देहरादून

चुनौतियों की सड़क पर होगा चारधाम का सफर डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

 

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

सरकार के लिए चुनौती वाली बात इसलिए भी है कि पिछले साल की तुलना में इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु चारधाम यात्रा पर आ रहे हैं। इसका तस्दीक चारधाम यात्रा के पोर्टल पर यात्रियों के पंजीकरण से हो रहा है।अभी  तक लगभग छह लाख 51 हजार लोग चार धाम यात्रा के लिए अपना पंजीयन करवा चुके हैं। अकेले बदरीनाथ के लिए चार लाख बारह हजार से अधिक पंजीयन है। इसके अलावा सरकार ने घोषणा आकर दी है कि उत्तराखंड के स्थानीय लोगों को पंजीयन के जरूरत नहीं हैं। हेलीकाप्टर सेवा का पंजीयन शुरू हुआ और 30 अप्रैल तक के सभी 6263 टिकट बिक गए। याद रहे गत वर्ष एक लाख 36 लोगों ने हेलीकाप्टर सेवा का इस्तेमाल किया था। विदित हो गंगोत्री-यमनोत्री के पट 22 अप्रैल को खुल जाएंगे, जबकि बदरीनाथ के 27 को। इसी साल जनवरी में जोशीमठ शहर का धंसना-फटना शुरू हुआ था, जो अभी भी जारी है, बस अब किसी को उसकी परवाह नहीं हैं।ऋषिकेश से बदरीनाथ तक का राष्ट्रीय राजमार्ग जोशीमठ होते हुए ही चीन की सीमा पर बसे माणा तक जाता है। इस मार्ग का 12 किलोमीटर हिस्सा जोशीमठ से गुजरता है, जो कि इस समय अनिश्चितता और आशंका के गर्त में है।जोशीमठ में बरपे कुदरती कहर के बाद 81 परिवारों के 694 लोगों पर नई आफत आ गई है, क्योंकि अभी तक तो ये लोग शहर के निरापद हिस्से में बने होटल-धर्मशालाओं के एक-एक कमरे में जैसे तैसे दिन बिता रहे थे, अब इनको यह स्थान खाली करने को कह दिया गया है, क्योंकि चार धाम यात्रियों की बुकिंग आने लगी है।सरकार ने ढाक में कुछ प्रीफेब्रिकेटेड मकान बनाए हैं, लेकिन अभी न तो उनका वितरण हुआ है और न ही वे इंसान के रहने लायक हो पाए हैं। एक बिखरे, कराह रहे और अनहोनी के अंदेशे से सहमे चमोली से ले कर जोशीमठ तक के रास्तों पर जब हर दिन पांच हजार से अधिक वाहन और हजारों लोग गुजरेंगे तब इसके प्रति कोई संवेदना नहीं होगी कि जिन पहाड़ों, पेड़ों, नदियों ने पांच हजारर् साल से अधिक तक मानवीय सभ्यता, आध्यात्म, धर्म, पर्यावरण को विकसित होते देखा था, वह बिखर चुके हैं। न सड़क बच रही है न मकान।न ही नदी की किनारे। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित स्थान, मूल्य और संस्कार का क्या होगा? आंसुओं से भरे चेहरे और आशंकाओं से भरे दिल अनिश्चितता और आशंका के बीच त्रिशंकु हैं।जब दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का कहर सामने दिख रहा है, हिमालय पहाड़ पर, विकास की नई परिभाषा गढ़ने की तत्काल जरूरत महसूस हो रही है। तब हम इन सभी खतरों को नजरंदाज कर हजारों लोगों को आमंत्रित कर रहे हैं।इस समय चमोली के गोचर से बदरीनाथ तक के 131 किलोमीटर लंबे मार्ग पर 20 स्थान ऐसे हैं, जहां लगातार भू स्खलन हो रहा है। मारवाड़ी क्षेत्र में सर्वाधिक मलवा गिर रहा है।चटवा पीपल से पंच पुलिया के बीच का हिस्सा, नंदप्रयाग का पर्थाडीप का हिस्सा, मैठाणा, कुहड़ से बाजपुर के बीच का हिस्सा, चमोली चाड़ा, बिरही चाड़ा, भनारपानी, हेलंग चाड़ा, रेलिंग से पैनी तक, विष्णुप्रयाग से टैया पुल के पास तक का हिस्सा, खचड़ानाला, लामबगड़ से जेपी पुल तक का हिस्सा, हनुमान चट्टी से रड़ांग बैंड के बीच वाले हिस्से में कभी भी पहाड़ गिर सकते हैं, यह बात प्रशासन ने स्वीकार की है।यमुनोत्री जाने वाला उत्तरकाशी के धरासू से जानकी चट्टी तक के 110 किलोमीटर सड़क को नाम भले ही हाई वे का दिया हो, लेकिन डीआईजी गढ़वाल खुद यमुनोत्री हाईवे की स्थिति को बेहद खराब बता चुके हैं।