देहरादून

प्रदूषित गंगा कौन हैं इसके गुनाहगार? डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

हिन्दू धर्म में 20 प्रमुख नदियों का जिक्र है। प्रमुख नदियों में से 4 नदियां- सिन्धु, सरस्वती, गंगा और ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलती हैं। शेष इन्हीं नदियों की सहायक नदियां हैं या फिर वे प्रायद्वीपीय नदियां हैं अर्थात जिनका हिमालय की नदियों से कोई संबंध नहीं है। इनमें से सरस्वती अब लुप्त हो गई है। सरस्वती के लुप्त होने के पीछे दो कारण है- प्राकृतिक और मानव की गतिविधि।

 

उसी तरह गंगा यदि मर रही है  उत्तरकाशी को मां गंगा का मायका कहा जाता है। यहां भागीरथी के नाम से तो ऋषिकेश के बाद गंगा के नाम से इस नदी को पुकारा जाता है। इस नदी के प्रति लेागों की आस्था ही है कि इसे मां गंगा या गंगा मैय्या कहा जाता है। नदी के प्रति मां के समान आस्था होने के बावजूद लोग अपनी कलुषित मानसिकता के चलते गंगा को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।मानो तो गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी’, यह एक गीत की पंक्तियां हैं लेकिन वर्तमान मंर अपने मायके से ही मैली हो रही भागीरथी के लिए एकदम सटीक बैठती हैं। गंगोत्री से महज सौ किमी दूर भागीरथी (गंगा) कूड़े के पहाड़ के कारण मैली हो रही है और इस प्रदूषित गंगाजल से ही लोग आचमन कर रहे हैं। तांबाखाणी सुरंग के साथ लगी सड़क के किनारे (भागीरथी नदी के किनारे) पालिका पूरे शहर का कूड़ा डंप कर रही है। यह कूड़ा सीधे भागीरथी में गिर रहा है जिसके कारण भागीरथी प्रदूषित हो रही है।गंगा अपने मुहाने पर ही प्रदूर्षित हो रही है, इसकी चिंता न जिला प्रशासन को है और न पालिका और न गंगा स्वच्छता से जुड़ी राज्य और केंद्र की नमामि गंगे जैसी एजेंसियों को। पांच साल पहले नगर पालिका बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) ने तांबाखाणी सुरंग से लगी सड़क के किनारे कूड़ा डंपिंग जोन बनाया था। भागीरथी इस सुरंग के और शहर के ठीक बीच में बहती है। आगे ऋषिकेश पहुंच कर यही भागीरथी नदी पवित्र गंगा के नाम से जानी जाती है।

 

नगर पालिका का कहना है कि शहर में कहीं भी डंपिंग जोन के लिए जगह नहीं है। यहां क्षमता से अधिक एकत्र कूड़ा अब पहाड़ का रूप ले चुका है। यह कूड़ा नीचे नदी में गिर रहा है और ऊपर हाईवे पर भी फैल रहा है। बारिश होने पर कूड़े का पानी सीधे नदी में मिल जाता है। प्रधानमंत्री ने जब 2014 में बनारस से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था, तो उन्होंने कहा कि उन्हें गंगा मैया ने यहां बुलाया है। उनकी यह बात सुनकर बहुत से लोग भावुक भी हुए। पूर्व प्रधानमंत्री के समय गंगा संरक्षण परियोजना की अनेक खामियों को गिनाकर गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए नए सपने दिखाए गए और नमामि गंगे परियोजना प्रारंभ की गई। इसके लिए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का गठन किया गया। गंगा की सफाई के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया।

 

 

वर्ष 2019 तक गंगा को पूरी तरह निर्मल करने का आश्वासन भी दिया गया था, जिसके अंतर्गत गंगोत्री से गंगासागर के बीच में अनेक सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए गए।गंगा घाटों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद पटना के गांधी घाट और गुलाबी घाट पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जनवरी 2023 में कराए गए एक अध्ययन से पता चला कि 100 मिलीलीटर गंगाजल में टोटल कॉलीफॉर्म यानी खतरनाक जीवाणुओं की संख्या 1.60 लाख तक पहुंच गई है, जबकि यहां वर्ष 2021 में कॉलीफॉर्म की संख्या 16,000 थी। यह स्थिति शहर में बढ़ते अंधाधुंध सीवरेज के कारण है। गंगा में इतना ज्यादा प्रदूषण है कि यदि इसको फिल्टर भी किया जाए, तो यह स्वच्छ नहीं हो सकती है। वैसे बिहार में गंगा की यह स्थिति बक्सर से लेकर कहलगांव तक है।उत्तर प्रदेश में भी मेरठ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी में जल शोधन के लिए जो 35 एसटीपी बनाए गए हैं, उनमें से 27 की क्षमता मानक के अनुसार नहीं है, यानी इन शहरों की जितनी गंदगी गंगा में जा रही है, वह पूरी तरह साफ नहीं हो पा रही है। यहां गंगा के किनारे के शहरों से लगभग 230 गंदे नाले बह रहे हैं, जो प्रतिदिन 2,450 एमएलडी गंदा पानी गंगा में उड़ेल रहे हैं। यहां सभी 35 एसटीपी प्लांट काम करने लगे, तो उनसे 1,493 एमएलडी गंदे पानी का शोधन होना चाहिए, लेकिन इनमें से केवल आठ-नौ एसटीपी भी पूरी तरह काम नहीं कर पा रहे हैं। इस बारे में पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ ने कहा है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का काम बहुत धोखा देने वाला है। यह पैसे बांटने की मशीन बन गई है। उच्च अदालत ने कहा कि जमीन पर काम नहीं दिखाई दे रहा है।

