ना सिंचाई की जरूरत, ना चाहिए खाद, 400 ग्राम बीज में 9 क्विंटल अनाज
आयुर्वेद में चना ही नहीं, कई ऐसी चीजें हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद मानी गई हैं. रागी यानी मडुआ उनमें से एक है. कैल्शियम, विटामिन्स, फाइबर, कार्बोहाइड्रेड जैसे तमाम जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर रागी को बाजरा, फिंगर या नचनी के नाम से भी जाना जाता है.
आयुर्वेद में चना ही नहीं, कई ऐसी चीजें हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद मानी गई हैं. रागी यानी मडुआ उनमें से एक है. कैल्शियम, विटामिन्स, फाइबर, कार्बोहाइड्रेड जैसे तमाम जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर रागी को बाजरा, फिंगर या नचनी के नाम से भी जाना जाता है.
इस फसल को उपाजने के लिए न ही सिंचाई की जरूरत होती है और ना ही उर्वरक खाद की आवश्यकता होती है. बड़े ही कम दिनों में यह खेती होती है. रागी एक ऐसा छोटा अनाज है जो स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक सिद्ध होता है.
मृदा विज्ञान व कृषि रसायन के विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि यह छोटा अनाज रागी शरीर के लिए बड़ा ही फायदेमंद है. यह बड़े फाइव स्टार होटल में रागी की खीर के नाम से बड़ा चर्चित है. इसकी खेती करना बड़ा ही आसान है. यह रागी की फसल किसानों के लिए बड़ा ही लाभकारी सिद्ध होगी. इस फसल में कोई खर्चा नहीं केवल जुताई, बुवाई और कटाई करना है.
जहां एक तरफ पूरा देश श्री अन्न को लेकर उत्सव मना रहा है वही बलिया जिले में मृदा विज्ञान व कृषि रसायन विभाग की टीम ने ऐसा शोध किया है की किसानों में नई उम्मीद की किरण जग गई है. छोटा अनाज रागी जो शरीर के स्वास्थ्य में अहम भूमिका अदा करता है और इसकी खेती करना भी बड़ा आसान है. जो जमीन किसी काम की नहीं उस पर भी उग सकता है.
रागी की खेती करना बड़ा आसान है. 400 ग्राम बीज एक बीघा खेती के लिए पर्याप्त है. 400 ग्राम बीज से लगभग 8 से 10 कुंतल रागी उत्पन्न किया जा सकता है. इसका बीज हल्का भूरे रंग का होता है. यह बड़े-बड़े होटलों में रागी के खीर के नाम से बड़ा चर्चित है. इसके अनेकों औषधीय गुण भी हैं. गेहूं और चावल के प्रति यह स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होता है. इसकी खेती में कोई लागत नहीं है कोई रोग ब्याधि ही नहीं है ना किसी प्रकार के कोई खाद्य उर्वरक की जरूरत है.