अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर उत्तराखंड की भाषाओं के पक्ष में धाद के मांग पत्र का हिस्सा बने।
यूनेस्को द्वारा 17 नवम्बर, 1999 को दुनिया की उन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया, जो कहीं न कहीं संकट में हैं। इसमें विश्व की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के संरक्षण और संवर्धन हेतु विश्व स्तर पर प्रयास किये जाने का प्रस्ताव रखा गया। इसके तहत हर वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया गया। यह दिवस दुनिया में भाषा के पहले आंदोलन जो कि बांग्ला भाषा के पक्ष में ढाका में 21 फरवरी को हुआ था और जिसमें अनेक युवा शहीद हुए थे उनकी स्मृति में यह दिवस मनाया जाता है। पहला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस वर्ष 2008 में मनाया गया। धाद ने वर्ष 2010 से उत्तराखंड की भाषाओँ के पक्ष में इसके आयोजन प्रारम्भ किये।
वर्ष 2009 में यूनेस्को द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की कई भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है। इन भाषाओं उनमें उत्तराखण्ड की सभी लोकभाषाएं शामिल हैं। समाज और सरकारी स्तर पर अपनी मातृभाषाओं का महत्व न होने से उत्तराखण्ड की नई पीढ़ी में भी अपनी मातृभाषा के प्रति अलगाव की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। यह हमारी भाषाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती और चिंता तो है ही हमारी सांस्कृतिक पहचान के लिए भी खतरा है। उत्तराखण्ड की लोकभाषाएं दुनिया की सुन्दरतम भाषाएं हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि आजादी से पूर्व व बाद भी समाज और सरकार दोनों स्तरों पर उनकी घोर अनदेखी हुई जिससे वे अपनी ज़मीन/मूल भूमि से भी कटने लगीं और आज उन पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है।
इसलिए आज न केवल अपनी भाषायी विरासत को बचाने व उसके साहित्य के संरक्षण, विकास एवं प्रसार की जरूरत है बल्कि लोकभाषाओं के सवाल पर अधिक गम्भीरता और निरंतरता के साथ काम किए जाने के साथ ही उन्हें समकालीन सृजनचेतना से जोड़ने की आवश्यकता है।
अपनी लोकभाषाओं की इन्हीं चिन्ताओं और उन्हें बचाने की तरफदारी में धाद द्वारा हर वर्ष विभिन्न आयोजन और प्रकाशन के साथ मातृभाषा दिवस पर आयोजन किये जाते हैं। इस वर्ष 11 से 21 फरवरी तक संवाद सत्र, कथा संकलन प्रकाशन और भाषा विमर्श के साथ इसका आयोजन हुआ इसके साथ ही आये हुए सभी सुझावों के आधार पर एक मांगपत्र जारी किया जा रहा है जिसे मातृभाषा दिवस की शुभकामना संदेश के साथ जारी किया जा रहा है. धाद के सदस्यों साथियों के साथ जो भी मित्र इसे अपनी तरफ से जारी करना चाहे तो अपना नाम,फोटो हमे हमारे नंबर 6398525003 अथवा हमारे व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़कर भी दे सकते हैं। https://chat.whatsapp.com/A4rDWLL2Da85JvKeMdTUTX
मांगपत्र हिंदी के साथ गढ़वाली और कुमाउनी में भी तैयार किया गया है
उत्तराखण्ड की भाषाओं के लिए मांगपत्र
◆ नयी पीढ़ी को मातृभाषाओं से जोडने के लिए भाषा स्कूलों की स्थापना हो।
◆ प्रदेश सरकार हर वर्ष लोकभाषा सप्ताह मनाएं जिसमे सभी शासकीय कार्यालयों, संस्थानों, सरकारी, गैर सरकारी स्कूलों में भाषाओं के आयोजन हो।
◆ राज्य के माध्यमिक से लेकर उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में तीस प्रतिशत स्थानीय साहित्य, इतिहास, संस्कृति, व प्रदर्शन कलाओं से सम्बन्धित विषय शामिल हों।
◆ राज्य की लोक सेवा परीक्षाओं में तीस प्रतिशत प्रश्न राज्य की संस्कृति, इतिहास, और भाषाओं से सम्बन्धित हों।
◆ प्रदेश सरकार उत्तराखण्ड की गढ़वाली और कुमाउनी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को अविलंब प्रस्ताव प्रेषित करे।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें 9219510932, 93894 22508