देहरादून। राज्य आंदोलनकारी और साहित्यकार त्रेपन सिंह चौहान का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। हमारे बहुत अनन्य साथी भाई त्रेपन सिंह चौहान नहीं त्रेपन सिंह एक विचारवान, संघर्षशील, उत्कृष्ट जिजीविषा वाले थे। उनके निधन से साहित्य जगत को बड़ा झटका लगा गए। उनके निधन से प्रदेश भर में धोक की लहर है।
मूल रूप में केपार्स, बासर टिहरी के रहने वाले त्रेपन सिंह चौहान घनसाली चमियाला में रहते थे, लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के बाद लंबे समय से देहरादून में थे। उन्होंने ‘भाग की फांस’, ‘सृजन नवयुग’, ‘यमुना’ और ‘हे ब्वारि’ उपन्यास लिखे। ‘उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक सच यह भी’ नाम से विमर्श लिखा। ‘सारी दुनिया मांगेंगे’ नाम से जनगीतों का संग्रह निकाला। उनके कई लेख कन्नड में भी प्रकाशित हुए।
हिन्दी साहित्य में त्रेपन सिंह चौहान को सबसे ज्यादा प्रसिद्ध मिली एक कहानी पर आधारित दो उपन्यासों पर- ‘यमुना’ और ‘हे ब्वारि’। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के आलोक में लिखे गये इन दोनों उपन्यासों में यहां के लोगों की आकांक्षाओं, उत्कंठाओं, संघर्ष, दमन, उम्मीद, संवेदनाओं और निराशा को समझा जा सकता है। यह आंदोलन में शामिल रही यमुना की कहानी जरूर है, लेकिन महिलाओं के संघर्षों का एक दस्तावेज भी है। उनके संघर्ष को कभी भुलाया नही जा सकता है।