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जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा यारसा गंबू डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में कई नायाब जड़ी बूटियां मौजूद हैं, जो किसी खजाने में से कम नहीं हैं. उनमें से एक है यारसा गंबू, जिसे कीड़ा जड़ी भी कहा जाता है. यह प्रायः एक कीड़े के अंदर पाई जाती है, जो सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और यही कारण है कि इसकी कीमत काफी ज्यादा है. कीड़ा जड़ी को कैटरपिलर फंगस और हिमालयन वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है, जो पीले कैटरपिलर्स और एक मशरूम से मिलकर बनती है. क्योंकि यह घोस्ट मॉथ लार्वा के सिर से निकलता है, इसलिए इसे ‘कैटरपिलर फंगस’ कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि कीड़ा जड़ी हिमालय के बर्फ वाले चारागाहों में पाई जाती है और यही कारण है कि जैसे जैसे बर्फ पिघलने लगती है, ऊंचाई वाले इलाकों के लोग कीड़ा जड़ी की खोज में निकल जाते हैं. यह हिमालय के 3000 मीटर से ऊपर के हिस्सों में पाई जाती है और यह तब बनती है, जब कैटरपिलर एक घास खाता है और घास खाकर उसकी मौत हो जाती है. कैटरपिलर्स की मौत के बाद उसके अंदर एक खास जड़ी बूटी उगती है. क्योंकि यह कीड़े के अंदर से जड़ी उगती है, जिस कारण इसे कीड़ा जड़ी कहा जाता है. इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं, जो तत्काल रूप में ताकत देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है, उसमें ये पकड़ा नहीं जाता है. चीनी-तिब्बती परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसके और भी उपयोग हैं, साथ ही फेफड़ों और किडनी के इलाज में इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है.उच्च हिमालय वाले इलाकों में एक बेसकीमती जड़ी मिलती है। मौजूदा समय में इस जड़ी की कीमत सोने के भाव जैसा है। इस जड़ी को यारसागंबू यानि कीड़ा जड़ी कहते हैं। यौन शक्ति बढ़ाने में यह जड़ी काफी असरदार है। यही वजह है कि इसे हिमालयी वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन पिछले कई सालों से इस जड़ी का अत्यधिक दोहन हो रहा है। इसको लेने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण बुग्यालों व हिमालय की तलहटी में पहुंच जाते हैं, हालांकि ग्रामीणों को वन विभाग की ओर से इसे निकालने की अनुमति दी जाती है, लेकिन अब नेपाली मूल के लोग भी कीड़ा जड़ी की खोज में उच्च हिमालय क्षेत्रों में पहुंच रहे हैँ। बकायदा बुग्यालों में टेंट कॉलोनी बनाई जा रही है। हिमालय क्षेत्र में बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप दैवी आपदाओं का जन्म दे रहा है। यही वजह है कि हिमस्खलन, अतिवृष्टि और भूस्खलन की घटनाओं में इजाफा हो रहा है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद बताते हैं कि बुग्यालों में लोग नंगे पांव जाते थे। हिमालय क्षेत्र इतना सेंस्टिव है कि यहां ऊंची आवाज में भी बात नहीं की जाती थी, लेकिन आज कीड़ा जड़ी के दोहन के लिए उच्च हिमालय क्षेत्र में लोगों की आवाजाही बढ़ गई है। यह पर्यावरण के लिए घातक है। कीड़ा जड़ी एक निश्चित समय सीमा तक ही मिलती है। ग्रामीणों को इसके दोहन का हक है, लेकिन सरकार को पर्यावरण संरक्षण के लिए कीड़ा जड़ी के दोहन की विशेष नीति बनानी चाहिए, जिससे पर्यावरणकोकोईनुकसापहुंचे। कीड़ा जड़ी कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा बाजार चीन है। नेपाल के रास्ते कीड़ा जड़ी चीन पहुंचाई जाती है। चीन में कीड़ा जड़री की कीमत लगभग 50 लाख रुपये प्रति कीलोग्राम है। उच्च हिमालय में पोटिंग ग्लेशियर क्षेत्र, लास्पा, बुर्फू, रालम, नागनीधुरा, महोरपान, दर्ती ग्वार, छिपलाकेदार, दारमा घाटी, व्यास घाटी के अलावा चमोली और