अगर आपने पढ़ाई विदेश से की है, तो आप चाहेंगे कि आप विदेश में ही रहकर नौकरी करें और अच्छा पैसा कमाएं। वहीं कई ऐसे लोग भी हैं, जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट होते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ राज्य स्तरीय नौकरियों (Jobs) के लिए अप्लाई करने वाले स्टूडेंट्स प्रोसेस, परीक्षा, पेपर का पैटर्न, तैयारी के सही स्ट्रेटजी को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि परिणाम को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं।
Ms. Ilma Afroz will be joining us a Keynote Speaker tomorrow at the Conclave on Children in Modern Forms of Slavery: Human Trafficking.
Ilma is an IPS officer and an Oxford graduate. #imnotforsale #modernslavery #ChildTrafficking #HumanTrafficking#EndTraffickingTogether pic.twitter.com/AekcSNdymj
— Harmony Foundation (@HarmonyOrg) August 27, 2019
आज हम ऐसे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज (Success Story) बताएंगे, जिसको सुन आप कभी निराशा के बाद हार नही मानेंगे। बल्कि हार को अपनी अगली सीढ़ी बनाकर आगे को ओर कदम बढ़ाएंगे। इस कड़ी में आज हम बेहद संघर्षों में पली-बढ़ी 2017 बैच की IPS इल्मा अफरोज (IPS Ilma Afroz ) की कहानी आपको बताने जा रहे। हम बात कर रहे हैं इल्मा अफरोज की। जिन्होंने ऑल इंडिया सिविल सर्विसज में 217वीं रैंक हासिल की है। आज गरीबी से जूझकर वह IPS ऑफिसर (IPS Officer) बन गई हैं। जानें उनके संघर्ष की कहानी।
कौन है इलमा: उन्होंने बताया सफलता की राह आसान नहीं होती है। कई बार ऐसा हुआ है, जब कामयाबी हाथ नही लगी। मैं वकील बनना चाहती थी, लेकिन स्कॉलरशिप न मिलने पर कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं हो पाया। वहीं जब मेहनत शुरू की तो रास्ते अपने आप दिखने लगे। एक छोटे से गांव कुंदरकी की रहने वाली इल्मा अफ़रोज़ (Ms Ilma Afroz ) बहुत मेहनती लड़की थी।
बचपन से ही जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर यूपीएससी जैसे भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक को पास कर अपनी किस्मत बदल दी और इतिहास रच दिया। UPSC का नाम सुन लोगो के पसीने छुड़ने लगते है सोचते है ये सब अमीर लोगो के लिए है, बहुत मेहनत करनी पड़ती है, मंहंगी कोचिंग में पढ़ना पड़ता है।
ये सब को दरकिनारे कर इल्मा ने अपने आपको साबित कर दिखाया कि मेहनत के दम पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है। अम्मी ने मुझे जीवन में संघर्ष एवं कड़ी मेहनत, लगन एवं अटूट विश्वास के ज़रिये से अपने पैरों के नीचे की ज़मीन ढूँढने की, निरंतर आगे बढ़ने की सीख दी। शिकायत करने, कमियां निकलने के बजाए वक़्त और हालात की आँखों में आँखें डाल कर मुकाबला करना सिखाया।
खामियां, चुनौतियाँ चाहें कितनी भी हों, अम्मी हमेशा सिखाती हैं की, तुझे अर्जुन जी की तरह सिर्फ मछली की आँख दिखनी चाहिए। इल्मा की परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी। उन्होंने कभी सोचा नही था कि कभी इस मुकाम को हासिल कर पायेगी। गरीबी में पली बढ़ी इल्मा के लिए ये सब एक सपना था।
Ms Ilma Afroz, IPS(P) of 72RR borne on Himachal Pradesh cadre won Suprobha Deb Memorial Trophy for the Best English Essay @ilmaafroz pic.twitter.com/ELRVadeTT6
— SVPNPA (@svpnpahyd) August 5, 2021
