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दुनिया का पहला ऐसा एक्टर जिसे मिला अभिनेत्री का पुरस्कार, डॉ० हरीश अन्डोला

 

 

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

1० अगस्त १९६२ को नैनीताल में श्री हरीश चन्द्र पाण्डे और श्रीमती रेवा पाण्डे जी के घर जन्मे श्री निर्मल पाण्डे ने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी दमदार उपस्थिति से एक अच्छा खासा मुकाम हासिल किया। इनका पैतृक गांव पान बड़ैती, द्वाराहाट, जिला अल्मोड़ा है। इन्होंने प्राथमिक से इण्टर तक की शिक्षा नैनीताल से ग्रहण की, इसके बाद डी०एस०बी० कालेज नैनीताल से से बी०काम० और एम०ए० की शिक्षा ग्रहण की। सी०आर०एस०टी० में पढ़ाई के दौरान ही वे नाटकों और रामलीलाओं में अभिनय करने लगे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने भीमताल के ब्लाक आफिस में क्लर्क की नौकरी भी की। लेकिन शिक्षा काल में ही रंगमंच की ओर रुझान होने के कारण सरकारी नौकरी उन्हें रास नहीं आई। सो इस्तीफा देकर थियेटर की सेवा करने वे फिर से नैनीताल पहुंच गये। नैनीताल की प्रसिद्ध नाट्य संस्था “युगमंच” से वे १९८९ में जुड़े और इस दौरान उन्होंने कई नाटकों का मंचन किया और कई नाटकों में अपनी दमदार अभिनय कला से लोगों के मन में अपनी अमिट छाप छोड़ी। युगमंच में वह एक अच्छे अभिनेता के साथ-साथ एक अच्छे निर्देशक के रुप में भी जाने जाते थे। जिनमें जिन लाहौर नी देख्या, हैमलेट, अजुवा बफौल, अंधायुग, अनारो, सराय की मालकिन, मेन विदाउट शईडोज, एल्डरसन, कुछ तो करो  आदि नाटक शामिल हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा के साथ ही टीवी इंडस्ट्री में भी काम किया था. हिंदी सिनेमा में ऐसे बहुत कम एक्टर्स हैं जिन्हें फ्रांस का बेस्ट एक्टर वैलेंटी अवॉर्ड दिया गया है. निर्मल पांडे का नाम भी इस सूची में शामिल है. जब निर्मल अल्मोड़ा में पढ़ाई कर रहे थे तब ही उन्हें फ़िल्मी दुनिया ने अपनी ओर आकर्षित किया और अभिनेता भी फिल्मों में करियर बनाने के सपने संजोने लगे थे. निर्मल पांडे ने अदाकारी के गुर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से सीखे थे. वे दिल्ली आ गए और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया. यहां अपने साथियों के बीच वे एक चर्चित थिएटर आर्टिस्ट के रूप में पहचान रखने लगे. अमोल पालेकर द्वारा निर्देशित दायरा हिन्दी सिनेमा की सबसे जबरदस्त फिल्मों में से एक मानी जाती है. इस फिल्म में निर्मल एक किन्नर की भूमिका में देखें गए थे. उनका काम इतना बेहतरीन था कि साल 1997 में निर्मल को फ्रांस में बेस्ट एक्टर वैलेंटी अवॉर्ड दिया गया. उनकी बेहतरीन अदाकारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे दुनिया के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया था.एनएसडी में दाखिला लेने के बाद और बॉलीवुड में नाम कमाने से पहले निर्मल पांडे को लंजन जाने का मौक़ा मिला था. लंदन में भी उनकी अदाकारी का जादू चला और उन्होंने यहां तारा थिएटर ग्रुप के अंतर्गत चर्चित प्ले हीर रांझा और एंटीगोन में काम किया. निर्मल ने इनके अलावा लंदन में रीब 125 प्ले में काम किया और उनकी अभिनय को खूब सराहा गया.‘वन 2 का 4’ और ‘शिकारी’ जैसी फिल्मों में भी उनके काम को बहुत पसंद किया गया था१९८६ में निर्मल पाण्डे जी ने मुंबई का रुख किया। १९९४ में प्रसिद्ध निर्देशक शेखर कपूर ने उन्हें अपनी फिल्म बैंडिट क्वीन में विक्रम मल्लाह का चुनौतीपूर्ण रोल दिया, जिसमें वे शत-प्रतिशत खरे उतरे। आज भी निर्मल दा का जिक्र आते ही बन्दूक पकड़े विक्रम मल्लाह की ही छवि पहले सामने आती है। इस फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद निर्मल दा को अनेक फिल्में मिली, जिनमें औजार, इस रात की सुबह नहीं, दायरा,ट्रेन टू पाकिस्तान, प्यार किया तो डरना क्या, जहां तुम ले चलो, गाड़मदर, हम तुम पे मरते हैं, हद कर दी आपने, शिकारी, वे टू का फोर, दीवानगी, आंच, हातिम, पाथ, लैला, प्रिंसेज डाली और उसका मैजिक बाक्स (टी०वी० सीरियल, स्टार प्लस), आजा नचले, राजकुमार आर्यन, देशद्रोही और लाहौर शामिल है। मार्च, २०१० में प्रदर्शित होने वाली लाहौर फिल्म उनकी आखिरी फिल्म है।