शीतकाल: अस्थमा रोगी बरतें विशेष सावधानी,अत्यधिक ठंड और कोहरे से करें बचाव, एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत
ऋषिकेश:-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने शीतकाल के मद्देनजर अस्थमा रोगियों को विशेष सावधानी बरतने का सुझाव दिया है। संबंधित रोगियों को अलर्ट करते हुए बताया गया कि चूंकि इस बार ठंड ने अपना असर समय से पहले दिखाना शुरू कर दिया है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में भी जल्दी कोहरा पसरने लगा है। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि ठंड और कोहरे की यह समस्या सबसे अधिक अस्थमा रोगियों के लिए नुकसानदेय है। ऐसे में अस्थमा रोगियों को विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
अत्यधिक ठंड और कोहरे का सर्वाधिक प्रभाव अस्थमा दमा रोग से ग्रसित मरीजों पर पड़ता है। सर्दी बढ़ने और कोहरा छाने से वायुमंडल में आद्रता बढ़ जाती है। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार यह स्थिति श्वास रोगी और दमा रोगियों के लिए सीधेतौर पर नुकसानदेय है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने बताया कि कोरोना संकट के मद्देनजर अस्थमा रोगियों को अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है,लिहाजा ऐसे रोगियों को मास्क पहनने में हरगिज लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि नियमततौर पर मास्क लगाने से कोरोना से तो बचाव होगा ही, साथ ही मास्क का उपयोग अस्थमा रोगियों के लिए ठंडी हवा से रोकथाम में भी बेहतर विकल्प साबित होगा।
निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि ठंड और कोहरे के कारण वायुमंडल में जल की बूंदें संघनित होकर हवा के साथ मिल जाती हैं। यह हवा जब सांस के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करती है, तो सांस की नलियों में ठंडी हवा जाने से उनमें सूजन आने लगती है। ऐसे में अस्थमा के रोगी गंभीर स्थिति में आ जाते हैं।
उन्होंने मास्क के इस्तेमाल को इस समस्या से बचने का सबसे बेहतर उपाय बताया। निदेशक प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि एम्स ऋषिकेश में अस्थमा रोगियों के लिए बेहतर उपचार की सभी आधुनिकतम सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। ऐसे मरीजों के इलाज की सुविधा आयुष्मान भारत योजना में भी शामिल है।
पल्मोनरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. गिरीश सिंधवानी जी ने बताया कि अस्थमा किसी भी व्यक्ति को और किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन समय पर इसके लक्षणों की पहचान होने से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह रोग संक्रमण से नहीं फैलता है यह एलर्जी से होने वाली बीमारी है। जुकाम और बार-बार आने वाली छींकों से उत्पन्न यह एलर्जी जब नाक व गले से होते हुए छाती में फेफड़ों तक पहुंचती है तो अस्थमा का रूप ले लेती है। डा. सिंधवानी के अनुसार अस्थमा रोगियों को रात के समय अधिक दिक्कत होती है।
उन्होंने बताया कि इस मर्ज का समय पर उपचार नहीं कराने से मरीज की सांस फूलने लगती है और दम घुटने के कारण उसे अस्थमा अटैक पड़ जाता है। डा. सिंधवानी ने सुझाव दिया कि अस्थमा के रोगी नियमिततौर से दवा लेना नहीं भूलें।
उन्होंने आगाह किया कि बीच-बीच में दवा छोड़ने से यह बीमारी घातकरूप ले लेती है। बताया कि लोगों में भ्रांति है कि इनहेलर का उपयोग केवल संकट के समय ही किया जाता है। जबकि यह तर्क पूरी तरह से गलत है। विशेषज्ञ चिकित्सक ने बताया कि इनहेलर का उपयोग अस्थमा के रोगी को नियमिततौर से करना चाहिए। इस बीमारी में इनहेलर सबसे उत्तम उपाय है। इससे बचना, नुकसानदेह होता है। उन्होंने बताया कि ऋषिकेश एम्स में इस बीमारी की सभी तरह के परीक्षण व उपचार की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं।
इंसेट
अस्थमा के प्रमुख लक्षण-खांसी, जुकाम, छींकें आना, सांस फूलना,
सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना आदि।
अस्थमा रोग को बढ़ाने वाले कारक- ठंड, कोहरा, धुंध, धुवां, धूल, प्रदूषण, संक्रमण, पेंट की गंध, परागकण। इसके अलावा बंद घरों के भीतर रहने वाले पालतू कुत्ते और बिल्लियों के बालों से भी अस्थमा मरीजों की परेशानियां बढ़ जाती हैं।
अस्थमा से बचाव के उपाय-फ्रिज का पानी, ठंडी और बासी चीजों का सेवन कदापि नहीं करें। सर्दी से बचाव के सभी जरुरी उपाय जैसे गर्म कपड़े पहनना, धूप आने से पहले बाहर नहीं निकलना, कमरों के भीतर बैठने के बजाय धूप में बैठना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। धूप में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में होता है और यह जनरल बूस्टर का कार्य करते हुए शरीर की इम्यूनिटी क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा ग्रसित मरीज दवा का सेवन नियमित तौर पर करें।