मिट्टी के बर्तन में हैं पानी पीने के फायदे – डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। किसी देश के प्राचीन मृदभांड उसकी सभ्यता के बारे में बहुत कुछ बयां करते हैं। मिट्टी के बर्तन उन महत्वपूर्ण माध्यमों में से एक है जिसके माध्यम से पुरुषों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। हजारों वर्षों से मिट्टी के बर्तनों की कला अभिव्यक्ति के सबसे सुंदर रूपों में से एक रही है। मिट्टी के बर्तनों के एक टुकड़े के आकार और रंग में एक दृश्य संदेश होता है।भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने की यह अद्भुत परंपरा की वास्तविक शुरुआत पानी और अनाज के भंडारण के लिए बर्तनों की मांग से हुई थी। तपायी गयी मिट्टी से बर्तन तथा अन्य बहुत सी वस्तुएं बनाना एक प्राचीन कला है, इस कला को कुंभकारी के नाम से जाना जाता है। विश्व के प्रत्येक हिस्सों में खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों द्वारा मिट्टी से बने बर्तन या वस्तुएं प्राप्त की गयी हैं, और मिट्टी के बर्तनों का सबसे पुराना प्रमाण जापान में 10,000 ईसा पूर्व का है। पहिए के आविष्कार से पहले, मिट्टी को कोइलिंग करके और फिर इसे हाथ से बार-बार घुमाकर बर्तनों को आकार दिया जाता था। हालांकि इस विधि का नुकसान यह था कि इस विधि से एक ही बर्तन को बनाने में काफी समय लग जाता था। और जैसे-जैसे समाज बढ़ता गया और व्यापार और वाणिज्य फलता-फूलता गया, मिट्टी से बने बर्तनों की मांग में भी वृद्धि को देखा जाने लगा। इसलिए मांग को पूरा करने के लिए बर्तन बनाने की पुरानी विधि धीरे-धीरे अपर्याप्त हो गई। जैसे-जैसे बर्तनों की मांग बढ़ी, कोइलिंग प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए कई तरीके विकसित किए गए। कुछ कुम्हारों ने एक थाली (धीमा पहिया) का इस्तेमाल किया जिसे आसानी से बर्तनों के लिए सतह के रूप में बदल दिया जा सकता था। इसने कुम्हार का एक प्रकार से कुछ हद तक समय की बचत की। हमारे देश में आदिकाल से ही मिट्टी के बर्तनों का महत्व काफी रहा है, इसे एक तरफ जहां शुद्ध माना जाता है, वही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है. हमारे पूर्वज शुरू से ही मिट्टी के बर्तनों में पानी रखा करते थे और उसे पिया करते थे लेकिन जैसे-जैसे दुनिया मॉडर्न हुई मिट्टी के घड़े की जगह लोगों ने फ्रिज ले लिया, जिससे पानी तो काफी तेजी से ठंडा होता है,लेकिन शरीर को कई तरह की बीमारियां सताने लगती हैं, मटके का पानी दवा की तरह काम करता है। यह प्राकृतिक रूप से पानी को शुद्ध बनाता है। अगर आप सही तरीके से मटके का इस्तेमाल करेंगे तो यह किसी भी आरओ वॉटर फिल्टर से ज्यादा फायदेमंद साबित होगा।शरीर को हाइड्रेट करने के लिए ना गर्म पानी चाहिए और को ना ठंडा। रूम टेंप्रेचर पर ठंडा हुआ पानी ही डिहाइड्रेशन को दूर कर सकता है। इसलिए मटके का पानी शरीर हाइड्रेट करने के लिए बेस्ट है।  मटके का पानी पीने से दिमाग और पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद होता है। इससे शरीर की कई बीमारियां भी दूर होती हैं. वहीं RO पानी को फिल्टर करने के दौरान उससे जरूरी पोषक तत्वों को भी खत्म कर देता है।जबकि मटका नैचुरल फिल्टर के रूप में काम करता है। मटके का पानी आयरन की कमी दूर करने में भी सक्षम होता है। गर्मियों में हर किसी को ठंडा पानी पीने का मन करता है। इसके लिए आजकल ज्यादातर घरों में फ्रिज का इस्तेमाल होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि फ्रिज का ठंडा पानी सेहत के लिए नुकसानदायक होता है? इससे कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में आप गर्मियों में अपनी प्यास बुझाने के लिए फ्रिज का पानी पीने के बजाय मटके का पानी पिएं। आयुर्वेद के अनुसार मिट्टी के घड़े या मटके का पानी अमृत के सामान होता है। मटके में पानी नेचुरल रूप से ठंडा होता है, जो हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। साथ ही, मिट्टी में ऐसे कई तत्व मौजूद होते हैं, जो कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता रखते हैं। गर्मियों में मटके का पानी पीने से शरीर की परेशानियां दूर हो सकती हैं।विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी में मटके का पानी जितना ठंडा और सुकूनदायक लगता है, स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही फायदेमंद भी होता है। इसका तापमान सामान्य से थोड़ा ही कम होता है जो ठंडक तो देता ही है, पाचन की क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है।मटके का पानी पीना से कैंसर की बीमारी का खतरा बहुत कम हो जाता है। घड़े का पानी गले से संबंधी बीमारियों से बचा कर रखता है और यह हमको जुकाम खांसी की परेशानी से भी बचाता है।मटके का पानी पीना से पीएच संतुलन सही होता है। मिट्टी के क्षारीय तत्व और पानी के तत्व मिलकर उचित पीएच बेलेंस बनाते हैं जो शरीर को किसी भी तरह की हानि से बचाते हैं और संतुलन बिगडऩे नहीं देते। मटके का पानी प्राकृतिक तौर पर ठंडा होता है, जबकि फ्रिज का पानी इलेक्ट्रिसिटी की मदद से। बल्कि एक बड़ा फायदा यह भी है कि इसमें बिजली की बचत भी होती है, और मटके बनाने वालों को भी लाभ होगा।अगर आप दमा के रोगी हैं, तो भी मटके का पानी पिएं। लकवा पेशेंट्स को भी मटके का पानी नियमित तरीके से गर्मी में पीना चाहिए। इससे उनको फायदा मिलेगा। पानी के घड़े को तीन महीने से ज्यादा इस्तेमाल में नहीं लेना चाह‍िए, क्योंकि मिट्टी में मौजूद मिनरल तीन म‍हीनें में खत्म हो जाते हैं। तीन महीने बाद नया घड़ा इस्तेमाललानाचाहिए।मटके में रखा पानी ठंडा रहता है। इसके पानी से ही असली प्यास बुझती है। फ्रिज का पानी प्यास नहीं बुझाता। मिट्टी के बर्तन, या पारंपरिक भारतीय मिट्टी के बर्तन, सदियों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। इन प्राकृतिक, पर्यावरण के अनुकूल बर्तनों ने अपने अद्वितीय गुणों और स्वास्थ्य लाभों के लिए भारतीय घरों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।मिट्टी के बर्तन का उपयोग सिंधु घाटी सभ्यता के समय से होता है, जहां पुरातात्विक निष्कर्षों से पानी के भंडारण और खाना पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों के उपयोग का पता चला है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी मिट्टी के बर्तन भारतीय घरों की एक प्रमुख विशेषता है।मिट्टी के बर्तन का उपयोग करने के कई फायदे हैं। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से, ये बर्तन पूरी तरह से गैर विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त हैं जो आमतौर पर प्लास्टिक और अन्य सिंथेटिक सामग्री में मौजूद होते हैं। मिट्टी एक जैविक और प्राकृतिक सामग्री है जो पोषक तत्वों को बनाए रखने और भोजन के स्वाद को बढ़ाने की क्षमता के लिए जानी जाती है। जब मिट्टी के बर्तन में खाना पकाया जाता है, तो यह न केवल बेहतर स्वाद लाता है बल्कि इसमें अधिक पोषण मूल्य भी होता है।पर्यावरण के दृष्टिकोण से, मिट्टी के बर्तन एक टिकाऊ और बायोडिग्रेडेबल विकल्प है। प्लास्टिक और अन्य सिंथेटिक सामग्रियों के विपरीत, जिन्हें सड़ने में सैकड़ों साल लग जाते हैं, मिट्टी के बर्तनों को पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचाए बिना प्राकृतिक रूप से निपटाया जा सकता है। इसके अलावा, वे पुन: प्रयोज्य हैं और डिस्पोजेबल बर्तनों से उत्पन्न कचरे की मात्रा को कम करते हैं।मिट्टी के बर्तन महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ भी प्रदान करता है। वे सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं, जिससे वे सभी के लिए सुलभ हैं। मिट्टी के बर्तन का उत्पादन स्थानीय कारीगरों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भी समर्थन करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कारीगर इन बर्तनों को हाथ से बनाते हैं, पारंपरिक तकनीकों को जीवित रखते हैं और आने वाली पीढ़ियों को कौशल प्रदान करते हैं।