देहरादून

उत्तराखण्ड का पारंपरिक गढ़ भोज का सुभारम्भ 15 जनवरी से होने जा रहा है।

देहरादून-   हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी व सहयोगी संगठन उत्तराखण्ड के पारंपरिक भोजन को राष्टीय और अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर पहचान दिला कर आर्थिकी से जोड़ने के लिये वर्ष 2021 को गढ़ भोज वर्ष के रूप मे मना रहा है।इसका शुभारम्भ 15 जनवरी 2021 को राजकीय बालिका इंटर कालेज राजपुर रोड़ देहरादून में किया जायेगा।
जैसे कि राज्य आन्दोलन का सूत्र वाक्य रहा ‘कोदा झंगोरा खाएंगे उत्तराखण्ड बनाएंगे’  ने ना सिर्फ एक राज्य के विचार को बल्कि एक ऐसे विचार को भी जन्म दिया था जो मूर्त रूप लेने पर यहां की छोटी जोत वाली कृषि पर आधारित आर्थिकी और बाज़ार व्यवस्था में छोटे किसानों के उत्पादों की मांग और उपलब्धता गावों में ही कराकर सुधार ला सकता है।
उत्तराखंड का पारंपरिक भोजन यहां की जलवायु के चलते स्वादिष्ट, पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर है। इसी उदेश्य से हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी वर्ष 2001 से ही विभिन्न संगठनो के साथ मिल कर उत्तराखंड के पारम्परिक भोजन को पूरे देश में गढ़ भोज नाम से पहचान, लोकप्रियता और गुजराती, पंजाबी व दक्षिण भारतीय आदि भोजन की तरह हर जगह उसकी उपलब्धता के लिए प्रयासरत है।
जाड़ी संस्थान के सचिव व गढ़ भोज अभियान के सूत्रधार द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कहा की यह दुनिया का पहला अभियान होगा जो स्थानीय भोजन को बाज़ार व पहचान दिलाने के लिये चलाया जा रहा है। काफी हद तक सफलता भी मिली है जो आज गांव के चूल्हे से लेकर बड़े होटलो के मेन्यू का हिस्सा बन रहा है।
गढ़ भोज वर्ष 2021 के दौरान राज्य सरकार से सप्ताह के एक दिन अनिवार्य रुप से मिड डे मील में, सरकारी कैंटीनों, होटलों और ढाबों में गढ़ भोज परोसने का आग्रह किया जायेगा। इसके अलावा स्कूली शिक्षा में निबंध प्रतियोगिताओं, रैलियों और विभिन्न संगठनों के साथ जन जागरुकता कार्यक्रम आदि आयोजित कर गढ़ भोज व उत्तराखंड की पारम्परिक फसलों की जानकारी दी जाएगी।
गढ़ भोज अभियान के सदस्य और आगाज फेडरेशन के अध्यक्ष  श्री जे पी मैठाणी ने कहा अपने औषधीय गुणों के कारण गढ़ भोज कोरोना के दौर में आमजन की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक हुआ है । जहां गढ़ भोज की लोकप्रियता उत्तराखंड की आर्थिक आत्मनिर्भरता में सहयोगी होगी वहीं यह समस्त देश वासियों और विश्व को स्वाद और सेहत की अनुपम भेंट होगी। उनकी संस्था वर्तमान में परम्परागत बीजों के संरक्षण  का कार्य भी कर रही है
इंटर एजेंसी ग्रुप की समन्वयक श्रीमती कुसुम घिल्डियाल ने कहा कि हिमालय के अनाज हिमालय की पहचान है इसलिए अनाजों के संरक्षण के साथ पर्यटन आदि के क्षेत्र में गढ़ भोज एक नयी पहचान बनाएगा ।
गढ़ भोज अभियान के सद्स्य विकास पन्त ने कहा की आज का युवा अपने पारम्परिक भोजन व फ़सलों की जानकारी से दूर होता जा रहा । हमारी कोशिश रहेगी कि युवाओ को इसकी पहचान और गुणवत्ता में अपनी जड़ो से जोड़ने का प्रयास किया जायेगा।
अभियान के शेफ टीका राम पंवार ने कहा की हम उत्तराखण्ड के पारम्परिक भोजन को नये फ्यूजन मे बनाने के लिये प्रयासरत है।
      अभियान के देव सिंह ने कहा की सरकार को सरकारी योजनाओ से भी पारम्परिक भोज को बाज़ार मे  प्रोत्साहित करने के लिये योजना मे शामिल कर सहयोग करने की आवश्यकता

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