उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल-फूलों में भी । खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है। यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा
शांत किया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को इनका महत्व समझ में आया तो लोक जीवन का हिस्सा बन गए।
औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फलों का लाजवाब जायका हर किसी को इनका दीवाना बना देता है। उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहीं, यहां के खान-पान में भी विविधता का समावेश है बेडू का उत्तराखंड की संस्कृति से
कितना लगाव था इसका अंदाजा आप पौराणिक गीतों से भी लगा सकते हैं जिसमे एक गीत ‘बेडू पाको बारोमास’ आपने जरूर सुना होगा। गीत के माध्यम से बताया गया है कि बेडू बारामास पकने वाला फल था, यह इतना
स्वादिष्ट फल है कि जो एक बार खा ले वह इसे हर बार खाना चाहेगा। हालांकि आज के समय पर बेडू का महत्व समाप्त हो रहा है। कई जगह यह आसानी से मिल जाता है लेकिन कुछ लोग इसे खाने को तरस जाते हैं। विश्व में
बेडु की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती है। इसे गुणों की बात की जाय तो यह सम्पूर्ण पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप औषधियों के गुणो से भरपूर होता है। आयुर्वेद में बेडु के फल का गुदा कब्ज, फेफड़ो के विकार तथा मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है। इसके प्रयोग से तंत्रिका तंत्र विकार बिमारियों से निजात मिलती है,
प्रधानमंत्री ने भी मन की बात में बेडु का जिक्र किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने मन की बात में (mann ki baat) पहाड़ी अंजीर माने जाने वाले बेड़ू (Bedu) का जिक्र करते हुए इसके उत्पादन को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन के लिए पिथौरागढ़ जिला प्रशासन के प्रयासों की सराहना की है।
पारम्परिक रूप से बेडु को उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर,
अल्सर,मधुमेह तथा फंगस सक्रंमण के निवारण के लिये प्रयोग किया जाता रहा है। उत्तराखंड के गांवों में बेडु की पत्तियां पशुचारे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, बताया जाता है कि जो पशु दूध कम देता है तो उसे बेडू की पत्तियां चारे में खिलाने पर पशु दूध अधिक देती है। बारामासा यानी बारह महीनों पाया जाने वाला। यह स्वादिष्ट जंगली फल उत्तरी-पश्चिमी हिमालय में निम्न से मध्यम ऊंचाई तक पाया जाता है। कई राज्यों में इसे सब्जी व औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। वैसे तो बेडु का संपूर्ण पौधा ही उपयोगी है, लेकिन इसकी छाल, जड़, पत्तियां, फल व चोप औषधीय गुणों से भरपूर हैं। पारंपरिक रूप से इसे उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर, अल्सर, मधुमेह व फंगस संक्रमण के निवारण के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में बेडु के फल का गूदा कब्ज, फेफड़ों के
विकार व मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है। जहां तक बेडु के फल की पौष्टिक गुणवत्ता का सवाल है तो इसमें प्रोटीन 4.06 प्रतिशत, फाइबर 17.65 प्रतिशत, वसा 4.71 प्रतिशत, कॉर्बोहाइड्रेट 20.78 प्रतिशत, सोडियम 0.75 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, कैल्शियम 105.4 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, पोटेशियम 1.58 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, फॉस्फोरस 1.88 मिग्रा प्रति सौ ग्राम और सर्वाधिक ऑर्गेनिक मैटर 95.90 प्रतिशत तक पाए जाते हैं। बेडु के पके हुए फल में 45.2 प्रतिशत जूस, 80.5 प्रतिशत नमी, 12.1 प्रतिशत घुलनशील तत्व व लगभग छह प्रतिशत शुगर पाया जाता है।उत्तराखंड में आज के समय में इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सकता है जो विभिन्न खाद्य
एवं फार्मास्यूटिकल उद्योग में उपयोग को देखते हुये स्वरोजगार के साथ-साथ बेहतर आर्थिकी का साधन बन सकता है। इस समय उत्तराखंड के पहाड़ प्रचंड गर्मी के कारण धधक रहे हैं, लेकिन बेड़ू के पेड़ को गर्मी के थपेड़े कोई असर नहीं डाल रहे हैं। बेड़ू का पेड़ सालभर हरा रहता है और उसमें सालभर फल आते हैं तथा पकते रहते हैं।शायद इसीलिए 1952 में प्रख्यात लोक कलाकार मोहन उप्रेती और बीएस साह ने-बेड़ू पाको बारमासा… गीत की रचना कर दी और विख्यात लोक गायक गोपाल बाबू गोस्वामी ने इस बेहतरीन गीत को स्वर दिया था। तब यह गीत जीआईसी नैनीताल में मंचित किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इस गीत से बेहद प्रभावित हुए। यह गीत उत्तराखंड ही नही दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| इस गीत के माध्यम से यह बताया गया है की बेडू फल वर्ष भर पकते रहता है|
बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला,
बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला,
अल्मोड़ा की, नंदा देवी, ओ नरणी फूल चढोनो पाती,मेरी छैला बेड़ू के फलों से अब कुछ लोग जैम और जूस भी बनाने लगे हैं। बेमिसाल स्वाद वाला बेड़ू हालांकि जंगली फल कहा जाता है, लेकिन जिस हिसाब से इसका उत्पादन होता है, उसका सही उपयोग किया जा सकता है। बेडु के पेड़ से एक मौसम में लगभग 25 किग्रा तक फल प्राप्त कर सकते है तथा बेडु की पत्तियां पशुचारे के साथ-साथ कृषि वानिकी अर्न्तगत बेहतर पेड़ माना जाता है। राज्य के परिप्रेक्ष्य में
इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सकता है जो विभिन्न खाद्य एवं फार्मास्यूटिकल उद्योग में उपयोग
को देखते हुये स्वरोजगार के साथ-साथ बेहतर आर्थिकी का साधन बन सकता है।
लेखक:-
उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं वर्तमान में दून
विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।