यमकेश्वर

115 साल पुरानी रामलीला के लिए आवई माला गॉव क्षेत्र में प्रसिद्ध।

लेखक : हरीश कंडवाल मनखी  जी के सौजन्य से।
आवई माला का परिचयः पहाड़ी क्षेत्रों में दशहरा और दीपावली के समय होने वाली रामलीला का अपना ही महत्व है। गढवाल की रामलीला की बात की जाय तो हर क्षेत्र में किसी ना किसी गॉव की रामलीला अवश्य प्रसिद्ध होती है। इसी तरह यमकेश्वर क्षेत्र में यदि रामलीला आयोजन और उसमें अदा करने वाले किरदारों की बात की जाय तो हर गॉव का अपना अलग अलग महत्व है। लेकिन यदि यमकेश्वर में होने वाली महत्वपूर्ण और जाने मानी रामलीला का उल्लेख किया जाता है तो वह है आवई माला की प्रसिद्ध रामलीला जो 1905 से लेकर हर दूसरे साल में आयोजित होती आ रही है। रामलीला के लिए प्रसिद्ध इस गॉव के भौगोलिक, इतिहास, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थिति पर विस्तृत चर्चा किया जाना समीचीन होगा।

आवई माला ग्राम सभा की भौगौलिक स्थितिः आवई-माला- पढियार- चोपड़ा- जैरसरी-जैरकाटल आदि राजस्व व तोक ग्राम से मिलकर बनी यह ग्राम सभा ब्लॉक मुख्यालय यमकेश्वर से लगभग 8 किलोमीटर दूर एवं ऋषिकेश से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। यहॉ पहुॅचने के लिए सड़क मार्ग गंगाभोगपुर- किमसार-देवराना- चमकोट-माला और ब्लॉक मुख्यालय जाने के लिए गुंडी ठुण्डा मार्ग और आगे पैदल रास्ता है। समुद्र तल से लगभग 2000 फीट की ऊॅचाई पर बसा यह गॉव पहाड़ी तलहटी पर बसा हैं। इसके पूर्व दिशा में सामने सतेड़ी नदी पार ढुंगा-काण्डी वही पश्चिम में गुंडी गॉव एवं उत्तर में बडोली यमकेश्वर एवं दक्षिण में तिमल्याणी गॉव अवस्थित है। इस गॉव में अलग अलग राजस्व क्षेत्र हैं, जहॉ अलग अलग बसागत है।

आवई माला का इतिहासः आवई माला के इतिहास की बात की जाय तो यह गॉव भी लगभग 250 से 300 साल पूर्व का बसा हुआ गॉव है। माला गॉव रणचूला थोकदारी के अधीन रहा है जहॉ कि क्वीराला रावत जाति के लोग खैकर व्यवस्था के तहत बसाये गये हैं, वहीं आवई मेंं पदमचारी व्यवस्था रही है। आवई का पूर्व नाम आविर्दी बताया जाता है। इस गॉव के संबंध में कहा जाता है कि यहॉ सबसे पहले राधा पट्टी टिहरी के नौटियाल जाति के लोग निवास करते थे, उसके बाद वह पुनः अपने मूल गॉव चले गये। वर्तमान में आवई माला गॉव में कोई भी नौटियाल जाति के लोग निवास नहीं करते हैं। आवई माला में 1904-05 में रामलीला की शुरूवात की गयी, यहॉ की रामलीला सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र होती थी। किवदंती है कि यहॉ की रामलीला को देखने के लिए नीलकंठ के पास आमड़ी से लेकर, पौखाल के रामणी फलेंडा गॉव के लोग आते थे। रामलीला की शुरूवात करने वाले सदस्यों मेंं स्व0 परमानंद उनियाल के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी सम्मोहन विद्या से हनुमान को हवा में उड़ा देते थे, और नारद को लुप्त कर देते थे। आवई गॉव की पदमचारी व्यवस्था के अन्तर्गत उनियाल परिवार के पास पदमचारी थी जिसके पधान स्0 लोकमणी उनियाल और उनके पूर्वज रहे हैं।

आवई के राजस्व ग्राम पडियार के स्व0 जमन सिंह बिष्ट के सबसे छोटे पुत्र स्व0 श्री बनवारी सिंह बिष्ट स्वतत्रता सग्रांम सेनानी थे। जयहरीखाल मेंं आजादी से पूर्व तिरंगा झण्डा फहराने के जुल्म में अग्रेंजो द्वारा एक माह का कठोर कारागार की सजा दी गयी थी। ये डांडामंडल के स्व0 श्री नारायण दत्त शास्त्री, श्री छवाण सिंह श्री माधो सिंह आदि के साथ मिलकर रणनीति बनाते थे। लेकिन आज तक प्रशासन की तरफ से इनको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र इनके परिवारों वालों का प्राप्त नहीं हो पाया है।

