पौड़ी गढ़वाल:- यमकेश्वर विधानसभा के दुगड्डा ब्लॉक से दुःखद खबर सामने आ रही है, यहां एक महिला अपने बच्चे को दुगड्डा स्थित स्कूल में छोड़ने के बाद घर लौट रही थी । कि रास्ते में घात लगाकर बैठे गुलदार ने महिला पर हमला कर दिया। गुलदार के हमले में महिला की मौके पर ही मौत हो गई।
मिली जानकारी के मुताबिक कोटद्वार जिले के दुगड्डा प्रखंड के अंतर्गत ग्राम गोदी बड़ी निवासी 38 वर्षीय रीना देवी पत्नी मनोज चौधरी आज मंगलवार की सुबह गांव से अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने दुगड्डा आई थी। बताया जा रहा है कि वापसी में गांव के समीप ही रीना देवी पर गुलदार ने हमला कर दिया।
गुलदार उसे घसीटता हुआ झाड़ियों में ले गया। जब गांव से दुगड्डा की ओर आ रहे कुछ बच्चों ने रास्ते में खून पड़ा देख इसकी जानकारी गांव में दी। मौके पर पहुंचे ग्रामीणों ने घटनास्थल से कुछ दूर झाड़ियों में एक शव पड़ा देखा। समीप ही गुलदार भी बैठा हुआ था। ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन विभाग को दी। सूचना पर वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर शव को झाड़ियों से बाहर निकाला।
दुखद पर सोचनीय…….मन व्यथित है अभी-अभी समाचार मिला है कि स्थानीय शहर दुगड्डा मैं पढ़ने वाले छोटे बच्चों की माता विद्यालय में ड्रॉप करने गई थी जब अपने गांव बड़ी गोदी लौट रही थी. अचानक गुलदार ने आक्रमण कर उस बेचारी की जान ले ली. यह परिवार हाल में ही अपने गांव लौटा था. गांव में रहकर ही बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया. साल भर पहले ही गांव लौटे एक परिवार की बेटी को भी बाघ उठाकर ले गया था. सोचनीय विषय है की पलायन की चिंता में पहाड़ के बड़े-बड़े कलाकार, गीतकार, समझदार साथ में सरकार मिल कर बड़े लंबे लंबे आलाप ले रहे हैं लेकिन क्या इन हालों में पहाड़ों में कोई रह सकता है. यह बड़ी खौफनाक बात है कि हम पहाड़ों में रह रहे हैं. वे लोग बहुत समझदार थे जिन्होंने पहाड़ छोड़ दिया. प्रश्न उठता है पहाड़ों में क्या अनियंत्रित बाघ और भालूओं का ही राज कायम करने के लिए हमने उत्तराखंड राज्य बनाया था? आज मानव और जंगल के बीच में एक द्वंद्व की सी स्थिति पैदा हो गई है. हिंसक जीव रोज वारदात कर रहे हैं. न तो हम अपनी खेती पाती को बचा पाए हैं और ना ही हम अपनी संतति को बचा पा रहे हैं. उत्तराखंड कुछ कथित पर्यावरण विद और एसी कमरों में बैठे हुए चिंतकों की प्रयोगशाला बन गया है. अंधे होकर वृक्षारोपण का पर्व मनाया जा रहा है. पूर्व में तो अनाप-शनाप वृक्षों की प्रजातियों का रोपण कर भूमि को उसर बना कर जश्न मनाया गया. अनावश्यक जंगल पैदा किए बिना और फिर उनमें अनावश्यक जानवर छोड़े गए. जानवरों के अनुपात में जंगल तो है ही नहीं. यह वारदातें ज्यादा तरह उन्हीं जगहों पर होती हैं. जहां पर जंगल कम झाड़ियां ज्यादा है. ऐसी ऐसी पदप व जन्तु प्रजातियां जंगलों की ओर पहाड़ों की ओर प्रवेश कर चुकी है. जिसके पहाड़ों में किस्से ही सुनने को मिलते थे. हाथी सड़कों को अवरूद्ध कर रहे हैं. दिन-ब-दिन उनका दायरा पहाड़ों की तरफ बढ़ता ही जा रहा है. राष्ट्रीय मार्ग बार अवरूद्ध हो जाता है. क्योंकि सड़कों के किनारे हाथियों का पसंदीदा चारा बांस लगा दिया गया है. बेचारे हाथी की इसमें गलती भी क्या है! आज से बीच 25 साल पहले इस सड़क में एक भी हाथी नहीं दिखाई देता था. ना इसका कोई पुराना इतिहास मिलता है.
मुझे तो लगता है जब से जंगल की नई नीतियां बनी तब से ही पहाड़ से पलायन प्रारंभ हुआ और जंगल अर मानव के बीच संबंध खराब हुए। अंत में एक प्रश्न पूछना है क्या कोई सज्जन पहाड़ों के चर्चित जीव गुलदार का परिचय दे सकता है? क्या यह स्थानीय है या परदेशी?