सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को हुआ था, वे भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री थे। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता के बाद देशी रियासतों के एकीकरण में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। हैदराबाद को भारत में शामिल करने में उनकी भूमिका काफी अहम थी। वे 15 अगस्त, 1947 से लेकर 15 दिसम्बर, 1950 तक देश के पहले गृह मंत्री तथा उप-प्रधानमंत्री रहे। उनकी मृत्यु 15 दिसम्बर, 1950 को हुई थी। भारत के लौह पुरुष के रूप में पहचाने जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल को देश की आजादी के समय देश के एकीकरण जैसे भागीरथ कार्य को अंजाम देने के लिए जाना जाता है. वे देश के पहले गृहमंत्री थे. आजादी के समय भारत पाकिस्तान के बंटवारे की प्रक्रिया को सुचारू रूप से करने के अलावा उस समय देश भर में चल रहे हिंदू मुसलमान दंगों से निपटने के लिए उनका अविस्मरणीय योगदान था.आजादी के बाद देश को एकीकृत करने के बाद सरदार पटेल का देश विदेश तक में बहुत सम्मान हुआ था. उन्हें 1948 से 1949 तक नागपुर, इलाहबाद, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, उस्मानिया यूनिवर्सिटी , पंजाब यूनिवर्सिटी मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी गई. वहीं उससे पहले जनवरी 1947 वे पहले ही टाइम मैगजीन के कवर पेज पर आ चुके थे. ब्रिटिश शासन के दौरान भी उन्होंने कई बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया था और आजादी के बाद, उन्हीं के प्रयासों के चलते रियासतों को एक कर भारत में शामिल किया उनके अमूल्य योगदान, जो देश कभी नहीं भुला सकता. 22 साल की उम्र में मैट्रिक परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए. वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे. उन्होंने गुजरात में शराब, छूआछत.सरदार वल्लभभाई पटेल के महान व्यक्तित्व और महान विचारों को आज उनके स्मृति दिवस पर कोटि-कोटि नमन एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की रचना का महान कार्य किया है. वह भारत की एकात्मता और अखंडता के प्रतीक हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्र की अखंडता व एकात्मता के प्रतीक, वंचितों और अशक्तों के सशक्त स्वर, ‘लौह पुरुष’ सरदार पटेल द्वारा आजादी की लड़ाई के दौरान और आजादी की लड़ाई के बाद जिस प्रकार की भूमिका का निर्वहन किया गया, वह आज भी प्रासंगिक और हम सबके लिए प्रेरणादयी है. गुजरात में सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा का निर्माण कराकर उनके योगदान को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। यह दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा है। पटेल के स्मरण से उस राजनीतिक परिवार का चेहरा भी बेनकाब होगा जो अपने दुराग्रह के कारण बीते सात दशकों तक लौहपुरुष की उपलब्धियों की अनदेखी करता रहा। अब वे कितनी भी कोशिशें कर लें, लेकिन उनकी विरासत कभी हासिल नहीं कर पाएंगे। सरदार अब एक अरब से ज्यादा कृतज्ञ लोगों के दिलों में बस गए हैं।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।