 

अदालत ने पर्यावरण इंजीनियरों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया।
दूसरी ओर जहां गंगा का उद्गम है, वहां की हालत चौंकाने वाली है। गंगोत्री और यमुनोत्री में आ रहे लाखों पर्यटकों द्वारा जमा हो रहे प्लास्टिक कचरे के ढेरों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है। हालांकि उत्तरकाशी प्रशासन की कोशिश है कि पर्यटकों द्वारा फेंकी जा रही कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की प्लास्टिक बोतलों को एकत्रित किया जाए। जो पर्यटक अपनी खाली बोतल कलेक्शन सेंटर में जमा करेंगे, उन्हें पांच रुपये भी दिए जाएंगे।

 

पिछले वर्ष गोमुख ग्लेश्यिर के पास यात्रा सीजन में 10 हजार किलोग्राम से अधिक कचरा इकट्ठा हुआ था।भारतीय वन्यजीव वैज्ञानिकों की एक टीम के द्वारा हाल में किए गए शोध से पता चला है कि गंगाजल को शुद्ध रखने वाले मित्र जीवाणु प्रदूषण के कारण तेजी से विलुप्त हो रहे हैं।

 

 

भागीरथी नदी में गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक कई स्थानों पर मित्र जीवाणुओं की संख्या बेहद कम हो गई है। यही स्थिति अलकनंदा नदी में माणा से लेकर देवप्रयाग तक बताई जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दोनों नदियों में जल को साफ रखने वाले जीवाणुओं का कम पाया जाना इस बात का संकेत है कि यहां पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं है। माना जा रहा है कि ऑल वेदर रोड के निर्माण का मलबा सीधे नदियों में डाला जा रहा है। नदियों के किनारे बसे गांव व शहरों से निकलने वाला गंदा पानी भी बगैर ट्रीटमेंट के ही नदियों में सीधे प्रवाहित हो रहा है।शोध से यह बात सामने आई है कि बैटिरयाफोस बैक्टीरिया गंगाजल में उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थ को खाते रहते हैं, जिससे गंगा जल की शुद्धता बनी रहती है।प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, विष्णुप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक गंगाजल पीने लायक नहीं है। हरिद्वार में तो गंगा में केवल नहा ही सकते हैं। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने अब तक बद्रीनाथ से लेकर हरिद्वार तक 31 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा दिए हैं, जो अभी पूरी तरह से गंगा में पहुंच रही गंदगी को नहीं रोक पाए हैं। उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञों की ओर से भी यह बात सामने आ रही है कि गंगा और यमुना में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जहां घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 10 पाई गई, वहीं उत्तरकाशी में यमुना नदी में इसकी मात्रा 10, 8 मापी गई, जो निर्धारित मानक पांच से बहुत अधिक है। नदियों में निरंतर घट रही जल राशि के कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है। नदियों के उद्गम क्षेत्र में अब बर्फ पड़ना बहुत कम हो गया है।वैज्ञानिक तो गंगा की स्थिति से चिंतित हैं ही, पर्यावरण संरक्षण में लगे लोग भी सवाल उठा रहे हैं कि गंगा के उद्गम से लेकर गंगासागर तक के बीच प्रतिदिन लाखों हरे पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं? कब उद्योगों के कचरे को गंगा में जाने से रोकेंगे? संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट अनुसार गंगा को सदानीरा बनाए रखने वाला हिमनद सिर्फ 16 साल और किसी न किसी तरह जिंदा रहेगा। यह हिमनद धीरे-धीरे पिघलता जा रहा है। उसके बाद यह पूरी तरह लुप्त हो जाएगा। आशय यह है कि गंगोत्री ही सूख जाएगी तो गंगा में वह पानी कहां से आएगा? ।

 

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

 

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