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अपने गांव में उड़ता बचपन- विकास कुमार

अपने गांव में उड़ता बचपन– विकास कुमार

किसी देश में महामारी फैल जाए तो वैक्सीन बनाई जा सकती है, अगर आपके शरीर में एक घाव हो जाए तो उसे आप डॉक्टर से ठीक करा सकते हैं, लेकिन बचपन में अगर किसी को नशे का घुन घुस जाए या आदत बन जाए तो वह धीरे-धीरे पूरी जवानी को ही नष्ट कर देता है। और वह जवान व्यक्ति अपने पूरे परिवार को कष्ट में  छोड़ देता है। और उस परिवार के कारण पूरा गांव कष्ट में आ जाता है। फिर यह नशे की महामारी की तरह पूरे समाज को अपने चपेट में ले लेता है। नशे का अंजाम हमेशा इसी तरह से होता है पहले वह इंसान को कमजोर करता है फिर उसे मजबूर करता है और फिर उसे अपराध की ओर ले जाता है। नशा कोई भी हो वह धीरे-धीरे हर व्यक्ति को कमजोर, लाचार और बेबस बना देता है।

कोई यह बोलता है कि मैं गांव में तार और खजूर के पेड़ से निकलने वाला तारी पीता हूं और यह एक जूस के समान होता है। कोई यह बोलता है कि बिहार में तो शराब बंदी है लेकिन माल बाहर से आ जाएगा और घर तक पहुंचा दी जाएगी विदेशी माल का पैग लगाने में आनंद ही कुछ और आता है। कोई कहता है कि मेरे पास इतना पैसा तो नहीं है कि मैं विदेशी माल का आनंद लूं इसीलिए मैं सुल्फा, गांजा और भांग का ही आनंद ले सकता हूं। कुछ लोग यह बताते हैं कि भैया मैं तो इतना पैसा खर्च नहीं कर सकता तो मैं गुटका, पान जर्दा, या सिगरेट के कश लगा कर ही खुश रहता हूं। और कुछ नए लोग अब तो यह बताते हैं कि पाउडर सूघेंगा अगर इसे एक बार सूघं लिया तो किसी और चीज को सूघंने की जरूरत नहीं होगी और जीवन हमेशा आनंदमई होगा और यह आनंद तुम्हें परमानंद की तरफ ले जाएगा। मगर यह दूसरे राज्य से आता है इसीलिए पैसा तो लगेगा।

अब इन सब का अगर किसी को खर्च उठाना है तो भैया मेहनत तो करना पड़ेगा क्योंकि नशे की लत है और खर्च भी है, आनंद भी लेना है और आनंद के लिए कुछ करना भी पड़ेगा। बिना मेहनत के मजा तो ना कभी था और ना कभी होगा, मजा मस्ती का आनंद लेना है तो फिर कुछ करना भी पड़ेगा। लेकिन गांव में ऐसा कुछ है नहीं जहां कि 8 घंटे ड्यूटी किया जाए और फिर वापस घर आकर कुछ अपने अंदाज में आनंद लिया जाए। फिर तो कुछ बच्चों ने रास्ता निकाला और इधर उधर घूमते फिरते शराब को इस घर से उस घर तक पहुंचाते हैं और पैसे भी कमाते हैं। बचपन तो उड़ ही रहा है शराब भी चल रहा है, ड्रग्स भी चल रहा है और वह पाउडर रूपी चूर्ण बचपन को चकनाचूर कर रहा है। ना पढ़ाई बची कोरोना काल में ना लिखाई और घर में तो कोई ऐसा है ही नहीं जो उनको रास्ता दिखयें कि वे किस रास्ते पर चल रहे है और इसका अंजाम क्या होगा।

गांव के खेतों में शराब छुपाई जाती हैं। घने अंधेरे पेड़ो के गाछी में बोतले और पाउच छुपाई जाती है। सुनने में आया है कि पेड़ों के तने के ऊपर ड्रग्स या यूं कहें कि सफेद चूर्ण जो बचपन को चकनाचूर करता है वह छुपा कर रखा जाता है। छोटे बच्चे अपने क्लाइंट के हिसाब से डिलीवरी करते रहते हैं। अब यह  एक धंधे के रूप में विकसित हो रहा है या यूं कहें कि अब आत्मनिर्भर बचपन होता जा रहा हैं जिसका भविष्य बहुत ही तंग और अंधेरी गलियों की ओर जा रहा है। जो कि भविष्य को किसी अंधकारमय चैराहे पर ला खड़ा करेगा और वह बचपन के साथ-साथ जवानी और बुढ़ापा को भी नष्ट कर देगा।

