हिंदुओं की चार पीठों में एक प्रमुख पीठ ज्योतिषपीठ व चार प्रमुख धामों में प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ के निकट होने से इस नगर के महत्व को अखिल भारतीय कलेवर दिया। सिखों के पवित्र धाम हेमकुंड इसके निकट है और उसी के निकट प्रसिद्ध फूलों की घाटी ने इस नगर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन क्षेत्र के तौर पर स्थापित किया। औली, गोरसों, नन्दा देवी क्वारीपास व बहुत से अन्य बेहतरीन ट्रैक रूट हिमालयी बुग्याल व पर्वतारोहण, स्की, जैसे साहसिक अवसरों की उपलब्धता ने जोशीमठ को पर्यटन तीर्थाटन के अनुपम केंद्र के बतौर पहचान दी स्थापित किया है । इस नगर का ऐतिहासिक महत्व है। कत्यूरी राजवंश की राजधानी होने से इसका उत्तराखण्ड के इतिहास में खास महत्व है। शंकराचार्य के यहां आने, ज्ञान पाने और प्रथम मठ स्थापना के बाद इस नगर का धार्मिक सांस्कृतिक महत्व पिछले 13 सौ सालों में लगातार बढ़ा ही है। पिछले 30 चालीस सालों में इस नगर का पर्यटन महत्व भारत की सबसे लंबे रोपवे बनने और औली के स्कीइंग केंद्र बनने से बढ़ता गया है। पिछले एक दशक में इसके महत्व बढ़ने से इस नगर की आबादी में भी बहुत वृद्धि हुई है। लेकिन, कुछ समय से यह क्षेत्र भूस्खलन की चपेट में आ गया है। भू गर्भ शास्त्रियों के अनुसार यह मोरेन पर बसा है। उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से गठित 1976 की मिश्रा कमेटी ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट देते हुए इस नगर को बचाए रखने के लिए यहां भारी निर्माण पर रोक लगाने की सिफारिश की थी। उस पर अमल न होने से आज क्षेत्र की भार ग्रहण क्षमता से बहुत अधिक आबादी और निर्माण का यहां संकेन्द्रण हुआ है । उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम की यात्रा का मुख्य पड़ाव जोशीमठ धंसने की कगार पर है. दरक रहा जोशीमठ,धंस रहे घर, खतरे में ऐतिहासिक शहर का अस्तित्व उत्तराखंड का खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर जोशीमठ खतरे की जद में है. पहाड़ी पर बसा जोशीमठ शहर धीरे धीरे करके नीचे जमीन में धंसता जा रहा है. यहां बने ज्यादातर मकानों में दरारें पड़ने लगी हैं. कई घरों के आंगन जमीन के अंदर धंसने शुरू हो गए हैं. शहर की सड़कें जगह जगह पर धंस गई हैं. लोग टूटे मकानों में जान खतरे में डालकर रहने को मजबूर हैं.जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर हुए विभिन्न वैज्ञानिक भूगर्भीय अध्ययनों और उनकी रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए तत्काल ट्रीटमेंट कार्य शुरू किया जाए, नगर के ट्रीटमेंट से पूर्व सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगाई जाए। मांग की गई कि एनटीपीसी के तपोवन जल विद्युत परियोजना की सुरंग को भू-धंसाव का कारण मानते हुए प्रभावित परिवारों को नुकसान की भरपाई के लिए निर्देशित किया जाए और उनके पुनर्वास के लिए उच्च स्तरीय कमेटी गठित की जाए। भू धंसाव से जोशीमठ नगर में 500 परिवार खतरे की जद में आ गए हैं। नगर पालिका जोशीमठ की ओर से किए गए ताजा सर्वेक्षण में पता चला है कि नगर के सभी वार्डों में मकानों पर दरारें लगातार बढ़ रही हैं। अधिक खतरे की जद में आए पांच परिवार मकानों को छोड़कर रिश्तेदारों के घरों में रह रहे हैं। जोशीमठ नगर में पिछले साल सितंबर-अक्तूबर में अचानक गांधीनगर, सुनील और रविग्राम वार्ड के कुछ घरों में दरारें आनी शुरू हुई। शुरुआत में 30-40 मकानों में दरारें आई। उस वक्त बारिश आने पर प्रशासन ने कुछ दिनों के लिए इन परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था।स्थानीय लोगों ने तभी से प्रशासन के सुरक्षात्मक उपाय करने की मांग शुरू कर दी थी। लेकिन इसको लेकर शासन-प्रशासन से कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में अधिकांश नगरों गांवों के हालात इस समय इसी तरह के हैं, मौसम के बदलाव ने भूस्खलन भूधंसाव की घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही की है जिससे पहले ही पलायन से खाली हुए नगर गांव आपदा की मार से और वीरान हो रहे हैं। इनके बचाने के लिए बहुत व्यापक तौर पर एकीकृत वैज्ञानिक अध्ययनों की व चिंतन की जरूरत है। इसके अभाव में हम हिमालय की आबादी के साथ ही हिमालय को भी खो देंगे। भूविज्ञानी वैज्ञानिक का कहना है कि जोशीमठ ग्लेशियर के मोरेन (पहाड़) पर बसा है। अंधाधुंध निर्माण कार्य के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पहाड़ों के धंसने की प्रक्रिया में तेजी आ रही है। खतरा बढ़ रहा है। जोशीमठ से 8 किमी ऊपर पहाड़ी पर औली बुग्याल है। भूगर्भीय वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि जल्द कदम नहीं उठाए गए तो जोशीमठ के साथ ही औली में बड़ी आपदा आ सकती है। लगभग साढ़े 9 हजार फीट पर स्थित औली का वजूद ही मिट सकता है। फरवरी, 2023 में औली में दक्षिण एिशयाई विंटर गेम्स भी प्रस्तावित हैं। खतरे की जद में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी रोपवे, मंडरा रहा लैंडस्लाइड का खतरा जोशीमठ में एशिया का दूसरा सबसे लंबा रोपवे है. अब भूस्खलन के कारण इस रोपवे पर खतरा मंडराने लगा है. रोपवे के टावरों के पास भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं. जिसके कारण भविष्य में इस रोपवे के खतरे की जद में आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।