निर्मल दा ने हमेशा चुनौतीपूर्ण किरदारों को ही अपने कैरियर में तरजीह दी, अमोल पालेकर निर्देशित फिल्म दायरा में जब उन्हें एक अभिनेत्री का किरदार निभाने को कहा गया तो उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और १९९७ में उसके लिये उन्हें फ्रांस के प्रसिद्ध वालेंतिये पुरस्कार से नवाजा गया। गौरतलब है कि यह पुरस्कार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये दिया गया था और यह पुरस्कार पाने वाले वे विश्व के पहले अभिनेता थे। एक अभिनेता को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिलना उस अभिनेता के चुनौतीपूर्ण अभिनय कौशल को ही प्रदर्शित करता है।टी०वी० शोज के दौर में गब्बर मिक्स के लिये उन्हें चैनल वी ने भी सम्मानित किया, इसके अलावा उन्होंने एक एलबम जज्बा भी जारी किया। फिल्मों से भले ही निर्मल दा को पहचान मिली हो, लेकिन रंगमंच के लिये उनका दिल हमेशा धड़कता रहा। कुछ समय के लिये उन्होंने तारा आर्टस ग्रुप, लन्दन  के लिये भी कार्य किया और लगभग १२५ नाटकों में काम किया। उन्होंने अपने थियेटर ग्रुप संवेदना  की स्थापना १९९४ में की और एक अभिनय स्कूल फ्रेश टेलेन्ट अकादमी  की स्थापना गाजियाबाद में की। अपने थियेटर ग्रुप संवेदना के द्वारा उन्होंने धर्मवीर भारती द्वारा लिखित अंधायुग और १८ दिन मंचित होने वाली महाभारत का भी मंचन किया। निर्मल दा ने रंगमंच के लिये भारत में ही नहीं बल्कि लंदन, फ्रांस, जापान और आस्ट्रेलिया में भी कार्य किया।18 फरवरी 2010 को मुंबई में आख़िरी सांस ली थी. जानकारी के मुताबिक़, उन्हें दिल का दौरा पड़ा था और महज 48 वर्ष की अल्पायु में ही वे दुनिया छोड़ गए. ‘इस रात की सुबह नहीं’, ‘प्यार किया तो डरना क्या मार्च, २०१० में प्रदर्शित होने वाली लाहौर फिल्म उनकी आखिरी फिल्म है।निर्मल दा ने हमेशा चुनौतीपूर्ण किरदारों को ही अपने कैरियर में तरजीह दी, अमोल पालेकर निर्देशित फिल्म दायरा में जब उन्हें एक अभिनेत्री का किरदार निभाने को कहा गया तो उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और १९९७ में उसके लिये उन्हें फ्रांस के प्रसिद्ध वालेंतिये पुरस्कार से नवाजा गया। गौरतलब है कि यह पुरस्कार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये दिया गया था और यह पुरस्कार पाने वाले वे विश्व के पहले अभिनेता थे। एक अभिनेता को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिलना उस अभिनेता के चुनौतीपूर्ण अभिनय कौशल को ही प्रदर्शित करता है। निर्मल दा बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे, वे एक अच्छे अभिनेता, नाट्यकर्मी, निर्देशक, संगीतज्ञ और गायक भी थे। नैनीताल के लोग आज भी उनकी गायी होलियों को याद करते हैं।जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि निर्मल ने कम समय में ही बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई थी। इसी के साथ ही हमारा  निर्मल पाण्डे उर्फ नानू उर्फ परुवा डान नाम का चमकता सितारा अनन्त में विलीन हो गया। थे,  उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।सरकारी अमले का ध्यान इस तरफ खींचने की कोशिश भी की गयी मगर कोई सफलता नहीं मिली

 

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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