यह बचपन उन तमाम जवाबदेही, जिम्मेदारी और उम्मीदों को भी खत्म करता सा दिखाई दे रहा है। छोटे-छोटे बच्चे शराब की होम डिलीवरी ड्रग्स की होम डिलीवरी एवं खुद के इस्तेमाल करने के वजह से अब सब कुछ नष्ट होता दिखाई दे रहा है। अब ना वह बचपन में खेलने की कोई वजह रह गई है और नाही पड़ोसियों के घर जाना और आना। अगर अब कोई पड़ोसी के यहां जाता भी है तो वह अब एक डिलीवरी बॉय के रूप में जाता है। गिल्ली डंडा और खिलौने की जगह पर शराब की बोतल और पाउच, ड्रग्स की छोटी-छोटी पुरिया एवं पैसों से भरी मूठियां नजर आती है।

यह सब देखते हुए हम जिस विकसित भविष्य की कल्पना कर रहे है वह  घोड़ अंधेरों में डूबा हुआ एक लाचार बेबस और अपराध में लिप्त युवा नजर आ रहा है। अब यह आम बात हो गई है कि, बड़ी महंगी-महंगी दो पहिया वाहन के साथ 12 से 16 वर्ष के बच्चे आपको दिख जाएंगे। समझ पाना बड़ा ही मुश्किल लगता है की इनके घर वालों ने इन्हें इतनी महंगी महंगी बाइक खरीद कर दी है या यह आत्मनिर्भर कि वह निशानी है जो इस छोटे बच्चे ने खुद ही नशे के सौदा करके बना है।

मेरा तो बस एक ही गुजारिश है कि जितने भी बच्चे के माता-पिता एवं अन्य गार्जियन हैं वे सभी अपने अपने बच्चों को समझाएं भुजाएं और इस तरह की हरकतों को करने से दूरी बनाए रखने में उनकी मदद करें। यह सवाल बहुत जरूरी है कि अगर आपका छोटा बच्चा  1000, 2000 या 10000 कमा आता है तो आप उससे यह सवाल जरूर करें कि ’भाई तूने ऐसा क्या किया कि इतना सारा पैसा तुम एक दिन में कमा कर ला रहे हो’ इन सभी बच्चों को किसी ना किसी माला में पिरोने  की जरूरत है ताकि इन तमाम बच्चों के भविष्य को बचाया जाए और उन्हें सही रास्ते पर लाकर शिक्षा और स्वरोजगार या रोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।

यह हम सभी की जिम्मेदारी बनती हैं कि अगर किसी के घर के आस-पास इस तरह के व्यवसाय या धंधे में लिप्त छोटे बच्चे दिखाई देते हैं तो उन्हें समझा-बुझाकर अपने माता-पिता के पास भेज दें।  मैं उन तमाम लोगों से आग्रह करता हूं कि जो छोटे-छोटे बच्चों से अपने नशे का सौदा करवाते हैं या उनसे किसी भी तरह का नशे का सामान खरीदते हैं तो कृपया यह सब छोटे बच्चों से ना करवाएं। आज यह बच्चे छोटे जरूर है पर यही हमारी बिहार के भविष्य हैं और फिर आगे चलकर देश के भविष्य होंगे। अगर यही पे हम उन्हें बर्बाद होता छोड़ देंगे तो हमारा भविष्य भि बर्बाद हो जाएगा क्योंकि अगर कोई बच्चा अपराधी बनता है तो इसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ता है। इन सब चीजों को नजरअंदाज करना बहुत ही बेमानी कहलाएगा किसी के घर को या परिवार को र्बबादी से बचाना है तो सभी को किसी न किसी रूप में सामने आना ही होगा।

गांव के आसपास के क्षेत्रों में पूजा करने के स्थानों पर जैसे कि जोगी बाबा का आस्थान, मलंग बाबा का स्थान या भूईया बाबा के स्थान, खेत खलीहान सभी जगह पर रात के अंधेरों में कुछ बच्चे दिखाई देते हैं और कई बार ड्रग्स ले रहे होते हैं शराब पी रहे होते है या फिर अपना हिसाब किताब करते रहते है। इन सभी लोगों को यह समझना बहुत जरूरी है कि आप अपने इस मौज मस्ती को अपने दुखों का कारण बनाने जा रहे हैं। आज जिन चीजों को करने में जितना आनंद आ रहा है कल को यह उतना ही ज्यादा कष्ट देगा। आप कष्ट में रहेंगे आपका परिवार कष्ट में रहेगा, आपका परिवार जब कष्ट में रहेगा तो पूरा समाज कष्ट में रहेगा।

लेखक – विकास कुमार, एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में जनसंचार के क्षेत्र में पिछले दस वर्षो से काम कर रहे हैं और पब्लिक रिलेशन कांउसिल आॅफ इण्डिया ’पीआरसीआई’ देहरादून चैप्टर के सचिव है।

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