चीड़ के पेड़ों ने बढ़ाया दायरा, एक्सपर्ट हुए हैरान; जंगलों से लेकर यह होगा नुकसान
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश समेत देश के कई हिमालयी राज्यों में पाए जाने वाले बांज (ओक) के जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। यह बात वन अनुसंधान संस्थान के वनस्पति विज्ञानियों के अध्ययन में सामने आई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक दोनों राज्यों में तेजी से पनप रहे चीड़ के जंगल बांज के जंगलों की जैवविविधता को भी प्रभावित कर रहे हैं।
उत्तराखंड चीड़ ऊंचे पहाड़ों पर अपना दायरा Stay रहा है। सामान्य तौर पर निचले हिस्से में मिलने वाला चीड़ अब पहाड़ो पर दो हजार मीटर से ऊंचे पर्वतों पर भी दिख रहा है। इससे वन विभाग और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ गई है। चीड़ को यदि फैलने से नहीं रोका गया तो ये भविष्य में मिश्रित वनों को प्रभावित करेगा और इसका असर जलस्रोतों पर पड़ेगा।
विशेषज्ञ हर साल बारिश में आ रही कमी और बढ़ते तापमान को इसकी वजह मान रहे हैं। उत्तराखंड में 8 लाख हेक्टेयर में चीड़ का जंगल है। सामान्यतः ये पेड़ 1800 मीटर या इससे नीचे होते हैं। पर बागेश्वर फॉरेस्ट डिवीजन ने अब 2500 मीटर तक ऊंचाई पर भी चीड़ के जंगल चिह्नित किए हैं। 2450 मीटर ऊंची कौसानी क्षेत्र के पिनाथ की चोटी और 2500 मीटर ऊंचे कपकोट के शिखर टॉप में चीड़ है।
ये होगा नुकसान
1. चीड़ के पत्ते जमीन की ऊपरी सतह की नमी को सोखकर काली मिट्टी को लाल मिट्टी में तब्दील करते हैं।
2. जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ने में सहायक साबित होता है।
3. औषधीय फल धिंघारू, हिसालू, बेडू के वजूद को खत्म करता है।
4. स्वतः उगने वाली वनस्पति को खत्म कर देता है।
5. इसके पत्ते बारिश में बहकर एक जगह जमा हो जाते हैं, जो पानी का रुख बदल देते हैं।
कम बारिश से जमीन में पानी का लेवल कम होने के कारण चीड़ को तेजी से पनपने में आसानी हो रही है। यह आसपास के अन्य पेड़ों को नहीं पनपने देता है। जो हमारे इको सिस्टम के लिए एक चेतावनी है।
वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी डॉ. एचएस गिनवाल की अगुवाई वाली वैज्ञानिकों की टीम ने अध्ययन में पाया कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बांज के जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। प्राकृतिक रूप से उग रहे चीड़ के जंगल बांज के जंगलों की जैवविविधता को तहस-नहस कर रहे हैं।
चीड़ के जंगलों की वजह से बांज की जेनेटिक डायवर्सिटी तेजी से कम हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार दोनों राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में जलस्रोतों के साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता को संरक्षित करना होगा। साथ ही बांज के जंगलों को संरक्षित करने को लेकर कारगर कदम उठाने होंगे।
शोध के अनुसार एक तरफ चीड़ के जंगल बांज के जंगलों को तहस-नहस कर रहे हैं। वहीं वनस्पति विज्ञानियों ने अपने शोध में यह भी पाया है कि पर्यावरण में आए बदलाव और बांज के जंगलों के अत्यधिक दोहन से भी इनके जंगलों का अस्तित्व खतरे में है। खेती में इस्तेमाल होने वाले कृषि उपकरणों को बनाने में बांज की लकड़ियों का इस्तेमाल किए जाने से इनके पेड़ों का हर साल बड़े पैमाने पर कटान होता है जो चिंता का विषय है।
वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के जिन इलाकों में बांज के जंगल पाए जाते हैं वहां पानी की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में रहती है। बांज के जंगल बारिश के दौरान वर्षा जल को तेजी से अवशोषित करने के साथ ही उसे संरक्षित करते हैं और फिर धीरे-धीरे जलस्रोतों को रिचार्ज करने का काम करते हैं। इससे आसपास के इलाकों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
वनस्पति वैज्ञानिकों के मुताबिक बांज के जंगलों से ना सिर्फ बेशकीमती लकड़ियां मिलती हैं, वरन इनकी पत्तियों को पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। जो पत्तियां सूख कर गिरती हैं उनसे खाद बनाई जाती है। जिसका इस्तेमाल खेती में होता है । जंगलों के तेजी से खत्म होने से कीमती लकड़ियों के साथ पशुओं के चारे का भी संकट खड़ा हो जाएगा।