उन्होंने दिल्ली स्टीफेंस कॉलेज से लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में पढ़ाई की हैं, जिस बात पर किसी को भी यकीन नहीं होता है। लेकिन देश के लिए कुछ करने की इच्छा ने उन्हें दोबारा से देश की सेवा करने को मजबूर कर दिया और उन्होंने एक बार फिर से अपने मेहनत और लगन के दम पर यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) को पास कर अपने जीवन में नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया।
मुरादाबाद के कस्बे कुंदरकी का नाम कोई जानता भी नहीं था, बेटी इल्मा अफरोज़ ने अपने गांव का नाम रोशन कर दिया। आज उन्हें हर कोई सम्मान के साथ पहचानता है। अचानक से लोग जानने लगे कि कुंदरकी भी कोई जगह है, क्योंकि आईपीएस ऑफिसर बनकर देश की सेवा का सपना देखने वाली इल्मा इसी गांव की हैं। इल्मा की कहानी (Ilma Afroz Story ) सबसे अलग है।
अगर उनका इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि इनकी बचपन की शिक्षा कैसे हुई, उसको देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि यह लड़की दिल्ली के स्टीफेन्स कॉलेज से लेकर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और न्यूयॉर्क तक जा सकती है। पर कहते हैं न कि सपने सच्चे हों तो दुनिया की कोई ताकत उन्हें पूरा होने से नहीं रोक सकती।
इल्मा की किस्मत ने भी कुछ इसी तरह उनका साथ दिया। लेकिन जब पूरे जीवन के संघर्ष को पार कर इल्मा को विदेश में बसने का एक आरामदायक जिंदगी जीने का सुनहरा अवसर मिला तो इल्मा ने इन सबको दरकिनारे कर अपने वतन, अपनी मिट्टी और अपनी मां को चुना।
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परिवार में कोई कमाई का साधन नही रहा: इल्मा और उनके खुशहाल परिवार को नज़र तब लगी जब उनके पिता का साया उनके सर से उठ चुका था। उस समय इल्मा 14 वर्ष की थी और उनका भाई उनसे दो साल छोटा। घर में कमाई करने वाला कोई नही था, इस कारण अचानक मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। इल्मा की अम्मी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। परिवार की जिम्मेदारी कैसे निभाये।
उनके मन मे बहुत सवाल आने लगे तभी लोगों ने सलाह दी कि लड़की को पढ़ाने में पैसे वेस्ट न करके इसकी शादी कर दें, बोझ कम हो जाएगा। इल्मा की अम्मी हमेशा सबकी सुनती रही किसी को जवाब नहीं दिया पर करी हमेशा अपने मन की। इल्मा कक्षा एक से हमेशा सबसे आगे रहती थी। बचपन से ही होशियार थी। ऐसे में उनका पढ़ाई की जिज्ञासा मां से छिपी नहीं थी।
उनकी मां ने दहेज के लिए पैसा इकट्ठा करने की जगह उस पैसे से बेटी को पढ़ाया। इल्मा भी पारिवारिक स्थिति को बहुत अच्छे से समझती थी। इसलिए उन्होंने बहुत पहले से अपनी मेहनत और लगन के दम पर स्कॉलरशिप्स पाना शुरू कर दिया था। इल्मा की पूरी पढ़ाई स्कॉलरशिप्स के जरिये हुई हैं।
We are proud to host Ms Ilma Afroz (IPS) at Jamghat 2019. The session will hold a discussion over the mindful awareness of students in the country and the associated parameters that play a role in guiding it. #SopraSteriaIndia #Jamghat2019 #Self4Society pic.twitter.com/OPYwlRJcdV
— Sopra Steria India (@SopraSteria_IN) August 1, 2019
एक बार छात्रवृत्ति के काम से मैं कलक्ट्रेट गयी थी। ऑफिस के बाहर खड़े सफ़ेद यूनिफॉर्म वाले अर्दली ने कहा किसी बड़े के साथ आओ बच्चों का क्या काम, मैं सीधे अंदर चली गयी। स्कूल की यूनिफॉर्म में एक छात्रा को देख कर डीएम साहब मुस्कुराये, मेरे फार्म पर हस्ताक्षर किये, बोले सिविल सर्विसेज ज्वाइन करो इल्मा। बस यही बात दिल मे घर कर गई।
SCAL would like to welcome Ms. ILMA AFROZ IPS @ilmaafroz as the Speaker at the Indian Civil Service Conclave beginning from 13th March 2021.
