जोधपुर: कुंवारे जानबूझकर बेंत से मार खाने जाते हैं क्योंकि ये मान्यता है कि इन औरतों के हाथ से कोई भी कुंवारा अगर मार खाता है तो उसकी शादी एक साल में हो जाती है।
जोधपुर से लोकेश व्यास की रिपोर्टः औरत कमजोर नहीं है, उसके हाथों से बरसती है लाठियां, युवा और मर्द खाते हैं चाव से महिलाओं की मार। समूचे विश्व में केवल जोधपुर में मनाया जाता है अनूठा त्योहार धींगा गवर यानी बेंतमार मेला। दुनिया में एक रात ऐसी जिसमें सिर्फ और सिर्फ महिलाओं का राज होता हैं और ये अनोखी रात सजती है जोधपुर में जहाँ औरतें पूरी रात जमकर मस्ती करती हैं।
मार खाओ ब्याह रचाओ
इस रात में कुछ कुंवारे जानबूझकर बेंत से मार खाने जाते हैं क्योंकि ये मान्यता है कि इन औरतों के हाथ से कोई भी कुंवारा अगर मार खाता है तो उसकी शादी एक साल में हो जाती है। मतलब मार खाओ ब्याह रचाओ। ओर यह मेला पूरे देश मे सिर्फ राजस्थान के जोधपुर में होता है यह दुनिया का एक अनूठा मेला जिसमें पूरी रात केवल महिलाओं का राज होता हैं।
महिलाएं पूरी रात स्वांग रचा कर हाथों में बेंत (लकड़ी) लेकर घूमती हैं ओर अगर सामने कोई पुरुष नजर आते ही उसे यह बेंत भी पड़ जाती है। इस बेंत का कुंवारे युवकों की मुराद से भी नाता है। ऐसी मान्यता है कि इन महिलाओं से अगर कोई कुँवारा लड़का बेंत खा ले तो उसकी शादी जल्द हो जाती है।
सदियों से चली आ रही परंपरा
जोधपुर शहर की गलियों में एक रात सिर्फ और सिर्फ औरतों का राज रहता हैं। सदियों से चली आ रही परम्परा के चलते इस रात पूरा शहर औरतों के अधीन होता हैं जब औरतें स्वांग रच कर अपने घर से बाहर निकलती हैं तब यहां औरत ही राजा है, औरत ही रानी है, रावण भी ये ही है और राम भी ये ही है, ये सब कुछ औरतें करेंगी।
मर्द अगर यहां गए तो उन्हें खाने पड़ेंगे डंडे, क्योंकि हर औरत के हाथ में एक बेंत जरुर होगी और ये बेंत होती है मर्दों की पिटाई करने के लिए। क्योंकि उन्होंने एक रात की औरत की सत्ता में घुसपेठ करने की कोशिश की है।
विदेशी औरतें भी लेती हैं हिस्सा
मार भी पड़े तो वो दर्द नही एक अनोखी मिठास देती है, इस रात की ही बात करें तो यहाँ मार खानें वालों का तांता सा लगा रहता हैं महिलाएं भी गजब के स्वांग रचकर आती है और लाठियाँ बरसाती है। एक बार तो उनका पति भी सामने आ जाए तो क्या मजाल की उसे पहचान जाए, ऐसा ही होता है जब हर लड़की और महिला की तस्वीर भी नकली हो और वो स्वांग रची हो और तो और अब इस मेले की रौनक बढ़ाने के लिए विदेशी औरतें भी यहाँ आने लगी हैं।
अब जानिए मेले से जुड़ी मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों तक गवर अपने पीहर में रहती है। मान्यता है कि इस दौरान जब ईसर जी गवर से मिलने आए तो पीहर में उन्हें रोक दिया गया। तब उन्होंने बेंत का रूप धारण किया और 16 दिनों तक उनकी बेंत के रूप में रक्षा की। इसका पूजन करने वाली महिलाओं को तिजणियां कहा जाता हैं। तिजणियों ने बताया कि ये दुलार की छड़ी हैं। इस छड़ी से ईसरजी का आशीर्वाद मिलता हैं। इसमें कई प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। इमसें एक बाधा शादी की भी है।
राव जोधा ने शुरू की थी परंपरा
तिजणियां बताती हैं कि इसको बेंतमार मेले के रूप में गलत प्रचारित किया जाता है। यह धींगा गवर का मेला है इसी नाम से इसे पुकारा जाना चाहिए। आयोजन में जोधपुर में धींगा गवर की परंपरा करीब 563 साल पुरानी है। इस परंपरा की शुरुआत राव जोधा राज परिवार से शुरू हुई थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। कहा जाता है कि मां पार्वती ने सती होने के बाद दूसरा जन्म धींगा गवर के रूप में लिया था। इसलिए पार्वती के रूप में धींगा गवर की पूजा होती है।
अब तो परकोटा शहर के अलावा जहां-जहां इसका पूजन करने वाली महिलाएं रहती हैं उन मोहल्लों में भी समूह में पूजन होता है। चैत्र महीने की तृतीया से इसका पूजन शुरू होता है जो कि आगे 16 दिन तक चलता है। जोधपुर शहर में अलग-अलग मोहल्लों और महिलाओं के समूह बनाकर इसे पूजते हैं।