(अरुण मोहन पांडेय)
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. वो इसलिए, क्योंकि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट पर काम करना शुरू कर दिया है. आयोग का कहना है कि इस बार वोटर लिस्ट में 20 से 25 लाख नए वोटर शामिल हो सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अब जम्मू-कश्मीर में रह रहे बाहरी लोगों को भी वोटिंग का अधिकार मिल गया है.
जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हिरदेश कुमार ने बताया कि दूसरे राज्य के जो लोग यहां रह रहे हैं, वो अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल करवाकर वोट डाल सकते हैं. इसके लिए उन्हें मूल निवासी प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षाबलों के जवान भी वोटर लिस्ट में अपना नाम शामिल करा सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर को लेकर अब एक और नया विवाद छिड़ गया है। चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि जम्मू-कश्मीर में रहनेवाले अन्य प्रांतों के नागरिकों को अब वोट डालने का अधिकार मिलनेवाला है। जम्मू-कश्मीर को लगभग सभी पार्टियां इस नई पहल पर परेशान दिखाई पड़ रही हैं। पहले तो वे धारा 370 और 35 ए को हो हटाने का विरोध कर रही थीं। अब उन्हें लग रहा है कि उनके सिर पर एक नया पहाड़ टूट पड़ा है। उनका मानना है कि केंद्र सरकार के इशारे पर किया जा रहा यह कार्य अगला चुनाव जीतने का भाजपाई पैतरा भर है लेकिन इससे जम्मू-कश्मीर का असली चरित्र नष्ट हो जाएगा। सारे भारत की जनता कश्मीर पर टूट पड़ेगी और कश्मीरी मुसलमान अपने ही प्रांत में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। इस वक्त वहां की स्थानीय मतदाताओं की संख्या लगभग 76 लाख है। यदि उसमें 25 लाख नए मतदाता जुड़ गए तो उन बाहरी लोगों का थोक वोट भाजपा को मिलेगा।
जम्मू के भी ज्यादातर वोटर भाजपा का ही साथ देंगे। ऐसे में कश्मीर की परंपरागत प्रभावशाली पार्टियां हमेशा के लिए हाशिए में चली जाएंगी। पहले ही निर्वाचन क्षेत्रों के फेर-बदल के कारण पाटी की सीटें कम हो गई हैं। इसी का विरोध करने के लिए नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारुक अब्दुल ने भाजपा को छोड़कर सभी दलों की एक बैठक भी बुलाई है। पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती भी काफी गुस्से में नजर आ रही हैं। इन कश्मीरी नेताओं का गुस्सा बिल्कुल स्वाभाविक है, क्योंकि नेता लोग राजनीति में आते ही इसीलिए हैं कि उन्हें येन-केन-प्रकरण सत्ता सुख भोगना होता है। केंद्र सरकार इधर जो भी सुधार वहाँ कर रही है, वह उन नेताओं को बिगाड़ के अलावा कुछ नहीं लगता ऐसे में इन कश्मीरी नेताओं से मेरा निवेदन है कि वे अपनी दृष्टि जरा व्यापक क्यों नहीं करते हैं? यदि कश्मीरी नेता देश के गृहमंत्री, राज्यपाल, सांसद राजदूत और केंद्र सरकार के पूर्ण सचिव बन सकते हैं तथा कश्मीरी नागरिक देश में कहीं भी चुनाव लड़ सकते हैं और वोट कर सकते हैं तो यही अधिकार गैर- कश्मीरी नागरिकों को कश्मीर में वोट दिए जाने का विरोध क्यों होना चाहिए? देश के जैसे अन्य प्रांत, वैसा ही कश्मीर भी वह कुछ कम और कुछ ज्यादा क्यों रहे? यदि कश्मीरी लोग देश के किसी भी हिस्से में जमीन खरीद सकते हैं तो देश के कोई भी नागरिक कश्मीर में जमीन क्यों नहीं खरीद सकते? हमारे कश्मीरी नेता कश्मीर जैसे सुंदर और शानदार प्रांत को अन्य भारतीयों के लिए अछूत बनाकर क्यों रखना चाहते है?
सियासत शुरू…
गैर-नागरिकों को वोटिंग का अधिकार देने पर सियासत भी शूरू हो गई है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा कि क्या बीजेपी जम्मू-कश्मीर के असली वोटर्स को लेकर इनसिक्योर है, तभी उसे जीतने के लिए अस्थायी वोटर्स की जरूरत पड़ रही है? जब जम्मू-कश्मीर के लोगों को वोट देने का मौका मिलेगा, तो बीजेपी की कोई मदद नहीं करेगा.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि गैर-नागरिकों को वोटिंग का अधिकार देकर यहां की स्थानीय आबादी को कमजोर किया जा रहा है.
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सजाद गनी लोन ने इसे ‘खतरनाक’ और ‘विनाशकारी’ कदम बताया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि नहीं पता कि वो क्या हासिल करना चाहते हैं. लेकिन ये खतरनाक है. 1987 को याद रखें. हम उससे अभी तक बाहर नहीं निकले हैं. 1987 को न दोहराएं. ये खतरनाक होगा.