Applications are open. For more information, please visit https://t.co/u89L2T7AMj or follow scalsscdelhi. pic.twitter.com/EpslyBTjIA— SCAL-St. Stephen's College Delhi (@scalsscdelhi) February 23, 2021
कुंदरकी से पहुंची सेंट स्टीफेन्स, दिल्ली: इल्मा अपने सेंट स्टीफेन्स में बिताए सालों को जीवन का श्रेष्ठ समय मानती हैं, जहां उन्होंने बहुत कुछ अनुभव किया कैसे परिस्थिति से मुकाबला करना है। हालांकि बेटी को दिल्ली भेजने के कारण उनकी मां ने लोगो के ताने सुने, बेटी हाथ से निकल जायेगी, उसको पढ़ाकर क्या करना है। उन्होंने किसी की बात नही सुनी सबको दरकिनारे कर उन्होनें अपने मन की सुनी क्योकि उन्हें अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था।
सेंट स्टीफेन्स के बाद इल्मा को मास्टर्स के लिये ऑक्सफोर्ड जाने का मौका मिला। अब तो गांव वालों और रिश्तेदारों ने लड़की को ताने देने में कोई कमी नहीं छोड़ी और यहां तक सभी ने फैसला कर लिया था की लड़की हाथ से निकल गई, अब वापस आने वाली नही। इल्मा की अम्मी ने अभी भी किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया।
यहां इल्मा की अम्मी सभी की बातें सुन रही थी, वहां इल्मा यूके में अपने पढ़ाई के अलावा और खर्चों की पूर्ति के लिए कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही थी, कभी छोटे बच्चों की देखभाल का काम किया करती थी। उसने कभी भी परिस्थिति का रोना नही रोया। हर परिस्थिति का मुस्कुरा कर मुकाबला किया। यहां तक कि लोगों के घर के बर्तन भी धोये किसी काम को छोटा नही समझा, जो काम मिला हँसते हुए किया।
सेंट स्टीफेन्स की ग्रेजुएट कैसे ये छोटे-मोटे काम करने में लगी हुई है। पैसा भी तो चाहिये था परिवार की स्थिति ऐसी नही थी कि घर से पैसा मंगवा लिया जाये। इसके बाद इल्मा एक वॉलेंटियर प्रोग्राम में शामिल होने न्यूयॉर्क गयीं। यहां उन्हें बढ़िया जॉब का ऑफर मिला। इल्मा चाहती तो यह ऑफर ले लेती और विदेश में ही बस जाती पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो बताती है कि उनके अब्बू ने उन्हें जड़ों से जुड़ना सिखाया था।
उनके संस्कार ये सब करने की इजाजत नही देते। मुझ पर, मेरी शिक्षा पर पहले मेरे देश का अधिकार है, मेरी अम्मी का अधिकार है अपनों को छोड़कर मैं क्यों किसी और देश में बसने का सोचूं? वह बताती है कि सबसे ज्यादा शुक्रगुजार में अपने देशका करती हूं, जिन्होंने मुझे स्कॉलरशिप दी। जिस वजह से मेरी पढ़ाई बाहर विदेश में हुई। यूपीएससी की परीक्षा में 217वीं रैंक लाने के दिन तक इल्मा खेतों में काम करती रहीं और अब भी खेती-बाड़ी से जुड़ी हुई हैं।
जॉब छोड़ अपने वतन वापस आई: न्यूयॉर्क से वापस आने के बाद इल्मा के मन में यूपीएससी का विचार आया। उनके भाई ने उन्हें इसके लिये प्रेरित किया। इल्मा कहती हैं, जब वे अपने गांव वापस आती थी, तो गांव के लोगों की आंखों में एक अलग ही चमक दिखाई देती थी। उन्हें लगता था बेटी विदेश से पढ़कर आयी है, अब तो गांव की सारी परेशानी का समाधान निकल जायेगी। किसी का राशन कार्ड बनना है तो किसी को सरकारी योजना का लाभ लेना है।
हर कोई अपनी समस्या इल्मा के पास लेकर आते थे। इल्मा इन सब से खुश नही थी, उनके मन मे कुछ और ही चल रहा था उनको देश का जुनून चढ़ गया था। अपने वतन की सेवा करना चाहती थी। इल्मा को भी लगा की यूपीएससी एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा वे अपना देश सेवा का सपना सच कर सकती हैं। इल्मा ने तैयारी के लिए विचार बना लिया और दिन रात इसी में लग गई। अपने सपनो को अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया था। पढ़ाई में वे हमेशा से आगे थी और इरादे की मजबूत थी। उस पर मां और भाई का भरपूर समर्थन मिला।
आखिरकार इल्मा ने साल 2017 में 217वीं रैंक के साथ 26 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। जब सर्विस चुनने की बारी आयी तो उन्होंने आईपीएस चुना। बोर्ड ने पूछा भारतीय विदेश सेवा क्यों नहीं तो इल्मा बोली, नहीं सर मुझे अपनी जड़ों को सींचना है, अपने देश के लिये ही काम करना है। मेरा देश मेरी मिट्टी के लिए कुछ करना है।
सफलता का मूलमंत्र: इल्मा की कहानी (Ilma Story ) यह बताती है कि जमीन से जुड़े रहना कितना आवश्यक है। जमीन से जुड़ें रहकर नजर केवल अपने लक्ष्य पर रखें। इल्मा ने कभी अपनी सफलता को अपने ऊपर कभी हावी नही होने दिया न ही इस सफलता की राह में मिले लोगों के सहयोग को ऊंचाई पर पहुंकर भुल गई हो। बल्कि इस संघर्ष (Struggle) में जो भी उनके साथी बने थे, सबका शुक्रिया अदा किया और मौका आने पर अपना सहयोग देने में कभी पीछे नहीं हटी।