हजारों साल पहले हुआ था लेकिन आपदाएं अब ही हो रही हैं। – ये सभी आपदाएं पूरी तरह से मानव निर्मित हैं।” न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि राज्य ने “कानून की पूरी तरह से अवहेलना की है और हर चीज का व्यावसायीकरण करना चाहता है।

अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हाल ही में बारिश के कारण धनोल्टी और चंबा जैसे क्षेत्रों में भूस्खलन और भूस्खलन के बाद दून घाटी अधिसूचना को लागू करने और इसका सख्ती से पालन करने की मांग की गई थी। इस मामले में, अदालत ने पाया कि राज्य सरकार उपरोक्त अधिसूचना के अनुरूप आवश्यक पर्यटन विकास योजना तैयार करने में विफल रही है।

दून घाटी जैसे संवेदनशील इलाकों में बाजारीकरण की इस सोच से निकलने की जरूरत हैं। अगर सरकार द्वारा देहरादून को सिर्फ निवेश और व्यापार के दृष्टिकोण से देखा जाता रहा तो शहर सोने के अंडे देने वाली मुर्गी रह जायेगा और इसका अंत भयावह होगा। इसके सापेक्ष दून के बिगड़े हुए स्वरुप को बचाने और उस पर भू कानून और अन्य सख्त प्रतिबंधों के साथ राहत देने की आवश्यकता है।

22. एमडीडीए देहरादून ड्राफ्ट मास्टर प्लान 2041 और सार्वजनिक संवाद श्रृंखला (मास्टर प्लान को हिंदी में अनुवादित कराकर समाचार पत्रों के माध्यम से प्रकाशन )

कई नागरिकों, नागरिक समूहों, RWA, आर्किटेक्ट्स, इंजीनियर, ड्राफ्ट्समैन, बिल्डरों, व्यवसायों, शैक्षणिक संस्थानों और बड़े पैमाने पर मीडिया ने एमडीडीए मास्टर प्लान सार्वजनिक परामर्श के लिए अप्रैल 2023 में अतिरिक्त समय मांगा था, जो एमडीडीए द्वारा प्रदान नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त एमडीडीए ने उपरोक्त देहरादून ड्राफ्ट मास्टर प्लान 2041 के संबंध में ना ही कोई सार्वजनिक संवाद किया और ना ही सरल भाषा में लोगों को मास्टर प्लान के बारे में सोशल मीडिया या मीटिंग / बैठकों के माध्यम से कोई जानकारी दी।

हम समझते हैं कि उपरोक्त देहरादून ड्राफ्ट मास्टर प्लान 2041 के जवाब में एमडीडीए को लगभग 800 पत्र प्राप्त हुए हैं। सार्वजनिक फीडबैक विंडो बंद होने के बाद से छह महीने से अधिक (मई से अक्टूबर 2023) बीत चुके हैं। हम जानना चाहते हैं कि इन 800 पत्रों की एमडीडीए में क्या स्थिति है और देहरादून
सार्वजनिक संवाद के अलावा इस मास्टर प्लान को लेकर दून के नागरिकों की अनेकों अनेक चिंताएं हैं। हमारा सुझाव रहेगा की एमडीडीए पब्लिक की इन समस्त चिंताएं जो उन्हें मिली हैं, उन पर एक विस्तृत श्वेत पत्र (White Paper) जारी करे। इसी के साथ एमडीडीए यह भी बताये की इन चिंताओं के निराकरण के लिए उनकी क्या ठोस कार्य योजना है।

23. दून वैली अधिसूचना को कमजोर करने की सरकारी मंशा

1989 की दून घाटी अधिसूचना को कमजोर करने की अक्सर चर्चा होती रहती है। यह अधिसूचना दून घाटी की विशेष, अनूठी और संवेदनशील प्रकृति और देहरादून और मसूरी को अंधाधुंध चूना पत्थर उत्खनन से बचाने के लिए आई थी।

आज, दोषपूर्ण योजना, दूरदर्शिता की कमी, बड़े पैमाने पर “कानूनी” / अवैध निर्माण, बेरोकटोक कंक्रीटीकरण और नागरिक उदासीनता के कारण देहरादून शहर और दून घाटी खुद को बेरहमी से बर्बाद पाती है। औद्योगीकरण, व्यावसायीकरण और टीकरण के नाम पर ने वैली अधिसूचना को कमजोर करना दून के ताबूत में अंतिम कील ठोकने के समान होगा। हम सैंकड़ों देहरादून के नागरिके विकास और निवेश के नाम पर दून वैली अधिसूचना में बदलाव का बिलकुल भी समर्थन नहीं करते हैं।