उत्तरकाशी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी कीड़ा जड़ी पाई जाती है. कीड़ा जड़ी का उपयोग शक्तिवर्धक और कैंसर की दवाओं को बनाने के लिए किया जाता है. यारसा गंबू की मांग भारत के साथ-साथ चीन, सिंगापुर और हांगकांग तक में है. विदेशों में कीड़ा जड़ी की कीमत करीब 50 लाख रुपये प्रति किलो तक है. यह कीमत इसकी उपलब्धता के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है. कैंसर जैसी बीमारी के इलाज में भी इस जड़ी को काफी असरदार माना जाता है. आयुर्वेद के मुताबिक, सांस और गुर्दे की बीमारी को सही करने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही यह जड़ी शरीर में रोगरोधी क्षमता को भी बढ़ाती है. इस मशरूम में प्रोटीन, पेप्टाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व होते हैं, जोकि शरीर को ताकत देते हैं.वहीं, किडनी के इलाज में भी इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है. कीड़ा जड़ी शुगर, थायराइड, अस्थमा, हाई बीपी, दिल की बीमारी, गठिया, हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी गंभीर बीमारियों के लिए संजीवनी का काम करती है. फेफड़ों और गुर्दे को मजबूत करने, ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाने, दर्द को कम करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही पीठ दर्द, नपुंसकता, शुक्राणु उत्पादन में वृद्धि और रक्त उत्पादन में वृद्धि के लिए भी इसे उपयोग किया जाता है. कीड़ा जड़ी का उपयोग ट्यूमर रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए भी होगा है. यह जीवन शक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है. बदलते मौसम का असर अब हिमालय के इको सिस्टम पर भी दिख रहा है. मौसम परिवर्तन भले ही पूरे विश्व के लिए चुनौती बना हुआ हो लेकिन इसके खतरनाक प्रभाव अब हिमालय में दिखने शुरू हो गए हैं. मौसम परिवर्तन के कारण कई हिमालयी जड़ी-बूटियों के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है. इस साल उत्तराखंड और हिमाचल समेत पहाड़ों में मौसम की बेरुखी देखने को मिली है. इस विंटर सीजन न तो बर्फबारी देखने को मिली न ही बारिश, जिसका असर सीधे तौर पर तापमान पर पड़ रहा है.बर्फबारी न होने से हिमालय की ऊंची चोटियों का तापमान तेजी से बढ़ रहा है. इसका असर हिमालय में पाई जाने वाली औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी-बूटियों पर देखने को मिल रहा है. इन जड़ी-बूटियों की ग्रोथ के लिए बर्फबारी बेहद आवश्यक है, लेकिन इस साल बर्फबारी न होने से वैज्ञानिकों के साथ-साथ किसान भी चिंतित हैं. उत्तराखंड राज्य ना सिर्फ पर्यटन क्षेत्र के लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रो में हजारों प्रकार की जड़ी- बूटियां भी पाई जाती हैं, जिनसे बड़ी से बड़ी बीमारियों से निजात मिलती है. कीड़ा-जड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली इन्हीं जड़ी- बूटियों में शामिल है. उत्तराखंड सरकार ने कीड़ा-जड़ी के दोहन और व्यापार को लेकर नियमावली पहले ही तैयार कर दी है. इसके बाद भी अभी तक यह नियमावली धरातल पर नहीं उतर पायी है.कीड़ा-जड़ी को लेकर बनाई गई नियमावली के धरातलीय इम्प्लीमेंट पर बोलते हुए वन प्रमुख संरक्षक ने बताया कि अभी तक कीड़ा जड़ी को लेकर कोई नीति नहीं बनी थी. मगर अब अब कीड़ा जड़ी के चुगान और व्यापार को लेकर नीति बना दी गई है. जिसमें कीड़ा जड़ी का किस तरह से चुगान किया जाना है. इसका जिक्र किया गया है. इसके साथ ही कीड़ा जड़ी का उत्पादन कितना होता है, किस स्थान से सप्लाई होती है, किस तरह से इसे संरक्षित किया जाना है आदि तमाम जानकारियां इसमें निहित की गई हैं.लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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