बाजार में विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तन उपलब्ध हैं, प्रत्येक का एक अनूठा उद्देश्य है। मिट्टी के बर्तन, जिन्हें मटका भी कहा जाता है, आमतौर पर पानी के भंडारण के लिए उपयोग किए जाते हैं। वे अत्यधिक गर्मी में भी पानी को ठंडा रखते हैं और पानी को शुद्ध करने का एक प्राकृतिक तरीका प्रदान करते हैं। मिट्टी का तंदूर एक अन्य लोकप्रिय प्रकार का मिट्टी का बर्तन हैं जिनका उपयोग रोटी और अन्य व्यंजन पकाने के लिए किया जाता है। ये तंदूर ईंधन के रूप में चारकोल का उपयोग करता हैं और भोजन को एक अलग धुएँ के रंग का स्वाद प्रदान करते हैं। खाना पकाने और परोसने के लिए मिट्टी के बर्तन भी लोकप्रिय हैं, विभिन्न आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न आकार और आकार उपलब्ध हैं। गर्मियों के मौसम में मिट्टी के बर्तन अधिक उपयोगी माने जाते हैं. पुराने समय में मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग घरों में हुआ करता था. लेकिन कुछ सालों से मिट्टी के बर्तनों की जगह धातुओं के बने बर्तनों का प्रयोग होने लगा है. इसमें भी एल्युमिनियम और स्टील से बने बर्तनों की भरमार हमारे घरों में है. जब से इन बर्तनों का ज्यादा प्रयोग शुरु हुआ है तब से बीमारियां भी बढ़ने लगी है. एक बार फिर अब लोगों में पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है. गर्मी के मौसम में मिट्टी के घड़े का पानी पीने से किसी तरह की थकान नहीं रहती है। इस पानी का सेवन करने से काफी हद तक सिरदर्द की समस्या से भी निजात मिलता है। मिट्टी के घड़े का पानी आपको तपती गर्मी में भी कूल बनाए रखता है। मिट्टी के बने मटके में सूक्ष्म छिद्र होते हैं। ये छिद्र इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। पानी का ठंडा होना वाष्पीकरण की क्रिया पर निर्भर करता है। जितना ज्यादा वाष्पीकरण होगा उतना ही ज्यादा पानी भी ठंडा होगा। इन सूक्ष्म छिद्रों द्वारा मटके का पानी बाहर निकलता रहता है। गर्मी के कारण पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है। वाष्प बनने के लिए गर्मी यह मटके के पानी से लेता है। इस पूरी प्रक्रिया में मटके का तापमान कम हो जाता है और पानी ठंडा रहता है। मिट्टी में शुद्धि करने का गुण होता है यह सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है और इसके घड़े के पानी में सभी जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलते हैं। गर्मियों में हेल्दी बने रहना है तो मिट्टी के घड़े का पानी पीना चाहिए।भारत में मिट्टी के बर्तनों के निर्माण से सम्बंधित उद्योगों तथा कुम्हार समुदाय के सशक्तिकरण के लिए कुम्हार सशक्तिकरण कार्यक्रम, खादी और ग्रामोद्योग आयोग की एक पहल है जोकि देश के दूरस्थ स्थानों में रहने वाले कुम्हारों को लाभ पहुंचा रही है। इसके अंतर्गत उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा, तेलंगाना और बिहार के दूरस्थ स्थानों को आवरित किया गया है। यह कार्यक्रम कुम्हारों को उन्नत मिट्टी से बर्तन और अन्य उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण प्रदान करता है तथा नई तकनीक वाले कुंभकारी उपकरण जैसे इलेक्ट्रिक चाक भी प्रदान करता है। इसके अलावा इस कार्यक्रम ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग के प्रदर्शनियों के माध्यम से बाज़ार सम्बन्ध और दृश्यता भी प्रदान की है। इसके प्रभाव से इलेक्ट्रिक चाकों की आपूर्ति के कारण, कुम्हारों ने कम समय में अधिक उत्पादन किया है। वे अधिक शोर और अस्वस्थता से मुक्त हुए हैं जिसके साथ-साथ बिजली की खपत भी कम हुई है। मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल लोग कितना करते है और बाजारों में इन बर्तनों को लेकर क्या ट्रेंड है इसकी जानकारी देते हुए दिल्ली के एक दुकानदार ने बताया कि आजकल लोग मिट्टी एक बर्तन खरीदने लगे हैं. बड़े-बड़े घड़ों पर सुंदर कारीगरी भी की गई है. इसके साथ ही मिट्टी की बोतल और ग्लास-कटोरी से लेकर खाना बनाने वाले बर्तन भी ट्रेंड में हैं.वहीं इस बारे में आम लोग बताते हैं कि अब एक बार फिर से मिट्टी के बर्तनों का चलन बढ़ने लगा है,शहर में रहने वाले लोग भी अपने किचन में पानी रखने के लिए फ्रिज की जगह मिट्टी के घड़े को ले आए हैं.

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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