वहीं आवई ग्राम सभा के श्री गौरीदत्त थपलियाल को गढवाल के राजा से ज्योतिष न्यायधीश का दर्जा प्राप्त था, ये गढवाल क्षेत्र के जाने माने ज्योतिषकारों में माने जाते थे, इनके सुपुत्र श्री महेशानंद थपलियाल ने 1919 में लाहौर के डीएवी कॉलेज से वैद्य एवं ज्योतिष में डिग्री प्राप्त की थी। आप भी क्षेत्र के ख्याति प्राप्त ज्योतिषों में जाने जाते थे। वहीं उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद इण्टर कॉलेज किमसार के पूर्व प्रधानाचार्य श्री हरि सिंह चौधरी जी सदस्य जिला पंचायत उमरोली रहे हैं।

वहीं चमकोट मे जूनियर स्कूल जो लगभग 1923-24 का है, यह तब पूरे डांडामंडल क्षेत्र से लेकर तालघाटी की मात्र स्कूल था। यहॉ पूर्व में गुरूकुल पद्धति के तहत शिक्षा प्रदान की जाति थी, यहॉ छात्रावास में रहकर बच्चे रात्रि पाठशाला में भी अध्ययन करते थे। 1975-76 के करीब यहॉ इण्टरमीडिएट की मान्यता प्राप्त हुई चमकोट के बारे मेंं किवंदती है कि इस क्षेत्र में चव्वन ऋषि ने कुछ वर्षो तक तपस्या करने के कारण चवकोट से बाद में इसका नाम चमकोट पड़ गया।

आवई माला का सामाजिक व सांस्कृतिक स्थितिः आवई माला बहुल जाति और बहुल अनाज के लिए प्रसिद्ध है। आवई माला में उनियाल जाति के लोग मूलतः ऊनी गॉव के हैं, जो अमाल्डू के बाद यहॉ आकर बस गये। वहीं थपलियाल जाति के लोग नैथाणा मूल के हैं जो थापली गॉव में कुछ समय रहने के बाद आवई आकर बस गये। वहीं डबराल जाति के लोग डाबर के मूल निवासी हैं, जबकि कुकरेती जाति का मूल गॉव ग्वील, द्वारीखाल बताया जाता है। जबकि ढुंगा गॉव से आये बडोला जाति के लोग यहॉ से पलायन कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त यहॉ पैडलस्यूं पट्टी से आये मलासी जाति के लोग भी यहॉ निवास करते हैं।

वहीं राजपूतों में चौधरी जाति के लोग आगरा से आये हुए बताये जाते हैं, जबकि पडयार गॉव में पडियार बिष्ट ढांगू पट्टी के कौंधरा गढ अमोला के मूल निवासी हैं। जबकि चोपड़ा में पयाल जाति के लोग फल्दाकोट के मूल निवासी हैं। इसी तरह रावत जाति के लोग पाठ से आये हैं। इसके अतिरिक्त यहॉ दो चार परिवार नेगी जाति के भी निवास करते हैं।

गॉव में इसके अतिरिक्त कोली जाति एवं अनुसूचित जाति के अन्तर्गत लोहार जाति के लोग यहॉ निवास करते हैं।

वहीं माला राजस्व ग्राम में क्वीराला रावत जाति के लोग निवास करते हैं, जो खैकर व्यवस्था के तहत यहॉ निवास करने लगे। इनका मूल निवास कण्डरह और रामजीवाला बताया जाता है। वहीं जयरसरी में बडोला जाति के लोग ढुंगा के मूल निवासी हैं, वहीं एक परिवार द्विवेदी जो खुबरा गॉव से आकर यहॉ बसे हैं। पटोला गॉव से आये बमराड़ा जाति के लोग भी यहॉ बसागत करते हैं। वहीं रणाकोटी जाति के लोग तालघाटी के पूर्व गॉव बड़काटल हाथथाम के मूल निवासी हैं, जो अब गंगा भोगपुर में जाकर बस गये हैं। वहीं जयकाटल में बडोला जाति के लगभग 4-5 परिवार निवास करते हैं, जो ढुंगा गॉव के निवासी है। वहीं चमकोट में एक परिवार कांडा गॉव से आये नेगी जाति के लोग भी निवास करते हैं।

