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*क्यों है इतनी खतरनाक यैलो जर्नलिज्म* *अर्जुन भण्डारी*

अर्जुन भंडारी क्राइम रिपोर्टर
अर्जुन सिंह भंडारी वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर

अक्सर ही अख़बारों में वेब पोर्टल और कई टीवी चैनलों में हमने चटपटी, मसालेदार और ध्यान खींचने वाली खबरे पड़ी होगी। इनके शीर्षक देख कर ऐसा लगता है की मानो सारी खबरे छोड़ कर केवल यही खबर पढ़े।
*आखिर है क्या यैलो जर्नलिज्म*
यैलो जर्नलिज्म अगर हिंदी भाषा में देखा जाए तो पीत पत्रकारिता, एक ब्रिटिश के बहुत ही मशहूर अख़बार से लिया गया शब्द है।
यैलो जर्नलिज्म का मतलब है बहुत ही नाटकीय और मनोरंजन शीर्षक वाली खबरें जो की अपने पाठकों का ध्यान खींचती है और पाठकों को वहीं खबर पढ़ने को मजबूर कर देती है।
पहले के समय में छोटे अख़बार अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए बहुत ही आकर्षक शीर्षकों का इस्तमाल करते थे। ताकि अपने अख़बारों की बिक्री बढ़ाई जा सके। लेकिन इस परंपरा को कायम रखते हुए आज भी कई छोटे अख़बार और वेब पोर्टलों ने अपनी बिक्री और लोकप्रियता बढ़ाने हेतु यैलो जर्नलिज्म का सहारा ले रहे है।
*क्यों है यैलो जर्नलिज्म इतनी घातक?*
मसालेदार खबरें पढ़ने में चाहे कितनी ही दिलचस्प क्यों ना हो लेकिन इनकी सत्यता पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। मनोरंजन की आड़ में ये फेक न्यूज को भी बढ़ावा देता है।
हालांकि कई बड़े न्यूज चैनल भी अब अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए भारीभरकम टैगलाइन का इस्तमाल करते है। लेकिन कई बार इस तरह के शीर्षक किसी की ज़िन्दगी को बहुत ही आहत कर सकते है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हाल ही में आत्महत्या करने वाले अभिनेता का। जिसकी मौत के बाद अलग अलग भद्दे शीर्षकों से जनता का ध्यान खींचा गया।
अगर बात करे हम मुम्बई हमलों की तो सनसनीखेज का नाम देकर अलग अलग तरीके से टीवी चैनलों पर दिखाएं जाने लगा। देश में अगर कोई भी मर्डर मस्ट्री होती है तो उसकी सनसनी खेज खबर चलाई जाती है कि मानो कोई बहुत बड़ा राष्ट्र मुद्दा हो। इतने नाटकीय रूपांतरण किए जाते है। की जनता दिन भर एक ही खबर को लेकर बैठी रहती है।
लेकिन इन सब वाक्यों से साफ पता चलता की आजकल पत्रकारिता का स्तर किस तरहा गिर चुका है। इन असत्य और भद्दे हेडलाइन वाली खबरों को सनसनीखेज खबरों का जामा पहना कर लोगो को लुभाने से अच्छा है। सत्य और सीधी खबरों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

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