शंकराचार्य की तपस्थली पर आईं दरारें डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

गढ़वाल मंडल के चमोली जिले के पेनखंडा परगने में स्थित है खूबसूरत कस्बा जोशीमठ। जिसका पौराणिक नाम ज्योतिर्मठ बताया जाता है।

जोशीमठ कर्णप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर बद्रीनाथ से 30 किमी पहले और कर्णप्रयाग से 72 किमी की दूरी पर मौजूद है।

यहां से बदरीनाथ, विष्णुप्रयाग, नीति-माणा, हेमकुण्ड साहिब और फूलों की घाटी, औली के अलावा कई अन्य धार्मिक व पर्यटन स्थलों की ओर रास्ता जाता है।जोशीमठ में हो रहे भूधंसाव की आंच अब पौराणिक धर्मस्थल ज्योतिर्मठ में भी पहुंच चुकी है।

आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली ज्योतेश्वर महादेव के गर्भगृह में दरारें आ गई हैं।यह वह स्थान है, जिस अमर कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर भगवान शंकर के 11 वें अवतार आदि गुरु शंकराचार्य ने कठोर तप किया था और दिव्य ज्ञान ज्योति की प्राप्ति हुई थी। ऐसी मान्यता है कि जोशीमठ आदि शंकराचार्य की तपस्थली रही है। अनुमान है कि 815 ई. में यहीं पर आदि शंकराचार्य ने एक शहतूत के पेड़ के नीचे साधना कर ज्ञान प्राप्ति की थी और इसीलिए इस जगह का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा जो बाद में धीरे-धीरे आम बोलचाल की भाषा में जोशीमठ हो गया। बद्रीनाथ धाम और भारत के तीन छोरों पर मठों की स्थापना करने से पहले शंकराचार्य ने जोशीमठ में ही पहला मठ स्थापित किया था। यहीं पर शंकराचार्य ने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ शंकर भाष्य की रचना भी की थी।यहां आज भी 36 मीटर की गोलाई वाला 2400 साल पुराना वह शहतूत का पेड़ है जिसके नीचे शंकराचार्य ने साधना की थी, इसी पेड़ के पास शंकराचार्य की वह गुफा भी मौजूद है जहां उन्होंने तप किया था। इस गुफा को ज्योतिरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। जोशीमठ में विष्णु भगवान को समर्पित एक लोकप्रिय मंदिर है। इसके अतिरिक्त नरसिंह, वासुदेव, नवदुर्गा आदि के मंदिर भी यहां पर मौजूद हैं। मान्यता है कि जोशीमठ के नरसिंह मंदिर की पूजा-अर्चना किये बगैर बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी ही रह जाती है। इस मंदिर में भगवन नरसिंह की काले पत्थर से बनी मूर्ति भी है। शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति इसी मंदिर में प्रतिष्ठित कर दी जाती है। जोशीमठ कभी कत्यूरी शासकों की राजधानी रह चुकी है, तब इसे कीर्तिपुर के नाम से जाना जाता था. कत्यूरी शासक ललितशूर के ताम्रपत्र में इसे इसी नाम से लिखा गया है। आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य ने जिस पवित्र धरती पर ज्ञान रूपी ज्योति के दर्शन किए और इसी धरती से देश के चार पीठों की स्थापना की,यदि वह धरती भू धंसाव व भूस्खलन के आगोश मे समाने को आतुर हो तो चर्चा व चिंतन होना स्वाभाविक ही है।जोशीमठ नगर में दरकते मकानों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, प्रभावित मकानों से किरायेदारों का अन्यंत्र शिफ्ट होना जारी है तो भवन स्वामी भगवान भरोसे दरकते मकानों में ही रहने को विवश हैं।सीमान्त नगर जोशीमठ मे आज जो कुछ हो रहा है, उसका उल्लेख तो 46 वर्ष पूर्व गठित मिश्रा कमेटी ने भी करते हुए अनेक सुझाव दिए थे। वर्ष 1976 मे तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चन्द्र मिश्रा की कमेटी जिसने जोशीमठ का ब्यापक सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट मे जो सुझाव दिए थे यदि इन 46 वर्षों मे उन पर अमल होता तो शायद आज इतनी विकट स्थिति देखने को नहीं मिलती।मिश्रा कमेटी ने सुझाव दिए थे कि जोशीमठ में अनियंत्रित बहने वाले नालों को ब्यवस्थित करने, अलकनंदा के बाईं ओर भू धंसाव रोकने के लिए उचित प्रबंध करने,जोशीमठ नगर मे नियंत्रित निर्माण व तय मानकों के अनुसार ही निर्माण की स्वीकृति दिए जाने,तथा जोशीमठ के निचले हिस्से में न केवल ब्लास्ट को प्रतिबंधित करने बल्कि नदी के किनारे पत्थरों के टिपान को भी वर्जित करते हुए कई अन्य सुझाव दिये थे।यहाँ यह उल्लेख किया जाना भी आवश्यक है कि जब मिश्रा कमेटी की रिपार्ट को आधार मानते हुए वर्ष 1991 मे इलाहाबाद हाईकोर्ट  हेलंग-मारवाड़ी बाईपास पर स्थगन आदेश दे सकता है तो आखिर क्या कारण रहे कि जोशीमठ में बड़े निर्माणों व परियोजनाओं को मंजूरी मिलती रही?