पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लाक के चेलूसेण निवासी वैद्य सुनील दत्त कोठारी के पास है 48 उत्तराखंड क्षेत्रीय प्राचीन मंदिर की यज्ञ विभूति (भस्मी) का अनोखा संग्रह,,
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के ब्लॉक द्वारीखाल चेलूसेण के निवासी सुनील दत्त कोठारी (वंश परंपरागत वैद्य एवं हर्बल टी विशेषज्ञ) पास अनोखा संग्रह लगभग 48 उत्तराखंड क्षेत्रीय प्राचीन मंदिर की यज्ञ विभूति (भस्मी)भस्म का अनोखा संग्रह एव रोग निदान के उपयोग ।।
कोठारी के अनुसार भस्म’शब्द में ‘भ’ अर्थात ‘भत्र्सनम्’ अर्थात ‘नाश हो’ । ‘स्म’* अर्थात ‘स्मरण’ । भस्म के कारण पापों का निर्दालन होकर ईश्वर का स्मरण होता है।शरीर नाशवान है इस धारणा को लेकर इसे निरंतर स्मरण रखने का जो प्रतीक है, वह भस्म है; इस प्रकार का अनूठा संग्रह कि प्रेरणा उनके दादा योगेश्वर दत्त कोठारी , जो की बिरतनिया राज में स्थानीय वंश परंपरागत वैद्य विद्या के उपचार के लिए लंबे समय तक कार्य करके रहे।उन्हीं की हस्तलिखित किताब की प्रेरणा लेकर आप विभूति, का अर्थ रक्षा एवं राख ये भस्म के समानार्थी शब्द एवं उपचार विधि में है। आपके द्वारा संग्रह की गई विभूति, भस्म या पवित्र राख के इस्तेमाल के कई पहलू में प्रयोग करते आ रहे हैं। जोकि पूर्णतया जनकल्याण के लिए है, आप अपने वंश परंपरागत वैद्य विद्या ज्ञान के द्वारा बताते हैं, की यह साधक द्वारा उपजीत ऊर्जा को किसी को देने या किसी तक पहुंचाने का एक बढ़िया माध्यम मांगते हैं, कोठारी का मानना है कि इसमें ‘ऊर्जा-शरीर’ को निर्देशित और नियंत्रित करने की क्षमता तथा रुपांतरण है। सनातन धर्म में इसके अलावा, कई वर्ग विशेष शरीर पर उपयोग के रूप में लगाने का एक सांकेतिक महत्व भी प्रदर्शित करना होता है । कई व्यक्ति विशेष एक लंबे समय तक वह लगातार हमें जीवन के नश्वरता की याद दिलाता रहता है, मानो आप हर समय अपने शरीर पर नश्वरता ओढ़े हुए हों। कोठारी के पितृ पूर्वज इस प्रकार की भस्म का प्रयोग रोग निदान एवं निष्क्रिय शारीरिक ऊर्जा को पुनर स्थापित करने का वर्ष 2016 से लगातार उत्तराखंड की ग्रामीण भूमि पर रहकर अपनी पैतृक वंश परंपरागत ज्ञान के द्वारा रोग निदान में हिमालय संस्कृति का अनूठा प्रयोग करते रहते हैं।कोठारी ने बताया की उनका पूर्वज भस्म बनाने का कार्य करते रहे, परंतु वर्तमान में कोठारी इनका संग्रह प्राचीन स्थानीय देवालय यानी मंदिरों से करते हैं। इस प्रकार का संग्रह आपके द्वारा किया गया प्रयास आपकी कार्य पद्धति में नवीनतम सोच एवं जनकल्याण कि भावनाओं को प्रदर्शित करता है।
कोठारी वंश परंपरागत वैद्य विद्या के द्वारा वर्ष 2016 अनेक प्रकार के उत्पादन जैसे हर्बल चाय के द्वारा रोक निदान के लिए आपको समय समय पर सम्मान एवं उत्पादन के द्वारा हिमालय की भूमि पर आपकी छवि वंश परंपरागत विद्याओं के प्रसार के लिए आपकी छवि को स्पर्श करता है।।
आपके हाथों के द्वारा दी जाने वाली भस्म का उपयोग दिन में दो बार मस्तिक एवं नाभी पर लेपन करने की विधि से है।
भस्म देने की विधि के लिए व्यक्ति विशेष का जन्म नक्षत्र राशि एवं मंदिर विशेष पूजित देवता के हिसाब से गढ़ना की जाती है।