उपर्युक्त दृष्टिकोण के बजाय, हमारा मानना है कि मौजूदा खामियों को दूर करने और शहरी शासन संरचनाओं को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यदि दून वैली अधिसूचना में बदलाव किया गया तो इससे देहरादून को अपूरणीय क्षति होगी। इस प्रकार यह विवेकपूर्ण होगा कि किसी भी परिस्थिति में उक्त अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ न की जाए।

24. देहरादून की कैरिंग कैपेसिटी और शहर को decongest करना

अगले दो दशकों में देहरादून की आबादी दोगुनी होने की उम्मीद है। एमडीडीए ड्राफ्ट मास्टर प्लान के अनुसार यह अनुमान लगाया गया है कि 2041 तक फ्लोटिंग जनसंख्या सहित देहरादून की जनसंख्या 23.5 लाख से 24.0 लाख तक पहुंच जाएगी। 2011 के बाद जनगणना डेटा की कमी के बावजूद यह व्यापक मान्यता है कि देहरादून शहर की वर्तमान में अनुमानित जनसंख्या 11.5 लाख से 12 लाख के बीच है।

देहरादून के साथ यह स्पष्ट है कि शहर पहले ही अपनी कैरिंग कैपेसिटी (वहन क्षमता) से कहीं अधिक भार ढो रहा है। अगले दो दशकों में जब आबादी दोगुनी होने की उम्मीद है, शहर अतिरिक्त दबाव से कैसे निपटेंगा यह एक बेहद बड़ी चिंता है। दूसरे शब्दों में एमडीडीए को अपने ड्राफ्ट मास्टर प्लान की फिर से समीक्षा करने की जरूरत है। जनसंख्या विस्फोट को स्वीकार करने के बजाय एमडीडीए को सक्रिय रूप से देहरादून शहर को decongest करने और भीड़भाड़ कम करने के तरीके तलाशने की जरूरत है।

25. देहरादून में फॉल्ट लाइन और संभावित भूकंप

उत्तराखंड में कम तीव्रता के भूकंप अक्सर आते रहते हैं। देहरादून ड्राफ्ट मास्टर प्लान में शहर और दून घाटी में फॉल्ट लाइनों के बारे में बात की गई है। मास्टर प्लान में इन क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का भी उल्लेख है। हालाँकि आज तक इन संभावित विनाशकारी फॉल्ट लाइनों के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। हम इस मामले पर तत्काल प्रतिक्रिया चाहते हैं।

इस बीच एमडीडीए उन क्षेत्रों में सैकड़ों नए बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक और आवासीय निर्माण की अनुमति देना जारी रखता है जो संवेदनशील माने जाते हैं, जैसे राजपुर रोड, सहस्त्रधारा रोड, शहंशाही आश्रम और अन्य। ये वै क्षेत्र हैं जहां से फॉल्ट लाइनें गुज़र रही हैं। ऐसे संवेदनशील स्थानों पर निर्माण में वृद्धि एक ऐसा मामला है जहां अत्यधिक संयम और कानूनी रूप से लागू अंकुश समय की मांग है।

इसलिए हम अत्यधिक सावधानी बरतने का आग्रह करते हैं और एमडीडीए से फॉल्ट लाइनों के मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने का अनुरोध करते हैं। अंतिम मास्टर प्लान के कार्यान्वयन के लिए अनंत काल तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। हम सभी जानते हैं कि यह एक कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया है। इस प्रकार, ड्राफ्ट मास्टर प्लान के “जीवन और मृत्यु तत्वों (life and death matters ) ” जैसे कि फॉल्ट लाइन और उन पर निर्माण पर अंकुश को बिना किसी देरी के लागू किया जाना चाहिए।

26. दिल्ली- देहरादून एक्सप्रेसवे और ट्रैफिक जाम

जहां उत्तराखंड सरकार आगामी दिल्ली दून एक्सप्रेसवे और पर्यटकों की संख्या में बहुप्रतीक्षित वृद्धि को लेकर उत्साहित है, वहीं देहरादून के नागरिक इसके संचालन से शहर के भीतर पैदा होने वाले ट्रैफिक जाम और बाधाओं को लेकर बेहद चिंतित हैं। बुनियादी ढांचे का विस्तार दून के असहाय लोगों और पहले से ही चरमराती व्यवस्था की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए। एक्सप्रेसवे की शुरुआत के बाद बड़े पैमाने पर ट्रैफिक जाम के समाधान पर काम करने की आवश्यकता है जो संभवतः आशारोडी या किसी अन्य स्थान से शुरू होगा जहां एक्सप्रेसवे का देहरादून शहर के साथ विलय होगा ।

