मंडल मुख्यालय पौड़ी में कब रौनक लौटेगी सरकार! डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
गढ़वाल मंडल की स्थापना 1 जनवरी 1969 को तत्कालीन यूपी के राज्यपाल डा. बी गोपाल रेड्डी ने की थी। मंडल का मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। इसमें पौड़ी के साथ चमोली, टिहरी, उत्तरकाशी चार जिले शामिल किए गए। वर्ष 1974 में देहरादून और 1997 रुद्रप्रयाग जिला जुड़ा। राज्य गठन के बाद गढ़वाल में मंडल में हरिद्वार जिले को भी शामिल किया गया। मंडल मुख्यालय एक ओर सरकार के लिए सज रहा है, वहीं दूसरी ओर स्याह हकीकत यह है कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड निर्माण के बाद यह वीरान हो गया। राज्य बनने के बाद यह नाम का मंडल मुख्यालय रह गया। ज्यादातर कार्यालय कैंप ऑफिस के नाम पर यहां से देहरादून शिफ्ट हो गए। स्थिति यह है कि स्थायी मंडलायुक्त बीवीआरसी पुरुषोत्तम के केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने से मंडल मुखिया भी प्रभारी के हवाले कर दिया गया है। पुरुषोत्तम ऐसे अधिकारी हैं, जो देहरादून कैंप ऑफिस में बैठने के बजाय मंडल मुख्यालय में बैठ हैं, मंडल मुख्यालय पौड़ी अब सूना ही रहता है। लगभग 130 वर्षों तक कुमाऊं मंडल का हिस्सा रहे गढ़वाल क्षेत्र के जनपदों पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी व चमोली को मिलाकर एक जनवरी 1969 को गढ़वाल मंडल का गठन हुआ था। बाद में मंडल का विस्तार करते हुए वर्ष 1975 में देहरादून और वर्ष 1997 में चमोली जनपद से अलग हुए रुद्रप्रयाग जनपद को भी इसमें शामिल किया गया। वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद हरिद्वार जिला भी इसमें शामिल हो गया। राज्य गठन से पूर्व यहां 60 से अधिक मंडल स्तरीय कार्यालय थे, जो राज्य गठन के बाद एक-एक कर मैदानी क्षेत्रों में खिसकने लगे। आज यहां मात्र 20 मंडलीय दफ्तर रह गए। इनमें से कई दफ्तर कैंप ऑफिस के नाम पर देहरादून से चल रहे हैं। गढ़वाल मंडल आयुक्त (सुभाष कुमार व बीवीआरसी पुरुषोत्तम को छोड़कर) देहरादून से ही कामकाज चलाने लगे। उनकी कोर्ट भी वहीं चलने लगी। डीआईजी गढ़वाल भी देहरादून में रहते हैं। समाज कल्याण निदेशालय, संयुक्त विकास आयुक्त, केंद्रीय निर्माण निगम व महाप्रबंधक ऊर्जा निगम के दफ्तर यहां से शिफ्ट हो चुके हैं। राज्य गठन के बाद एक-एक कर अधिकारियों ने मंडलीय कार्यालयों का संचालन कैंप कार्यालय के नाम से देहरादून से संचालित करने शुरु किए, जो वर्तमान में भी इसी परिपाटी पर चल रहे हैं। यहां दो कार्यालयों में अधिकारी नियमित रुप से बैठते हैं। जबकि चार कार्यालय पूर्ण रुप से देहरादून शिफ्ट हो चुके हैं। मंडलीय कार्यालयों को पुर्नजीवित किए जाने के लिए इससे पहले भी प्रयास हुए हैं, लेकिन आज तक प्रदेश सरकार मंडलीय अधिकारियों को पौड़ी में बिठाने में असफल साबित रही है। पौड़ी में कहने के लिए दो राज्य स्तरीय कार्यालय भी हैं। लेकिन इनमें इनके मुखियां ही नहीं बैठते हैं। पौड़ी में उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग और आयुक्त ग्राम्य विकास के राज्य स्तरीय मुख्यालय हैं। आयोग में जहां उपाध्यक्ष नियमित रुप से बैठते हैं। वहीं आयुक्त ग्राम्य विकास मुख्यालय में झलकते तक नहीं हैं। इसके विपरीत कुमांऊ मंडल के हल्द्वानी में स्थापित सेवायोजन, समाज कल्याण, महिला डेयरी के राज्य स्तरीय कार्लालय मुख्यालयों से संचालित हो रहे हैं। पलायन से वीरान हो चुके गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौड़ी की रौनक लौटाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कमर कस ली है। सीएम ने सभी अफसरों को मंडल मुख्यालय में बैठने के निर्देश दिए हैं। सीएम के सामने डीएम ने पौड़ी को जाम मुक्त करने के प्रोजेक्ट पर प्रजेंटेशन भी दिया।दरअसल मंडल के ज्यादातर दफ्तरों को पौड़ी से बाहर शिफ्ट कर दिया गया है। मंडलायुक्त और अन्य अफसर बीबी अधिकतर देहरादून के कैंप कार्यालयों में बैठते हैं। जिससे मंडल मुख्यालय की रौनक फीकी सी हो गई है। सीएम ने पौड़ी दौरे पर इस समस्या का गम्भीरता से संज्ञान लिया था। और सोमवार को बैठक करके निर्देश दिए कि मण्डल स्तरीय अधिकारी नियमित मण्डलीय कार्यालयों में बैठें। मण्डलायुक्त, पुलिस महानिरीक्षक गढ़वाल परिक्षेत्र भी मण्डल कार्यालयों में बैठने का अपना पूरा रोस्टर जारी करें। जिससे जन समस्याओं का समाधान मण्डल स्तर पर भी हो सके। जिन मण्डलीय अधिकारियों को विभागीय निदेशालयों में भी अतिरिक्त प्रभार दिये गये हैं, यदि अति आवश्यक न हो तो उन्हें सिर्फ मण्डलीय