️यह लेख एक कल्पना मात्र है।
पंचमू की ब्वारी जितना कुशल गृहणी है, उतनी सामाजिक एवं राजनीतिक के संबंध में जानकारी रखती है, उसके भी सोशल मीडिया में सभी मित्र लोगों की लंबी सूची है। वैसे आजकल बरसात में गाय चुगाने के लिए ज्यादा दूर नहीं जा पाती है, जगह जगह कुर्री घास की झाड़ी हो रखी है, दो चार गाय और आधा दर्जन बकरीयां भी हैं, उनको वह गॉव के नजदीक के खेतों में चुगाकर ले आती है। गायों के साथ आजकल खड़ा खड़ा ही छतरी पकड़कर रहना पड़ता है, कहीं मच्छर तो कहीं धूळ हाथ पैरों में खुजली कर देते हैं, बरसात में तो मक्खियां भी नरभक्षी बन जाती हैं, इसलिए वह दिन में कभी कभी सोशल मीडिया को चैक कर लेती है।
परसो देहरादून में हुए यूकेडी प्रकरण को सोशल मीडिया के माध्यम से देखा तो उन्होने प्रदेश में यूकेडी के प्रति अपनी भावनाओं के रूप में उन्होनें अपने अंदाज ऐ बयान में एक रैबार पूरे यूकेड़ी के लिए भेजा।
यूकेड़ी राज्य की क्षेत्रीय पार्टी है, राज्य आंदोलनकारी पार्टी के रूप में जनमानस के हृदय तल में हैं, लेकिन यूकेड़ी ने इस हृदयतल में वास करने वाली पार्टी को पोलिंग बूथ पर बटन दबाने का अवसर नहीं खोज पायी, जिसका आज तक मुझे भी खेद है। यूकेड़ी की अपनी कुछ कमियां भी रही हैं, खासकर यूकेड़ी के नेताओं को जो देखा है, समझा है, उससे यह लगा कि इन्होंने अन्य राष्ट्रीय पार्टियों की तरह क्षेत्रीय मुद्दों को गौण समझा। वैसे यूकेड़ी ने समय समय पर हडताल और जन आंदोलन करने की भरसक प्रयास जरूर किये हैं, लेकिन वह फिर प्रयास तक ही सीमित रह गये। यकूडी के प्रति सहानुभूति वाले मतदाताओं की संख्या लाखों में हैं, लेकिन मतदान बूथ स्थल पर वह सैकड़ों मे तब्दील हो जाती है।
यूकेड़ी ने अपने चंद लोगों को ही अध्यक्ष पद की कुर्सी दी, जबकि यूकेड़ी में कई चेहरे परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं। यूकेड़ी के वयोवृद्ध नेता और घर की सास जो बहुओं को बाहर से तो प्रेम प्रदर्शित करती है, लेकिन तिजोरी की चाभी अपने कमर पर लटकाये फिरती है, और बहुओं से उम्मीद रखती है कि वह अपने अधिकारों के लिए लड़े। जब तक सासू मॉ बहुओं को जिम्मेदारी नहीं देगी तब तक बहुॅये सामने तो लोक दिखावे के लिए इज्जत जरूर करती हैं, लेकिन पीठ पीछे वही ढोल की पोल भी खोलती हैं। इस समय यूकेड़ी को बीजेपी और कांग्रेस से सबक लेखा चाहिए कि उन्होंने युवा चेहरों को तवज्जो देते हुए मुख्यमंत्री एवं अध्यक्ष नामित किये, लेकिन यूकेड़ी आज भी बूढे बैलों के सहारे भदवाड़ बाना चाहती है, मानती हॅू कि बूढे बैल जवान बैंलों से अधिक अनुभव से काम लेते हैं, लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए कभी कभी भदवाड़ पर नये बैंलों को भी जोतना पड़ता है। मैं ठहरी घर्या ब्वारी, तो मैं गॉव में अपनी आस पास के चीजों का ही उदाहरण दे सकती हॅूॅ।
