उत्तरकाशी/टिहरी/ देहरादून (जौनसार) एवम् गढ़वाल के अन्य जनपदों में मंगसीर की बग्वाल मनाने की तैयारियां चल रही हैं। मंगसीर की बग्वाल यानी दीप के इस उत्सव का गढ़वाल के लिए अलग ही महत्व है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि मंगसीर की बग्वाल गढ़वाली सेना की तिब्बत विजय का उत्सव है। इस बार यह उत्सव 25 व 26 नवंबर को मनाया जाएगा। उत्तरकाशी में इसके लिए खास तैयारियां की जा रही हैं। इस उत्सव को देखने के लिए प्रदेश के विभिन्न स्थलों से स्कूली छात्र-छात्राओं/ जन मानस के अलावा विदेशी पर्यटक भी आ रहे हैं।
गंगोत्री तीर्थ क्षेत्र ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन शोध ग्रंथ के लेखक उमा रमण सेमवाल बताते हैं कि वर्ष 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर घुसकर लूटपाट करते थे।
इस पर राजा ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से सेना भेजी । इस क्रम में गढ़वाली सेना विजय पताका फहराते हुए दावा घाट (तिब्बत) तक पहुंच गई थी।
तिब्बत लुटेरों से लड़ाई के कारण कार्तिक मास की दीपावली में माधो सिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए, इसलिए उन्होंने घर में संदेश पहुंचाया था कि जब वह जीतकर लौटेंगे, तब दीपावली मनाई जाएगी।
युद्ध के मध्य में ही एक माह पश्चात माधो सिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। तब उत्सव पूर्वक दीपावली मनाई गई। तब से अब तक मंगसीर माह में इस बग्वाल को मनाने की परंपरा गढ़वाल में प्रचलित है।