देहरादून

उपेक्षित धरोहरों की चिंता, चिंतन और संरक्षण की दरकार डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

हम विश्व विरासत दिवस मना रहे हैं ऐसे में इस दिवस की सार्थकता के लिए जरूरी है कि जनता और सरकार सदियों से उपेक्षित धरोहरों को संभालने, संवारने और जीवित रखने पर भी विचार करें। यही नहीं, यूनेस्को ने जिन स्थलों को विरासत स्थल घोषित किया है उनमें भी अधिकांश की स्थिति अच्छी नहीं है। हमारे देश भारत में अभी तक 40 विश्व धरोहर घोषित की गई हैं। इनके अलावा भी हजारों विरासत स्थल हैं जो उपेक्षा की वजह से अस्तित्व का संघर्ष कर रहे हैं। कई तो धूल धूसरित हो अपना अस्तित्व ही खो चुके है। देश को छोड़ हम राजस्थान की ही चर्चा करें तो अनेक धरोहरों की हालत के बारे में समय -समय पर लेखकों और मीडिया उल्लेखनीय है कि 2013 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने भी अपनी तरह के पहले भौतिक सत्यापन अभ्यास के पश्चात देश भर में 92 स्मारकों को ‘लापता’ घोषित किया था। कैग की रिपोर्ट में तब यह भी रेखांकित किया गया था कि एएसआइ के पास संरक्षित स्मारकों एवं कलाकृतियों का कोई लिखित ब्योरा नहीं है। स्मारकों के गायब होने का मामला 2017 में लोकसभा में भी उठा था। तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने तब ऐतिहासिक एवं संरक्षित स्मारकों की विलुप्ति एवं अतिक्रमण के प्रश्न पर उत्तर देते हुए कहा था कि ‘अरुणाचल में कापर टैंपल, असम के तिनसुकिया में शेरशाह की बंदूकें, दिल्ली में बाराखंभा और बंगाल के नदिया जिले में बमनपुकुर किले के खंडहर गायब हो चुके हैं और उनका पता नहीं लगाया जा सकता।जिन स्मारकों का पता नहीं लगा है, उन्हें खोजने के लिए पुराने रिकार्ड का सत्यापन, रेवेन्यू मैप, प्रकाशित रिपोर्ट, भौतिक निरीक्षण और टीमों की तैनाती की गई है।’ सुखद है कि कैग द्वारा लापता घोषित 92 स्मारकों में से 42 को पुनः ढूंढ़ लिया गया है। इसके लिए एएसआइ ने पिछले आठ वर्षों में 8,478 गांवों का सर्वेक्षण किया है। इन गांवों में 2,914 पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं, जिन्हें सहेजने का काम चल रहा है। अब तक 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्थित केंद्र संरक्षित स्मारकों एवं स्थलों से चोरी की 210 घटनाएं हुई हैं, जिनमें 486 वस्तुएं अपने स्थान से गायब हुईं, उनमें से 91 वस्तुएं बरामद कर ली गई हैं और अन्य की बरामदगी के प्रयास चल रहे हैं।सरकार को यह याद रखना होगा कि ये धरोहरें देश की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पहचान एवं गौरव की जीवंत प्रतीक हैं। ये अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ने वाली कड़ी हैं। ये वर्तमान द्वारा भविष्य को सौंपी जाने वाली अमूल्य थाती हैं। इनका क्षरण देश की सभ्यता-संस्कृति का क्षरण है। इनका संरक्षण केवल जागरूकता एवं जिम्मेदारी का ही नहीं, अपितु यथोचित राष्ट्रभक्ति एवं सम्यक राष्ट्रबोध का भी विषय है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि विरासतों पर गर्व की बातें तो खूब की जाती हैं, पर उन्हें संरक्षित करने की दिशा में ठोस एवं आवश्यक कदम नहीं उठाए जाते। द्वारा समाचार पत्रों की सुर्खियों में देखने को मिलता है। अकेले हाड़ोती में ही राज्य पुरातत्व विभाग के अधीन करीब 55 संरक्षित स्मारक हैं और इससे कहीं अधिक असंरक्षित हैं। दरा घाटी में गुप्तकालीन शिव मंदिर के 4 स्तंभ मंदिर होने का अहसास कराते हैं। संरक्षित स्मारकों के हालात ऐसे हैं तो इस सूची के बाहर अन्य स्मारकों का तो क्या कहें। ऐसे स्मारकों को खोजबीन कर लेखक प्रकाश में लाते रहते हैं। आजादी के 75 सालों में और 42वें विश्व धरोहर दिवस के संदर्भ में देश में सबसे ज्यादा ह्रास विरासत का हुआ और आज भी उपेक्षित ही बनी हुई है। सवाल उठता है कि आखिर हमारी गौरवशाली धरोहर का संरक्षण, रखरखाव और जीर्णोद्धार कैसे हो? एक कदम यह हो सकता है कि पुरातत्व विभाग के स्मारकों में एक कील भी नहीं लगेगी जैसे नियमों का सरलीकरण किया जाना चाहिए। स्मारकों के जीर्णोद्धार और रख-रखाव में जनभागीदारी को व्यापक रूप से