गुणा नन्द जखमोला की रिपोर्ट
आओ स्कूल चले हम, जान हथेली पर लेकर
ये जो फोटो का दृश्य दिखाई दे रहा है वह देहरादून से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित सौंग नदी के ऊपर स्थित ट्रॉली का मंजर है, जिस ट्रॉली पर टिहरी के रगड़ गाँव के राजकीय इंटर कॉलेज के अध्यापक देवानंद देवली जी सवार हैं।
यह राजकीय इंटर कॉलेज मालदेवता देहरादून के निकट है। आपको बता दें कि देवली गुरुजी, शौकिया तौर पर ट्रॉली में नहीं बैठे हैं, बल्कि मजबूरी में बैठे हैं। दरअसल, इस ट्राली से चिसोल्डी गांव के छात्र वर्षभर इसी तरह सवार होकर ट्रॉली से खींचकर सौंग नदी पार करते हैं। आश्चर्य तब होता है, जब यह दृश्य उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में स्थित जगह का है, जहाँ से पूरे राज्य में विकास की नदियां बहती हैं। विडम्बना यह है कि विकास की नदियों का स्रोत देहरादून इस गाँव तक पिछले 20 वर्षों में सड़क तक नहीं ले जा सका। यदि अनुमान के तौर पर पिछले 20 वर्षों में सरकारें हर साल एक किलोमीटर सड़क भी बनाती तो भी आज तक इस स्कूल तक सड़क पहुँच जाती।
ट्राली को खींचकर गांव के बच्चे रोज जान हथेली पर रखकर नदी के आर-पार करते हैं। बच्चों के नदी में गिरने का खतरा लगातार बना रहता है। बरसात के मौसम में सौंग नदी उफान पर आ जाती है तो बच्चों की जान का खतरा और भी बढ़ जाता है। स्कूल में लगभग 268 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन आज तक स्कूल तक न तो सड़क पहुँची और न ही पुल बना। और खास बात यह भी है कि सड़क न बनें इसलिए सरकार ने इस स्कूल को दुर्गम घोषित कर दिया। इस स्कूल में देहरादून और टिहरी जिले के चार ब्लॉकों के 268 छात्र पढ़ते हैं व अन्य छात्रों को भी नदी के साथ बनी पगडंडी पर रोजाना तीन-चार किलोमीटर चलकर स्कूल पहुंचना पड़ता है। यहां कई बार हादसे हो चुके हैं, लेकिन जब मजबूरी ही नीयति बन जाएं और सरकारें गूंगी-बहरी हों तो शिकवा किससे करें?