बहरहाल 46 वर्षों मे जो भी त्रुटियाँ हुई उसका खामियाजा आज पूरा जोशीमठ नगर भुगत रहा है,जोशीमठ का कोई घर-मकान ऐसा नहीं है जो भू धंसाव की जद मे ना हो।मौसम का रुख बदलते ही भू धंसाव प्रभावित परिवारों की धड़कनें भी बढ़ रही है,लोग आशंकित है कि बर्फबारी व बारिश का पानी फटती भूमि व दरकते मकानों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। आज पुनः मौसम ने करवट बदली है, तो भू धंसाव प्रभावितों की चिंता बढ़ना भी स्वाभाविक है भूधंसाव के चलते प्रभावित परेशान हैं। उन्हें नए ठिकाने की तलाश में परेशान होना पड़ रहा है। जोशीमठ में भूधंसाव हो रहा है, जबकि शासन-प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। अभी तक 580 से अधिक भवन, भूमि में दरारें चिह्नित की गई है। 50 से अधिक किरायेदार दरार वाले भवनों को छोड़कर सुरक्षित ठिकानों पर जा चुके हैं, लेकिन दरारों का दायरा बढ़ने से जोशीमठ नगरवासी चिंतित हैं।सबसे ज्यादा दिक्कत भवन स्वामियों की है। 20 से अधिक भवन स्वामी ऐसे हैं, जो अपना जरूरी सामान अन्य स्थानों में ले जा चुके हैं। ज्योतिर्मठ के ज्योतेश्वर महादेव के पुजारी ने कहा कि पहले ये दरारें हल्की थीं, लेकिन अब लगातार बढ़ रही हैं। इससे अब मंदिर गर्भगृह, आंगन आदि को खतरा पैदा हो गया है। बहुप्रतिक्षित ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण के अंतिम स्टेशन पोखरी विकासखंड के सिवाई में निर्माणाधीन सुरंग निर्माण के चलते उससे लगे लादला व लंगाली में आवासीय भवनों पर दरारें आ रही हैं। पूर्व में सुरंग निर्माण में भारी विस्फोटकों के प्रयोग से बीती बरसात में दरारें आने से सिवाई मोटर मार्ग भूस्खलन की जद में आ गया था, लेकिन उसके बाद भी रेल विकास निगम के अधिकारी लापरवाही बरत रहे हैं।रात-दिन हो रहे सुरंग निर्माण के दौरान भारी विस्फोटकों के प्रयोग से स्थानीय निवासियों के भवनों को नुकसान पहुंच रहा है।
कई भवनों में दरारें उभर आई हैं, जबकि बरामदे सहित अन्य निर्माण को नुकसान पहुंच रहा है। यही नहीं, गांव के पुराने जलस्रोत से पानी गायब हो गया है, जो गांव के लिए ग्रीष्मकाल में पानी का वैकल्पिक स्रोत हुआ करता था।
रेल संघर्ष समिति के ने कहा कि पूर्व में सुरंग निर्माण में भारी विस्फोटकों के प्रयोग से बीती बरसात में दरारें आने से सिवाई मोटर मार्ग भूस्खलन की जद में आ गया था, लेकिन उसके बाद भी रेल विकास निगम के अधिकारी लापरवाही बरत रहे हैं।रात-दिन हो रहे सुरंग निर्माण के दौरान भारी विस्फोटकों के प्रयोग से स्थानीय निवासियों के भवनों को नुकसान पहुंच रहा है। कई भवनों में दरारें उभर आई हैं, जबकि बरामदे सहित अन्य निर्माण को नुकसान पहुंच रहा है। यही नहीं, गांव के पुराने जलस्रोत से पानी गायब हो गया है, जो गांव के लिए ग्रीष्मकाल में पानी का वैकल्पिक स्रोत हुआ करता था।ग्रामीण ने कहा एक ओर रेलवे निर्माण से विकास की बात कही जा रही है, वहीं जो बसासत परिवार गांव में शेष है, उनकी समस्याओें को दरकिनार कर अब जैवविविधता को भी प्रभावित किया जा रहा है, जिसके परिणाम भविष्य में ठीक नहीं होंगे। पत्र के माध्यम से कहा गया कि यदि शीघ्र भारी विस्फोटकों का प्रयोग बंद कर नुकसान का आंकलन नहीं किया प्रथमष्टया जो देखने को मिल रहा है उसमें जोशीमठ शहर में जो सबसे पहला और प्रत्यक्ष कारण देखने को मिला है, वह शहर में ड्रेनेज सिस्टम का ना होना है। जिसकी वजह से वर्षाजल और सिवरेज की व्यवस्थित निकासी नहीं हो पा रही है। ये पानी धरती के भीतर रिसता जा रहा है। इसके अलावा शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि जोशीमठ शहर में लगातार अंधाधुंध कंस्ट्रक्शन हो रहे हैं, जो शहर के लिए एक बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं।स्थानीय अपने घरों को खाली कर सुरक्षित स्थानों की तलाश में भटक रहे हैं।
एक स्थानीय ने मीडिया को बताया कि दरारों से कई लोग घर खाली करके चले गए हैं। सरकार तत्काल समाधान निकाले। हम घरों के बाहर रहने को मजबूर हैं। देखना होगा कि विभिन्न एजंसियों द्वारा किए गए भू सर्वेक्षणों एवं जिलाधिकारी के स्थलीय निरीक्षण के बाद भू धंसाव रोकने के लिए कब तक ट्रीटमेंट कार्य शुरू हो सकेगा? इस पर
मौत के साए मे जी रहे प्रभावितों की नजरें गढ़ी हैं।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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