जोड़े जाने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में बेशकीमती मूर्तियां चोरी कर ली जाती हैं। जरूरी है कि संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए दो स्तर पर कार्ययोजना बनाई जाए, एक लघु अवधि की तात्कालिक योजना और दूसरी लंबी अवधि की दीर्घकालिक योजना। व्यापक सर्वेक्षण  कर धरोहरों की सूची बने और उसके आधार पर स्थिति का आकलन करते हुए एक ब्लू पिं्रट तैयार हो और कार्यकारी योजना बनाई जाए। जो बीत गया,जितना क्षरण हो चुका उसकी भरपाई तो संभव नहीं, पर जो कुछ बचा है उसी को बचाने और संरक्षित रखने पर आज के दिन विचार हो तो यही इस दिवस की सार्थकता हो सकती है। विश्व धरोहर दिवस के संदर्भ में चर्चा करें तो सांस्कृतिक धरोहर स्थलों में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, शिलालेख, गुफा आवास, विश्व महत्व वाले स्थान, इमारतों का समूह, अकेली इमारत,मूर्तिकारी-चित्रकारी-स्थापत्य की झलक वाले स्थल, ऐतिहासिक, सौंदर्य एवं मानव विज्ञान तथा विश्व दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को शामिल किया जाता है। प्राकृतिक धरोहर स्थलों में वन क्षेत्र, जीव, प्राकृतिक स्थल, भौगोलिक महत्व के ऐसे स्थान जो नष्ट होने के करीब हैं, आदि वैज्ञानिक महत्व के स्थलों को शामिल किया जाता है। जो स्थल सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, उन्हें मिश्रित धरोहर में शामिल किया जाता है। विश्व धरोहर में शामिल होने का सिलसिला वर्ष 1983 से अनवरत चल रहा है। भारतीय सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से भारत में वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश में आगरा का ताजमहल एवं किला, महाराष्ट्र में अजंता एवं एलोरा की गुफाएं, वर्ष 1984 में उड़ीसा राज्य का कोणार्क मंदिर व तमिलनाडु के महाबलीपुरम के स्मारक, वर्ष 1985 में असम का काजीरंगा राष्ट्रीय अभयारण्य तथा असम का मानस राष्ट्रीय अभयारण्य, वर्ष 1986 में गोवा का पुराना चर्च, कनार्टक में हम्पी के स्मारक, मध्यप्रदेश में खजुराहो के मंदिर एवं स्मारक व उत्तर प्रदेश में फतेहपुर सीकरी, वर्ष 1987 में महाराष्ट्र में एलीफैंटा की गुफाएं, तमिलनाडु का चोल मंदिर, कर्नाटक में पट्टाइक्कल के स्मारक, पश्चिम बंगाल का सुंदरवन राष्ट्रीय अभयारण्य को विश्व धरोहर में शामिल किया गया। ऐसे ही वर्ष 1989 में मध्यप्रदेश स्थित सांची के बौद्ध स्तूप, वर्ष 1993 में दिल्ली का हुमायूं का मकबरा एवं कुतुबमीनार तथा मध्यप्रदेश में भीमवेटका, वर्ष 2002 में बिहार में महाबोधि मंदिर बौधगया, वर्ष 1999 में पश्चिम बंगाल में भारतीय पर्वतीय रेल दार्जिलिंग, वर्ष 2004 में गुजरात में चंपानेर पावागढ़ का पुरातत्व पार्क तथा महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, वर्ष 2005 में उत्तराखंड में फूलों की घाटी एवं तमिलनाडु में भारतीय पर्वतीय रेल नीलगिरी, वर्ष 2007 में दिल्ली का लाल किला, वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश में भारतीय पर्वतीय रेल कालका-शिमला, वर्ष 2012 में पश्चिमी घाट कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, वर्ष 2014 में गुजरात में रानी की वाव पाटन तथा हिमाचल प्रदेश में ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान कुल्लू एवं वर्ष 2016 में चंडीगढ़ कैपिटल कॉम्पलैक्स, कंचनजंगा नैशनल पार्क सिक्किम, नालंदा, बिहार, 2018 में विक्टोरिया गोथिक एंड आर्ट मुंबई, महाराष्ट्र, 2021 में कालेश्वर मंदिर तेलंगाना और 2022 में हड़प्पा सभ्यता, धोलावीरा, गुजरात को विश्व विरासत घोषित किगया। राजस्थान में वर्ष 1985 में भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय अभयारण्य प्रथम बार विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। इसके उपरांत वर्ष 2010 में जयपुर के जंतर-मंतर तथा वर्ष 2013 में पहाड़ी किलों में आमेर का किला सूची में शामिल किया गया। विश्व विरासत दिवस पर संरक्षित धरोहरों का स्मरण अच्छा है
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत  हैं।

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