एक बार शुरू होने पर दिल्ली दून एक्सप्रेसवे देहरादून के नागरिकों के लिए हालात और खराब कर देगा। इस प्रकार यह अनुरोध किया जाता है कि राज्य सरकार, एमडीडीए, PWD, उत्तराखंड पुलिस और अन्य संबंधित प्राधिकरण देहरादून और इसकी तंग, तनावग्रस्त और संकरी गलियों में होने वाले वाहन हमले के लिए सक्रिय रूप से अभी से तैयारी शुरू कर दें।

पार्ट तीन दून गवर्नेस को लेकर कुछ सुझाव

27. शहरी प्रशासन के लिए समाधान

आज कई विभाग होने के कारण कोई भी शहर का प्रभारी या देखभाल करने वाला नहीं दिखता है। अब समय आ गया है की शहरी गवर्नेस के कुछ नए मॉडल “संपूर्ण सरकार (whole of government)” दृष्टिकोण तर्ज पर लागू किये जाएँ। यह स्पष्ट है कि मौजूदा तौर तरीके और सिस्टम आवश्यक परिणाम देने में पूर्णतया विफल हो रहे हैं। “हमेशा की तरह काम (business as usual)” स्थिति में सुधार नहीं ला रहे हैं। इस प्रकार राज्य सरकार को लीक से हटकर विचार और कुछ बदलाव करने की जरूरत है।

उत्तराखंड सरकार को शहरी गवर्नेस के किसी नए मॉडल पर कार्य करना बेहद ज़रूरी है क्यों कि वर्तमान के सभी मॉडल फेल साबित हुए हैं या अपेक्षाकृत परिणाम नहीं दे पाए हैं। सुझाव के तौर पर बेदाग सत्यनिष्ठा वाले एक प्रतिभाशाली और आईएएस / किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी को देहरादून के एक नए पद मुख्य नगर अधिकारी (Chief City Officer) के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। उन्हें तीन से चार साल का कार्यकाल दिया जा सकता है और शहर के समग्र

कामकाज और भविष्य के लिए जिम्मेदार बनाया जा सकता है।

28. नागरिक सहभागिता

हम चाहते हैं उत्तराखंड सरकार और सभी सरकारी एजेंसी जैसे देहरादून स्मार्ट सिटी लिमिटेड, एमडीडीए, नगर निगम और अन्य सभी अपनी विभिन्न बोर्ड बैठकों और निर्णायक बैठकों में नागरिकों को शामिल करें। समस्त एजेंसी को शासन और विकास प्रक्रिया में नागरिक भागीदारी को उचित मान्यता और सम्मान देते हुए इस प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिए कहा जाना चाहिए।

वर्तमान में ऐसा कोई तंत्र नहीं है जहां किसी भी नागरिक या नागरिक संगठन / RWA को शहर के कामकाज में भागीदार या हितधारक के रूप में देखा और पहचाना जाए। नागरिक भागीदारी की आड़ में आयोजित किए जाने वाले कुछ छिटपुट कार्यक्रम सरकारी रिपोर्ट या फेसबुक पोस्ट तक सीमित होकर सिर्फ सतही और औपचारिकता मात्र रह जाते हैं

आज शहर या सरकार में एक भी ऐसा प्राधिकरण नहीं है जो नागरिकों के साथ जुड़ता हो या उन्हें नियमित आधार पर • शामिल करता हो । अधिकांश अधिकारियों या नेताओं द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग एकतरफा है। जब भी नागरिक सोशल मीडिया पर लिखते हैं या प्रतिक्रिया देते हैं, तो उन्हें शायद ही कभी कोई प्रतिक्रिया मिलती है। इन सब के अलावा कहीं पर भी कोई शहर केंद्रित हेल्पलाइन नहीं हैं।

देहरादून स्मार्ट सिटी लिमिटेड, एमडीडीए, नगर निगम और अन्य सभी को अपनी बैठकों में तीन, चार नागरिकों को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में हमेशा आमंत्रित करना चाहिए। इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए की शिष्टाचार महत्वपूर्ण है और आमंत्रण के बाद नागरिकों को अपनी बात रखने का पर्याप्त समय मिलना चाहिए। यदि यह प्रक्रिया व्यवस्थित, निष्पक्ष एवं ईमानदारी से संचालित की जाए और शहर के लोगों की बात को ईमानदारी से सुना जाये तो शहर के लिए वर्तमान की तुलना में सकारात्मक परिणाम आने की संभावना है।