2022 में अंकिता प्रकरण हो या अन्य मुद्दों पर जिस तरह यूंकेडी मुखर थी और एक जुट एक मुठ होने का सन्देश दे रही थी उसे देखकर मैं सोचा रही थी की चलो एक तीसरा विकल्प राज्य के लिए तैयार हो रहा है, किन्तु परसो की घटना ने फिर साबित कर दिया की यूंकेडी की चूल्हे की कलह बाहर सड़क पर आकर झगड़े के रुप में सबके सामने आ जायेगी। यूकेडी के बड़े बुजुर्ग भी अब केवल कलम चलाने तक ही सीमित रह गये हैं। मैं यूकेडी के कार्यकर्ताओं को यही कहना चाहूूगी कि अब वक्त राज्य आंदोलनकारी के तमगे को लेकर सत्ता में आने का सपना देखना मुंगेरीलाल के सपने जैसा है, आज का परिदृश्य बदल चुका है, आपको देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने को ढालना होगा, जनता में विश्वास दिलाना होगा, आप जानते है कि हमारे यहॉ मुफ्त का दाना डालने वाले यहॉ दाने डालने को तैयार हैं, इसलिए उनसे भी बचकर और हटकर कुछ नयी योजनाओं पर काम करना होगा, धरातल पर बूथ पर अपना कार्यकर्ता बनाना होगा, तभी यूकेड़ी अपने अस्तित्व को बचाये रख सकती है, वरना 2027 में कहीं इतिहास बनकर पन्नों में न सिमट जाय।
यूकेड़ी के कार्यकर्ताओं से मेरी यही अपील है कि मेरी बात को अन्यथा मत लेना मैं भी यूकेड़ी को समर्थन करती हॅू लेकिन समर्थन करने के साथ साथ यूकेड़ी की समालोचक भी हॅूॅ, परसो की घटना से बहुत आहत भी हूँ और भी होंगे। मैं यही चाहती हॅूं कि यूकेड़ी पुनः जनता में अपना विश्वास जगाये और यहॉ की जनता की सेवा करें। अब ज्यादा क्या लिखूं मेरे दो बुगठ्या झाड़ी में चले गये हैं, उनको फरकाने जा रही हॅू यहॉ तो बाघ भी अन्य पार्टियों की तरह घात लगाकर बैठा रहता है कि कब इसको अपने वश में करूं। आज के लिए इतना ही काफी है, बाकि बाते फिर कभी लिखूंगी, अभी बरखा के झड़ शुरू हो गये हैं, गाय बकरियों को लेकर घर जाती हॅू, तब तक आप अपनी आने वाले 2027 की रणनीति पर काम करों, हॉ मेरे लिखे को गलत मत समझना मैं तो ब्वारी बकी बात की हॅू।
पंचमू की ब्वारी सतपुली से।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।
वही गाँव चाहिए
हमें नये शहर नहीं, वहीं पुराने गाँव चाहिए
हमें स्मार्ट सिटी नहीं, पीपल की छाँव चाहिए
हमें शहर का शोर शराबा नहीं, शांति चाहिए
हमें बड़े मॉल नहीं, चौबारे की दुकान चाहिए।
हमें बस पहाड़ के सब गाँव विकसित चाहिए
हुनर मंद युवाओ को गाँव में ही रोजगार चाहिए
शिक्षा, स्वास्थ्य, की बेहतरीन सुविधाएं चाहिए
हमें शहर नहीं साहब, वही आबाद गाँव चाहिए।
हमें स्मार्ट शहर का पिज्जा बर्गर नहीं चाहिए
हमें गाँव का मंडुवा झंगोरा, लाल चावल चाहिए
हमें शहर का इंजेक्शन वाली तोरी, लौकी नहीं
खेत और ठंकरे पर लगी ताजी भाजी चाहिए।
गाँव से अपने शहर के पिंजरो में जानवर ले जाइये
वंही आप खूब उनके साथ पिकनिक मनाइये
हमें तुम्हारे नरबक्षी बाघ से अब मुक्ति चाहिए
हमें एयर पोर्ट नहीं साहब, खुला आसमान चाहिए।
हमें तुम्हारी अब मुफ्त की सड़ी राशन नहीं चाहिए
किसान पेंशन योजना नहीं, जानवरो से छुटकारा चाहिए
बस हमारे मतदान के बदले, आवश्यक सुविधा चाहिए
हम गाँव के लोग हैं, हमें मेहनत की कमाई चाहिए।
मत बनाओ तुम चार नये शहर, गाँव को ही सुन्दर बनाइये
हमारी जमीन हमसे मत छीनिये, हमें लुटेरों से सुरक्षा चाहिए
गाँव हमारे हैं, आपस में मत लड़ाईये, हमें भाईचारा चाहिए
नये शहर का कोलाहल नहीं , हमें वहीँ पुराने गाँव चाहिए।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।