Saturday, July 27, 2024
देहरादून

कारगिल युद्ध में अपनी शहादत देने वाले शहीद मेजर राजेश अधिकारी के नाम पुस्तकालय का नाम -डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

भारतीय सीमा की बहादुरी के साथ रक्षा करने वाले राजेश सिंह अधिकारी नैनीताल में पैदा हुए. राजेश सिंह अधिकारी का जन्म 25 दिसंबर 1970 को नैनीताल में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सेंट जोसेफ़स कॉलेज से 1987 में हुई और माध्यमिक शिक्षा गवर्मेंट इंटर कॉलेज नैनीताल से। उन्होंने बीएससी कुमाऊँ यूनिवर्सिटी, नैनीताल से किया। शुरुआत से ही सेना के प्रति राजेश का जो जब्जा था वो उन्हें प्रतिष्ठित भारतीय सैन्य अकादमी में ले आया और 11 दिसंबर 1993 को मेजर राजेश सिंह अधिकारी भारतीय सैन्य अकादमी से ग्रेनेडियर में कमिशन हुए।शुरुआती पढ़ाई-लिखाई सेंट जोसेफ स्कूल से करने के बाद उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज से करने के बाद कुमाऊं विश्वविद्यालय से अपनी बीएससी की डिग्री ली.दिसंबर 1993 में उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी से कमीशन मिला. भारतीय सैन्य अकादमी के स्नातक होने के नाते उन्हें भारतीय सेना की 2 मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री में भर्ती किया गया.कारगिल वार के समय मेजर अधिकारी 18 ग्रेनेडियर्स में पोस्टेड थे.भारत की जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा में कारगिल की भीषण लड़ाई छिड़ गयी. यहाँ पर कई पाकिस्तान समर्थित लड़ाके भारतीय सीमा में घुस आए थे जिन्हें पाकिस्तानी सेना का समर्थन हासिल था. भारतीय सेना ने कारगिल की ऊंची चोटियों से इन लड़ाकों और पाकिस्तानी सेना को मार भगाने का आदेश यहाँ मौजूद बलों को दिया. इस भीषण लड़ाई में मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री की तरफ से शहीद होने वाले राजेश अधिकारी दूसरे अफसर थे. राजेश अधिकारी वे अफसर थे जिन्होंने इस वक्त तक दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचा दिया था. उन्होंने दुश्मन को द्रास सेक्टर से पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. बैटल ऑफ़ तोलोलिंग की लड़ाई सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई थी जिसमें मेजर अधिकारी बहुत बहादुरी से लड़कर शहीद हुए.30 मई 1999 को 18 ग्रेनेडियर्स के मेजर राजेश अधिकारी की बटालियन को आदेश मिला कि वे तोलोलिंग की अग्रिम पोस्ट पर कब्ज़ा कर लें जहाँ पर दुश्मन बहुत संख्या में और मजबूती के साथ कब्ज़ा जमाये हुए था. 15000 फीट ऊंचाई की इस अग्रिम पोस्ट पर जाने वाला रास्ता बहुत जोखिम भरा था जो कि बर्फ से भी पूरी तरह ढंका हुआ था. जब मेजर अधिकारी इस रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे तो दुश्मन ने अपने 2 शुरुआती बंकरों से उन पर यूनिवर्सल मशीनगन से हमला बोल दिया. राजेश अधिकारी ने बिना वक़्त गंवाए दुश्मनों पर रोकेट लॉन्चरों से हमला बोल दिया. वे बंकर पर टूट पड़े और आमने-सामने की लड़ाई में 2 घुसपैठियों को मार गिराया. मेजर अधिकारी ने रणकौशलात्मक सूझ-बूझ का परिचय देते हुए भारी बोलाबारी के बीच अपनी मशीन गन को एक पत्थर के पीछे मोर्चे पर लगाकर दुश्मन पर उसके फायर झोंककर उन्हें बुरी तरफ उलझा दिया. इस कवर की आड़ में असौल्ट पार्टी दुश्मन की आँखों में धूल झोंककर चोटी फतह करने के लिए दूसरे रास्ते से आगे बढ़ती रही.इस बीच राजेश अधिकारी बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद शुरुआती पोस्ट पर कब्ज़ा कर अपनी असॉल्ट टीम को आगे बढ़ाते रहे. उन्होंने घायल होने के बावजूद पीछे लौटने से मना कर दिया और दुश्मन के दूसरे बंकर पर भी हमला कर दिया. एक घुसपैठिये को मारकर दूसरा बंकर भी अपने कब्जे में ले लिया. इसकी वजह से प्वाइंट4590 तोलोलिंग पर भारतीय सेना का कब्ज़ा करना संभव हो सका.इस अदम्य साहस और बलिदान के लिए मेजर राजेश अधिकारी को देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया भले ही आज कारगिल युद्ध को 24 साल पूरे हो गए हों लेकिन कारगिल युद्ध में अपनी शहादत देने वाले शहीद मेजर राजेश अधिकारी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उन्होंने कहा कि आज गर्व की अनुभूति हो रही है कि राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले कुमाऊं विवि के एल्युमिनाई मेजर राजेश अधिकारी के नाम पर केंद्रीय पुस्तकालय का नाम रखे जाने के ऐतिहासिक पलों के हम सभी साक्षी बन रहे हैं राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले महावीर चक्र से सम्मानित विवि के एलुमनाई को विवि की ओर से वो सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे। बहुत से नए विद्यार्थी तो जानते भी नहीं कि वे डीएसबी में पढ़े भी थे। उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि कभी वह और राजेश अधिकारी एक ही समय में इस परिसर में पढ़े हैं। कुलपति प्रो० रावत ने कहा कि युवाओं को देशसेवा की प्रेरणा देने और मेजर राजेश अधिकारी को यथोचित सम्मान किया लिए उनके नाम पर पुस्तकालय है। मां भारती के इस वीर सपूत को हमारा नमन।

ये लेखक के अपने विचार हैं।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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