वे कह चुके हैं कि हाईवे पर कई स्थानों पर बोटल नेक है, चौड़ीकरण का कार्य भी चल रहा है, इससे यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है। जिला प्रशासन ने राना चट्टी व किसाला मोड़ पर हाईवे को संवेदनशील बताया है।इसके अलावा कुथ्नौर पूल, पालिगढ़, नागेला, फूलचट्टी जैसे सात स्थान भूस्खलन प्रभावित घोषित हैं। केदारनाथ धाम जाने वाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड का 75 किलोमीटर मार्ग लगातार धंस रहा है। प्रशासन उसमें मलवा भर रहा है, लेकिन थोड़ी बरसात होते ही मलवा भी बह जा रहा है और दरारें गहरी हो रही हैं।चिन्यालीसौड से गंगोत्री तक का 140 किलोमीटर लंबा रास्ते के 52 किलोमीटर को मालवा गिरने के लिए अति-संवेदनशील घोषित किया गया है। जान लें पहाड़ पर जहां-जहां सर्पीली सड़क पहुंच रही है, पर्यटक का बोझा बढ़ रहा है, पहाड़ों के दरकने-सरकने की घटनाएं बढ़ रही ।उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग और विश्व बैंक ने सन 2018 में एक अध्ययन करवाया था, जिसके अनुसार छोटे से उत्तराखंड में 6300 से अधिक स्थान भूस्खलन जोन के रूप में चिन्हित किए गए।रिपोर्ट कहती है कि राज्य में चल रही हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं पहाड़ों को काट कर या जंगल उजाड़ कर ही बन रही हैं और इसी से भूस्खलन जोन की संख्या में इजाफा हो रहा है। चार धाम यात्रा के लिए एक बड़ी चुनौती बेमौसम बर्फबारी होना भी है।मार्च महीने के आखिरी हफ्ते में जमकर बर्फबारी हो गई। पहले तो यहां बर्फ साफ कर दी गई थी, लेकिन लगातार हो रही बर्फबारी के कारण फिर से यहां बर्फ जमने लग गई है। लगातार हो रही बर्फबारी के कारण केदारनाथ धाम में द्वितीय चरण के पुनर्निर्माण कार्य भी शुरू नहीं हो पा रहे हैं।इस कार्य के लिए पहुंचे मजदूर लगातार मौसम खराब रहने के कारण नीचे भी लौट आए हैं। अब मौसम साफ होने पर मजदूर दोबारा केदारनाथ धाम जाएंगे।केदारनाथ मंदिर परिसर में चार से पांच फीट बर्फ जमी थी, जिसे मजदूरों ने साफ कर दिया था, लेकिन लगातार हो रही बर्फबारी के कारण मंदिर परिसर में फिर से बर्फ जमने लग गई है।हेलीपैड से केदारनाथ में लगातार बर्फ की सफाई जारी है। यहां मशीनों के जरिए भी बर्फ को साफ किया जा रहा है। हालांकि इसके बाद एककबार फिर केदारनाथ पैदल मार्ग ने फिर से बर्फ की चादर ओढ़ दी है। मौसम विभाग ने आरेंज अलर्ट जारी करते हुए चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों के 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में बर्फबारी की संभावना जताई है।यात्रा से ठीक पहले कोविड 19 महामारी के बढ़ते मामलों से सरकार चौकन्नी है। सरकार के लिए चुनौती वाली बात इसलिए भी है कि पिछले साल की तुलना में इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु चारधाम यात्रा पर आ रहे हैं। इसका तस्दीक चारधाम यात्रा के पोर्टल पर यात्रियों के पंजीकरण से हो रहा है।इस साल बड़ी संख्या में यात्री जुटेंगे, इसे देखते हुए हमारी सरकार ने पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। केंद्र सरकार ने भी हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। पर्यटन और तीर्थाटन कारोबार भी चले और यात्रियों व पर्यटकों की यात्रा भी सुगम और सुरक्षित हो, इसके लिए लगातार सुधारात्मक कदम उठाए जा रहे हैंस्वाभाविक तौर पर चारधाम यात्रा में यात्रियों की संख्या बढ़ेगी। लेकिन हमारी प्राथमिकता संख्या बढ़ाने पर नहीं बल्कि गुणवत्तापरक यात्रा पर होनी चाहिए। अभी भी चारधाम यात्रा के प्रबंधन के लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। सर्वे पाया कि लोग ट्रैफिक जाम, पार्किंग, कचरे की समस्या को लेकर चिंतित हैं।लेखक दून विश्वविद्यालय में  कार्यरत हैं।

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