आवई माला गॉव बहुल जाति होने के बाद भी यहॉ सामाजिक और सांस्कृतिक एकता देखने को मिलली है। गॉव मे गगनेश्वर महादेव का मंदिर और उनियाल जाति की कुल देवी राजराजेश्वरी का भव्य मंदिर बना हुआ है, जिसकी देख-रेख अब आवई माला की मंदिर समिति द्वारा किया जाता है। क्षेत्रपाल देवता भूम्या देवता है। आज भी गॉव में हर दो साल मे रामलीला समिति के द्वारा रामलीला का आयोजन किया जाता है। वहीं जैरसरी में बडोंला परिवार की निमदारी/तिवारी आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यह तिवारी तिमंजीला है और इसमें अलग किस्म की नक्काशी की गयी है, इसमें लगभग 40 कमरों का यह भवन आज भी क्षेत्रीय लोगों के लिए दर्शनीय तिवारी या निमदारी के नाम से विख्यात है।

आवई माला की आर्थिकी के स्त्रोंतः जिस तरह आवई माला मे बहुल जाति के लोग निवास करते हैं, वहीं यहॉ बहुल प्रकार की खेती भी होती थी। सतेड़ी नदी के किनारे धान की रोपाई वृहद मात्रा में होती थी। फसलों में प्रमुख सभी फसले जिनमें धान-मक्का-कौणी, झंगोरा, मंडुवा, जौ, तोर, आलू प्याज, दलहनी, तिलहनी सभी प्रकार की फसलों का उत्पादन होता था। लेकिन वर्तमान में जंगली जानवरों के बढते आंतक के कारण काश्तकारों ने खेती और पशुपालन का कार्य करना कम कर दिया गया। गॉव में आधे से ज्यादा परिवार पलायन कर चुके हैं। सभी लोग बाहर रहकर कुछ सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं, कुछ निजी क्षेत्रों में कार्य कर अपना रोजगार कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं। गॉव में पशुपालन के अन्तर्गत गाय, भैंस, बकरी, बैल, भेड़ आदि पशुंओं को पाला जाता है। वहीं गॉव में दो चार परचून की दुकानें हैं।

आवई माला के प्रमुख राजस्व क्षेत्रः- आवई माला के राजस्व क्षेत्र में बसागत के अन्तर्गत आवई, माला, पडियार, चुपड़ा, जैरसरी, जैरीकाटल आदि आते हैं जबकि पुनड़ी गैर बसागत राजस्व क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त यहॉ के प्रमुख तोको में चुपड़ी, चौड़यूं चमकोट,रगड़ तोक, ग्वाड़ा गदन, मलगड़ी गदन, रागंरगढ, सौड़ की सार, डंगरी, आदि प्रमुख तोक है।

आवई माला की वर्तमान स्थितिः आवई माला की वर्तमान स्थिति की बात की जाय तो ग्राम सभा की दृष्टि से यह गॉव विस्तृत क्षेत्रफल मेंं बसा हुआ हैं। यहॉ वर्तमान में पूरी ग्राम सभा में लगभग 80 परिवार निवास कर रहे हैं, जबकि लगभग इतने ही परिवार पलायन कर चुके हैं। शिक्षा की बात की जाय तो इण्टर कॉलेज चमकोट खाल गॉव में ही है। जबकि डाकघर भी चमकोट में है। नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र और बैंक यमकेश्वर में एवं किमसार में है। बड़ा अस्पताल एम्स ऋषिकेश है। माला तक सड़क बनी है, जबकि अभी आवई तक सड़क नहीं गयी हुई है। माला तक जाने वाली सड़क को ब्लॉक मुख्यालय तक जोड़ने का प्रस्ताव क्षेत्रवासियों और ग्राम स्तरीय जनप्रतिनिधियों द्वारा उच्च प्रतिनिधियों के माध्यम से कई बार भेजा जा चुका है। गॉव में पंचायत घर और अन्य सुविधायें उपलब्ध हो गयी है। मुख्य समस्या आवई की सड़क की समस्या है। क्षेत्रीय स्तर पर युवाओं द्वारा रोजगार की तलाश की जा रही है, लेकिन भौगोलिक परिस्थिति एंव अन्य संसाधनों के अभाव में युवा जोखिम लेने मेंं सक्षम नहीं है। उपरोक्त सभी जानकारी क्षेत्र के वरिष्ठ जनों से ली गयी हैं।

©®@ हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से। 23/08/2020

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