पौड़ी-उत्तराखण्ड:-कोरोना महामारी से बचाव व रोकथाम में 24×7 जीजान से सेवाएं दे रहे एनएचएम कर्मचारी प्रदेश सरकार द्वारा अनदेखी किये जाने से नाराज़ हैं एनएचएम कर्मचारी पिछले लंबे समय से अपनी मांग के समाधान को लेकर गांधीवादी तरीके से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार लगातार कर्मचारियों की अनदेखी करती आ रही है।
राजीव रावत ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाले लाभ भी प्रदेश सरकार एनएचएम कर्मचारियों को नहीं दे पा रही है। साथ ही एनएचएम कर्मचारी अत्यधिक कम मानदेय पर कार्य कर रहे हैं। संगठन से जुड़े सभी कर्मचारियों ने समान पद समान वेतन के लिए सरकार से मांग की है।
संगठन से जुड़े मनीष भट्ट ने बताया वे समय-समय पर एनएचएम कर्मचारियों के सूक्ष्म हितों के लिए कभी रक्तदान करके, कभी काम के घण्टे बढ़ाकर गांधीवादी तरीके से आंदोलन करते रहे हैं। जब आज का सत्तापक्ष विपक्ष में था तब वे एनएचएम कर्मियों की मांग का जायज़ कहते रहे और मांग पूरी करने के लिए कांग्रेस सरकार को कहते रहे लेकिन आज जब प्रदेश में उनकी सरकार है तो वे भी अन्य सरकारों की भांति एनएचएम कर्मचारियों की मांग को नज़रंदाज़ कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में एनएचएम कर्मचारियों को 15 फीसदी परफारमेंस बोनस दिया था किंतु यह बोनस आज तक इन कर्मचारियों को नहीं मिला है। सरकार को संज्ञान लेना चाहिए कि कोरोना महामारी से बचाव व रोकथाम में लगातार एनएचएम कर्मचारी जुटे हुए हैं। लेकिन हमें कोरोना वॉरियर्स की श्रेणी में ही नहीं रखा गया।
संगठन पदाधिकारी निम्मी कुकरेती ने कहा कि राज्य ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में संचालित हो रही विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों में कार्यरत NHM कर्मी अपना सम्पूर्ण योगदान जनहित में बिना किसी भी के अपनी जान की परवाह किये बिना सरकारी ढांचे के साथ मिलकर कोविड से लड़ाई लड़ रहे हैं किन्तु उत्तराखण्ड की सभी सरकारों द्वारा NHM कर्मियों के हितों को जानबूझकर दरकिनार किया है। एनएचएम कर्मियों के गांधीवादी तरीके से किये जाने वाले आंदोलन को हमेशा अनदेखा, अनसुना कर दिया जाता है। तो क्या सरकारें तभी मानेंगी जब उग्र आंदोलन से आम जनता को परेशान होना पड़ेगा? जब हरियाणा सरकार एनएचएम कर्मियों के हितों का ध्यान रखते हुए उन्हें सुरक्षित भविष्य प्रदान कर सकती है तो उत्तराखण्ड सरकार क्यों नहीं?
सरकार एक ओर भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात करती है और दूसरी ओर यह निर्णय लेती है कि NHM में अब आगे से नई भर्तियां विभिन्न बाहरी एजेंसियों के माध्यम से होंगी। व्यवहारिक सी बात है कि एक ओर NHM कर्मियों को न्यूनतम मानदेय दिया जाता है और दूसरी ओर वाह्य एजेंसी को बीच में लाकर भ्रष्टाचार की नई खिड़की खोल दी गई है। सरकार विचार करे कि क्या बिना कोई सर्विस चार्ज लिए ये एजेंसियां नए कर्मियों की भर्ती करेंगी? शायद नहीं। तो क्या 15 हज़ार (उदाहरण) का मानदेय कागजों में दिखाकर 10 या 12 हज़ार मानदेय कर्मी को दिया जाएगा ? बाकी आउट सोर्स कम्पनी की जेब में जायेगा। आखिर अनुबन्ध पर कार्य करने वाले कर्मियों के साथ ऐसा अन्याय क्यों? जब मेहनत कर्मचारी करेगा तो उसके मानदेय से सर्विस चार्ज आउट सोर्स कम्पनी को क्यों दिया जाना चाहिए? आखिर सरकारें ऐसे निर्णय क्यों लेती है जो कर्मचारियों के हक में न हो। NHM कर्मी फील्ड में स्क्रीनिंग, स्वास्थ्य परीक्षण, कोविड केयर सेंटर से लेकर फील्ड स्तरीय रिपोर्टिंग एवं वाररूम में ऑनलाइन पोर्टल पर एंट्री एवं पूरी रिपोर्टिंग का काम देख रहे हैं किंतु सरकार की अनदेखी और अन्याय से ये कर्मी क्षुब्ध एवं हताशा हैं। आशीष रावत, मनमोहन पटवाल, श्वेता गुसाईं, दुर्गा नेगी, ममता पटवाल, प्रदीप रावत, रेखा, डॉ नेहा आदि सभी ने कर्मचारियों की समस्याएं शेयर की।
अब उत्तराखण्ड सरकार को चाहिए कि एनएचएम कर्मियों को उनका परफॉर्मेंस अनाउंस शीघ्र दिया जाए। समान कार्य, समान वेतन का बिल केबिनेट में पास करके एनएचएम में सेवाएं दे रहे कर्मियों के साथ सरकार न्याय करे।