29. दक्ष मानव संसाधन

राज्य सरकार की लगभग सभी एजेंसियों जैसे नगर निगम, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग और अन्य में प्रोफेशनल अधिकारियों और कर्मचारियों की भारी कमी है। उत्तराखंड में पर्याप्त नगर नियोजक नहीं हैं इसलिए शहरों और कस्बों की योजना आमतौर पर राजनेताओं और उन अधिकारियों द्वारा बनाई जाती है जो नगर नियोजन कार्यों में प्रशिक्षित नहीं होते हैं। हम चाहेंगे कि उत्तराखंड सरकार वर्तमान के कार्यरत मानव संसाधन अंतर का गहन विश्लेषण करें और शहरी और शहर नियोजन के क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में सक्षम पेशेवरों की भर्ती / नियुक्ति करे योग्य मानव संसाधन के बिना कोई भी समाधान संभव नहीं होगा।

30. देहरादून में 100 वार्ड समितियों का गठन

नागरिक भागीदारी लोकतंत्र का मूलभूत स्तंभ है। शहरों के विकास के लिए, नागरिकों को मतदान से आगे बढ़कर दैनिक लोकतंत्र में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

उत्तराखंड सरकार को नागरिकों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को स्थानीय शासन के ज्ञान को सशक्त बनाने के तरीकों विचार करना चाहिए। शहरी सरकारों के साथ जुड़ने और सहयोग करने के लिए समुदाय को कैसे प्रेरित किया जाए, इस पर मार्गदर्शन और ट्रेनिंग की आवश्यकता है।

नागरिक भागीदारी को गहरा करने और नागरिक नेतृत्व को मजबूत करने के ये प्रयोग मुख्य रूप से वार्ड समितियों को मजबूत करने की दिशा में होना चाहिए। वार्ड समितियों का गठन 2024 में देहरादून में अगले मेयर और पार्षद चुनावों के बाद शहर के 100 वार्डो में किया जाना चाहिए।

31. संयुक्त नागरिक संगठन का सहयोग

नागरिक शिक्षा और नागरिक सहभागिता राज्य सरकार और उसकी विभिन्न एजेंसियों का प्रमुख फोकस होना चाहिए। कोई भी शहर, राज्य या देश समाज भागीदारी के बिना प्रगति नहीं कर सकता। हमारा संयुक्त नागरिक संगठन नागरिक सहभागिता गतिविधियों को करने के लिए राज्य सरकार को अपना सहयोग देने के लिए तैयार है, बशर्ते सरकार इस दिशा में अगर कोई पहल करती है।

सारांश

हम उपरोक्त बिंदुओं को आपके ध्यान में इस आशा के साथ लाना चाहते हैं आप न केवल इन पर विचार करेंगे किन्तु इन पर गंभीरता से काम भी करेंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि आप इनमें से प्रत्येक चिंता और सुझाव पर सहानुभूति, सकारात्मक मानसिकता और खुले रवैये के साथ गौर करेंगे।
हम दोहराना चाहते हैं कि ये सभी देहरादून के लिए अति महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, और यदि उत्तराखंड सरकार और देहरादून शहर के शीर्ष राजनेता तथा एमडीडीए, स्मार्ट सिटी, नगर निगम और अन्य सभी शहरी एजेंसी एक साथ इन सब का समय पर उपाय नहीं करते हैं, तो देर-सबेर देहरादून शहर और अधिक बर्बाद हो जाएगा। कार्य करने का बेहद कम समय बचा है और हम यानी देहरादून के नागरिक यही अपेक्षा करते हैं की आप सभी अब पूरी ताकत, पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ चरणबद्ध तरीके से गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए और हमें देहरादून का सच्चा ब्रांड एम्बेसडर मानते हुए शहर हित में कार्य करेंगे।

उपरोक्त पर गौर करने के लिए धन्यवाद।

हमें आपके उत्तर का बेसब्री से इंतजार रहेगा।

सादर एवं आभार

संयुक्त नागरिक संगठन और सम्बद्ध संगठन देहरादून, उत्तराखंड

Brig KG Behl (Retired ) President 9411101130

Shri Sushil Tyagi General Secretaty 9897287147

Shri Jagmohan Mediratta 7017466453

Shri Devendra Pla Singh Monty 9997515867

Shri Pradeep Kukreti 9897356777 Shri Jitendra Anthwal 76683 70898 Shri Anoop Nautiyal 97600 41108

al 97600 41108 kt Nagrik

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