कार्यालय में ही तैनात किया जाए। मण्डल मुख्यालय में संचालित विभागीय कार्यालयों में कार्यरत अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी अन्यत्र सम्बद्ध न किया जाए। राज्य निर्माण के बाद अगर किसी शहर को उपेक्षा की सबसे बड़ी मार झेलनी पड़ी तो वह है मंडल मुख्यालय पौड़ी। देहरादून में राजधानी बनी तो यहां से राज्य और मंडल स्तरीय दफ्तरों के शिफ्ट होने का भी सिलसिला शुरू हुआ। जो राज्य और मंडल स्तरीय दफ्तर पौड़ी में बचे भी वह शोपीस ज्यादा बनकर रह गए। गढ़वाल कमिश्नर हों या पुलिस के डीआइजी जैसे अफसर यहां कभी कभार ही झांकने पहुंचते हैं। इन अफसरों ने राजधानी देहरादून में ही अपने कैंप कार्यालय बनाए हुए हैं। इन सब के बीच पौड़ी के रुतबे को कायम रखने की तमाम कवायदें भी हुई, लेकिन ठीक से होमवर्क न होने के चलते हालात सुधरने के बजाय बदतर ही होते रहे।सबसे पहले यहां से कृषि निदेशालय को देहरादून शिफ्ट कर उसकी जगह यहां अपर निदेशक कृषि के कार्यालय तक सीमित कर दिया गया। वर्ष 2014-15 में यहां से ग्राम्य विकास के निदेशालय को भी देहरादून शिफ्ट करने के आदेश हुए। भनक लगी तो जनता सड़कों पर उतरी और सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा। राहत ये रही कि ग्राम्य विकास का निदेशालय देहरादून जाने से बच गया। बात यहीं नहीं रुकी। वर्ष 2017-18 में यहां से सहायक निदेशक खेल के कार्यालय को भी देहरादून शिफ्ट कर दिया गया। देश में आज उत्तराखंड के जिले पौड़ी का डंका बज रहा है. पूरे देश के शीर्ष सुरक्षा पदों पर बैठे सभी बड़े अधिकारी पौड़ी जिले से ही आते हैं. यहीं नहीं देश के सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, अनिल धस्माना सभी इस मिट्टी से जुड़े हैं. बावजूद इसके पौड़ी आज भी पलायन, पानी और शिक्षा की जबरदस्त मार झेल रहा है. साल 2000 में कई आंदोलनों के बाद उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया जिसके बाद यहां के लोगों में ये उम्मीद जगी कि अब निश्चित तौर पर पूरे राज्य का विकास हो… होगा, लोगों के पास रोजगार होगा, अच्छी शिक्षा होगी और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं भी मिलेंगी. इन सबसे से उनका जीवन बेहद अच्छे तरीके से बीतेगा. लेकिन उनकी उम्मीदों को तब धक्का लग गया जब पूरे प्रदेश में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं का बोलबाला होने लगा और आखिरकार लोगों ने अपने पुर पुराने गांव को छोड़कर पलायन करना शुरू कर दिया. पौड़ी उत्तराखंड को वो जिला है जहां सबसे ज्यादा पलायन हुआ. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहल की है। पौड़ी के लोग इसे उम्मीद की नजर से तो देख रहे हैं, लेकिन उन्हें इसमें चुनौती भी नजर आ रही है। शहरवासियों का कहना है कि इससे पहले भी मंडलीय कार्यालयों को पौड़ी से संचालित किए जाने के प्रयास हुए हैं, लेकिन उन्हें राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते साकार रुप नहीं दिया जा सका है। हालांकि लोगों ने सीएम के प्रयास का स्वागत किया है।गढ़वाल मंडल की स्थापना 1 जनवरी 1969 को तत्कालीन यूपी के राज्यपाल डा. बी गोपाल रेड्डी ने की थी। मंडल का मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। इसमें पौड़ी के साथ चमोली, टिहरी, उत्तरकाशी चार जिले शामिल किए गए। वर्ष 1974 में देहरादून और 1997 रुद्रप्रयाग जिला जुड़ा। राज्य गठन के बाद गढ़वाल में मंडल में हरिद्वार जिले को भी शामिल किया गया। राज्य गठन के बाद एक-एक कर अधिकारियों ने मंडलीय कार्यालयों का संचालन कैंप कार्यालय के नाम से देहरादून से संचालित करने शुरु किए, जो वर्तमान में भी इसी परिपाटी पर चल रहे हैं। यहां दो कार्यालयों में अधिकारी नियमित रुप से बैठते हैं। जबकि चार कार्यालय पूर्ण रुप से देहरादून शिफ्ट हो चुके हैं। मंडलीय कार्यालयों को पुर्नजीवित किए जाने के लिए इससे पहले भी प्रयास हुए हैं, लेकिन आज तक प्रदेश सरकार मंडलीय अधिकारियों को पौड़ी में बिठाने में असफल साबित रही है। सीएम की पहल का स्वागतयोग्य। इससे पहले भी प्रयास हुए हैं, लेकिन वे साकार रुप नहीं ले पाए। अब पौड़ीवासी इतने ठगे जा चुके हैं, कि उन्हें न जाने क्यों यकीन नहीं हो रहा है। राज्य बनने के बाद सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश में किसी शहर को हुआ है, तो वह पौड़ी है। कोई राजनीतिज्ञ पौड़ी की नब्ज ही नहीं पकड़ पाया हैं, जो इसका निदान खोज पाए की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं है।
✒️
लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।