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नियति की मार देखिये 70 साल की बुजुर्ग महिला को अपनी 3 पोते पोतियों के साथ सरकारी बने टॉयलेट में करना पड़ रहा है गुज़र बसर।

सोशल मीडिया, टेलीविजिन,  पर सरकारों के अरबो रुपये के विज्ञापन  देखने को मिल जाते है। लेकिन जब हकीकत में धरातल पर देखने को जो मिलता है। उस पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। आज के दौर में इंसान आधुनिकता की ओर बढ़ चुका है। रहन सहन ऐशो आराम सब मे बदलाव ला चुका है। ऐसे में इस तरह के समाचार देखकर आश्चर्य होना लाजिमी है। सरकार ऐसा नही है कि काम नही कर रही है। सब हो रहा है। कहा विफलता है ये देखने वाली बात है। असल मे कही पर दस्तावेजों की कमी से सरकारी योजना नही मिल पाती है। कही पर  निकम्मे अफसरों के कारण गरीब को सरकारी मदद नही मिल पाती है।

लेकिन ज़मीनी हकीकत देखो तो लगता है कि आजादी के इतने दशक बाद भी हमारे देश में मूलभूत ज़रूरतों की आपूर्ति नहीं हुई है. एक शर्मनाक ख़बर में करीब 70 साल की एक बुजुर्ग महिला अपने तीन पोते-पोतियों के साथ 3 ft x 4 ft x 6 ft के टॉयलेट में रहने को मजबूर है. यह टॉयलेट स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाया गया था. ये चारों लोग पिछले दो महीने से यहां रह रहे थे.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, यह घटना ओडिशा के अंगुल जिले के बाईसाना गांव की है. विमला प्रधान नाम की महिला 5 साल और 8 साल की दो लड़कियों और 6 साल के एक लड़के के साथ उस टॉयलेट में रह रही थी, बच्चों की मां की मौत के बाद उनका पिता उन्हें छोड़कर चला गया.

 

प्रधान ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, पहले वह मिट्टी के घर में रहती थी और अधिकतर समय काम की तलाश में जंगल और गांवों में भटकती रहती थी. उन्होंने कहा, “मेरे पास ज़मीन नहीं है, जहां जगह मिलती है, वहीं रहती हूं. अब मेरे तीन बच्चे भी हैं. इस सीजन में बारिश के बाद, मिट्टी का घर क्षतिग्रस्त हो गया था. हाल ही में शौचालयों का निर्माण किया गया था और कोई भी उनका उपयोग नहीं कर रहा था. इसलिए मैं बच्चों के साथ चली गयी. हमने खुले में खाना बनाया और रात को बारिश होने पर बच्चे अंदर सो गए. हमारे पास अब और कुछ नहीं है.”

स्थानीय कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप के बाद महिला और बच्चों को बुधवार को अस्थायी रूप से और बाद में एक पुनर्वास केंद्र में पंचायत कार्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया. यह पूछे जाने पर कि क्या उसने मदद के लिए प्रशासन या ग्राम पंचायत से संपर्क किया है, बिमला ने कहा, “वे दस्तावेज़ मांगते हैं और मेरे पास कोई कागज़ नहीं हैं. मैं काम की तलाश में आगे बढ़ती हूं. मैं लॉकडाउन के कारण एक जगह फंस गयी थी.”

 

आवश्यक दस्तावेजों के बिना इस परिवार को सरकारी सहयोग और सुविधा जैसे राशन भी नहीं मिल पा रहा था. एरिया के BDO श्यामल रे ने कहा कि मामले की जांच होगी कि आखिर इनकी हालत पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई. फ़िलहाल के लिए परिवार को पुनर्वासित किया गया है. बच्चों को अनाथालय भेजकर उनका स्कूल में दाखिला होगा

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